Monday 9 October 2017

                                                                                      नयी सोच की तलाश

                        विद्याधर बाबू तड़के सुबह उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर छत पर काफी देर तक चक्कर लगाते रहते हैं | फिर नीचे उतरकर नाश्ता करते हैं और हिन्दी अंग्रेजी के दोनों अखबार लेकर ऊपर कमरे में चले जाते हैं | घण्टे सवा घण्टे में दोनों अखबारों का कचूमर निकाल देते हैं | फिर थोड़ी देर लेट लेते हैं ,शीशा देखते हैं कि दाढ़ी कहीं इतनी अधिक बढ़ तो नहीं गयी है कि अशोभन लगे | दो तीन दिन तो चल ही सकती है | ग्रीष्म की शुरुआत होनें वाली है | दिन अच्छे खासे बड़े होनें लगे हैं | समय कैसे कटेगा ? रिटायरमेन्ट के सत्रह- अठारह साल हो गये हैं | शरीर अभी चल -फिर लेता है | मन भी अभी पूरी तरह नहीं थका है | विद्याधर बाबू आस -पास के पार्कों में दो चार चक्कर लगानें निकल जाते हैं | कभी तिकोना पार्क ,कभी हनुमान पार्क , कभी बाबा लक्ष्मणपुरी पार्क ,कभी जै राधे पार्क और कभी गोकरण पार्क | पार्क में कोई वृद्ध समवयस्क मिल गया तो गपशप हो जाती है नहीं तो छाँह में पड़ी किसी बेन्च पर बैठ कर कुछ देर के लिये सुस्ताते हैं फिर घर वापसी | उस दिन बाबा हनुमान पार्क में बेन्च पर एक सज्जन लेटे थे शायद उन्हें ठंडी छाँह में कुछ झपकी आ रही थी | सज्जन धोती और कमीज पहनें हुये थे और उनकी चप्पलें घास पर रखी थीं | विद्याधर बाबू पार्क के दूसरी तरफ पड़ी एक बेन्च पर कुछ देर के लिये बैठ गये | दूसरी तरफ की बेन्च पर लेटे वृद्ध सज्जन पांच -दस मिनट बाद उठे और चप्पलें पैरों में अटकाकर पार्क को क्रास करनें लगे | विद्याधर बाबू ने देखा कि उन सज्जन की आयु पैंसठ -सत्तर के आस -पास होगी | उन्हें लगा कि घर में उन्हें कोई विशेष काम नहीं है और उन्हीं की तरह वो भी पार्क में समय काटनें आये होंगें | जब वे सज्जन बेन्च के पास आ गये तो विद्याधर बाबू नें उन्हें अपनें पास बुलाकर बैठनें को कहा | वृद्ध सज्जन ने सहज भाव से उनके पास आकर बैठना स्वीकार किया और सबसे पहले यह बात बतायी कि आज सुबह वह मन्दिर में पण्डित जी का प्रवचन सुननें के लिये गये थे | पर मन्दिर के बाहर आँगन में उन्होंने पाया कि उनकी चप्पलें कोई और पहन गया है | सभी चले गये थे और यह एक जोड़ा चप्पल पड़ा था | इसलिये उन्होंने इस जोड़े को पैरों में डाल लिया | उनकी चप्पलें नयी थीं पर इसी किस्म की थीं | यह जोड़ा पुराना है हो सकता है किसी नें गलती से नया जोड़ा पैरों में डाल लिया हो | हो सकता है किसी ने जान -बूझकर ऐसा किया हो | विद्याधर बाबू ने कहा , "चलिये  हटाइये ,काम चल गया दूसरा जोड़ा पहन लीजियेगा |"  वे बोले यहां बडी  महंगायी है | तीन दिन से दाढ़ी नहीं बनी है | नाई दाढ़ी बनवायी के दस रुपये और बाल बनवायी के बीस रुपये माँगता है | हमारे गाँव में दाढ़ी तीन रुपये में और बाल कटाई छह रुपये में हो जाती है | विद्याधर बाबू ने उन सज्जन की मुंह की ओर गौर से देखा पाया कि वृद्ध सज्जन का एक दांत बाहर निकलकर हिल रहा है और कई दांत गिर गये हैं | उनकी धोती भी अधिक साफ़ नहीं है और कमीज भी कई दिनों की पहनी हुयी लग रही है | सोचा कि ये शायद यहां के निवासी नहीं हैं किसी दूसरे राज्य से आये हैं | पूछा कि वे कहाँ से आये हैं ? उन सज्जन ने बताया कि वे बिहार के जहानाबाद के पास से किसी गाँव से आये हुये हैं | उनका लड़का यहां किसी फैक्ट्री में मैनेजर है वे गाँव वापस जाना चाहते हैं पर लड़का कहता है कि प्राइवेट नौकरी में छुट्टी मुश्किल से मिलती है ,कुछ दिन के बाद इन्तजाम करूंगा | विद्याधर बाबू के पूछने पर उन्होंने अपना नाम मधुसूदन बताया और बताया कि वे जाति के मुहार हैं | गया के आस -पास मुहार जाति की काफी बड़ी संख्या है | हम लोग बनिया मानें जाते हैं | अब बात -चीत का सिलसिला प्रारंम्भ  हो गया | विद्याधर बाबू तो सत्तर पार ही कर चुके हैं | मधुसूदन भी सत्तर के आस -पास चल रहे हैं | समवयस्क ही समझिये | विद्याधर बाबू को मधुसूदन की बात समझनें में काफी कुछ मशक्कत करनी पड़ रही थी क्योंकि उनकी भाषा भोजपुरी ,हिन्दी और मैथली का मिला -जुला रूप लिये थी | पर यत्न करने पर समझा जा सकता था |
विद्याधर :- घर में कौन कौन है ?
मधुसूदन :- लड़का ,बहू और दो बच्चे | बड़ा लड़का और छोटी लड़की ,लड़का किसी अंग्रेजी स्कूल में पढता है | 3000 रुपये महीनें का खर्च है | बस आकर ले जाती है | लड़की वहीं पास के स्कूल में पढ़ती है ,छोटी है |
विद्याधर :- आपके लड़के का यहां आना कैसे हुआ ?
मधुसूदन :- जैसे तैसे बच्चे को बारहवीं तक पढ़ाया था | फिर मशीन का एक साल का कोर्स कराया | छह महीनें घर पर बेकार बैठा रहा | गाँव में किरानें की छोटी सी दुकान है | जहानाबाद से माल मंगा लेता हूँ और गाँव में बेचता रहता हूँ | खेती बारी नहीं है पर काम चल जाता है | फिर बच्चे की मां बीमार पड़ गयी | लकवा मार गया | इलाज कराया तो कुछ ठीक सी हो गयी | छह महीनें बाद फिर लकवा मार गया | फिर कुछ ठीक सी होनें लगी | फिर चल बसी | तीन लड़कियां थीं उन सबको व्याह चुका हूँ | अपनें से छोटी लड़की के व्याह में इस लड़के ने भी मदद की थी | लड़के  के मां को गये पांच छह महीनें हो गये | उधर का एक लड़का यहां फैक्ट्री में काम करता है | उसी के साथ लड़के ने मुझे बुलवा लिया | मैनें भी सोचा अकेले में मन नहीं लगता कुछ दिन बहू बेटे के संग रह आऊं |
विद्याधर बाबू :- यह तो बड़ी अच्छी बात है अब आराम से बेटा- बहू के साथ रहिये | पोता पोती  से बोलिये ,बतलाइये | घर जाकर क्या करेंगें | वहां तो आप अकेलेपन से ऊब जायेंगें | आप का समय कैसे कटता है | अखबार पढ़ लेते हैं |
मधुसूदन :- दसवीं तक पढ़ा हूँ|  यहां के अखबार में हमारी तरफ की ख़बरें न के बराबर होती हैं | फिर भी उल्टा -सीधा देख लेता हूँ | लड़का सुबह आठ बजे काम पर चला जाता है और रात को साढ़े आठ बजे वापस आता है | लड़का ,लड़की पढ़ने चले जाते हैं | बहू ने कह दिया है आप उनके जानें के बाद खाना खा लें फिर चाहे जहां घूमें | शाम को वापस आ जांय  | अब मेरी यहां कोई जान -पहचान तो है नहीं ,इन्द्रा कालोनी से गौड़ स्कूल वाली सीधी सड़क पर चलकर पार्क में आ जाता हूँ | कभी -कभी उठकर हनुमान जी की मूर्ति   देख आता हूँ |प्यास लगनें पर प्याऊ से पानी पी लेता हूँ और फिर पार्क में बैठ -लेट लेता हूँ | गाँव में अकेलापन कट जायेगा पर यहां कटना बहुत मुश्किल है |
विद्याधर :- सुबह के बाद शाम तक बाहर बैठनें ,लेटनें में आपको बीच में कुछ खानें -पीनें की जरूरत नहीं पड़ती | आप के पास खर्चे के लिये थोड़े -बहुत रूपये तो होते ही होंगें |
मधुसूदन :- हम लोग साधारण आदमी हैं | जिस फैक्टरी में हमारा लड़का मैनेजर है वहां के मशीन के कारीगर भी ज्यादातर बिहार के हैं | वे समझते हैं कि सुनील बाबू बड़े घर के हैं | पर मुझे झूठ बोलनें से क्या ? पास बुक में चार ,पांच हजार रुपये होंगें | वह पासबुक मैनें लड़के को दे दी है | हप्ते में दस -बीस रुपये दाढ़ी बनवानें के लिये लड़के से मांग लेता हूँ | अपनें हाँथ से दाढ़ी बनानें की आदत मुझे नहीं है | गाँव के किसी भी बूढ़े को नहीं है | वहां नाई दरवाजे पर आ जाता है |
विद्याधर :- मधुसूदन जी ,आपके गाँव की दुनिया तो अभी तक नहीं बदली , कहते हैं अब लल्लू यादव की जगह नितीश कुमार आ गये हैं | पिछले पांच साल में उन्होंने चमत्कार कर दिखाया है इसीलिये जनता ने उन्हें फिर पांच साल के लिये गद्दी पर बिठा दिया है | आपके लड़के को हरियाणा में यह नौकरी क्या बिना सिफारिश के मिल गयी थी |
मधुसूदन :- अरे नहीं उन दिनों हमारे इलाके से गणेश यादव एम ० पी ० थे | उनका एक दामाद ,उनकी एक लड़की हरियाणा के ऊँचें यादव परिवार में व्याही है | दामाद की एक फैक्ट्री इस शहर में भी है | मैं लड़के को लेकर  गणेश यादव के पास दिल्ली आया था, मैं यादव जी की पत्नी के पैरों पर गिर पड़ा और कहा कि मेरे लड़के को लगवाइये | वे दिल्ली अपनी गाड़ी से लड़के को साथ लेकर लड़की ,दामाद से मिलनें आयीं और यह उनके द्वारा फैक्ट्री में लग गया था | उन दिनों मशीन पर मजदूरी का काम ही मिला था | फिर मैं गणेश यादव जी के पास गया और कहा कि मेरे लड़के को सुपरवाइज़र बनवा दीजिये | फैक्ट्री के मालिक ने कहा कि सुपरवाइज़र बननें के लिये 7 से 8 महीनें की एक ट्रेनिंग करनी पड़ेगी | फरीदाबाद में इसका कोर्स है | पैसे जोड़ -जाड़ कर लड़के को उसमें भर्ती करवाया ,तब सुपरवाइज़र लगा था |
विद्याधर :- फिर सुपरवाइज़र से प्रमोशन पाकर अब मैनेजर हो गया है ?
मधुसूदन :-अरे नहीं , अपनें से छोटी लड़की की शादी में घर गया था | 18  दिन की छुट्टी लेकर काम -काज में फंस गया | घर पर भी कुछ मरम्मत करवानी थी | 50 -55  दिन लग गये | नौकरी छूट गयी | अब क्या करता ? फिर दौड़ कर गणेश यादव के पास पहुंचा ,बहुत चिरिया -बिनती की तब उनकी पत्नी फिर अपनी लड़की दामाद से मिलनें आयीं फिर दामाद ने कहा हम दूसरी फैक्ट्री में इसे लगवा देंगें | वहां मैनेजर लग जायेगा | अब किसी दूसरी फैक्ट्री में मैनेजर का काम कर रहा है |
विद्याधर :- बार -बार एम ० पी ० के पास पहुंचते रहे | दामाद ने भी दूसरी फैक्ट्री में लगवाया | फरीदाबाद में ट्रेनिंग भी करवानी पड़ी | कुछ ऊपर का लेन -देन तो नहीं हुआ ?
मधुसूदन :- आप भी हमारी ही तरह से बुजुर्ग हैं | आप से क्या छिपाऊँ ,लेन -देन के बिना हिन्दुस्तान में क्या कोई काम हो सकता है ? न ट्रेनिंग में दाखिला मिल सकता है ,न नौकरी मिल सकती है , अधिकतर लोग चुप्पी साधे रहते हैं | पर जो पैसा जाना था चला गया | अब मुझे चिन्ता यह है कि लड़के की प्राइवेट नौकरी है फिर कहीं छूट न जाय , रास्ते में कई बार गाड़ियां बदलनी पड़ती हैं | अकेले जानें की हिम्मत नहीं पड़ती | उसे छुट्टी नहीं मिल रही है | इधर बहू का व्यवहार भी कई बार मुझे चोट पहुंचाने लगा है | अभी कल ही उसनें पोते को एक थप्पड़ लगायी तो मैनें उससे कहा कि लड़का बड़ा हो रहा है उसे मारना ठीक नहीं | आँखें तरेर कर बोली तोहार क्या ? मुझे इतना बुरा लगा कि मैं डेरा छोड़कर सारा दिन पार्क में चहल कदमी करता रहा | शाम को सुनील आया ,थके -मादे लड़के से दुःख का क्या रोना ? फिर भी मैनें उससे बात बतायी तो उसनें जवाब दिया कि आप बीच में दखल न दिया करो जैसा चलता है चलनें दो | और जब पोता और पोती मेरे कोई  होते ही नहीं तो मेरे यहां रहनें में क्या सुख है  ? मैं अपनें घर गाँव में ही जैसी  जिन्दगी कटेगी काट लूंगा | गांव में एक दूसरे से राम -राम तो होती रहती है और कहीं भी बैठ जाओ तो कोई बुरा नहीं मानता | पहाड़ जैसा दिन बातों -बातों में कट जाता है |
विद्याधर :- देखो मधुसूदन मैं जानता हूँ तुम्हारा मन बहुत दुखी है | पर मनुष्य को अपनी परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है | अभी तो तुम्हें कम से कम 10 -15 साल तो जीना ही है | आगे भी चल सकते हो | मैं तुम्हें एक राय देता हूँ बोलो मानोगे  तो कहूँ |
मधुसूदन :- मेरा मन तो गाँव में लगा है | होली भी निकली जा रही है | अपनी छोटी मोटी दुकान चला लूंगा | बंद पडी है | उपलों पर छोटी मोटी लकड़ियां जुटाकर दो रोटी सेंक लूंगा | बहू के तानें तो सुननें को नहीं मिलेंगें | विद्याधर ने कहा एक छोटी सी घटना से परेशान हो गये |
 मधुसूदन :- अरे एक नहीं कितनी बातें मैं आपसे बताऊँ | अभी उस दिन मेरे पास रोटी के साथ सब्जी रखी मैनें उंगली से सब्जी को छुआ भी नहीं अलग से चम्मच में  सब्जी उठाकर चखी ,बहुत चरचरी थी | कटोरी अलग हटा दी | प्याज के फांकों के साथ रोटी खा ली | फिर शाम को भी मेरे खानें के साथ वही सब्जी मेरे सामनें रख दी | मैनें फिर उसे सामने से अलग सरका दिया | रात को लड़का जब वापस आया तो उससे शिकायत की कि तुम्हारे बाबू बरबादी मचाये हैं | इतनी मंहगायी में मैं सब्जियां तलाश कर लाती हूँ और वे नापसन्दगी का ड्रामा करते हैं | लड़के नें भी मेरे को ही समझाने की कोशिश की जो मिले खा लिया करो | अब क्या करूँ बूढ़ा हो गया हूँ | पेटवा हजम नहीं कर पाता | मेरे मन का तो बन ही नहीं सकता |
विद्याधर :- देखो तुम आज शाम को लौटकर अपनें लड़के से कहना कि तुम्हें 150 रुपये रोज की एक नौकरी मिल रही है  | तुम्हें एक दुकान पर सुबह नौ बजे जाना है और शाम को आठ बजे के बाद घर वापस आना है | तुम दसवीं पास हो | तुम्हें कुछ हिसाब -किताब लिखना होगा | और चीजों की निगरानी करनी होगी | मेरे एक दोस्त हैं जो बड़े आदमी हैं उनके कई गोदाम हैं ,चीजें आती -जाती रहती हैं ,उनका रिकार्ड रखना होता है | कुछ ज्यादा पढ़े -लिखे लोग लगे हैं ,उन्हें सहायता के लिये विश्वास के आदमी चाहिये | तुम अभी स्वस्थ्य लगते हो | चार पांच साल तो सहज में ही खींच जाओगे | कल मैं इसी समय पार्क में फिर आ जाऊंगा | विश्वास से बात करना ,घबराना नहीं ,यदि कोई उल्टी -सीधी बात हो तो तुम्हारे सोने और खानें का इन्तजाम भी हो जायेगा | इतना कहकर विद्याधर बाबू उठनें लगे | मधुसूदन नें उठकर उनकी ओर देखकर पूछा आप मुझसे भी बुजुर्ग हैं ,हंसी तो नहीं कर रहे हैं?
विद्याधर :- अरे मधुसूदन, इस उमर में अपनी उमर के आस -पास के साथी से हंसी करूंगा ? तुम्हीं ने तो बताया था कि गणेश यादव अब चुनाव हार गये हैं और नितीश की पार्टी का आदमी चुनाव जीता है | जिन्दगी के हर मुकाबले में इसी तरह जीत -हार होती रहती है | सबसे बड़ी हार तब होती है जब आदमी हिम्मत हार जाता है और अर्थ उपार्जन में असमर्थ दिखायी पड़ता है | कल इसी समय मुझसे मिलना ,तुम्हारा चेहरा देखकर मैं जान जाऊंगा कि गाँव वापस जानें के लिये तुम्हारी ललक में कुछ कमी आयी है या नहीं |
                                       इस घटना के दो महीनें बाद मधुसूदन जी अपनें पोते और पोती के साथ प्रत्येक रविवार को पार्क में टहलते नजर आते हैं | कई बार वह अपनी पोती को चटपटे, कुरकुरों का पैकेट  खरीद देते हैं और तब पोता बाबा से जिद करता है कि उसे भी पैकेट खरीद कर दिया जाय | घर पर मम्मीं ने यह कहना बन्द कर दिया है कि ," तोहार क्या ? " अब पोता और पोती मधुसूदन के सभी कुछ हैं | बहू भी उनसे पूछ कर सब्जी लाती है | विद्याधर जी एकाधबार पार्क में उन्हें मिल जाते हैं तो मधुसूदन जी झुककर उनके पैर छूना चाहते हैं | विद्याधर जी ना ना करते हुये दूर हटते हैं और मन में ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि और दुःख यदि देनें ही पड़ें तो प्रभु के उस दान को स्वीकार करना ही होगा पर बुढ़ापे की कंगाली भगवान् मेरे किसी घृणित शत्रु को भी न दें | 9 प्रतिशत आर्थिक प्रगति की दर से विकास करते भारत के माथे पर सबसे बड़े कलंक का टीका असहाय वृद्धजनों की लाचारी है ,और इस लाचारी का प्रमुख कारण है भारतीय जीवन मूल्यों का उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग द्वारा तिरस्कार | बुढ़ापा अब अपने में सम्मान की वस्तु नहीं है ,उसे सम्मानित करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर नयी सोच को जन्म देना होगा |

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