Tuesday 10 October 2017

बोली शहादत की
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कर बोली देना बन्द अगति के व्यापारी
यह गीत बिकाऊ नहीं स्वेद का जाया है
यह गीत समर्पित है खेतों खलिहानों को
 यह  गीत धान की पौद रोपनें आया है
यह गीत गरम लोहे पर सरगम बन गिरता
यह गीत क्रान्ति सिंहासन का द्रढ़ पाया है
यह गीत तुम्हारी माया का मुहताज नहीं
यह गीत श्रमिक के ओठों पर लहरायेगा
यह गीत पहाड़ों की छाती को चीर फाड़
मरुथल में जल की प्रबल लहर ले आयेगा
यह कौंध समेटे है प्रताप के भाले की
यह दस्तावेज न बिकनें वाली वाणीं का
है आगत की अंगड़ाई का यह सूर्य नाद
प्रज्वलित भाल यह रक्तिम क्रान्ति  भवानी का
यह गीत तुला पर तुलनें को बेताब नहीं
यह खनक न बननें आया है मधुप्यालों की
इसमें झांसी की आन ,तात्या का तेवर
हुंकार यहां फांसी पर झूले लालों की
यह गीत स्वर्ण की भस्म न खाकर पलता है
यह गणिका का स्वर नहीं काल की छाया है
कर बोली देना बन्द --------------------
 तुमनें खरीद डाले हैं कितनें ही बजार
कितनें उस्तादों का कल तुमनें मोल लिया
मदिरा की छींटें डाल स्वर्ण की झझरी से
कितनी कलियों का घूंघट तुमनें खोल लिया
कितनें वाणी के पुत्र तिजोरी में धांधे
कितनीं बीणा बिक गयीं खनक दूकानों में
कितनें कत्थक कोठों में बंधकर सिसक रहे
चांदी के घुँघरू बाँध दिये हैं गानों में
तुमनें फसलों को पुखराजी रंग दे डाला
तुमनें ऊषा को स्वर्ण पिटारी पहनायी
रजनी को हीरक हार भेंट दे आये तुम
कुदरत सबकी सब सिमट तिजोरी में आयी
तुम समझ रहे सारी कुदरत बाजारू है
हर स्वर महफ़िल में नापा तोला जाता है
हर चन्द्र बदन सोनें के घूंघट से ढकता
हर घूंघट मोती देकर खोला जाता है
हाड़ी रानी की भेंट मगर क्या भूल गये
जीजाबाई का धर्म कभी क्या जाना है
आजाद ,भगत ,बिस्मिल को नारी नें जन्मा
लपटों से झुलसा पड़ा राजपूताना है
कुछ नर कुबेर का घेर तोड़ने आते हैं
यह गीत उन्हीं नरसिंहों की हमसाया है
कर बोली देना बन्द ----------------------
यह गीत पुत्र बन वृद्धा के घर सोयेगा
यह गीत पिता बन कन्यादान करायेगा
यह गीत दिवाली को दुखिया का घर जगमग
करनें को नभ से नखत दीप ले आयेगा
इसका है मूल्य हंसी शिशु की भोली -भाली
इसका है मूल्य श्रमित शिक्षक का खिल जाना
यह बिना मूल्य ही द्वार दीन के जाता है
पर दुःख में इसका मूल्य व्यथा से हिलजाना
यह बिन पैसे का है गुलाम उन लालों का
जो लिये हथेली पर सिर अपना घूम रहे
जिनको सुकराती राग लग गया है अविकल
विष -कंठ बनें जो गारल -सुधषी झूम रहे
यह जलती जेठ -दुपहरी में तरु- तल बैठे
चरवाहों के श्रम -थकित गात सहलायेगा
यह दही विलोती जसुदा के होठों पर पल
हलधर के हल में नयी शक्ति भर लायेगा
चण्डी के मन में अमर प्यास की चाह जगा
यह छिओ राम कह जग का कलुष मिटायेगा
रैदास भगत के चरण चूम कर प्रात रात
यह वाल्मीक को पालागन कर आयेगा
इसको खरीद सकते हैं सिर -फरोश ,फक्कड़
यह नयी श्रष्टि के बीज सजाकर लाया है
कर बोली देना बन्द -----------------------------


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