Tuesday 19 September 2017

                                                                     धर्म संकट

                    भारत के प्राचीन महाग्रन्थों में अनेक महानायकों के जीवन में ऐसे क्षण आते रहे हैं जिन्हें धर्मसंकट कहा जा सकता है | महाभारत में भीष्म पितामह , युधिष्ठिर , और कौन्तेय ,अर्जुन  सभी ने कर्म क्षेत्र में धर्मसंकट की इन घड़ियों का अनुभव किया था | रामायण काल में भी अयोध्या नरेश दशरथ जैसे महान व्यक्तित्व ने भी धर्म संकट के अनुभव का प्रहार अन्तिम सांस लेकर झेला था | कहते हैं राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी उस समय धर्म संकट की घड़ियों से गुजरे थे जब १९४२ में उनके द्वारा छेड़ा गया भारत छोड़ो आन्दोलन उनके कुछ परमभक्तों द्वारा छुटपुट हिंसाओं में बदलनें लगा था | नोबेल पुरुष्कार से विभूषित महान अर्थशास्त्री अमृत्य सेन ने लिखा है कि गीता में कई स्थलों पर गांडीव धारी अर्जुन के तर्क युगावतारी चक्रधारी श्री कृष्ण के तर्कों पर भारी पड़ते थे | पर ये तो बातें हैं महानायकों की जो भारतीय संस्कृति के आधार स्तंम्भ हैं | पर धर्मसंकट की घड़ियाँ हम सामान्यजनों के जीवन में भी आती रहती हैं  | एक ऐसी ही घड़ी हमारे आदरणीय बड़े भाई सदानन्द पाण्डेय के सामने आ खड़ी हुयी | पिछली बार सोनीपत में उनके निवास पर जब मिलने पहुंचा तो एक अजीब नजारा नजर आया | मैनें पाया कि अपने कमरे में वे १५ -२० व्यक्तियों से घिरे बैठे थे और कुछ तर्क -वितर्क चल रहा था | मुझे देखते ही बोली , " अरे समदर्शी ,दिल्ली आना कैसे हुआ , सब ठीक -ठाक है न ? "फिर अन्दर कमरे की ओर मुंह करके पुकार लगायी , " बहादुर एक कुर्सी और ले आना | मेरा छोटा भाई आया है |"कुर्सी पर बैठकर मैनें कहा ," पाण्डेय जी आप कोई जरूरी मसला हल कर रहे थे , मैनें आप के काम में कोई विघ्न तो नहीं डाला दिया ?" उन्होंने कहा अब तुम आ गये हो तो मिलजुल कर समस्या का समाधान खोजते हैं | मैं तो धर्मसंकट में ही पड़ गया हूँ | पूरी बात सुनने के लिये मैं उत्सुक हो उठा और उन्होंने जो कुछ कहा वह इस प्रकार है |
                                         हिन्दू कालेज सोनीपत से सेवा निवृत्त होने के बाद हमनें यहीं पर बस जानें की योजना बना ली थी | जमीन का एक टुकड़ा टीचिंग काल के दरम्यान ही खरीद लिया था | रिटायरमेन्ट के बाद जोड़तोड़ कर एक मध्य वर्गीय मकान बना लिया और उसी में हम दोनों अब स्थायी रूप से रहने लगे | बच्चे भी दिल्ली में कार्यरत हैं | बच्ची भी दिल्ली में व्याही है | सप्ताहान्त में कोई न कोई आता रहता है | इसलिये अकेलापन महसूस नहीं होता | भाई समदर्शी आप तो जानते ही हैं कि १९६० की दिल्ली और आज की दिल्ली में जमीन -आसमान का अन्तर है | साठ तो साठ ,अस्सी- नब्बे की दिल्ली भी आज के मुकाबले में आधी -तिहायी ही थी | अब तो दिल्ली का मुंह सुरसा की भांति फैलता जा रहा है | महानगरी दिल्ली के आस -पास का क्षेत्र राजधानी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है | नेशनल कैपिटल रीजन में जितने भी छोटे -बड़े कस्बे या शहर थे सब के सब दिल्ली का कल्चर एडाप्ट करने लगे हैं | जमीनों के भाव आसमान छूने लगे हैं | मैनें १००/ रुपये वर्ग गज में जो जमीन खरीदी थी वह आज १५०००/ रुपये वर्ग गज में भी मिलना मुश्किल हो रही है | आपनें देखा ही होगा कि जिस जवाहर कालोनी में मेरा मकान है उसमें न जानें कितनी आलीशान बिल्डिंगे बन गयी हैं | दिल्ली में दौलत के बाढ़ बह बहकर सोनीपत आ पहुंची है | इतना तो ठीक था पर इस दौलत के साथ एक सबसे बड़ी चिन्तित करने वाली बुराई भी राजधानी क्षेत्र के इन शहरों में अपनी सम्पूर्ण भयावहता के साथ फैलनें लगी है | यह बुरायी है मदिरा  सेवन की न छूटने वाली लत जो खाते -पीते घरों के तरुण -तरुणियों को अपनी गुंजलक में लपेटकर दम घोंटती जा रही है | इंग्लैण्ड की तरह का पव कल्चर अब भारत में भी सामान्य होता जा रहा है विशेषतः राजधानी क्षेत्र में | हरियाणा राज्य को शराब के ठेकों से जितनी आमदनी हो रही है वह इतनी आकर्षक है कि हर सरकार इन ठेकों को हर गली कूंचों में पहुचानें के लिये प्रयासरत रहती है | अभी तक जवाहर कालोनी के पीने वाले लोग यहां से लगभग आधा किलोमीटर दूर अम्बेडकर कालोनी में पीने -पिलाने के लिये जाते थे | पर इस वर्ष एक ठेका इस कालोनी के नुक्कड़ पर भी खुल गया है और उसके पास शराब पीने का लाइसेन्स शुदा आहता भी मौजूद है | अभी पिछले १५ दिनों से ही यह ठेका अस्तित्व में आया है | नतीजा यह है कि कालोनी के गली ,मुहल्लों में कोई न कोई गुल -गपाड़ा ,रात का शोर या छीना -झपटी की कहानियां सुनने में आ रही हैं | अभी तीन -चार दिन पहले राधाकृष्ण मन्दिर की तरफ जाती हुयी इस कालोनी की कुछ महिलाओं से शराबियों ने कुछ छेड़खानी की थी | मन्दिर के महन्त एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और उन्होंने स्थानीय विधायक को फोन करके कालोनी से ठेका हटवा देने की बात कही थी | विधायक जी ने उन्हें सुझाव दिया कि मुहल्ले की महिलायें और सभ्य शिक्षित नागरिक डी ० सी ० साहब से मिलकर शराब के ठेके को हटाने की मांग पेश करें जरूरत पडी तो वे इस दिशा में कोई कदम उठायेंगें | बीते कल को मुहल्ले  के १० -२० शिक्षित व्यक्ति मेरे पास आये थे | उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि बुजुर्ग होने के नाते और व्यसन मुक्त जीवन जीने के कारण मैं उनके साथ चलकर डी ० सी ० साहब के सामने उनकी बात रख दूँ | मुझे उनकी बातों में कोई खामी नजर नहीं आयी हाँ मैनें यह अवश्य किया कि अपनी एरिया के म्युनिस्पिल वार्ड के चुनें गए जनतान्त्रिक प्रतिनिधि को भी इस डेलिगेशन में शामिल करने का प्रस्ताव रखा |बात मान ली गयी | चूंकि  म्यूनिसपिल काउन्सलर ज्ञान चन्द्र मेरा पुराना विद्यार्थी था इसलिये उसने भी सहज रूप से मेरे साथ जानें की बात मान ली | डी  ० सी ० साहब के साथ मुलाक़ात का समय तय किया गया और मैनें सारी कालोनी की ओर से शराब के ठेकों को वहां से हटा लेने की बात उनके सामनें रखी | डी ० सी ० साहब बोले , " पाण्डेय जी आपनें मुहल्ले के उस मकान मालिक से बात की है जिसनें अपना कमरा और शराब पीने का अहाता शराब के ठेकेदार को किराये पर दिया है ,सच यह था कि मैनें मकान मालिक हरीश कालरा से इस सम्बन्ध में कोई पूछ -तांछ नहीं की पर मेरे साथ गयी महिलाओं में दो एक ने डी ० सी ० साहब को बताया कि उन्होंने कालरा से बात की थी तो वह कहता था कि उसने ६ महीनें का किराया ६०००० /-एडवान्स में ले लिया है | उसने वह पैसे मकान के पिछले हिस्से में एक कमरा और बाथरूम बनाने में लगा दिये हैं आगे उसे और पैसे की जरूरत है | इतना किराया शराब के ठेके के अलावा और कहाँ मिल सकता है ? उसका मकान मुहल्ले के कोनें पर है | जो पीना न चाहे वह ठेके पर न आवे | अगर कोई वारदात होती है तो पुलिस की जिम्मेदारी है कि वारदात को रोके | मेरा मकान है मैं जिसे चाहूँगा किराये पर दूंगा | शराब पीना कोई जुर्म नहीं है | सरकार भी करोङों , अरबों रुपयों का कर शराब के ठेकों से वसूल करती है , फिर मेरे ऊपर बन्दिश क्यों लगायी जा रही है ?
                          यह सुनकर डी ० सी ० साहब ने मुझसे कहा , " प्रोफ़ेसर साहब आप कालरा से बात कर लीजिये | मैं जानता हूँ कि आपकी बात में वजन है | जब पिछले वर्षों में  वहां ठेका  नहीं था तब  फिर वहां ठेका खोलनें की क्या जरूरत पड़ गयी ? फिर पास में ही राधा कृष्ण का मन्दिर है और उसमें पूजा अर्चना के लिये जानें वाला रास्ता ठेके के पास से ही गुजरता है | अब यदि ठेकेदारों को उस जगह से हटाकर कालोनी के किसी दूसरी ओर ले जाया जाय तो भी उचित नहीं होगा क्योंकि ठेका तो कालोनी में मौजूद ही रहेगा | आप अपना लिखित प्रतिवेदन हमें दे दें हम उसपर अपनी सहमति जताकर उसे आबकारी विभाग में भेज देंगें | हो सकता है मामला मन्त्री तक जाय क्योंकि शराब पीने वालों की लॉबी कुछ कमजोर नहीं है |
                     डी ० सी  ० साहब मुझे निश्च्छल और स्पष्टवादी जान पड़े | भारत के बहुत सारे आफीसर्स अब पश्चिमी सभ्यता की पीने -पिलानें वाली आदत को खुले रूप से स्वीकार करने लगे हैं | मुझे लगा कि डी ० सी ० साहब में अभी गान्धी विचारधारा अपनी पूरी जीवन्तता के साथ विद्यमान है |
                           जब मैनें पाण्डेय जी से यह जानना चाहा कि आज उनके पास घेर कर यह लोग क्यों बैठे हैं ? अब पाण्डेय जी ने कहा , "भाई समदर्शी यही तो धर्म संकट आ खड़ा हुआ है | यह सभी व्यक्ति इसी कालोनी या इसके आस -पास के हैं | इनमें से अधिकतर राज , मजदूर ,बिजली या पानी के मिस्त्री हैं ,और कुछ चौथी श्रेणी के कर्मचारी यह सब मुझसे यह आग्रह करने आये हैं कि मैं इस मामले से अपने को हटा लूँ क्योंकि यह मामला राजनीतिक तूल पकड़ता जा रहा है | मैं यह जानता था कि कालरा एक राजनीतिक पार्टी का सदस्य है और उसे अधिक नशीले ड्रग्स लेने के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ता था | मेरा राजनीति से कोई लेना -देना नहीं है पर ये  सब कह रहे हैं कि कालरा कुछ लोगों और कुछ गैर जिम्मेदार औरतों का डेलीगेशन लेकर डी ० सी ०से मिलने की तैय्यारी कर रहा है | एम ० एल ० ए ० साहब पर भी दबाव डाला गया है और वे अब तटस्थ रुख अपना रहे हैं | लगता है कि वो बोट की राजनीति में फंस गये हैं और जानना चाहते हैं कि बहुमत किस ओर है | पाण्डेय जी ने फिर कहा भाई समदर्शी तुम मेरे अनुज तुल्य हो बताओ मुझे कौन सा पक्ष लेना चाहिये ? मैं जनता हूँ कि पीना कोई कानूनी अपराध नहीं है पर पी कर मतवाला होना और दूसरों की जीवन शैली में दखल देना एक अपराध अवश्य है | फिर सड़क पर किया जानें वाला हुड़दंग तो सामाजिक वर्जना की मांग करता ही है | इन लोगों का कहना है कि यदि एक दो व्यक्ति हुल्लड़बाज हैं तो उन्हें दण्डित किया जाय हम सबको ताजगी के लिये एक दो मील दूर जानें के लिये क्यों मजबूर किया जा रहा है | फिर कालरा अपने मकान के कामर्शियल टैक्स भी दे रहा है | उसे अपनी दुकान किराये पर उठाने का पूरा हक़ है | मैं वोटों की गिनती के चक्कर में नहीं पड़ता पर मुझे लग रहा है कि खुल कर पीने वालों और चोरी छिपे पीने वालों की सारी तादाद को मिला दिया जाय तो उनकी संख्या कुछ कम नहीं है और फिर इस संख्या में कुछ निम्न स्तर की स्त्रियां भी शामिल हो जाती हैं | " पाण्डेय जी ने आगे कहा ,"देखो समदर्शी ,यह निम्न और उच्च वर्ग की बातें समाजवादियों को नहीं भाती और  साम्यवादी तो इन बातों के पीछे कुल्हाड़ा लिये पड़े हैं | पर भाई सच तो यही है कि शिक्षित और कुलीन वर्ग यदि पीता भी है तो औरों की शान्ति के लिये कोई मुसीबत खड़ी नहीं करता } हुड़दंग ,छीना -झपटी और नारी उत्पीड़न की बातें अधिकतर आर्थिक रूप से दुर्बल कहे जानें वाले वर्ग से ही उभर कर आती हैं | बोलो समदर्शी ,मुझे कौन सा मार्ग चुनना चाहिये ? घर बैठकर किताबें पढ़ने का या पक्षधर होकर किसी खेमें के साथ जुड़ने का ? और फिर खेमा कौन सा हो इसका निर्णय भी तुम पर छोड़ता हूँ क्योंकि जानता हूँ कि तुम्हारा फैसला विवेक और व्यवहारिक ज्ञान दोनों से ही भरपूर होगा |
                                       पाण्डेय जी की बात सुनकर मैं पेशोपेश में पड़  गया | मैनें अपने मन में सोचा कि गान्धी जी को स्वयं गुजरात ही ठुकरा रहा है | महाराष्ट्र की बम्बई में तो विदेशी मदिरा की नदियाँ बाह रही हैं | फिर गान्धी दर्शन पर जब स्वतन्त्र भारत ही आग्रह नहीं कर रहा है तो सामान्य सुविधा वंचित नागरिकों से गान्धी आचरण की अपेक्षा क्यों की जाय | पर इससे बात तो नहीं बनती | कालोनी की शान्ति के लिये पाण्डेय जी के प्रश्न का कोई न कोई उत्तर देना ही था | शैक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक " बारहवीं रात (Twelth  Night )में सर टोवी के कहे ये शब्द स्मृति में उभर आये | " Dost Thou think that thou art virtuous, so there should be no more caps and ales ."पर सर टोवी को अंग्रेजी राज्य के समाप्ति के साथ ही भूल जाना क्या बेहतर नहीं होगा ? फिर कुछ निश्चय कर मैनें कहा पाण्डेय जी संकट में धर्म का पक्ष ही लेना चाहिये और गृहस्थ का सबसे बड़ा धर्म है गृहस्थी का सुसंचालन | शास्त्रों में तो यह कहा गया है कि गृहस्थ का धर्म सन्यासी के धर्म से भी बड़ा होता है पर जो अच्छा गृहस्थ है वह सच्चा राष्ट्र भक्त है और वही ईश्वर प्राप्ति का सच्चा अधिकारी है | मैं सोचता हूँ कि जब डी ० सी ० साहब ने ठेका हटा देने की अनुशंसा की है तो एम ० एल ० ए ० साहब को उसमें रुकावट डालने की मजबूरी नहीं होगी हाँ यदि आप मुझे इजाजत दें तो मैं यहां उपस्थित इन लोगों से एक प्रश्न पूछूं | प्रो ० सदानन्द पाण्डेय जी बोले , " भाई समदर्शी ,आप जो चाहें वह  प्रश्न इनसे पूछ सकते हैं | यह सब जब होश -हवाश में होते हैं तो इनसे बेहतर इन्सान मिलना मुश्किल होता है | पीने -पिलाने के समय भी इनकी दोस्ती ऊँचें मचानों पर खड़ी होती है पर पी लेने के बाद ये कभी -कभी बहक जाते हैं |"मैनें उपस्थित उन सभी से पूछा कि यदि उन्हें आपत्ति न हो तो मैं प्रोफ़ेसर सदानन्द जी की पत्नी सुशीला के साथ जो मेरी माता तुल्य हैउनके घरों में जाकर उनकी मां ,बहनों और पत्नियों से यह प्रश्न पूछूं कि क्या वे ठेके के हटा लेने के पक्ष में हैं या ठेके को कालोनी में चालू रखने के पक्ष में | माता सुशीला दूसरे कमरे में बैठे सभी बातें सुन रही थीं और मैं जानता था कि वे मेरी चतुरायी को भांप गयी हैं | मेरे प्रश्न के उत्तर में उनमें से कोई कुछ नहीं बोला | सभी के मुंह नीचे झुक गये | मैनें पाण्डेय जी से कहा , "बड़े भाई आपके धर्मसंकट से उबरने का निश्चय इन सभी के मूक शब्दों में मुखर हो रहा है | "समाज का जो कार्य चाहे वह खान -पान हो ,चाहे रहन -सहन ,चाहे विधि -व्यवहार गृहस्थी की सुख -शान्ति छीनता है उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता | सरकार की बात सरकार जानें पर अपने परिवार की बात तो हमें जाननी ही होगी | धीरे -धीरे यदि जुड़ते हुये परिवारों का स्वर बहुमत में बदल जाता है तो सरकार का निर्णय भी बदल जायेगा | आप निशंक होकर आबकारी विभाग के अधिकारियों से शराब के ठेके को हटा देने की बात कहें | महिलाओं की आवाज आज उतनी ही सशक्त है जितनी मनचले पुरुषों की और सच पूछो तो आदर्श मनुष्य तो वही है जो क्षणिक उत्तेजना को त्याग कर टिकाऊ प्रेरणा को पाने  का प्रयास करता है |  रह गयी बात ठेका के हटने की | उसे आबकारी विभाग पर छोड़ दें | कर्म करना ही हमारा कर्तव्य है | वेणु गोपाल की वंशी भी तो यही स्वर  निकालती रहती है | आइये अब हम आप के साथ चलकर कालरा से भी बात कर लेते हैं | हो सकता है वह पैसों के लालच से उठकर कालोनी के बहुमत के साथ जुड़ने का मन बना ले | यदि ऐसा हो जाय तो समस्या का हल अपने आप निकल आयेगा | यदि कालरा सचमुच आर्थिक  परेशानी में है तो हम उसके लिये भी सम्मिलित रूप से सुझाव का कोई मार्ग खोज सकते हैं |
                                 कुछ ही दूर पर कालरा का घर था | फ़ोन पर प्रो ० पाण्डेय ने उसे सूचित किया | मैनें सामने बैठे व्यक्तियों में से कुछ प्रौढ़ और गंम्भीर व्यक्तियों को चुनकर उनसे निवेदन किया कि वे भी हम दोनों के साथ कालरा से मिलने चलें | ऐसा मैनें इसलिये किया क्योंकि मुझे लग रहा था कि कालरा ने उन व्यक्तियों को लालच देकर ही उनके द्वारा यह भीड़ इकठ्ठा करवायी थी और पाण्डेय जी के पास उनसे मिलने भेजा था | कुछ ही देर के बाद हम सब कालरा के साथ उसके ड्राइंग रूम में बातचीत के लिये जा उपस्थित हुये | कालरा के यहां जानें से पहले मैं भीतर के कमरे में पाण्डेय जी की पत्नी माता तुल्य सुशीला जी से यह निवेदन कर आया था कि वे पड़ोस की तीन -चार सम्मानित महिलाओं को अपने यहां बुला लें | यदि आवश्यकता पड़ी तो उन सबको कालरा के घर की महिलाओं से सम्पर्क साधना होगा |
                                  कालरा ने हम सबका  ड्राइंग रूम में आदर भाव से स्वागत किया | बोला  प्रोफ़ेसर पाण्डेय जी मैं तो  आपकी  बड़ी इज्जत करता हूँ | आप लोगों को लेकर डी ० सी ० से मिलने चले गये | राधा कृष्ण मन्दिर के महन्त जी ने भी एम ० एल ० ए ० जी से मेरी शिकायत कर डाली | यह ठीक है कि मैं नशाखोर रहा हूँ पर आप ने आज तक मेरे विषय में कोई बदचलनी की बात सुनी है | कालोनी में किसी ने मेरी तकलीफ जानने की कोशिश की | दुकान और अहाता ६ महीनें से खाली पड़े थे | कोई किराये पर लेने आता तो मेरे निकट  पड़ोस के दो -तीन घर उसे यह कहकर भगा देते कि शराबी है और नशीलची है | क्या पता क्या कर बैठे | हम सबका इसपर विश्वास नहीं है | बात दरअसल यह है कि अपनी सब्जी मण्डी की छोटी -मोटी दुकान से मेहनत करके मैनें इतनी कमायी कर ली है कि पड़ोस के घरों से मेरा घर अच्छा बन गया है | दो -तीन पड़ोसी भीतर ही भीतर मेरे से ईर्ष्या कर रहे हैं | उनकी भी दुकानें सब्जी मण्डी में हैं पर मेरा थोक का काम उनसे ज्यादा होता है क्योंकि मैं मिलनसार हूँ | वे कहते हैं कि शराबी भाई कालरा के साथी हैं और इसप्रकार मुझे बदनाम करते रहते हैं | प्रो ० साहब आप यह तो मानेंगें ही कि मैं कुछ भी खाऊं पीऊं पर मैनें अपने घर की पत्नी और बहू को न तो कभी भला -बुरा कहा है और न हाँथ लगाया है | हाँ मैं बीमार अवश्य पड़ता रहा हूँ | पर अब तो सारे नशे भी छोड़ चुका हूँ | मुझे भी गुस्सा आ गया और मैनें पड़ोसियों के व्यवहार से तंग आकर शराब के एक छोटे ठेकेदार को यह दुकान और अहाता किराये पर दे दिया | यदि आप जैसे लोग मेरे निकट पड़ोस में होते तो ये नौबत क्यों आती | कालरा ने मेरा परिचय जानना चाहा | पाण्डेय जी ने बताया कि यह मेरा छोटा भाई है और स्टेट बैंक की कनाट प्लेस शाखा का मैनेजर है | मैनें कालरा को नमस्ते करते हुये हाँथ जोड़े और कहा , " बड़े भाई आपकी बात सुनकर मेरे मन में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी | सचमुच आप बहुत  अच्छे इन्सान हैं | सुनते हैं आपनें ६ महीनें का किराया एडवान्स में ले लिया है ,आप पैसे की तंगी से गुजर रहे हैं | मेरे पास बैंक की कुछ स्कीमें हैं यदि चाहें तो मैं बहुत अच्छी शर्तों पर आपको ऋण दिलवा सकता हूँ | कालरा ने हंस कर कहा मैनेजर साहब कालरा बेवकूफ नहीं है | उसे पता है कि वह दुकानों को शराब का अड्डा बनाकर सारे कालोनी की दुश्मनी मोल ले लेगा | मैनें कोई एडवान्स -फेडवान्स नहीं लिया है | सच तो यह है कि मैनें ठेकेदार को यह कहकर फंसाया है कि वह मुझे पूरे एक महीनें के बाद किराया दे दे और वो भी जितना चाहे उतना | ऐसा मैनें इसलिये किया कि कुछ टुच्चे लोग सुबह -शाम मुझे नीचा दिखाने में लगे रहते थे | वे अपने को महात्मा समझते हैं और मुझे शराबी -कबाबी कहकर निन्दित करते हैं | और फिर आप और प्रोफ़ेसर साहब जैसे लोग भी तो कभी मेरे पास बैठकर मुझे बराबरी का मानने को तैय्यार नहीं थे इस बहाने मैनें अपनी इज्जत हासिल की है | मैनेजर साहब कालरा कच्चा खिलाड़ी नहीं है ,वह अपनी मेहनत से पैसे कमाता है और दूसरों की मदद करना जानता है | ठेकेदार ने तो पहले ही एक जगह देख रखी है आज रात ही उसका सब माल वहां पहुँच जायेगा | कल सुबह इस अहाते में कीर्तन का आयोजन होगा | प्रोफ़ेसर साहब भाभी को लेकर अवश्य आइयेगा | फिर उसने ऊंची आवाज में अन्दर के कमरे की ओर मुंह करके कहा अरी भाग्यवान देख तो कौन आया है | कुछ खानें -पीने को नहीं लायेगी | मैनेजर साहब और प्रोफ़ेसर साहब के साथ हमारे तीन आदमी पंचकौड़ी ,महंगू और घसीटा भी मौजूद हैं | इन सबको मैनें ही तो प्रोफ़ेसर साहब के पास भेजा था | तभी बाहर से कुछ लड़कियों की खिलखिलाती हुयी हंसी सुनायी पड़ी | कालरा की पोती मन्जीत बारहवीं में पढ़ती थी | अपनी सहेलियों के साथ स्कूल के  Functionसे लौटकर आयी थी | अन्दर आकर हँसते हुये बोली बाबा देखो मैनें इनाम जीता है | राधाकृष्ण की कांसे की मूर्ति है लो | कालरा ने पूछा किस बात में इनाम जीता है तो मन्जीत बोली एक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन था | भाषण प्रतियोगिता का विषय था शराब बन्दी पर राष्ट्र पिता महात्मा गान्धी के विचार | बाबा मैनें खचाखच भरे हाल में भाषण के अन्त में यह बात कह दी थी कि मैं आज ही घर जाकर बाबा को इस बात के लिये राजी कर लूंगी कि कल से ही मेरी दुकानों में शराब की एक छींट भी दिखायी न पड़े | कालरा ने पोती की पीठ सराही और कहा तेरे बाबा कभी तेरी बात से ना  नहीं कर सकते | तेरी हर कही हुयी बात पूरी होगी | फिर उसने राधाकृष्ण की मूर्ति को प्रोफ़ेसर साहब की ओर बढ़ाकर कहा लीजिये इसे मैं आपको सौंपता हूँ | प्रोफ़ेसर सदानन्द पाण्डेय हँसे और बोले मैं राधाकृष्ण मन्दिर के महन्त को आपके घर भेजूंगा उन्हीं के हांथों में आपकी पोती यह मूर्ति दे देगी यह मूर्ति सदैव मन्दिर में सुरक्षित रहेगी | सारी कालोनी की तरफ से मैं आपको बधाई देता हूँ | भाई कालरा तुम तो सचमुच एक अनगढ़ हीरा हो | मन्जीत अन्दर जाकर ट्रे में रखी हुयी शीतपेयों की डाली उठा लायी | उसके साथ उसका छोटा भाई इन्द्रजीत भी था | बाहर आकर मैनें प्रोफ़ेसर साहब से कहा देखिये आपका धर्म संकट टल गया या नहीं | कर्म से विमुख होना ही पराजय है ,सार्थक कर्म के प्रति सदैव प्रयत्नशील रहना ही धर्मसंकटों से मुक्त होने का एक मात्र उपाय है | और फिर मैनें प्रोफ़ेसर पाण्डेय के चरण छूकर विदा मांगीं और गाड़ी का स्टियरिंग व्हील संभ्भाल लिया | 

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