Sunday 17 September 2017

                                                                         विजय ध्वज
          जनवरी 2017 के पहले सप्ताह में हरियाणा सिविल सर्विसेज के सफल उम्मीदवारों की सूची अखबारों में प्रकाशित हुयी | अखबार पढनें की आदत तो है ही छपे हुए नामों पर एक नजर डाल ली |  छपे नामों में कई नाम परिचित से लगे | प्रमोद रस्तोगी ,उमा सिंह और दीपका सोलंकी | सोचा शायद यह सफल उम्मीदवार वे विद्यार्थी न हों जो कभी मेरे पास आये थे | नामों की समानता कई बार भ्रामक भी होती है |  एक दो दिन बीत गए और फिर मुंह मीठा कराने के लिये उपरोक्त तीनों तो आये ही और इसके अतिरिक्त और भी कई सफल उम्मीदवारों से मिलकर पुराने परिचय नए हो गए पर इस प्रकार का  औपचारिक मिलना -जुलना तो होता ही  रहता है पर जब उमा सिंह अपने पिता और छोटे भाई के साथ मिलने आयी तो मन में  खुशी के साथ कुछ प्रश्न भी गहरा उठे | दरअसल उमा सिंह के पिता विजय सिंह से मेरा परिचय  आकस्मिक ढंग से हुआ था | मैं एक अत्यन्त आवश्यक कार्य से दिल्ली से गाड़ी पकड़कर रायबरेली जा रहा था | रोहतक से दिल्ली के लिये बस पकड़नी थी ,जो बस जा रही थी उस पर बैठने के लिये कोई स्थान न था | अगली बस आधा घण्टा बाद छूटनी थी | मुझे लगा कि अगली बस का इन्तजार करने तक कहीं विलम्ब न हो जाय और काशी विश्वनाथ दिल्ली से चल पड़े | कालेज प्राध्यापक होने के नाते छत की रेलिंग पकड़कर खड़ा रहना मुझे अच्छा नहीं लगता था पर क्या किया जाय | मजबूरी थी | ड्राइवर ने बस स्टार्ट की ही थी कि विजय सिंह उससे मिलने या उसे कुछ निर्देश देने के लिये ऊपर की मंजिल में स्थित बड़े साहब के दफ्तर से नीचे उतरे | मैं उन्हें नहीं जानता था पर वे  शायद मुझे जानते होंगें | उन्होंने मुझे देखा और कहा , " प्रोफ़ेसर साहब दिल्ली जा रहे हैं ? मैनें सिर हिलाया | उन्होंने ड्राइवर से कुछ कहा ,कंडक्टर भी वहाँ आ गया और ड्राइवर के बगल में लगी सीट पर मेरे बैठने की व्यवस्था हो गयी | रास्ते में कंडक्टर ने मुझे बताया कि विजय सिंह जी बड़े साहब के स्टेनों हैं और बस डिपार्टमेन्ट में उनकी बड़ी कदर है |
                                            इस पहली मुलाक़ात के बाद लगभग छै महीनें बीत गये फिर एक दिन शाम को विजय सिंह मेरे घर का पता लगाकर मिलने आये उन्होंने कहा कि उन्हें और उनके दो साथियों को प्रमोशन के लिये एक इम्तहान पास करना है और उसमें अंग्रेजी भाषा के कुछ प्रश्न पूंछे जाते हैं | उनके दो साथी राजेन्द्र सिंह चौहान और लक्ष्मण दास शर्मा भी स्टेनों हैं और वे भी बस डिपार्टमेन्ट में लगे हैं तीनों ही नवयुवक जुम्मेदारी के पद पर थे और मुझे उनके साथ बैठने में खुशी ही हुयी | मैनें अंग्रेजी भाषा का विशेषतः अंग्रेजी व्याकरण का थोड़ा -बहुत ज्ञान उन्हें करवाया | वे तीनों ही उत्तीर्ण हो गये और ऊँचें वेतनमान के योग्य पाये गये | ऐसा शायद मेरी शिक्षा के कारण नहीं वरन उनके परिश्रम के कारण था | पर फिर भी वे मुझे एक सच्चे गुरू का आदर देने लगे | ऐसा शायद इसलिये भी हो कि जब तक वे मेरे पास आते रहे थे मैनें उनसे उनके आग्रह पर भी कोई आर्थिक लाभ नहीं उठाया था | वर्ष पर वर्ष बीतते चले गये एकाध बार विजयसिंह मेरे घूमने के समय मिल जाते | परिवार की चर्चा होती बताते तीन लडकियां और दो लड़के हैं | सभी पढनें -लिखने में तेज हैं | जीवन चलता रहा ,समय बीतता गया | मैं सेवा निवृत्त गया फिर भी जब कभी विजय सिंह जी मिलते चरण स्पर्श करने के लिये झुकते और मैं प्यार के साथ उनका हाँथ पकड़कर पीठ थपथपा देता | वर्ष पर वर्ष बीतते चले गये | विजय सिंह जी भी सेवा निवृत्त हो गये | मिलते तो बताते तीनों लड़कियों की शादी कर दी है | बड़े बच्चे ने एम ० टेक ० कर लिया है | छोटा बी ० टेक ० में है | सेवा निवृत्ति के बाद उन्हें भी सुबह -शाम घूमने की आदत पड़ गयी थी और मैं तो घुमन्तू नस्लों से ही अपने को सम्बन्धित करता रहा हूँ | एक दिन अपनी बेटी उमा को लेकर आये कहा कि जे ० बी ० टी ० कर चुकी है एक सरकारी परीक्षा में इसे इम्तहान पास करना है | कुछ दिन अपने पास आने की अनुमति दें | उमा पोती बनकर कुछ दिन अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान का अध्ययन करती रही फिर जे ० बी ० टी ० लग गयी | उसका व्याह एक ठाकुर परिवार में हुआ था जो पंजाब के सीमा क्षेत्र में स्थापित था | विज्ञ पाठक जानते ही हैं कि पंजाब के विभाजन के बाद बहुत से घर हरियाणा की सीमा रेखा में आ गए और काफी सारे घर पंजाब की सीमा रेखा में स्थित रहे | संस्कृति एक ,भाषा एक ,देश एक पर राज्य अलग -अलग | राजनीति अपना खेल खेलती चलती है ,राज्य की सीमायें भी बनती -बिगडती रहती हैं | आज का आन्ध्र कल का तेलंगाना हो जाय तो क्या पता | वृहद बाम्बे बंटकर गुजरात और महाराष्ट्र में बदल गया | कहते हैं उ ० प्र ० भी तीन राज्यों में बट जानें की सम्भावना छिपाये है | उत्तराखण्ड तो बन ही चुका है | खैर छोड़िये भी इन बातों को |
                                        तो उमा के पति मोहाली में जे ० बी ०  टी ० टीचर थे और उमा पंचकुला में | उमा कुछ दिन मेरे पास बैठी थी और उसकी शिक्षा के दौरान मैनें पाया था कि वह एक मेधावी छात्रा है | विज्ञान ,मैथमेटिक्स ,सामान्य ज्ञान और अंग्रेजी चारों में उसकी मजबूत पकड़ है | ग्रेजुएट तो है ही अगर कम्पटीशन में बैठे तो सिविल सर्विसेज में आ सकती है | जब कभी भी विजय सिंह जी मिलते मैं उनसे कहता कि उमा को कम्पटीशन में बिठा लें | वे कहते कि उसके सास -ससुर कहते हैं कि मास्टरी ही भली | भगवान ने बहुतेरा दिया है | मोहाली और पंचकुला पास -पास हैं | परिवार चल रहा है और किसी नौकरी में जायेगी तो साथ -साथ रहना हो सकेगा या नहीं कौन जानें ? इसी बीच उमा एक पुत्र की मां बन गयी | लगभग दो तीन वर्ष बाद उमा अपने बच्चे को गोद में लेकर मेरी पत्नी से आशीर्वाद लेने आयी | संयोग से मैं घर पर ही था | मैनें उससे पूछा कि वह कम्पटीशन में क्यों नहीं बैठती ? बोली , ' सर परिवार की कितनी जिम्मेदारियाँ हैं ,मास्टरी चलाना ही मुश्किल हो रहा है | कैसे तैय्यारी कर पाऊंगीं  | " मैनें कहा देखो बेटे उमा मैं उम्र के एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ा  हूँ जहां से प्रारम्भिक जीवन का चित्र तटस्थ भाव से देखा जा सकता है | मैं अध्यापक रहा हूँ | हजारों विद्यार्थी मेरे सम्पर्क में आये हैं | तुम साहस करो तो हरियाणा सिविल सर्विसेज क्लियर करना तुम्हारे लिये कठिन नहीं होगा | बाकी तुम स्वयं बड़ी हो गयी हो ,निर्णय तुम्हें करना है | कुछ वर्ष बाद ओवर एज हो जाओगी फिर और कुछ करने को शेष नहीं रहेगा |
                                       न जानें क्या बात हुयी कि उमा ने एक द्रढ़ संकल्प ले लिया | और 2017 जनवरी के प्रथम सप्ताह में एक्जीक्यूटिव ब्रान्च में सफल होकर उसने फिर से मुझे एक योग्य अध्यापक की गरिमा से मण्डित कर दिया | यही कारण है कि जब विजय सिंह जी अपनी बेटी उमा के साथ मिठाई का डिब्बा लेकर मुझसे मिलने आये तो मुझे एक अतिरिक्त गौरव का अनुभव हुआ | हंसी -हंसी में मैनें उमा से पूछा कि वह एक आला अफसर बन जायेगी | उसके पति जे ० बी ० टी ० अध्यापक हैं कहीं सम्बन्धों में कोई तनाव तो उत्पन्न नहीं होगा | उमा ने कहा ," गुरुवर नारी तो नारी रहती है अब आप जानें कि पुरुष का अहंकार नारी के आगे बढ़ जानें से क्षुब्ध तो नहीं होता |"फिर उसने कहा कि अभी तो ट्रेनिंग पर जाना होगा फिर इसके बाद पोस्टिंग होगी | देखिये कौन सा स्टेशन मिलता है | मैनें कहा ," बेटे उमा सहस्त्रों वर्षों से भारतीय सन्दर्भ में नारी को पुरुष के पूरक के रूप में लिया गया है |उसके अपने स्वतन्त्र अस्तित्व की पाश्चात्यवादी धारणा अभी तक भारत में अपनी जड़ नहीं जमा पायी है मुझे विश्वास है की तुम अपने आचरण से अपने पति के पुरुष होने के अहम् को ठेस नहीं पहुँचाओगी | " उमा ने मुझसे जो कहा उसमें एक गहरा मनोवैज्ञानिक सत्य छिपा है | बोली ," दादा जी आज से आधी शताब्दी पूर्व आप जिस काल में तरुण थे उस समय और आज के भारत में जमीन -आसमान का अन्तर है | आज प्रत्येक पढ़ा -लिखा तरुण यह चाहता है कि उसे सुन्दर से सुन्दर पत्नी मिले जो कमाऊ हो ,जो उसे बाप होने का गौरव प्रदान करे ,घर का काम -काज सम्भाल ले और यदि घर में वृद्ध जन  हों तो उनकी सेवा भी करे | यह आपकी तरुणायी के काल में तो सम्भव था पर अब ऐसा होना कठिन लग रहा है |यदि पुरुष चाहता है कि नारी सुन्दर हो,शिक्षित और कमाऊ हो तो नारी भी चाहती है कि पुरुष सुन्दर हो ,शिक्षित हो और कम  से कम उसके जैसा कमाऊ हो | अब आप ही बताइये कि कुछ वर्षों के बाद अगर मैं ए ० डी ० सी ० हो जाती हूँ और मेरे पति जे ० बी ० टी ० टीचर ही बनें रहते हैं तो मेरा पुत्र बड़ा होकर क्या अपने पिता को वही सम्मान दे पायेगा जिसकी अपेक्षा समाज उससे करता है | मैं व्यक्तिगत रूप से आपको विश्वास दिलाती हूँ कि मैं पति की मर्यादा और आफ़ीसरी के बीच पूरा सन्तुलन बनाये रखूंगीं | पर फिर भी मानव प्रकृति के विषय में सुनिश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता | मुझे प्रणाम कर उमा उठने ही वाली थी कि न जानें क्यों मैनें उससे एक प्रश्न पूछ डाला | मैनें कहा ,"उमा तेरे नाम की भारतीय धार्मिक विधि -विधान में क्या सार्थकता है | | " उसने कहा ,"गुरू जी यह प्रश्न क्यों पूछ रहे हैं ?आप तो विज्ञान की बातें पूछा करते थे | " फिर हंसकर बोली उमा तो पार्वती है ,देवाधिदेव शंकर की पत्नी | मैनें बात को आगे बढ़ाया उमा का एक और नाम था याद आता है | उसने कहा गौरी मैनें कहा नहीं मैं अपर्णा की बात करता हूँ | जानती हो उमा का नाम अपर्णा कैसे पड़ा था ,तुलसीदास जी की रामायण पढ़ी है ? पार्वती ने प्रण किया था कि उनके जीवन का एक मात्र संकल्प देवाधिदेव महादेव को पति के रूप में प्राप्त करना है | गिरिराज किशोरी ने बहुत लम्बे काल तक बहुत कठोर तप किया ,अन्न छोड़ा ,फलों पर रहीं ,फिर फल छोड़ पत्तों पर रहीं | पत्त्ते यानि पर्ण फिर पत्ते भी छोड़ दिये तब उनका नाम अपर्णा पड़ गया |
                      " कोटि जनम लगि रगरि हमारी ,
                         वरो शम्भु नतु रहऊँ कुंवारी |"
                      जाते -जाते उमा बोली दादा ,मुझे इतनी कठिन परीक्षा से मत गुजारो इक्कीसवीं शताब्दी का पहला दशक समाप्त हो चुका है | मैं अपर्णा नहीं बन सकती | हाँ यह वादा अवश्य करती हूँ कि मेरी तरफ से पुरुष के अहंकार को चोट पहुंचाने की कोई पहल नहीं होगी पर मैं पत्थर की प्रतिमा नहीं हूँ जो मार पर मार सहती जाऊँ और बहुत मार खानें पर तो पत्थर की प्रतिमा भी टूट जाती है | कभी उनको आप के पास लाऊँगीं उन्हें भी पुराणों की एकाध किस्सा कहानी सुना देना जो नल ने दमयन्ती के साथ किया ,जो युधिष्ठिर ने द्रोपदी के साथ किया ,जो श्री राम ने सीता के साथ किया ,यह सब तो शायद उन्हें मालूम ही है पर जवाहर लाल जी का कमला के प्रति अनुराग ,जै प्रकाश जी का प्रकाशवती के प्रति अनुराग और आचार्य कृपलानी का सुचेता कृपलानी के प्रति अनुराग शायद वे न जानते हों | विदेशों की वे कहानियां जिसमें सम्राटो ने प्यार के लिये अपनी गद्दियां छोड़ीं उनसे भी उन्हें परिचित कराना आप जैसे शिक्षक से ही सम्भव हो सकेगा |
                                              फिर उसने झुककर मेरे चरण छूने चाहे ,मैनें सिर पर हाँथ रखकर  उसे आशीर्वाद दिया बोला रजत को गोद में नहीं लायीं ,उमा ने कहा कि वह नानी के पास है ट्रेनिंग के बाद पोस्टिंग हो जानें पर उसे लेकर दादा -दादी से आशीर्वाद लेने आयेगी |
                                              हमारी इस सारी बात -चीत के बीच विजय सिंह जी मूकद्रष्टा बनकर बैठे रहे | उठते समय बोले यह उमा का छोटा भाई रूद्र सिंह है बी ० टेक ० में फस्ट रैंक मिली है | झुककर रूद्र ने मेरे पैर छुये ,मैनें कहा बेटे जीवन का क्या भरोसा ? आते रहना क्या पता विजय की गौरव गाथा में एक और विजय ध्वज जुड़ जाय |  

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