मन्त्र कीलित चावलों से प्रेरित होकर सर्प न आया हो और शायद आस -पास की भीड़ के दबाव से अपने बिल से निकला हो ,पर उसका आगमन ,उसकी नृत्य मयी मुद्रा ,और उसका अनदेखा विलीनीकरण निश्चय ही अपने में रहस्य की कड़ी लपेटे है | जो हो ,देवा बाबा की पटियाली को मैंने नमस्कार किया ,अपना सामान होल्डाल में पैक किया | चौबे जी को बोल गया कि त्रिवेदी व पाल जब आयें तो एक बार आकर मुझसे गंजडुडवारा में मिल लें और यदि कुछ हिसाब -किताब बाकी हो तो मुझसे उसकी भरपाई करवा लें | मैं जानता था कि वे सात तारीख को दोपहर तक कालेज में आयेंगें | शाम को गंजडुडवारा पहुँचकर मैनें प्रधानाचार्य को सूचित किया | उन्होंने कालेज कैम्पस में बनें अतिथिगृह को मेरे लिए खुलवा दिया | उसी सत्र से इण्टर की साइन्स व बी ० ए ० की कला वर्ग की कक्षाएं खुली थीं | नयी नियुक्तियों में पाण्डेय और चतुर्वेदी को जीवविज्ञान और समाजशास्त्र के प्रवक्ता के रूप में आना था | उनके आने के साथ ही हम तीनों ने मिलकर किराए का कई कमरों वाला एक मकान ले लिया | फिर वही भोजनालय का खाना ,हलवाई का नाश्ता और पाल की जगह चतुर्वेदी के स्टोव पर बनी चाय का आस्वादन | पटियाली की पापड़ी के स्थान पर गंज डुडवारा का घेवर चलने लगा और उन दिनों शायद काँग्रेस के प्रेसिडेन्ट यू ० यन ० ढेबर थे और हम लोग हल्के -फुल्के मूड में घेबर को ढेबर कहना पसन्द करते थे | गंजडुडवारा में मैं एक सत्र रहा | बी ० ए ० में करीब चालीस छात्राएँ थीं और वे सब ग्राम्य वातावरण से होने के कारण अँग्रेजी के प्रति एक भय भरा भाव रखते थे ,पर धीरे -धीरे उनका संकोच टूटता गया | और अध्यापक व विद्यार्थियों में एक आन्तरिक लगाव स्थापित होना आरम्भ हो गया | बी ए के अतिरिक्त इण्टर फाइनल के छात्रों को भी मैं कई बार पढ़ाने के लिए प्रस्तुत हो जाता था | उसी वर्ष एटा जिले के माध्यमिक विद्यालयों की यूनियन का सालाना समारोह एटा में सम्पन्न हुआ | गंजडुडवारा से मैं अध्यापकों के प्रतिनिधि के रूप में चतुर्वेदी के साथ गया | समापन के बाद वार्षिक चुनाव भी होने थे | प्राइवेट संस्थाओं के झगडे ,कायदे क़ानून की जटिलताओं और प्रबन्ध कारिणी की स्वार्थवृत्तियों ने इण्टरकॉलेज की सेवाओं को गौरव विहीन कर रखा था | सामूहिक विचारधारा का प्रबल समर्थक होने के नाते इस समारोह में मैनें अपने विचार कई बार अध्यापक प्रतिनिधियों के समक्ष रखे | यद्यपि मैं उस जिले में अभी नया -नया ही गया था ,फिर भी मेरे नाम का प्रस्ताव व समर्थन जिले के प्रधान के पद के लिए किया गया | मेरे न चाहनें पर भी मुझे उसे स्वीकार करना पड़ा | साथियों ने कहा कि मेरा मना करना मेरे द्वारा व्यक्त किये गए विचारों के प्रति दगाबाजी होगी | मेरे सचिव के रूप में एटा के माध्यमिक विद्यालय के निर्मल जैन व कोषाध्यक्ष के रूप में एटा के ही अन्य विद्यालय के रमेश शुक्ल चयनित किये गए | पर गंजडुडवारा या एटा जिला मेरे अध्यापक कर्म की कर्मभूमि बनें ,ऐसा विधान प्रकृति की योजना में न था | मैं अँग्रेजी अखबारों में निकली हुयी वैकेन्सीज के प्रति यदा कदा प्रार्थना पत्र डाल देता था और एक ऐसा ही प्रार्थनापत्र मैंने पंजाब विश्वविद्यालय से सम्बन्धित रोहतक के वैश्य कालेज के लिए भी डाला | मैं समझता हूँ कि सम्भवतः मार्च या अप्रैल 1957 में मैनें यह प्रार्थनापत्र दिया होगा क्योंकि उस समय तक या उसके आस -पास बी ० ए ० परीक्षा का निर्धारित समय निकट आ चुका होगा | उन दिनों पंजाब में कालेज की छुट्टियाँ बरसात में होती थीं और विद्यालय सितम्बर के प्रारम्भ में खुलते थे | मुझे ऐसा नहीं लग रहा था कि उस कालेज से मेरे लिये साक्षात्कार का बुलावा आयेगा और जब बुलावा आया तो तब गंजडुडवारा कालेज का अगला सत्र प्रारम्भ हो चुका था और मेरा कन्फर्मेशन होने जा रहा था | इस बीच माता जी बकोठी से स्थानान्तरित होकर शिवली से लगभग तीन मील दूर बैरी गाँव आ गयी थीं | यहां वे अपनी दो सहायक अध्यापिकाओं सुमित्रा व विन्ध्यवासिनी का पूरा सहयोग पाकर पूर्ण तरह से सन्तुष्ट थीं | वे जब चाहती ,तब शिवली आ जातीं | यद्यपि उनके रहने का प्रावधान प्राईमरी स्कूल के परकोटे के भीतर भी किया गया था | राजा गाँव में रहकर अब कई रोमान्टिक घटनाओं में उलझ गए थे | वे उम्र में काफी बड़े हो चुके थे और उन्हें कामकाज में लगाना व शादी करना घर की सबसे बड़ी आवश्यकता थी | गंजडुडवारा से मैं होली के लिए शिवली आया तो मैंने माताजी से पूछा कि अब उनपर कितना कर्जा बाकी है | उन्होनें दो तीन नाम लिए जो उनकी साथी स्त्रियों के थे और बताया कि अभी इतना रुपया देना बाकी है | मैं उस समय तक कुछ पैसे जोड़ चुका था और वह संग्रह इतना था कि उससे पूरा कर्जा चुकाया जा सके | मैनें होली से एक दिन पहले ही उन्हें रुपया देकर कहा कि वे आज अन्तिम बार अपना कर्जा उतार दें और भविष्य में मुझे ऐसी बात सुनने में न आये | वे कुछ नाराज हुयीं और कहा कि कर्जा तो उन्होंने अपने सुख के लिये नहीं लिया | मैं चुप रहा और उनसे आग्रह किया कि जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही करें | कमला के परिवार का बढ़ना जारी था और किराये के मकान में कोई न कोई किल्लत बनी रहती थी | मैं जानता था कि माता जी की सारी कमाई उन्हीं के परिवार की रख रखाव पर खर्च हो रही है | जब मैं होली पर गाँव जा रहा था तो मैनें गंजडुडवारा से शिवराजपुर तक का सफर ट्रेन के इण्टर क्लास में किया | उन दिनों गाड़ियों में एक इण्टर क्लास होता था | जिसका किराया थर्ड क्लास से ड्योढ़ा या दुगना होता था | उसमें कुछ ही सफर करते थे | उसमें बैठकर मुझे बड़प्पन का अहसास हुआ | जिसे मैं आज मन की छिछली प्रवृत्ति के रूप में लेता हूँ | छोटी लाइन की गाड़ी के हर छोटे स्टेशन पर उतरकर प्लेटफार्म पर चहलकदमी करता | डिब्बे में कोई भीड़ तो थी ही नहीं | गाडी के चलने की सीटी सुनकर फिर से चढ़कर ऊपर बैठ जाता | फतेहगढ़ स्टेशन पर जब मैं उतरा तो वहां मुझे एम ० ए ० के पुराने साथी मुन्शी सिंह मिल गये | जिनका जिक्र मैं पहले कर चुका हूँ | वे बी ० एड ० कर चुके थे और तिरवां के एक ट्रेनिंग कालेज में अध्यापक हो गए थे | (क्रमशः )
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