विश्व का सबसे शक्तिशाली और सम्पन्न राष्ट्र भारत और चीन को विश्व में खाद्यान्न की कमी के लिए जिम्मेदार ठहरा चुका है | अमरीका के शीर्षतम जन प्रतिनिधियों का यह मत है कि भारत का 330 मिलियन मध्यम वर्ग इतना सम्पन्न हो चुका है कि उसके खान -पान की क्षमता पहले से कहीं अधिक बढ़ चुकी है | 330 मिलियन की मध्यवर्गीय भारतीय आबादी अमरीका की सम्पूर्ण आबादी से कहीं अधिक है | स्वाभाविक है कि भारत के आर्थिक विकास ने योरोप और अमरीका के स्वच्छन्द भोगवादी जीवन पर संकुचन का आवरण डाल दिया है | हमें आश्चर्य है कि इतने बड़े और जुम्मेदार लोग इतनी अनर्गल बातें करते हैं | उन्हें 33 करोड़ मध्य वर्गीय भारतीयों की जीवन शैली से ईर्ष्या होने लगी है जबकि वे भली भांति जानते हैं कि भारत के मध्य वर्ग में भी कई स्तर हैं और सबसे निचला स्तर अभी गरीबी की सीमास्थल पर ही खड़ा है और फिर एक पहर खा कर सो जाने वाले 20 करोड़ भारतीय और मुश्किल से दो जून भोजन जुटा पाने वाले 35 -40 करोड़ भारतीय भी हिन्दुस्तान की जनता में शामिल हैं | हमारे प्रशासकों और राजनीति के गलियारों में यह चर्चा होने लगी है कि अब तो अमरीका भी हमारी प्रगति और समृद्धता की दाद दे रहा है | वे यह भूल जाते हैं कि कूड़े के ढेरों से पोलीथीन की थैलियां इकठ्ठा करने वाले लाखों बालक -बालिकायें अर्धनग्न वेष में शायद ही कभी अपनी पूरी क्षुधा शान्त कर पाते हों | मैं बड़े समारोहों में और उत्सव के बाद आयोजित भारी -भरकम भोजों में सम्मिलित होने का अवसर पा चुका हूँ और मैंने देखा है कि भोज के बाद पत्तलों पर पडी जूठन उठाने और चाटने के लिए न जाने कितने कंगले भिखारियों और आश्रयहीनों में होड़ लग जाती है | उन्हें कुत्तों ,कौवों, सुअरों और आवारा पशुओं से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है | 'माटी ; जिस समाज की कल्पना कर रही है उसमें दरिद्रता का कोई स्थान नहीं है | जो लोग यह कहकर गर्व महसूस कर रहे हैं कि भारतीय मूल के लक्ष्मी मित्तल व भारत के मुकेश या अनिल अम्बानी या सुनील मित्तल आदि विश्व के सबसे धनी पुरुषों में हैं उन्हें यह सोचना होगा कि उनका यह गर्व तभी ठीक माना जायेगा जब भारत की अर्थव्यवस्था भारत के प्रत्येक नागरिक को दो जून की रोटी मुहैय्या करा सके | | हमें भारत माता का लकवा ग्रस्त शरीर लेकर विश्व के आगे हंसी कराने का मजाक नहीं करना चाहिये | प्रताप सिंह राणा , द ग्रेट खली भले ही सात फ़ीट तीन इन्च के हों और अपनी शारीरिक शक्ति से विश्व को चमत्कृत कर रहे हों पर हमें सभी बौने ,अर्ध बौने ,अपंग ,अपाहिज और अभिशप्त करोड़ों भारतीयों को भी आर्थिक सुधार के दौर में शामिल करना होगा | पूंजीवादी व्यवस्था अपने मनोरंजन के लिए न जानें कितने नए शगूफ़े पालती रहती है | क्रिकेट के क्षेत्र में खुले व्यापार की होड़ मुझे स्वस्थ मानसिकता की उपज नहीं लगती | शरीर का सौष्ठव मानव विकास की देंन है पर नारी की अर्धनंगी देह का व्यापार जब किसी खेल से जुड़ जाये तो उसे प्रगति का सूचक नहीं माना जाना चाहिए | भारत वर्ष में शारीरिक विकास मांस पेशियों और स्वस्थ स्पर्धा को विकसित करने वाले बीसों खेल और क्रीड़ा कलाप हैं पर अंकुश हीन पूंजीवादी व्यवस्था उन्हें प्रोत्साहन नहीं दे रही है | भ्रम में पड़ा हुआ हमारा तरुण किशोर क्रिकेट या एक दो अन्य खेलों के माध्यम से आर्थिक समर्थता प्राप्त करने में सफल नहीं होगा | क्या हुआ यदि दस -बीस लाख किशोरों और नवयुवकों में कोई एकाध असाधारण खेल प्रतिभा उभर कर आ जाय | ऐसा होना ठीक है और होना भी चाहिये पर अर्थव्यवस्था का सपना तो यही होना चाहिए कि समाज के हर वर्ग को जीवन यापन की मूलभूत सुविधा से सम्पन्न किया जा सके | फिल्म जगत ,क्रिकेट ,माडलिंग और स्वरकारों की दुनिया कभी भी सामान्य जन की दुनिया नहीं बन सकती | ग्लैमर और इन्द्रधनुषीय माया जाल एक अरब से ऊपर की आबादी वाले इस देश को बहुत अधिक दिनों तक अपने भ्रम जाल में फंसा कर नहीं रख सकता | मरुस्थल को अगर बढ़ने ही दिया गया तो वह हरी -भरी बाढ़ को अपनी चपेट में ले ही लेगा | दरअसल भारत के लिए प्रस्तुत की जाने वाली आर्थिक नीतियां उधार ली हुयी मान्यताओं पर आधारित हैं | आवश्यक नहीं कि योरोप व अमरीका जिस राह पर चलकर आर्थिक समृद्धता पा सके हैं वही राह हमारे लिए भी समीचीन है | वास्तव में संसार के अधिकाँश भाग को भूखा -नंगा रखकर योरोप व अमरीका ने औद्योगीकरण के द्वारा अपने साधन जुटाए थे | आज विश्व की परिस्थितियां भिन्न हैं | भारत को अपने जीवन मूल्य निश्चित करने होंगें उसे भोगवादी संस्कृति से हटकर स्वस्थ्य सामाजिक समावेशन की आर्थिक नीति अपनानी होगी | व्यक्ति का नरंकुश विकास ,पूंजी का पथभ्रष्ट शोषक समन्वयन अब मानवता के लिये अभिशाप ही साबित होगा | हमें अपने अतीत से भी बहुत कुछ सीखना है और भोग की एक सीमा निश्चित करनी है | आधुनिक अर्थशास्त्री नोबेल प्राईज लेकर विश्व के आगे तकनीकी युग की नयी आर्थिक अवधारणाओं का जयगान कर रहे हैं पर हमें उनकी बातों से तत्व ग्रहण करके भी ईशोपनिषद के उस सूत्र की ओर जाना होगा जिसमें कहा गया है ,"ईशा वास्य मिदम सर्वम ,
यत किंचित जगताम जगत
तेन त्यक्तेन भुजीथा
माग्रधा :कस्यस वित्त धनम |
'माटी 'के पास अपनी कुछ आर्थिक नीतियां हैं जिसे उसने धूल भरी पगडंडियों से वयोवृद्ध और ज्ञानवृद्ध आदर्श पुरुषों के सुझावों पर रूपायित किया है | हम अपने अगले अंकों में क्रमशः उन्हें प्रकाशित करते रहेंगें |इस अंक को आप तक पहुँचते पहुँचते सम्भवतः पहले दवंगरे (प्रथम मानसूनी बौछार ) का आशीर्वाद मिल जाये | मौसम विशेषज्ञ बताते हैं कि इस वर्ष वर्षा अधिक रसमयी होगी और महगाई की फुफकारती लपटों को शान्त करने में सार्थक भूमिका निभायेगी | माटी और जल मिलकर ही श्रष्टि की रचना करते हैं | हम चाहते हैं कि भारत की विपुला धरती फिर एक बार विश्व भरण -पोषण का भार सम्भालनें में सक्षम होकर अपने भारत नाम को सार्थक करे | शुभाकांक्षाओं के साथ.........
यत किंचित जगताम जगत
तेन त्यक्तेन भुजीथा
माग्रधा :कस्यस वित्त धनम |
'माटी 'के पास अपनी कुछ आर्थिक नीतियां हैं जिसे उसने धूल भरी पगडंडियों से वयोवृद्ध और ज्ञानवृद्ध आदर्श पुरुषों के सुझावों पर रूपायित किया है | हम अपने अगले अंकों में क्रमशः उन्हें प्रकाशित करते रहेंगें |इस अंक को आप तक पहुँचते पहुँचते सम्भवतः पहले दवंगरे (प्रथम मानसूनी बौछार ) का आशीर्वाद मिल जाये | मौसम विशेषज्ञ बताते हैं कि इस वर्ष वर्षा अधिक रसमयी होगी और महगाई की फुफकारती लपटों को शान्त करने में सार्थक भूमिका निभायेगी | माटी और जल मिलकर ही श्रष्टि की रचना करते हैं | हम चाहते हैं कि भारत की विपुला धरती फिर एक बार विश्व भरण -पोषण का भार सम्भालनें में सक्षम होकर अपने भारत नाम को सार्थक करे | शुभाकांक्षाओं के साथ.........
No comments:
Post a Comment