प्राणों की प्राण
पारस स्पर्श बन आयीं तुम प्राण प्रिये
जीवन का हर क्षण स्वर्ण पल बन गया
मुरली की मादक मधुरता सी प्रियतमें
वेद प्रभे पुण्य से तुम्हारे परिवार सब निखर गया
चलाचल चवालिस वर्ष मधुपल बन कट गये
असत हुआ क्षार बस अमृत ही शेष है
साँसों के सरगम पर गूँजेगा तुम्हारा स्वर
काल के भाल पर सम्पादक का लेख है |
मेरी मित्र ,मेरी सखा, प्राणों की प्राण प्रिये
निर्व्याज प्यार का स्तवन स्वीकार करो
अन्तिम क्षणों तक साथ दोगे तुम अटूट मित्र
मेरी अभिलाषा को हँसकर स्वीकार करो |
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