Friday, 19 May 2017

बाद मे मेरा उनका सम्पर्क नहीं रहा | सम्भवतः अब वे इस संसार में नहीं हैं| शंकर शरण मिश्रा बाद में डी ०  बी ० एस ० कालेज गोविन्द नगर कानपुर के विभागाध्यक्ष बनकर आये थे | सम्भवतः अब वे भी इस संसार में नहीं हैं | दिसम्बर 58 में कानपुर होते हुए शिवली आने को था |कानपुर में मुझे कमला के यहां बैठे बैठे उदासी का दौर पड़ रहा था और मैनें सोचा कि मैं एक बार सरसैया घाट पर गंगा किनारे तक घूम आऊं | आनद बाग़ से कर्नल गंज तक पैदल और फिर वहां से इक्के द्वारा गंगा किनारे तक पहुँचा | उन दिनों स्कूटर ,टैम्पो आदि का चलन नहीं था | रिक्शे की बजाय इक्के में मुझे कुछ नवीनता लगी | जब कचहरी के पास से मेरा इक्का घाट की तरफ मुड़ा तो मैंने  हाँथ में कुछ कागज़ लिए बसन्त दुल्हिन को आते देखा | इक्का रुकवाकर उतरकर उनके पैर छुये और पूछा कि वे वहाँ  कैसे आईं थीं | मैं पहले ही बता चुका हूँ कि वे शिवली छोड़कर अपने भाई के साथ थीं व जिला बोर्ड में अध्यापिका थीं | उन्होंने बताया कि वे अपने ट्रान्सफर के सिलसिले  में आयी हैं ताकि उन्हें रसूलाबाद से भाई के गाँव में ट्रान्सफर कर दिया जाये | मैनें इक्के वाले को   पैसे देकर विदा कर दिया और हम दोनों वहीं जिला शिक्षा बोर्ड के लान में बैठ गए|  दिसम्बर की अन्तिम सप्ताह की धूप भली लग रही थी |  मैनें चाची से कहा कि मुझे उनकी बहुत याद आती  है | उन्होंने भर्राये गले से कहा कि लाला तुम बहुत याद आते हो | जिज्जी कहाँ हैं ? कमला व राजा कैसे हैं ?मैनें उनसे कहा कि हम आगे कोई उत्सव करेंगें तो उन्हें निमन्त्रित करेंगें ,पर उन्होंने कहा कि बेटा अब शिवली आना नहीं होगा | मैं विधवा हूँ और भारतीय विधवा के चरित्र पर लाँछन लग जाये तो समाज उसे इज्जत से जीने नहीं देता | मैनें उनसे कहा कि पाप व  पुण्य द्रष्टिकोण की विषमताओं का  नाम हैं | वे अब तक काफी पढ़ लिख चुकी थीं और नैतिक मूल्यों की   वे अपने स्तर पर व्याख्या करना जान गयी थीं | मेरे यह कहने पर कि मैं तो उनमें कहीं किसी प्रकार का अनैतिक लक्षण नहीं पाता ,उन्होंने कहा कि बेटा तुम अवस्थी परिवार की नाक हो और मेरी उपस्थिति से यदि तुम्हारी आँखें नीची हो जांयें तो मेरे लिये जीना धिक्कार है | इसलिये शिवली से मेरा कोई सम्पर्क नहीं हो सकता ,पर मेरा मन कहता है कि मैनें कोई पाप नहीं किया | पति का देह स्पर्श हुए बिना ही मैं विधवा हो गयी थी ,और पुरुष के सहचर्य की आकांक्षा युवा नारी के मन में सहज ही होती है | प्यास से तड़पता हुआ व्यक्ति ही पानी की क़द्र जानता है और स्वच्छ पानी के अभाव में बाध्य होकर गन्दला पानी भी पी सकता है | चारों ओर से दम घोंटू निष्पन्द सामाजिक परिस्थितियों में जो व्यक्ति  मेरे समीप आ गया और जिसनें मेरे लिए मरमिटने की सौगन्ध खाई ,उसे मैं शरीर देने की इन्कार न  कर सकी | मैं परिणाम के लिए प्रस्तुत थी और सहर्ष समाज में सिर उठाकर जीती यदि , मुझे भटकाने वाले पुरुष में मानवता की शक्ति व सच्चाई की द्रढ़ता होती | जो सच है उसे स्वीकार करने में मुझे कोई लाज नहीं | मैंने अब भाई की लड़की गोद ले ली है और उसी के लिए जीवन समर्पित करूँगीं | मुझे उनकी बाणीं में शरत चन्द्र के चरित्रहीन में चित्रित किरणमयी की तेजस्वी झांकी मिली | मैं अधिक कुछ न कह सका | उन्हें डिप्टी पड़ाव जाना था -किसी दूर की बहन के पास | मैनें रिक्शा किया ,उन्हें डिप्टी पड़ाव के  मोड़ पर उतारा , उनके चरण छुये और उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा कि लाला पुरुष बनकर जीना ,किसी स्त्री को खिलौना मत समझना | मैं उनके आशीर्वाद के लायक हो सका या नहीं मैं नहीं जानता पर उनके वे शब्द भटकन के मार्ग पर मेरे लिए सदैव सचेतता की तुरही बनकर गूंजते रहे हैं | कमला अब  फिर मातृत्व की राह पर थीं और अगली गर्मी तक नव शिशु को उनके परिवार में आना था | जीजा जी परम शिवभक्त थे और यह मानकर चलते थे कि जन्म व मृत्यु के चिरन्तन खेल में मनुष्य एक तटस्थ दर्शक बनकर ही रह सकता है | प्रभु जो देगा और लेगा ,उसे वे सहर्ष स्वीकार करेंगें | बढ़ते हुए परिवार और कमर तोड़ती  महगाई के कारण उनका जीवन स्तर निम्न मध्य वर्ग के धरातल से उठकर उर्ध्वगामी नहीं हो रहा  था यद्यपि अब  पति -पत्नी दोनों ही सरकारी नौकरी में थे | एक बड़ा कारण था -बढे मकान  किराए की मार | नगर पालिका  की स्कीम अब कागजों से उतरकर जमीन पर आ रही थी और गोविन्दपुरी स्टेशन के पास बर्रा गाँव के निकट काफी बड़े भूखण्ड का अधिग्रहण करके नगरपालिका का शिक्षा विभाग , अपने स्थायी अध्यापक ,अध्यापिकाओं के लिए भूखण्ड काटने की योजना आरम्भ करने जा रहा था ,पर इसमें अभी कुछ समय था | माता जी कानपुर आ गयी थीं और कुछ दिन वहीं उन्हीं के साथ रहकर रोहतक लौट आया था | उन्होंने बताया कि राजा एक बार बीच में आये थे और कह रहे थे कि किसी मारपीट में उनका नाम प्राचार्य के पास पहुँचाया गया है और कोई जांच चल रही है | दरअसल राजा से सम्बन्धित इतनी घटनायें हो चुकी थीं कि मेरे मन में  उनके प्रति कुछ उदासीनता आ गयी थी | उनसे बातचीत के दौरान भी एकाधबार मुझे लगा कि जैसे वे स्वतन्त्र जीवन की योजना में लगे हैं और वे नहीं चाहते कि मैं उनके बड़े भाई या अभिभावक होने का हक़ अदा करूँ | अब तक के जीवन में वे मुझसे एक ही बार भिड़े थे और उस समय बड़ी सावधानी से मैनें अपने बड़े होने के स्वाभिमान की रक्षा की थी | यह घटना मेरी शादी के कुछ माह बाद हुयी थी | यह घटना पक्के ताल के पास शिव मन्दिर के निकट हुयी ,इसलिए इसका कोई साक्षी न था | मैं उस समय कद में छोटा होने पर भी शारीरिक शक्ति में उनसे प्रबल पड़ता था और शिव मन्दिर के पास के  कुँएं पर नहाते समय वे मुझे लोटा मारकर भाग गए थे | माथे पर की उस किंचित फुलांन को जो कई दिन तक मुझे पीड़ा पहुंचाती रही थी ,मैंने कई झूठे कारणों से जोड़ दिया था | यह घटना सम्भवतः माता जी ,बहन जी या मेरी पत्नी को आज तक पता नहीं | पर मैं इसे भोग चुका था और मैं जानता था कि यदि वह मुझसे उन्नीस होकर बोल रहे हैं तो इसलिए कि मैं अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा उनपर फूंक रहा हूँ जबकि मैं जानता था कि सारा खर्च नशे ,फैशन व सिनेमा पर ही हो रहा है | (क्रमशः )

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