प्रो ० दर बाद में ईरान में अँग्रेजी के विशेषज्ञ बनकर गए | प्रो० रुद्रदत्त दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार विभाग के निदेशक बनें | प्रो ० डे दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष तथा यू ० पी ० सक्सेना राजधानी कालेज दिल्ली के प्राचार्य बनें | डा ० बंसल लन्दन से फोनेटिक्स पर डाक्ट्रेट करके आये थे | और बाद में हैदराबाद भाषा संस्थान के निदेशक बनें | एम ० एल ० अग्रवाल अग्रवाल कालेज जयपुर के प्राचार्य बनें | प्रो ० भट्टाचार्य सेवानिवृत्त Director of Public Instructions थे ही | डा ० पी ० सी ० जैन का शोध प्रबन्ध "Labour system in Ancient India " अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक गोष्ठियों में चर्चित हुआ | इन सब विद्वानों के बीच रहकर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और क्रमशः मैं उत्तर प्रदेशीय खान -पान व रहन -सहन के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों की संस्कृति के अच्छे तत्वों का भी अपने जीवन में समावेश करने का प्रयास करने लगा | खान पान में मैंने पहली बार कमलनाल ,कचनार के फूल ,मशरूम ,शिमला मिर्च और छोले भटूरे को देखा चखा | मक्की की रोटी व सरसों का साग पंजाब के ग्रामीण जीवन की विशेषता रही है | तन्दूर रोटी व नान तथा माह व मोठ की दाल जो विशेष तड़का लगी होती थी से भी मेरा परिचय हुआ | पुलाव की भिन्न भिन्न किस्में व वैश्य कालेज के सेठ महाजनों के मालपुआ व पिन्नियों से मुझे नए जिब्हा स्वाद का अभ्यास पड़ा | रहन -सहन में भी मैनें देखा कि पंजाबी लोग संचय से हटकर खान -पान और प्रदर्शन प्रियता के प्रेमी हैं | मुझे ख्याल आया कि पंजाब का प्रान्त इतनी लूट -मार व अव्यवस्था झेल चुका है कि वहां जबतक जिओ सुख से जिओ की भावना एक मनोवैज्ञानिक प्रकृति बन गयी है | पंजाबी की कहावत मुझे बिल्कुल ठीक लगी -खाना पीना लांह दा ,बाकी अहमद शाह दा | लुटेरे अहमद शाह अब्दाली ने कितना नृशंस अत्याचार किया होगा | मैंने अपने लिए कुछ सूट व पैन्ट सिलवाये और कुछ पाश्चात्य औपचारिकताओं पर भी अमल करना शुरू किया | डा ० बंसल की विदाई के अवसर पर मैंने बड़े प्रयास से तैय्यार करके Vale dectory address दिया जो काफी सराहा गया | दूसरे वर्ष रोहतक जानें पर मेरे साथ गाँव के मित्र बृजकिशोर अवस्थी भी गए थे | वे अंग्रेजी एम ० ए ० कर चुके थे पर जब मैनें उन्हें बताया कि मेरे कालेज में बी ० एड ० का भी विभाग है उस समय पंजाब में बी ० एड ० के अलग कालेज नहीं थे तो उन्होंने चाहा कि मैं उन्हें भर्ती करा दूँ और वे बी ० एड ० कर लें | मेरे साथ रहने वाले मेरे मित्र व अग्रज शंकर शरण मिश्रा बी ० एड ० होने के कारण बी ० एड ० कक्षायें भी लेते थे | ब्रज किशोर भी हमारे साथ रहे व सत्र पूरा करके बी ० एड ० की सनद हासिल की | उनके बड़े भाई खुशी लाल भी एक बार कालेज में आये और उसके विस्तार व होस्टल को देखकर बहुत प्रभावित हुये | बाद में ब्रज किशोर लखनऊ के किसी इण्टर कालेज में अँग्रेजी के प्राध्यापक हुए और वहीं बस गए | ( क्रमशः )
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