Saturday, 13 May 2017

मैनें एक माह का नोटिस दे दिया जो दीवाली की छुट्टी से एक दिन पहले समाप्त होता था | मेरी विदाई में कालेज के प्रधान व प्राचार्य नहीं आये | सम्भवतः वे मन ही मन रुष्ट थे ,पर जिला अध्यापक एसोसिएशन के जिला सचिव व कोषाध्यक्ष ने उसमें शामिल होकर कहा कि एक जुझारू योद्धा के चले जानें से उनका पक्ष कमजोर हो  जायेगा ,पर वे मेरी प्रगति का स्वागत करते हैं | दीवाली की छुट्टी में मैं घर आया | राजा भी वहीं थे और उन्होंने बताया कि उनकी पढ़ाईचल रही है और मुन्शी सिंह उनका बड़ा ध्यान रखते हैं | उन्होंने कहा कि उनके साथ कमरे में रहने वाला साथी बड़े धनी परिवार का है और उसके पास अनेक तरह की पोशाकें हैं | मैनें कहा कि दिसम्बर में जब मैं वापिस आऊँगा तो प्रशिक्षण केन्द्र खुलने से  पहले कुछ दिन के लिए रोहतक ले चलूँगां | वहां तुम्हें दो तीन शूट ,कुछ अतिरिक्त शर्ट व पैंट सिलवा दूंगां | दीवाली आनन्द के साथ बीती ,क्योंकि अब मैं अपेक्षाकृत एक अच्छे कालेज में एक अच्छा पद पा गया था और मकान को नए सिरे से बना लेने की सम्भावना दिखाई पड़ने लगी थी | मैनें माता  जी से इस विषय में बात की और कहा कि अगली गर्मी की छुट्टी में काम शुरू करना है और उसके बाद राजा की शादी के विषय में सोचना होगा | 24 अक्टूबर 1957 को मैनें वैश्य कालिज रोहतक में अँग्रेजी प्रवक्ता का पद भार संभ्भाल लिया | अँग्रेजी विभाग के दस प्राध्यापकों में मैं सबसे जूनियर था | कुछ दिन तक  मैं कालेज के होस्टल के अतिथि गृह में ठहरा और बाद में मकान का एक पूरा पोर्शन किराए पर ले लिया | कानपुर के ही शंकर शरण मिश्रा भी उसी कालेज में अँग्रेजी के प्राध्यापक थे | वे एक अलग सूट लेकर रह रहे थे | फिर वे भी मेरे साथ मेरे मकान में आ गये | मैनें सोचा कि अगले वर्ष मैं अपनी पत्नी को भी ,यदि मेरी माँ ने भेजना चाहा ,वहां ले आऊंगा | सबकुछ व्यवस्थित चल रहा था ,पर व्यवस्था की सम्पूर्णता सम्भवतः प्रकृति को स्वीकृत नहीं होती | हमारे जीजा जी को फिर से मानसिक विक्षिप्तता का दौरा पड़ा था और ऐसा लगा कि यह दौरा कहीं उनके लिए स्थायी विकार बनकर न रह जाये | उन्हें पुनः जयपुर भेजा गया जहां शनैः शनैः स्वास्थ्य लाभ करना तो शुरू किया ,पर अपने मौसिया का शिष्यत्व भी स्वीकार करने की इच्छा प्रकट की | शिवलिंग बनाकर पूजा करना ,घण्टों तक आँख बन्द कर मन्त्रों का मानस स्मरण करना , शिवपिण्डों का प्रति सप्ताह गंगा में विसर्जन करना उनकी दिनचर्या का अंग बन गया | तीन माह बाद जब वे आये तो अपनी बड़ी हुयी लम्बी दाढ़ी के बावजूद काम काज करने लायक हो गए थे और अवैतनिक छुट्टी की अवधि समाप्त करने पर कचहरी में क्लर्की की ड्यूटी पर पुनः आ गए | दिसम्बर माह में मैनें राजा को रोहतक बुलवाया और उनके मनचाहे कपड़ों की व्यवस्था कर दी ,पर मेरा यह   काम उन्हें शालीन मार्ग पर चलने की बजाय झूठे दम्भ की ओर ले गया जिससे उनके व उनके कमरे के साथी के बीच टकराव की स्थिति प्रारम्भ हो गयी | गर्मी की छुट्टी में आकर मैनें कानपुर में एक अच्छे राज -मिस्त्री की तलाश की और इन्द्र सिंह को गाँव लेकर पहुंचा | मैनें अपनी बाबा के छोटे भाई आदरणीय दरबारी लाल से कहा कि दोनों घरों का अन्दर जाने का मिला -जुला रास्ता सम्मिलित ही रखा जाय तो अच्छा लगेगा वर्ना दोनों घर काफी लम्बे व बहुत कम चौड़े हो जायेंगें | मैं बाहरी प्रवेश मार्ग का सम्पूर्ण खर्च वहन करने को तैय्यार भी था | ,पर बाबा जी ने अलग अलग अन्दर जानें के प्रावधान करने की बात कही | माता जी से परामर्श करके काम प्रारम्भ किया गया | आगे का कमरा व बरामदा लिंटल डालकर बनाया गया | पीछे की तिदवारियों की दीवारें पक्की करवा दी गयीं ,पर ऊपर की छत धन्नी वाला आवरण ज्यों का त्यों रखा गया | कमरे के साथ साथ अन्दर जानें के लिए तीन फ़ीट की एक गैलरी रखी गयी और दोनों घरों के बीच निशानी के लिए तीन फ़ीट की पक्की दीवार खींच दी गयी | इन्द्र सिंह करीब 45 दिन गाँव में ही टिका रहा | मुझे पूरी तरह याद नहीं कि पक्की ईंटें ,सीमेन्ट ,लोहा कहाँसे आया  ,पर शायद ,यह सभी कुछ कानपुर से ट्रक द्वारा मंगाया गया | मकान का नवीनीकरण मोहल्ले में अच्छी -खासी चर्चा का विषय रहा क्योंकि अभी तक कुछ को छोड़कर लगभग  सभी मकान कच्चे ही बनें हुए थे और लिंटल पड़ा हुआ मकान  समृद्धता का प्रतीक माना जाता था | मैं कह नहीं सकता कि इस काम में माता जी ने कितना व्यय किया ,पर मेरी सारी संचित कमाई समाप्त हो चुकी थी और स्थिति यहां तक आ गयी थी कि गर्मी की छुट्टियों का वेतन यदि रोहतक से मनीऑर्डर द्वारा शिवली न आ गया होता तो वापिस जानें की भी समस्या हो जाती | दो माह के 500 रुपये का वेतन भी गाँव के डाकखाने में उन दिनों चर्चा का विषय बन जाता था | सस्ते का ज़माना था और अभी तक 64 पैसे का रुपया ही चल रहा था | तीन या चार आने का एक सेर ताजा दूध मिल जाता था और पचास रूपये में एक भरी पूरी गृहस्थी चलाई जा सकती थी -कम से कम गाँव के परिवेश में | राजा भी छुट्टियों में शिवली में थे और उन्होंने बताया कि मुन्शी सिंह जी उनकी मदद करते हैं ,पर ठाकुरों के कालेज में कुछ दमंग लड़को ने अन्धेर मचा रखा है , और उनके कुछ साथी डटकर मुकाबला करेंगें | मेरे पास समय नहीं था कि तिरवां जाकर मुन्शी सिंह से मिलता ,पर मैनें राजा से कहा कि वे टंटे में न पड़े | एक वर्ष पूरा हो गया है और अगला वर्ष किसी तरीके से निकाल दें ताकि उनका ट्रेनिंग कोर्स पूरा हो जाये | मुझे छुट्टियों के बाद रोहतक जाना था और मैनें तय किया कि अबकी बार जब आऊँगा तो अपनी पत्नी को साथ लेकर रोहतक में रहने की शुरुआत करूँगा ताकि वहां पर संतानोत्पत्ति के लिए डाक्टरी परीक्षण का क्रम शुरू किया जाये | इस बीच मैं एक बार अपनी पत्नी को आनन्द बाग़ की एक लेडी डाक्टर से मिलवा चुका था और उसने कहा था कि शायद एक छोटे से आपरेशन की जरूरत पड़े | मुझे भी उसने Sperm Test करने की बात कही थी | और मैं सोचता था कि रोहतक में ही इस दिशा में आगे कदम उठाये जायें | गाँव के अन्धविश्वास से भरे हुए सामाजिक जीवन में व्याह के आठ वर्ष बाद भी सन्तान का न होना नारी के लिए निन्दा का कारण  तो बन  ही जाता है ,पर पुरुष की सामर्थ्य पर भी चिन्ह लगा देता है | कमला भी छुट्टी में आयीं थीं ,सम्भवतः घर बन जाने पर किये गये एक छोटे से उत्सव में | वे अब अपने लिए निजी मकान की चाहना करने लगी थीं , और उन्होंने माँ से कहा था कि कानपुर नगर पालिका स्थायी अध्यापिकाओं को मकान बनाने के लिए सस्ते दाम में 200 गज के भू खण्ड देने जा रही है ,पर उसके लिए कुछ हजार रुपये की प्रारम्भिक किश्त देनी होगी और उनके पास यह पैसा नहीं है | मैं जानता था कि आज या कल ,यह जिम्मेदारी भी मुझे निभानी पड़ेगी | कालेज में दूसरे वर्ष मैं मिनर्वा सोसायटी का प्रधान चुन लिया गया और मैनें उसके तत्वाधान में एक दो अच्छे आयोजन कर डाले | सेन्ट स्टीफन्स कालेज दिल्ली के प्राचार्य को मैं एक लेक्चर के लिए बुला लाया और एक बार डा ० स्वरूप सिंह को ,जो बाद में दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाईस चान्सलर और गुजरात के राज्यपाल भी हुए ,भी बुलाकर लाया था | कालेज में उन दिनों इतिहास के प्रोफ़ेसर इकबाल थे जो NCCके कैप्टन थे | उसी वर्ष उनका चयन केन्द्रीय माध्यमिक स्कूल के प्राचार्य के रूप में हो गया | और उनके जाने के साथ ही कालेज में एक NCCअधिकारी की आवश्यकता  आन पडी | कालेज में मेरे सहयोगियों में उस समय के कई दिग्गज विद्वान थे यू एन डे ,प्रो ० भट्टाचार्य ,डा ० आर के बंसल ,यू पी सक्सेना ,एम एल अग्रवाल ,व डा ० पी सी जैन ,अपने अपने विषयों के माने हुए स्कॉलर ,अधिकारी विद्वान थे | (क्रमशः )

No comments:

Post a Comment