Wednesday, 10 May 2017

रोहतक के रेलवे रोड की धर्मशाला में जाकर मैं ठहरा व पता लगाकर रेलवे पुल पार कर वैश्य कालेज जा पहुँचा | पंजाब प्रान्त में यह मेरा पहला आगमन था | पंजाबी शरणार्थी भाई -बहने रोहतक में काफी मात्रा में आये हुए थे और वे अपने लिए नयी बस्तियां बसाने में लगे थे | मुझे उस शहर की चहल -पहल अच्छी लगी | कालेज का प्रांगण काफी विशाल था और उसके साथ लगा हुआ वैश्य हाई स्कूल उससे भी  अधिक बड़े क्षेत्र में स्थित था | लगभग एक किलोमीटर लम्बाई चौड़ाई का क्षेत्र मुझे भा गया | मैनें तय किया कि यदि मुझे मौक़ा दिया गया तो मैं उस कला ,वाणिज्य व विज्ञान की तीनों संकाय वाले कालेज में टिककर काम करूंगा | उन दिनों हरियाणा व पंजाब को लेकर राजनीतिक गर्मा -गर्मी चल रही थी | यद्यपि पंजाब को अभी तीन राज्यों में बटनें में अभी दस साल बाकी थे | लगभग पच्चीस उम्मीदवार मैदान में थे जिनमें तीन चार सरदार और बाकी अधिकतर पंजाबी युवा थे | हरियाणा क्षेत्र से केवल दो ही सज्जन थे और उत्तर प्रदेश से अकेला मैं  बुलाया गया था | डा हरिश्चन्द्र बतरा उस समय कालेज के प्राचार्य  थे | वे एशियाटिक रॉयल सोसाइटी ऑफ हिस्टोरियन्स के सदस्य थे और राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से कालेज में प्राचार्य बन कर आये थे | वैश्य कालेज रोहतक जिस वैश्य स्कूल का पल्लवित रूप था ,उसकी नींव 1921में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने डाली थी | स्वाभाविक है कि वैश्य कालेज रोहतक काफी ख्याति अर्जित कर रहा था और इसलिए उसमें शिक्षा जगत के माने हुए विद्वान प्रविष्ट करना चाहते थे | डा ० बतरा जैसा कि मुझे बाद में पता चला एक पंजाबी नवयुवक प्रवीण भाटिया में Interested थे | वह उनका कोई दूर का रिश्तेदार था | इन्टरव्यू करने वालों में अँग्रेजी के विभागाध्यक्ष को नहीं बुलाया गया था | और डा ० बतरा ही एक्सपर्ट का काम कर रहे थे | बाकी कालेज के प्रधान व वर्किंग कमेटी के मेम्बर्स थे | जिनमें से कई जाने -माने वकील थे | सबसे पहला नाम प्रवीण भाटिया का व सबसे अन्तिम नाम मेरा था | प्रवीण भाटिया साक्षात्कार कक्ष में काफी देर तक रुका | डा ० बतरा के सभी प्रश्नों का उसने ठीक -ठाक उत्तर दिया और उससे बाहर रुकने को कहा गया | इसके बाद दूसरे उम्मीदवार बुलाये गए और पांच मिनट में ही उन्हें जाने को कह दिया जाता था | यह दूसरी बात है कि जाते समय कार्यालय अधीक्षक दयानन्द उन्हें चाय का एक प्याला पिला देते थे | बहुत देर के बाद जब मेरा नम्बर आया तो मुझे लगा कि मुझे भी पांच मिनट से अधिक ठहरने का मौक़ा नहीं मिलेगा | बायोडाटा देखकर डा ० बतरा  ने कहा -So you are mr.Avasthi?You have Sesured a good Second class .You are alredy in a degree College .Why do you want to come to Punjab?मैंने क्या कहा मुझे ठीक याद नहीं ,पर ऐसा ही कुछ कहा गया होगा कि आपका कालेज भारत की नामी शिक्षा संस्थाओं में है और यहां से जुड़ना अपने में गौरव की बात है | अब डा ० बतरा ने शैक्सपियर के हेमलेट से कुछ प्रश्न पूंछे | ठीक उत्तर पाने पर वे Antony व Cleopatra पर आये और नाटक की विषय वस्तु से अलग हटकर मिस्त्र के पिरामिड कालीन इतिहास पर चले गये | सम्भवतः वे मुझे निरुत्तर करना चाहते थे | उन्होंने नेफरटीटी और टूटर खैमन की बात की और उनका ऐतिहासिक समय जानना चाहा | मैंने उन्हें बताया कि लगभग ईसा से साढ़े पांच -छः हजार वर्ष पहले की मिस्त्र की राजसत्ता से जुडी हुयी यह ऐतिहासिक हस्तियां हैं जिनकी ममी पिरामिड में पायी गयी है | अब एक अन्य सदस्य ने जो सम्भवतः अमेरिकन साहित्य का कुछ ज्ञान रखते थे ,मुझसे अर्नेष्ट हेमिंग्वे के Old man and the Sea की विषय वस्तु के विषय में जानना चाहा | मैनें इस उपन्यास को अमरीका की उभरती हुयी द्रढ़ आत्मशक्ति और विश्व नेतृत्व की आकांक्षा का प्रतीक बताते हुए कुछ वाक्य कहे | फिर उन्होंने नोबल प्राइज के विषय में कुछ जानना चाहा और मैंने अल्फ्रेड नोबल के जीवन का संक्षिप्त इतिवृत्त बताकर कैथरीन से उनके मधुर सम्बन्धों की बात कही और बताया कि किस प्रकार डाइनामाईट के आविष्कार व अन्य पेटेण्ट से पैदा की गयी अकूत सम्पत्ति प्यार के नाम पर समर्पित की गयी -फिर कैसे उसका ट्रस्ट बना और नोबल पुरुष्कार की प्रक्रिया का आरम्भ हुआ | मुझे लगा कि मेरी बातचीत का अच्छा असर साक्षात्कार लेने वालों पर पड़ रहा है |  अब डा ० बतरा ने मुझसे अँग्रेजी कविता की कोई चार पंक्तियाँ कहने को कहा | मैंने Robert Frost की वे मशहूर पंक्तियाँ जो नेहरू जी की Writing Desk पर उनके Glaas Cover के नीचे मिली थीं ,दोहरायीं --
The woods are lovely ,dark and deep
But I have promises to keep
and miles to go before I sleep
And miles to go before I sleep .
                           प्राचार्य महोदय ने फिर चाहा कि मैं उन सबको कक्षा- विद्यार्थी समझ कर इन पंक्तियों की व्याख्या करूँ | मैनें कहा कि उन जैसे विद्यार्थी पाना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य होगा ,पर मैं यथाशक्ति सामान्य विद्यार्थी के समझ में आने लायक व्याख्या करने का प्रयास करता हूँ | मैंने पण्डित जी के प्रसिद्ध वाक्य -आराम हराम है -से इन पंक्तियों की सबन्धता व्यक्त करते हुए कर्म को मनुष्य जीवन की चरम उपलब्धि मानते हुए और सहज उपलब्धि सुख की भ्रामात्मकता पर बात करते हुए पँक्तियों की व्याख्या की | मैनें शास्त्रों के चरैवेति -चरैवेति और गीता के निष्काम कर्म की सम्बन्धता पर भी कुछ बातें कहीं | पण्डित जी का अपना जीवन पौर्वत्य और पाश्चात्य दर्शनों का अदभुत सामंजस्य था | शायद यही कारण है कि ये पंक्तियाँ उन्होंने अपने हाँथ से लिखकर अपने Writing Desk पर रख रखी थीं | मुझे लगा कि मैं बुरा अध्यापक नहीं साबित हुआ हूँ | बीच की कुर्सी पर बैठे Working Commetee के प्रधान ने मुझसे कुछ साहित्येत्तर बातें कीं ,जैसे अवस्थी लोग ब्राम्हण हैं तो कौन से ब्राम्हण ,जैसे मैं कुर्ता धोती पहनता हूँ तो क्या पैंट- कोट ,जैसे उत्तर प्रदेश छोड़कर पंजाब की जन संस्कृति में मुझे कोई अरुचिकर भिन्नता का अहसास तो नहीं होगा आदि आदि | मुझे याद नहीं कि मैनें उत्तर में क्या कहा, पर अन्त में मुझे बाहर बैठकर प्रतीक्षा करने को कहा गया | मैंने सोचा शायद दोबारा बुलाया जायेगा | बाहर प्रवीण भाटिया पहले से ही बैठे थे | अब हम दो ही थे और बातचीत में हम दोनों परिचित हो गए | उन्होंने बताया कि वे पानीपत के किसी कालेज में कार्यरत हैं ,पर रोहतक में निकट सम्बन्धी होने के कारण आना चाहते हैं | अन्दर काफी देर तक बहस चलती रही | मैं समझता हूँ कि प्राचार्य महोदय धोती कुर्ता पहनने वाले एक उत्तर प्रदेशीय ब्राम्हण की अपेक्षा पंजाब में एक पंजाबी भाई को रखना शायद ज्यादा अच्छा समझते होंगें |  पर, प्रधान जी न जानें क्यों मेरे में रूचि ले रहे थे और उनका पलड़ा ही भारी रहा | मुझे बुलाया गया और प्राचार्य जी ने कहा कि मैं नियुक्त किया जा रहा हूँ | मैं रु ० 215 -320 -20 -500 के ग्रेड में एक वर्ष के प्रशिक्षण में रखा जा रहा हूँ | मॅहगाई भत्ता व अन्य देय पंजाब सरकार के अनुसार अतिरिक्त होंगें | उन्होंने पूछा कि मैं कितना समय लूगाँ | मैनें कहा कि मैं लगभग एक माह बाद यानि अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह में आ पाऊंगाँ | सहमति हो गयी और दयानन्द जी इसी बीच नियुक्ति पत्र टाइप करके ले आये जिसपर प्रधान जी ने हस्ताक्षर कर दिये | मैनें खड़े होकर सब को धन्यबाद दिया और प्रणाम किया | प्रधान जी ने खड़े होकर मुझसे हाँथ मिलाया और कहा -Welcome to our fold,young man and do us proud .कमरे से बाहर आने पर प्रवीण भाटिया ने मुझे मुबारकवाद दी और वे तथा मैं हमेशा के लिए मित्र बने रहे | वहां से लौटकर मैनें धर्मशाला में आकर अपना झोला लिया तथा गंजडुडवारा  वापिस पहुंचा | (क्रमशः )

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