कालेज में पन्द्रह अगस्त और गणतन्त्र दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन होता था और हम सब उसमें अपनी मंचीय क्षमता की अभिव्यक्ति का अवसर पाते थे |वैसे भी सोने लाल जी प्रतिष्ठित व्यक्तियों को बुलाते रहते थे व 11 रहवीं व बारहवीं के विद्यार्थियों को बैठाकर हम अध्यापक उन विशिष्ट व्यक्तियों की सूझ -बूझ भरी बातों का आनन्द लिया करते थे | एटा के प्रसिद्ध गीतकार बलबीर सिंह रंग एक बार कालेज में आये थे और उनके सुनाये हुए गीत की दो पंक्तियाँ मुझे अभी तक याद हैं -तरकस के तीर नहीं बदले ,सन्धान बदलकर क्या होगा ,भाषा के भाव नहीं बदले ,उपमान बदलकर क्या होगा | पटियाली में एक अच्छे गायक थे | जिन्हें विद्या गवैय्या के नाम से जाना जाता था | वे कई बार हम लोगों द्वारा बुलाये जानें पर इण्टर कक्षाओं के बीच में आकर हारमोनियम पर अपने गीत सुनाया करते थे | कभी कभी वे कच्ची तरुणाई के बच्चों के बीच अपनी हल्की -फुल्की स्वरचित पंक्तियों को भी मधुर ढंग से सुनाकर सबको उल्लसित करते थे | उनकी दो पंक्तियाँ मेरे मन में कई बार उभरकर हलके-फुल्के आनन्द का संचरण कर देती हैं -मैं पटियाली का छकड़ा हूँ ,तुम दिल्ली की मोटरकार प्रिय -मैं काँटों का हूँ शहनशाह ,तुम बंगले का हरसिंगार प्रिये | इन पंक्तियों में सम्भवतः लय की गति टूटी है और मात्राओं का नियमन भी नहीं है ,पर वे कुछ इस ढंग से गाते थे कि उनके स्वर में कुछ ऐसा मार्दव था कि सुनने वाले झूम उठते थे | पटियाली की मेरी स्मृतियों में एक रंगीले मियाँ भी हैं | कालेज से घर जाते समय वे अक्सर अपनी दुकान पर मिल जाते थे | वे दर्जी का काम करते थे और शेरो -शायरी का उन्हें शौक था | वे अधेड़ हो रहे थे और एक पैर से टेढ़े होकर चलते थे | वे अक्सर एक शेर हम लोगों को सुनाते थे -इश्क ने हमको तिकोना कर दिया ,वर्ना हम भी आदमी चौकोर थे | कुछ दिन बाद त्रिवेदी ने कहीं से खबर इकठ्ठी की कि मियाँ जी को पास की एक विधवा खटिक से इश्क था जिसके दस बारह वर्ष के दो तीन बच्चे थे | एक दिन रात को दीवार से उसके घर में उतर रहे थे | कोई बच्चा जगा और उसने लम्बी लाठी उठाकर शोर मचाया | मियाँ जी दीवार से दूसरी तरफ हड़बड़ी में सड़क पर कूंद गए और उनकी टाँग टूट गयी | तभी से वे तिकोने हो गए | खटकिन अब अपने परिवार के साथ कासगंज चली गयी है | चौबे जी एक बार हम लोगों को सम्भवतः सितम्बर मांह में अपने खेतों में ले गए | प्रिन्सिपल व सारा स्टाफ उनके निमन्त्रण पर उनके साथ था | उनका दस -बारह बीघे का मक्के का खेत पूरी तैय्यारी में खड़ा था | पुष्ट ,भरे पूरे भुट्टे सफ़ेद सफ़ेद रेशे मुँह से निकालते हुए हम सबको अपनी ओर आमन्त्रित कर रहे थे | चपरासियों ने आग जलाई | चुन -चुन कर भुट्टे तोड़े गए -भूना गया और नमक व नीबू के साथ मन भर जानें तक खाया गया | अपने में यह बात आज भले ही अधिक महत्व पूर्ण न लगती हो जबकि पेप्सी ,कोकाकोला ,मैकडॉनल्ड या हल्दीराम का दौर चल रहा है ,पर ग्रामीण आतिथ्य के इस उदार उत्सव को मैं आज तक भुला नहीं पाया हूँ | कई बार शनिवार के अध्यापन के बाद रविवार को हम सूना -सूना महसूस करते थे | त्रिवेदी ,पाल व मैं तीनों ही शादी शुदा थे पर तीनों ही छड़ो का जीवन बिता रहे थे | शिक्षा सत्र में दस पन्द्रह बार हम लोग रविवार के दिन सुबह की गाड़ी से कासगंज चले जाते | वहां घूमते -फिरते ,मैटनी शो देखते और शाम की गाड़ी से वापस आ जाते | कासगंज में काफी बड़ी मुस्लिम बस्ती है और वहां नाच गाकर भरण पोषण करने वाली महिलाओं का बाजार भी है | पाल को इन सब बातों का पता कहीं से चला होगा और एक बार वह हमें शाम को एक ऐसी ही महफ़िल में ले गया | हम दस -बीस रुपयों की न्यौछावर चढ़ाकर और वाहवाही करके एक घण्टे के बाद ही उठकर भागे | मुझे वहां एक निकृष्ट और घिनौना वातावरण सांस लेता हुआ दिखाई पड़ा | सम्भवतः वे महफ़िलें नारी देह व्यापार के लिये छद्म आवरण मात्र थीं | जवानी के उन प्रारम्भिक दिनों में जीवन के अधिक से अधिक अनुभवों को पास से देखने की इच्छा ने ही पाल को इस बात के लिये प्रेरित किया होगा कि वह हमें वहां ले जाये | कई बार हम रविवार के दिन घर पर बैठकर रमी का खेल खेला करते थे | गणित के अध्यापक बुलन्दशहर के अग्रवाल भी वहां आ जाते थे और पाल की चाय के कई कई दौर लगते थे | एकाधबार अग्रवाल व चौबे जी के घर पर हम लोगों का खाना भी हुआ | बांके लाल हलवाई के दुकान की पापड़ी हम सबको बहुत भाती थी और शाम को मलाई पड़ा आधे सेर का दूध का गिलास हमें सोने से पहले हर रोज अपनी ओर आकर्षित करता था | ताश के खेल को त्रिवेदी गंजडुडवारा कहकर पुकारता था | दरअसल गंजडुडवारा वहां से दस किलोमीटर दूर एक स्टेशन था जो एक बड़े कस्बे के पास बना था | गंजडुडवारा का यह कस्बा एक मण्डी था और पटियाली के मुकाबले कई गुना बड़ा था | यहां भी एक इण्टर कालेज था जो पटियाली के मुकाबले काफी बड़ा क्षेत्र घेरे था और जहां अगले सत्र से बी ० ए ० की कक्षाएं प्रारम्भ हो रही थीं | गंजडुडवारा का यह कालेज अब एक पोस्ट ग्रेजुएट कालेज बन चुका है | त्रिवेदी वहां डिग्री कालेज के लिए कोशिश कर रहा था इसलिए यह नाम उसके दिमाग पर छाया रहता था | यह सब बताना इसलिए आवश्यक हो गया है कि त्रिवेदी चाहकर भी गंजडुडवारा नहीं पहुँच सका जबकि यह उपलब्धि मेरे पास अनायास ही आ गयी | घटा कुछ इसप्रकार - उन दिनों स्वेज नहर को लेकर मिश्र के आधिपत्य और अंग्रेजों के अनाधिकार कब्जे को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय पंचायत में काफी विवाद उठ खड़ा हुआ था | मुझे ठीक सन्दर्भ ध्यान में नहीं आ रहा ,पर हम कालेज के वरिष्ठ शिक्षकों ने प्राचार्य महोदय से मिलकर कुछ ऐसा निर्णय लिया कि कालेज में U.N.O. का एक Mockसेशन अरेन्ज किया जाये और पास -पड़ोस के प्रतिष्ठित लोगों को बुलाया जायें | (क्रमशः )
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