पटियाली में प्रवक्ता बनकर जानें की खबर ने पुराने सम्बन्धों को एक भावभीनी विदाई के द्वार पर खड़ा कर दिया | वे तीनों अध्यापिकाएँ जिन्हें मैं कई वर्षों से पढ़ रहा था ,अब स्नातक हो गयी थी | प्रशिक्षित तो वे पहले ही थीं | वे सब ट्रेन्ड ग्रेजुएट ट्रेड में (TGT)पदोन्नति पा गयी थीं | उनमें से एक अँग्रेजी में और दो हिन्दी में एम ० ए ० करना चाहती थीं | यदि मैं कानपुर में रुका होता तो निश्चय ही वे मुझे सहायता के लिये कहतीं | मेरी शिक्षा के बाद मेरे अध्यापन कैरियर की शुरुआत हो रही थी | और पटियाली तो मात्र पहला कदम था | इन तीनों स्थानों पर मुझे अत्यन्त सम्मान के साथ विदाई दी गयी | अपने जीवन में मैनें कई स्थानों पर ढेर सा आदर पाया है ,पर इन तीनों स्थानों पर जो सम्मान मिला ,मैं भुला नहीं पाया हूँ | मुल्क देवी , स्वराज कपिल ,और शान्ति निगम -तीनों ने ही मुझे अपने लिये भेजा गया भगवान् का एक दूत बताया और कहा कि वे जीवन भर मुझे विस्मरण नहीं कर सकेंगीं | जैसा कि मेरा स्वभाव है कि मैं उनसे विदा लेने के बाद आज तक उनसे नहीं मिला हूँ | अब वे सब कहाँ हैं और कैसी हैं -मैं नहीं जानता | सोचता हूँ कि अन्तिम प्रयाण से पहले एक बार उन सबकी खोजबीन कर ली जाये | निश्चय है वे भी अब वार्धक्य के विषम दौर से गुजर रही होंगीं | राष्ट्रीय विद्यालय में भी विदाई समारोह का आयोजन हुआ | लगभग छः वर्षों तक मैं उस विद्यालय से सम्बन्धित था | अध्यापन के अतिरिक्त वर्ष में होने वाले सभी सामूहिक समारोहों का आयोजन और मंच सन्चालन मेरे ही द्वारा होता था | विद्यालय के व्यवस्थापक व प्राचार्य ए ० के ० प्रधान एम ० ए ० एल ० टी ० मुझ पर अत्यन्त भरोसा करते थे और सगे छोटे भाई से बढ़कर सम्मान देते थे | मुझे याद है कि एक बार मैं नीरज जी को राष्ट्रीय विद्यालय ले आया था | साथ में डी ० ए ० वी ० के प्रधानाध्यापक भी आये थे | मंच पर मेरा सन्चालन देखकर और मेरी वक्तृता सुनकर नीरज जी ने मुझसे कहा था कि मैं कविता लिखने का प्रयास करूं और इसतरह कवि सम्मेलनों द्वारा जनता तक अपने विचार पहुँचाऊँ | कविता तो मैं नहीं कर सका पर हाँ थोड़ी -बहुत तुक्कड़वाजी और भाषण वाजी अवश्य की है और कमोवेश चर्चित भी हुआ हूँ | ए ० के ० प्रधान द्वारा दिया हुआ शिक्षण प्रमाणपत्र आज भी मेरे पास सुरक्षित है | वे मेरे से उम्र में काफी बड़े थे ,पर मुझे विश्वास है कि उनका विद्यालय अभी चल रहा होगा | प्रभु ने यदि कुछ और समय दिया तो उनसे भी मिलने की इच्छा मन के किसी कोनें में सजोये हूँ | सात जुलाई को पटियाली जाने से पहले मैं बिल्हौर या पूरा स्टेशन पर उतरकर बकोठी गया और रात भर रुका | अगले दिन सुबह माता जी का आशीर्वाद लेकर मैं पटियाली पहुँच गया | देखा कि लगभग बारह प्रत्याशी साक्षात्कार के लिये बुलाये गए हैं | अधिकाँश के पास अनेक वर्षों का अध्यापन अनुभव था ,पर अंकों की द्रष्टि से मेरा स्थान सर्वोपरि था और बातचीत में भी मुझे लगता है कि मैनें सभी पूछी गयी बातों का संतोषजनक उत्तर दिया | दरअसल अँग्रेजी एम ० ए ० करने के बावजूद मुझे हिन्दी साहित्य व भारत की अतीत संस्कृति में गहरी रूचि थी | कालेज के प्रबन्धक भी चाहते थे कि जो अँग्रेजी पढ़ाये ,वह दृढ़ता के साथ अपनी राष्ट्र संस्कृति से
जुड़ा हो | और फिर मेरे गुरुवार कैलाश नाथ पाण्डेय का पत्र तो मैं ले ही आया था | मुझे हस्तलिखित नियुक्ति पत्र उसी दिन दे दिया गया और उसी दिन से अध्यापन प्रारम्भ करने को कहा गया | प्रारम्भिक वेतन रु ० 150 व महगाई भत्ता रु ० 10 था | वेतनमान और वार्षिक वेतन वृद्धि का भी कुछ जिक्र था , जिसे मैं स्मरण नहीं कर पा रहा हूँ | कालेज के पुराने अध्यापक चौबे जी के सहयोग से मुझे काफी बड़ा पक्का कमरा रु ० 15 मासिक किराये पर मिल गया | खाने के लिए रु ० 30 मासिक में दोनों पहर की व्यवस्था एक स्थानीय भोजनगृह में हो गयी | भैंस का दुहा ताजा दूध जो सम्भवतः उस समय पचास पैसे सेर मिलता था मेरे लिये सुनिश्चित कर लिया गया | शाम को कालेज के प्रधान भगवत स्वरूप ने मुझे बुलाया और कहा कि उनकी पोती बारहवीं की परीक्षा दे रही है और मैं उसे अँग्रेजी पढ़ा दूँ | वे मुझे 30 रु ० महीना दे देंगें और साथ ही मेरे कृतज्ञ भी होंगें | उनका यह प्रस्ताव उनकी विनम्र भाषा और आदरपूर्ण व्यवहार के कारण मैनें स्वीकार कर लिया | इसप्रकार लगभग दो सौ रु ० की आमदनी का प्रबन्ध हो गया | एकाध माह बाद मेरे पास कुछ अतिरिक्त काम भी आ गया , जिसमें कालेज के सचिव जो तम्बाकू के थोक आढ़ती थे ,के घर पर अँग्रेजी में कुछ पत्रों को लिखने और आये हुए पत्रों के उत्तर देने का काम भी था | लगभग पचास रुपये की अतिरिक्त आमदनी पक्की हो गयी | सम्भवतः रक्षा बन्धन के अवसर पर मैं कमला के यहाँ पहुँचा | माता जी भी वहीं थीं और उनके साथ मेरी पत्नी भी वहां उपस्थित थीं | जहां तक मेरा ख्याल है मैं तीनों के लिये दो दो धोतियाँ और घर के लिये कुछ मिठाई व सामान लेकर पहुँचा था | कमला का परिवार बढ़ रहा था जो धीरे धीरे बढ़कर छः बच्चों तक पहुँचा | मेरे दो बड़े भान्जे गिरीश व अशोक के बाद चार भांजियां और परिवार से जुड़ीं जिन्हें अरुणा ,बिब्बो ,गुड्डी और गुड़िया कहकर पुकारते हैं | इधर कानपुर के रामबाग वाले कमरे में मेरे जाने के बाद राजा की मनमानी शुरू हो हो गयी थी | मैनें उन्हें पी ० पी ० एन ० कालेज के बी ० ए ० क्लास में भर्ती तो करवा दिया था ,पर मैं जानता था कि वे कोई न कोई शगूफा खड़ा करेंगें , क्योंकि वे नशे के शिकार हो गये थे और उन्होंने अवांछित तत्वों का एक गैंग तैय्यार कर लिया था | एडमिशन के बाद सम्भवतः वे एक दिन भी कालेज नहीं गये पर उन्होंने कहा कि उनकी पढ़ाई चल रही है | मैनें उन्हें खर्च के लिए पचास रुपये देकर कहा कि हर माह मैं खर्च के लिये पचास रूपये भेजता रहूंगां और साथ ही फीस की व्यवस्था भी कर दूंगां ,बस वे ध्यान से पढ़ते रहें | पर उस समय मुझे पता न था कि उनका नाम शीशा मऊ पुलिस चौकी की गुण्डा डायरी में लिखा जा चुका है | यद्यपि मैं नौकरी में लग चुका था ,पर अभी तक मुझे अपनी पत्नी को लेकर नौकरी के स्थान पर रहने की इच्छा नहीं थी | घर गिरा पड़ा था उसे बनवाना था | छोटे भाई की शादी करनी थी और किराए के दो कमरों में अत्यन्त दयनीय जीवन काटते हुए कमला के परिवार के लिए किसी उचित निवास स्थान की व्यवस्था करनी थी | अमीर खुसरो के जन्म स्थान पटियाली में मुझे केवल एक शिक्षा सत्र ही रहने का सुअवसर मिला | हिन्दी कविता के खड़ी बोली के पहले विश्रुत कवि के रूप में जाने जानें वाले अमीर खुसरो की पहेलियाँ मुझे अभी तक याद हैं | एक थाल मोती से भरा ,सबके सिर पर औंधा धरा ,थाल वो चारो ओर फिरे ,मोती उससे एक न गिरे जैसी साफ़ सुथरी काव्य पंक्तियाँ कई शताब्दियाँ गुजर जाने के बाद आज भी कम देखने को मिलती हैं | पटियाली एक साफ़ सुथरा कस्बा था और इण्टर कालेज में पढ़ाने वाले शिक्षक वहां एक विशेष आदर की द्रष्टि से देखे जाते थे | वे पढ़े लिखे थे और उनकी एक निश्चित आमदनी थी | यह बात भारत के ग्राम्य जीवन में किसी भी वर्ग को विशेष आदर का पात्र बना देती है | पटियाली में इण्टर कक्षा पिछले वर्ष से शुरू हुयी थी और 11 हवीं का बैच अब बारहवीं में था | इसलिये अध्यापकों की आवश्यकता आन पडी थी | अँग्रेजी के लिएमैं ,इतिहास के लिए त्रिवेदी ,और भूगोल के लिए पाल नियुक्त हुए थे | त्रिवेदी इतिहास व राजनीति शास्त्र दोनों में एम ० ए ० थे | पाल सम्भवतः बंगाल के किसी कालेज से प्रथम श्रेणी में एम ० ए ० करके आये थे | हिन्दी व संस्कृत पढ़ाने के लिए चौबे जी थे जो पहले से ही कालेज में ट्रेन्ड अध्यापक थे और अब हिन्दी में एम ० ए ० करके प्रवक्ता के पद पर पहुँच गए थे | चौबे जी का पटियाली में ही अपना घर था और उनके पास लम्बी खेती थी | हम तीनों साथ के लिये एक ही कमरे में रहने लगे जो प्रारम्भिक रूप से मैनें किराये पर लिया था खाना हम बाहर खाते थे और दूध व नाश्ता हलवाई से लेते थे | अतः कमरे में खाना बनाने का कोई झंझट था ही नहीं | कुछ चारपाइयाँ ,एकाध कालेज से माँगी हुयी कुर्सी और अलमारी में रखे हुए सूटकेस जिनमें हम लोगों के कपडे थे -हमारे जीवनयापन की आवश्यकताओं को पूरा करते थे | यों पाल के पास अपना स्टोव था और चाय के कुछ बर्तन थे | वह चाय बनाने में अत्यन्त माहिर था | वह चाय में इलायची या लौंग डालकर कुछ ऐसा फ्लेवर पैदा करता था कि उसके हाँथ की बनी चाय हम सबके लिए एक बहुत ही चाही वस्तु बन गयी थी | वह फ़ुटबाल का माना हुआ खिलाड़ी था और शाम के समय कालेज में 12 वीं के बच्चों के साथ एक टीम बनाकर उसने खेल प्रशिक्षण का काम भी अपने हाँथ में लिया था | त्रिवेदी साहित्य व राजनीतिशास्त्र के अच्छे अध्येता थे और अधिकतर लिखने पढ़ने में लगे रहते थे | वे डा ० आशीर्वादी लाल के शिष्य थे और उन्हें उत्तर भारत का प्रमुख इतिहासकार मानते थे | अभी तक साम्यवादी इतिहासकारों का बोलबाला नहीं हो पाया था | डा ० ईश्वरी प्रसाद की कुछ पुस्तकें मैनें पढ़ी थीं और उनमें मुग़ल काल का रोचक वर्णन मुझे बहुत अच्छा लगा था | बाद में मैनें जाना कि वे लोग मुख्यतः संग्रह कर्ता ही थे | उनमें वह वस्तुपरक द्रष्टि नहीं थी जो मुझे बाद में इफ़रान हबीब ,विपिन चन्द्र पाल और रोमिला थापर में देखने को मिली | चौबे जी एक अत्यन्त मिलनसार पारिवारिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे | वे पचास के आस -पास होने वाले थे और उनकी एक लड़की व्याही जा चुकी थी | दो बच्चे ऊँची कक्षाओं में कानपुर में पढ़ रहे थे | कालेज में सब मिलाकर सात -आठ सौ विद्यार्थी होंगें व बीस -पच्चीस का स्टाफ था | प ० सोने लाल मिश्र हिन्दी में एम ० ए ० ,बी ० एड० थे और पहले सम्भवतः अध्यापन करते रहे हों,पर अब वे प्रशासन का काम ही देखते थे और कालेज के लिये धन जुटाने की कोशिश में रहते थे , ताकि आगे भवन निर्माण हो सके और बी ० एड ० कक्षा के लिए मान्यता प्राप्त की जा सके | वे कई बार बिहारी के दोहे और घनानन्द के सवैयों का अपनी परिचर्चा में समावेश करते थे और अपने को रीतिकालीन कविता का मर्मज्ञ मानते थे | मुझे याद है कि अँग्रेजी के गासिप शब्द का अनुवाद गपशप न मानकर वे 'बतरस 'किया करते थे | सम्भवतः बतरस शब्द उन्होंने बिहारी के इस दोहे से लिया था | -बतरस लालच लाल के मुरली धरी लुकाय ,सौंह करे भौहन हँसे ,दैन कहे नटि जाये | मैं कई बार उनसे कहता था कि इस दोहे में बतरस शब्द का प्रयोग प्रेम भरी बातों की आतुरता से सम्बन्धित है और इसलिए यह गॉसिप को ठीक भाव नहीं दे पाता | पर ,वे कहते थे कि गपबाजी का रस भी बतरस से कम नहीं होता | वे सज्जन व्यक्ति थे और मैं कई बार असहमत होकर भी उन्हें बड़ा मानकर सहमति में अपना सिर हिला देता था | (क्रमशः )
जुड़ा हो | और फिर मेरे गुरुवार कैलाश नाथ पाण्डेय का पत्र तो मैं ले ही आया था | मुझे हस्तलिखित नियुक्ति पत्र उसी दिन दे दिया गया और उसी दिन से अध्यापन प्रारम्भ करने को कहा गया | प्रारम्भिक वेतन रु ० 150 व महगाई भत्ता रु ० 10 था | वेतनमान और वार्षिक वेतन वृद्धि का भी कुछ जिक्र था , जिसे मैं स्मरण नहीं कर पा रहा हूँ | कालेज के पुराने अध्यापक चौबे जी के सहयोग से मुझे काफी बड़ा पक्का कमरा रु ० 15 मासिक किराये पर मिल गया | खाने के लिए रु ० 30 मासिक में दोनों पहर की व्यवस्था एक स्थानीय भोजनगृह में हो गयी | भैंस का दुहा ताजा दूध जो सम्भवतः उस समय पचास पैसे सेर मिलता था मेरे लिये सुनिश्चित कर लिया गया | शाम को कालेज के प्रधान भगवत स्वरूप ने मुझे बुलाया और कहा कि उनकी पोती बारहवीं की परीक्षा दे रही है और मैं उसे अँग्रेजी पढ़ा दूँ | वे मुझे 30 रु ० महीना दे देंगें और साथ ही मेरे कृतज्ञ भी होंगें | उनका यह प्रस्ताव उनकी विनम्र भाषा और आदरपूर्ण व्यवहार के कारण मैनें स्वीकार कर लिया | इसप्रकार लगभग दो सौ रु ० की आमदनी का प्रबन्ध हो गया | एकाध माह बाद मेरे पास कुछ अतिरिक्त काम भी आ गया , जिसमें कालेज के सचिव जो तम्बाकू के थोक आढ़ती थे ,के घर पर अँग्रेजी में कुछ पत्रों को लिखने और आये हुए पत्रों के उत्तर देने का काम भी था | लगभग पचास रुपये की अतिरिक्त आमदनी पक्की हो गयी | सम्भवतः रक्षा बन्धन के अवसर पर मैं कमला के यहाँ पहुँचा | माता जी भी वहीं थीं और उनके साथ मेरी पत्नी भी वहां उपस्थित थीं | जहां तक मेरा ख्याल है मैं तीनों के लिये दो दो धोतियाँ और घर के लिये कुछ मिठाई व सामान लेकर पहुँचा था | कमला का परिवार बढ़ रहा था जो धीरे धीरे बढ़कर छः बच्चों तक पहुँचा | मेरे दो बड़े भान्जे गिरीश व अशोक के बाद चार भांजियां और परिवार से जुड़ीं जिन्हें अरुणा ,बिब्बो ,गुड्डी और गुड़िया कहकर पुकारते हैं | इधर कानपुर के रामबाग वाले कमरे में मेरे जाने के बाद राजा की मनमानी शुरू हो हो गयी थी | मैनें उन्हें पी ० पी ० एन ० कालेज के बी ० ए ० क्लास में भर्ती तो करवा दिया था ,पर मैं जानता था कि वे कोई न कोई शगूफा खड़ा करेंगें , क्योंकि वे नशे के शिकार हो गये थे और उन्होंने अवांछित तत्वों का एक गैंग तैय्यार कर लिया था | एडमिशन के बाद सम्भवतः वे एक दिन भी कालेज नहीं गये पर उन्होंने कहा कि उनकी पढ़ाई चल रही है | मैनें उन्हें खर्च के लिए पचास रुपये देकर कहा कि हर माह मैं खर्च के लिये पचास रूपये भेजता रहूंगां और साथ ही फीस की व्यवस्था भी कर दूंगां ,बस वे ध्यान से पढ़ते रहें | पर उस समय मुझे पता न था कि उनका नाम शीशा मऊ पुलिस चौकी की गुण्डा डायरी में लिखा जा चुका है | यद्यपि मैं नौकरी में लग चुका था ,पर अभी तक मुझे अपनी पत्नी को लेकर नौकरी के स्थान पर रहने की इच्छा नहीं थी | घर गिरा पड़ा था उसे बनवाना था | छोटे भाई की शादी करनी थी और किराए के दो कमरों में अत्यन्त दयनीय जीवन काटते हुए कमला के परिवार के लिए किसी उचित निवास स्थान की व्यवस्था करनी थी | अमीर खुसरो के जन्म स्थान पटियाली में मुझे केवल एक शिक्षा सत्र ही रहने का सुअवसर मिला | हिन्दी कविता के खड़ी बोली के पहले विश्रुत कवि के रूप में जाने जानें वाले अमीर खुसरो की पहेलियाँ मुझे अभी तक याद हैं | एक थाल मोती से भरा ,सबके सिर पर औंधा धरा ,थाल वो चारो ओर फिरे ,मोती उससे एक न गिरे जैसी साफ़ सुथरी काव्य पंक्तियाँ कई शताब्दियाँ गुजर जाने के बाद आज भी कम देखने को मिलती हैं | पटियाली एक साफ़ सुथरा कस्बा था और इण्टर कालेज में पढ़ाने वाले शिक्षक वहां एक विशेष आदर की द्रष्टि से देखे जाते थे | वे पढ़े लिखे थे और उनकी एक निश्चित आमदनी थी | यह बात भारत के ग्राम्य जीवन में किसी भी वर्ग को विशेष आदर का पात्र बना देती है | पटियाली में इण्टर कक्षा पिछले वर्ष से शुरू हुयी थी और 11 हवीं का बैच अब बारहवीं में था | इसलिये अध्यापकों की आवश्यकता आन पडी थी | अँग्रेजी के लिएमैं ,इतिहास के लिए त्रिवेदी ,और भूगोल के लिए पाल नियुक्त हुए थे | त्रिवेदी इतिहास व राजनीति शास्त्र दोनों में एम ० ए ० थे | पाल सम्भवतः बंगाल के किसी कालेज से प्रथम श्रेणी में एम ० ए ० करके आये थे | हिन्दी व संस्कृत पढ़ाने के लिए चौबे जी थे जो पहले से ही कालेज में ट्रेन्ड अध्यापक थे और अब हिन्दी में एम ० ए ० करके प्रवक्ता के पद पर पहुँच गए थे | चौबे जी का पटियाली में ही अपना घर था और उनके पास लम्बी खेती थी | हम तीनों साथ के लिये एक ही कमरे में रहने लगे जो प्रारम्भिक रूप से मैनें किराये पर लिया था खाना हम बाहर खाते थे और दूध व नाश्ता हलवाई से लेते थे | अतः कमरे में खाना बनाने का कोई झंझट था ही नहीं | कुछ चारपाइयाँ ,एकाध कालेज से माँगी हुयी कुर्सी और अलमारी में रखे हुए सूटकेस जिनमें हम लोगों के कपडे थे -हमारे जीवनयापन की आवश्यकताओं को पूरा करते थे | यों पाल के पास अपना स्टोव था और चाय के कुछ बर्तन थे | वह चाय बनाने में अत्यन्त माहिर था | वह चाय में इलायची या लौंग डालकर कुछ ऐसा फ्लेवर पैदा करता था कि उसके हाँथ की बनी चाय हम सबके लिए एक बहुत ही चाही वस्तु बन गयी थी | वह फ़ुटबाल का माना हुआ खिलाड़ी था और शाम के समय कालेज में 12 वीं के बच्चों के साथ एक टीम बनाकर उसने खेल प्रशिक्षण का काम भी अपने हाँथ में लिया था | त्रिवेदी साहित्य व राजनीतिशास्त्र के अच्छे अध्येता थे और अधिकतर लिखने पढ़ने में लगे रहते थे | वे डा ० आशीर्वादी लाल के शिष्य थे और उन्हें उत्तर भारत का प्रमुख इतिहासकार मानते थे | अभी तक साम्यवादी इतिहासकारों का बोलबाला नहीं हो पाया था | डा ० ईश्वरी प्रसाद की कुछ पुस्तकें मैनें पढ़ी थीं और उनमें मुग़ल काल का रोचक वर्णन मुझे बहुत अच्छा लगा था | बाद में मैनें जाना कि वे लोग मुख्यतः संग्रह कर्ता ही थे | उनमें वह वस्तुपरक द्रष्टि नहीं थी जो मुझे बाद में इफ़रान हबीब ,विपिन चन्द्र पाल और रोमिला थापर में देखने को मिली | चौबे जी एक अत्यन्त मिलनसार पारिवारिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे | वे पचास के आस -पास होने वाले थे और उनकी एक लड़की व्याही जा चुकी थी | दो बच्चे ऊँची कक्षाओं में कानपुर में पढ़ रहे थे | कालेज में सब मिलाकर सात -आठ सौ विद्यार्थी होंगें व बीस -पच्चीस का स्टाफ था | प ० सोने लाल मिश्र हिन्दी में एम ० ए ० ,बी ० एड० थे और पहले सम्भवतः अध्यापन करते रहे हों,पर अब वे प्रशासन का काम ही देखते थे और कालेज के लिये धन जुटाने की कोशिश में रहते थे , ताकि आगे भवन निर्माण हो सके और बी ० एड ० कक्षा के लिए मान्यता प्राप्त की जा सके | वे कई बार बिहारी के दोहे और घनानन्द के सवैयों का अपनी परिचर्चा में समावेश करते थे और अपने को रीतिकालीन कविता का मर्मज्ञ मानते थे | मुझे याद है कि अँग्रेजी के गासिप शब्द का अनुवाद गपशप न मानकर वे 'बतरस 'किया करते थे | सम्भवतः बतरस शब्द उन्होंने बिहारी के इस दोहे से लिया था | -बतरस लालच लाल के मुरली धरी लुकाय ,सौंह करे भौहन हँसे ,दैन कहे नटि जाये | मैं कई बार उनसे कहता था कि इस दोहे में बतरस शब्द का प्रयोग प्रेम भरी बातों की आतुरता से सम्बन्धित है और इसलिए यह गॉसिप को ठीक भाव नहीं दे पाता | पर ,वे कहते थे कि गपबाजी का रस भी बतरस से कम नहीं होता | वे सज्जन व्यक्ति थे और मैं कई बार असहमत होकर भी उन्हें बड़ा मानकर सहमति में अपना सिर हिला देता था | (क्रमशः )
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