Wednesday, 26 April 2017

इधर कमला की ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी | उन्ही दिनों कानपुर नगरपालिका  में प्राइमरी स्कूलों के लिये प्रशिक्षित अध्यापिकाओं के लिये जगह निकली | कमला अँग्रेजी  साथ हाई स्कूल पास थीं और उनका प्रशिक्षण भी पूरा हो गया था | सोचा गया यदि वे नगरपालिका में काम पा जायें तो जीजा जी को कानपुर कलक्ट्रेट में काम करते रहने में सुविधा होगी अन्यथा उन्हें बार -बार कानपुर जिले के भिन्न -भिन्न गाँवों में कमला के तबादला हो जाने पर जाना पड़ता था | कमला ने प्रार्थना पत्र डाल दिया और  सौभाग्यवश उनका चयन भी हो गया | वे कानपुर नगर पालिका की सीमा  में स्थित उस्मानपुर नामक  गाँव में अध्यापिका पद पर नियुक्ति हुयी | इस नियुक्ति के पीछे भी माताजी की दौड़ -धूप थी क्योंकि गाँव के एक कांग्रेसी नेता यज्ञ दत्त जी की शहर के कांग्रेसी नेताओं में अच्छी पकड़ थी | अब एक समस्या खड़ी हो गयी | जिला परिषद् ने वजीफा देकर कमला को एक वर्ष का प्रशिक्षण प्रदान करने का अवसर दिया था ,इसलिए जिला परिषद् ने मांग की कि या तो वे शर्त के मुताबिक़ पांच वर्ष तक जिला परिषद् के प्राईमरी स्कूलों में काम करें या वजीफे का सारा पैसा जो लगभग ढाई हजार के आस -पास था ,वापिस करें | उन दिनों ढाई हजार रुपया भी काफी मायनें रखता था क्योंकि इण्टर कालेज के एक अध्यापक को माह में केवल एक सौ साठ रुपया मिलता था | वेतनमान को बदलनें की बातें चल रही थीं ,पर अभी स्थिति यथावत थी | दो लड़कों के बाद एक लड़की अरुणा घर में आ चुकी थी और  चौथी सन्तान की ओर भी कुछ लांक्षिणिक कदम दिखाई पड़ रहे थे | जीजा जी के वेतन से आरामी वीमारी वाले इस बड़े कुटुम्ब का भरण -पोषण कठिनाई से हो रहा था | ऐसे में इतने पैसे की व्यवस्था कैसे की जाये और न की जाये तो जिले भर में कहाँ- कहाँ मारा फिरा जाये |  आखिरकार ,फिर से माता जी को कहीं से कर्ज उठाना पड़ा और इस प्रकार जिला परिषद में पैसा जमाकर नो आब्जेक्शन प्रमाणपत्र लिया गया | कमला उस्मानपुर में पढ़ाने लगीं और छुट्टी होने पर माता जी बकोठी से सीधे उन्ही के यहाँ चली जाती थीं | यहां यह बता देना उचित रहेगा कि बकोठी का कई वर्ष का माता जी का कार्य काल अत्यन्त सुखद ढंग से बीता | उनकी सहायिका नन्दनी प्रभावशाली कुर्मी घर की थीं और वे उनका सारा काम सम्भाल लेती थीं | सम्भवतः ब्राम्हण होने के नाते वे माता जी के प्रति एक विशेष आदर भाव रखती थीं और सम्पन्न होने के कारण जरूरत पड़ने पर माताजी की मदद भी कर देती थीं |कमला के लिये पैसे की व्यवस्था शायद वहीं से हुयी होगी | माता जी के कार्य काल में गर्मी की छुट्टी में बी ० ए ० अन्तिम वर्ष व एम ० ए ० प्रथम वर्ष में मुझे बकोठी  जाने का मौका मिला | नन्दनी के युवा पति राधेश्याम कटियार एक पुत्र के पिता होने के बाद मिर्गी की बीमारी से पीड़ित हो गए थे | उनके पास काफी जमीन थी और उन्होंने मिर्गी का हर संभ्भव इलाज करवाया ,पर उनका दौरा चौथे -छठे माह पड़ ही जाया करता था | उन्होंने अपने को बीमा के द्वारा काफी सुरक्षित बना लिया था | और हर वर्ष एक बड़ी रकम किश्त के रूप में जीवन बीमा निगम को दिया करते थे | छुट्टियों में वे मेरे काफी निकट आ गए थे और हम घनें मित्र हो गए थे | मुझे उनके साथ एक बार छोटे से जंगल में शिकार में जानें का एक रोमांचक अनुभव हुआ | वे अपने एक मुस्लिम दोस्त के साथ अपनी लाइसेन्स शुदा बन्दूक लेकर शिकार पर निकले थे और मुझे भी आग्रह करके साथ ले गये थे | बकोठी से एक मील दूर झाड़- झंखाड़ ,पेड़ों , हाथी घास छोटे -छोटे गड्ढों तथा नालों से भरे हुए उस क्षेत्र में खरगोश ,सियार ,हिरण और शायद एकाध भेड़िये भी रहे हों | पेड़ों पर भिन्न -भिन्न प्रकार के पक्षी तो थे ही ,साथ ही नालों और जालखण्डों के पास कई किस्म के पानी वाले पक्षी भी थे | उन्हें एक जगह हिरणों का एक झुण्ड दिखाई पड़ा और नसीम मोहम्मद ने भरी बन्दूक से घोड़ा दबाकर निशाना साधा और एक हिरणी पर फायर कर दिया | उनका दावा था कि वे बहुत सधे निशाने बाज हैं और उनका निशाना कभी चूकता नहीं | पर हम जब झुण्ड के देखे जानें वाले स्थान पर गए तो किसी भी प्राणी का आभाष तक न था | वह झुण्ड न जानें हवा में कहाँ विलीन हो गया | तीन मील तक फैले उस जंगल में जहां जमीन पर विषैले सांप व बिच्छुओं की सम्भावना थी , खोजने का कोई भी प्रयास निरर्थक था | अन्त में कोई एक पक्षी मारकर नसीम अहमद ने अपनी खुराक निश्चित की  और हम घर लौट आये | अगले दिन कटियार के एक दोस्त ने उन्हें बताया कि जंगल के पूर्वी भाग में जहां उसके खेत थे ,एक हिरणी घायल अवस्था में पडी है | किसी के आने पर वह भागती है , पर थोड़ी दूर में गिर जाती है | शायद उसकी टांग में गोली लगी है | शायद आप लोग विश्वास न करें , पर मैं इस बात का आँखों देखा गवाह हूँ कि कटियार ने अपने मित्र कम्पाउडर राम दुलारे वर्मा को अपने साथ लिया | वर्मा जी ने अपने साथ दवाइयाँ और गोली निकालने का जमूरा ले रखा था | हम तीनों जब वहां पहुंचे तो हिरणी उठकर करीब दस गज तक भागी | -लड़खड़ा कर गिरी और दयनीय आंखों से हमें देखने लगी | | उन आंखों में इतनी अपार करुणा का भाव था कि हमारे दिल दहल गए | हम तीनों के मिले -जुले प्रयास से वर्मा जी ने गोली निकाली और घाव पर कुछ एन्टीसेप्टिक आवरण सा लगा दिया | हमारे छोड़ते ही हिरणी उठी और हाथी घास में घुसकर छिप गयी | ईश्वर जानें कि वह जीवित रही या नहीं ,पर हमें अपने मन में एक निरीह जानवर की प्राण रक्षा करने  का सन्तोष अवश्य रहा | एक बार कटियार जी मुझे लेकर गंगा तट पर  भी गए थे जहाँ दोपहर में एक ग्रामीण बाला ने हमें भरवां करेला और सत्तू का लंच करवाया था और शाम के समय गंगा की कछार में बड़े -बड़े तरबूजों में से एक अत्यन्त मीठा तरबूजा चुनकर हमनें ग्रीष्म की उस शाम में अपने को तृप्त किया था | नौकरी करने के दो वर्ष बाद मुझे पता लगा की कटियार जी कुएं पर बैठे स्नान की तैय्यारी कर रहे थे | कुवाँ उनके विशाल घर के एक कोने में था और वे अक्सर एकान्त में स्नान करते थे | वहीं उन्हें मिर्गी का दौरा आया और वे कुएं में गिर गए | अचेत अवस्था में कुएं में पड़े रहने के कारण वे होश में न आ सके | काफी देर बाद जब उनकी खोजखबर की गयी तो उनका मृत शरीर ही कुँएं से बाहर निकल पाया | माँ से सब बाते जानकार मैं कई दिनों तक सहज मानसिक स्थिति नहीं पा सका था  | वे सहृदय व अत्यन्त मिलनसार प्राणी थे | ऐसे व्यक्तियों की प्रभु के विधान में दुःख दायी व आकस्मिक मृत्यु देखकर जीवन के प्रति विराग हो उठता है | (क्रमशः )

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