Sunday, 23 April 2017

कैलाश नाथ जी सम्भवतः भगवत दयाल  जी के सम्बन्धी रहे हों  | नियुक्ति पक्की हो जानें की सूचना कानपुर लौटकर मैनें माता जी को पहुंचाई | इधर राजा भी इण्टर की परीक्षा पास कर जूनियर टीचर्स ट्रेनिंग के लिये पात्रता पा गये |जीवन के नये अध्याय की शुरुआत का पैगाम आगे खड़ा था |
                      नये अध्यायों की शुरुआत अधिकतर पिछले अध्यायों के घटना क्रम के आगे बढ़ने से होती है ,पर कुछ पिछले अध्याय पूर्णतः समाप्ति की ओर  बढ़ जाते हैं | एक ऐसा ही अध्याय है शिव दत्त अवस्थी से सम्बन्धित गतिविधियों का | एम ० ए ० फाइनल की परिक्षा में वे सम्भवतः एक या दो विषयों में रह गए हों | अपनी असफलता छिपाने के लिए उन्होंने मेरी ससुराल रूरा में यह निराधार खबर फैला दी कि मैं परीक्षा  में फेल हो गया हूँ और इसका कारण यह कि मैं जिन अध्यापिकाओं को पढ़ाने जाता हूँ ,उनके यहाँ अतिरिक्त समय देता हूँ | मेरी पत्नी शायद उन दिनों वहीं थीं और ये बातें उन्हें और उनके परिवार जनों को काफी चिन्ता में डालने वाली रहीं होंगीं ,पर उस समय मुझे इन सब बातों का पता न था | बाद में मेरी नियुक्ति हो जाने के बाद कहीं से माता जी ने यह ख़बरें इकठ्ठी कीं और मुझ तक पहुंचायीं | दरअसल मैं शिव दत्त अवस्थी से ऐसे अकुलीन व्यवहार की अपेक्षा नहीं करता था | हुआ यह था कि शान्ति निगम जिन्हें मैं पढ़ाता था के द्वारा मैनें उन्हें जिस अध्यापिका को पढ़ाने भेजा था ,उसने उनसे पढनें में असहमति जतायी | मैनें निगम से कहा कि कृष्ण दत्त एक अच्छे विद्यार्थी हैं और उन्हें पढ़ाने जानें को न कहना मेरे लिए एक अशोभन कार्य रहेगा | छुट्टियों तक उन्हें पढ़ाने दिया जाये | तब निगम ने मुझे  बताया कि वे पढ़ाने के नाम पर अजीब हरकतें करने लगे थे | मुझे विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वे विवाहित थे और अपनी पत्नी को लेकर एकाध बार मेरे यहां आये थे और अपने  प्यार की लम्बी -चौड़ी बातें भी सुनायीं थीं | जब शान्ति निगम ने बार -बार यह बातें कहीं तो मैनें उनसे कोई ठोस प्रमाण की मांग की ताकि मैं अपनी मित्रता को बनाये रखकर विनम्रता के साथ कृष्ण दत्त को इस कार्य से हटा सकूं | वे एक अच्छे परिवार के नवयुवक थे और मैं नहीं चाहता था कि बात आगे बढ़कर किसी स्कैण्डल का रूप ले ले | हो सकता है कि शिव दत्त के ऊपर एक मनोवैज्ञानिक दबाव रहा हो क्योंकि जैसा कि  मैं पहले यह कह चुका हूँ कि मैं तीन अध्यापिकाओं को पढ़ाता था और वे मुझसे पूर्णतः सन्तुष्ट थीं | मैं कई वर्षों से उनका शिक्षक था और उनके पति व परिवारजन मुझे घर का सदस्य मानने लगे थे |  मेरे चरित्र पर उनका अटूट विश्वास था | शिव दत्त कभी -कभी मुझसे हल्की -फुल्की बातें करते थे और मैं उन्हें सहपाठी होने के नाते कुछ मित्रता की और कुछ उपदेश भरी बातें सुना देता था | सम्भवतः वे सोचते होंगें कि वे मेरे से अधिक सम्पन्न घर के हैं और वेश भूषा में भी आधुनिक शैली अपना चुके हैं | फिर उन्हें सम्मान क्यों नहीं मिल रहा है | विवाह हो जाने पर भी उनका नारी मनोविज्ञान काफी छिछले किस्म का था | वे हर युवा स्त्री को खेल की वस्तु समझते थे | मैं नहीं जानता कि कैसे ,कब और कहाँ शान्ति निगम ने उस अध्यापिका के साथ मिलकर कोई योजना बनायी | एक दिन निगम मेरे पास अंग्रेजी की एक कॉपी ले आयीं जो कृष्ण दत्त को उस अध्यापिका ने करेक्शन के लिए दी थी करेक्शन तो नाम मात्र को थे ,पर एक पृष्ठ पलटनें के बाद एक सुरुचिहीन प्यार पत्र अँग्रेजी में कृष्ण दत्त की हस्तलिपि में मौजूद था | उस पत्र में प्यार के लिए अपने मर जानें की बात कही गयी थी और उस लड़की से फूलबाग में एक विशेष समय में आने के लिए कहा गया था | भाषा का स्तर बाजारू था और भावनाओं की अभिव्यक्ति भोंडी ,सिनेमाई नक़ल पर आधारित थी | मैं उस कॉपी को अपने साथ कमरे पर ला आया हांलाकि निगम ने मुझसे वादा करवा लिया था कि मैं इस बात को और कहीं प्रकट नहीं करूँगा | अगले रविवार को जब शिवदत्त आये तो मैनें उनसे ट्यूशन बंद करने को कहा और यद्यपि महीनें में कुछ दिन बाकी थे ,फिर भी पूरा पैसा उनके हाँथ पर रख दिया | वे कहने लगे कि वे बिना पैसे के पढ़ाते रहेंगें क्योंकि वह लड़की एक अच्छी विद्यार्थी है और वे उसे प्रथम श्रेणी में ला खड़ा करेंगें | तब मैनें उनसे घुमा फिरा कर उनके अभद्र व्यवहार की बात चीत की और कहा कि उनका वहां जाना अब उचित नहीं है और वे इस प्रसंग को भूल जायें | मैनें उन्हें बताया कि मैं वह कॉपी देख चुका हूँ जिसमें उन्होंने अपने अँग्रेजी के रोमान्टिक साहित्य ज्ञान को उजागर किया है | उन्होंने कॉपी देखनी चाही ,पर मैंने कहा कि बात समाप्त हो गयी है ,अब आप वहाँ नहीं जायेंगें | बाद में मुझे सुनने में आया कि वे एक बार फिर वहां गए थे और उसके पिता ने उन्हें खबरदार किया था कि भविष्य में वे उस घर में पैर न रखें | यह घटना मेरे व शिव दत्त के बीच में थी और मैनें इस बात की किंचित चर्चा भी किसी से न की | इस घटना के बाद हम दोनों का मिलना लगभग समाप्त हो गया | यूं भी मैं एम ० ए ० पास करके नौकरी पर जा रहा था और उन्हें एक वर्ष बाद फिर परीक्षा में बैठना था और सम्भवतः  बी ० एड ० करना था ,क्योंकि वे उत्तीर्ण होने वाली रेखा के बिल्कुल ऊपर ही खड़े थे | पर शिवदत्त ने अपने मन की भड़ास मेरे ससुराल जनों पर निकाली | मेरी असफलता पर दुःख व्यक्त किया और मेरे चरित्र को कोसा | कुछ दिनों के लिये मेरे सास -ससुर व साले मुझे कुपथ गामी मानते रहे ,पर झूठ के कभी क्या पैर होते हैं ? कुछ ही महीनों में सच्चाई उभर कर सामने आ गयी | शिवली व रूरा सभी जगह यह खबर पहुँच गयी कि विष्णु पटियाली में अँग्रेजी का प्रवक्ता बन कर जा रहा है | रमणसिंह व मुझे छोड़कर अन्य सभी साथी भिन्न -भिन्न सरकारी नौकरियों में गये | कइयों ने बी ० एड ० किया और बाद में हाई स्कूल या जूनियर ट्रेनिंग कॉलेजों में अध्यापक वृत्ति स्वीकार की | इन्हीं में से   एक थे मुन्शी सिंह जो एक वर्ष बाद तिरवां के जूनियर ट्रेनिंग कालेज के अध्यापक बनें |  इण्टर के बाद राजा को मैनें बी ० ए ० में भर्ती कराने की बात की कि शायद वे ग्रेजुयट हो जाँय ,पर विधि का विधान कुछ और था | (क्रमशः )

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