Saturday, 18 March 2017

किसी प्रकार बला टली । लगभग पचपन वर्ष पहले घटी इस घटना का द्रश्य चित्र मेरे मन में धुंधला पड़ चुका है ,पर विवरण में से कुछ इधर -उधर भी हो गया हो ,तो भी मूल घटना की वास्तविकता अपनी जगह पर ज्यों की त्यों खड़ी है । मैनें सोचा कि अगर उदय नारायण इण्टर पास कर लें तो उन्हें जे ० टी ० सी ० (जूनियर टीचर सार्टिफिकेट ) का एक साल का कोर्स करवा कर कहीं अध्यापक नियुक्त करवानें का जुगाड़ किया जाये तो शायद परिवार की इज्जत बची रह जाये । कमला के यहां भी आर्थिक द्रष्टि से खींचातान होनें लगी थी । तीसरा बच्चा आने वाला था और किराए के मकान और किसी संचित पूंजी के अभाव में कठिनता से गुजारा हो रहा था । माँ  जिले  के शिक्षा दफ्तर में आती जाती थीं ।  उन दिनों जैसा कि आजकल भी बालिकाओं की शिक्षा की बड़ी चर्चा होती थी और उनके लिये विशेष व्यवस्था की जाती थी । गाँव में हाई स्कूल पास लडकियां बहुत नहीं थीं और उन्हें प्रारम्भ में अप्रशिक्षित अध्यापिका का पद दे दिया जाता था । बाद में उन्हें छुट्टी देकर सरकारी खर्चे पर प्रशिक्षण करवाकर स्थायी नियुक्ति कर दी जाती थी ,पर पहली नियुक्ति दफ्तर के बाबुओं की कृपा द्रष्टि पर निर्भर रहती थी और इस कृपा द्रष्टि के लिये उनके पास रिश्वत पहुंचानें के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग न था । वाध्य होकर व्यक्ति को व्यवस्था का शिकार होना पड़ता है । और माता जी इसी मार्ग से पहले भी गुजर चुकी थीं । मुझे पूरे घटना क्रम का सही खाका दिमाग में उभरता नहीं दिख पड़ता । ,पर मैं इतना जानता हूँ कि अप्रशिक्षित अध्यापिका के रूप में कमला की नियुक्ति कानपुर जनपद के कैंझरी गाँव में कर दी गयी । दो बच्चे पहले ही थे और तीसरा आने की प्रतीक्षा में था । इसलिए तय किया गया कि मेरी पत्नी को उनके यहाँ रखा जाये जो घर का सारा काम- काज सम्भाल लेंगीं । जीजा जी व माता जी कभी -कभी छुट्टियों में वहां जाते रहेंगें । इसी बीच जीजा जी की नौकरी को लेकर एक झंझट खड़ा हो गया । वे द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर एयरफोर्स से एयरमैन के नाते सेवा निवृत्त होकर सरकारी नौकरी में लगाये गये थे । एयरफ़ोर्से की जो सार्टिफिकेट उनके पास थी ,उसकी मान्यता हाई स्कूल के समकक्ष मानी जाती थी । उनकी प्रथम नियुक्ति राशनिंग विभाग में हुयी थी । वहां से हटनें के बाद उन्हें कलक्ट्रेट में लगाया गया था । राशनिंग विभाग तोड़ दिया था और कलक्ट्रेट सम्बंधित कार्यालय अधीक्षकों नें खपाये गये व्यक्तियों की शिक्षा सनदों की जांच की । जीजा जी की शिक्षा सनद पर कुछ सन्देह प्रकट किया गया । शायद कार्यालय अधीक्षक कुछ रिश्वत की चाह कर रहा हो ,पर जीजा  यदा -कदा हो जाने वाले मानसिक असन्तुलन के बावजूद फ़ौजी ट्रेनिंग पाये व्यक्ति थे । उन्होंने दावा किया कि उनकी शिक्षा सनद सही है और वे हाई स्कूल के समकक्ष वाली प्रामाणिकता एयरफोर्स से मँगवाकर दिखवा देंगें । बात बढ़ गयी और कार्यालय अधीक्षक नें यह नोट ऊपर भेज दिया कि जब तक उनकी सनद की प्रमाणिकता सिद्ध न हो जाये ,तब तक उनका वेतन रोक दिया जाये । आफीसर नें उसे स्वीकृत कर लिया और जीजा जी का वेतन रुक गया । । मुसीबत पर मुसीबत । कमला की तनख्वाह से घर कैसे चलता ? माता जी की सारी तनख्वाह कमला के घर पर ही खर्च होनें लगी । कैंझरी में किराये के मकान में रह रही मेरी पत्नी घरेलू काम -काज में प्रवीण थी ही ,अतः सारा काम ढर्रे पर चलनें लगा । । अब जब मैं अपनी द्रष्टि  को पीछे मोड़कर उस घटना की विवेचना करता हूँ तो लगता है कि शायद जीजा जी व कार्यालय अधीक्षक के बीच तनातनी का कारण जाति वैमनस्य भी रहा हो । जीजा जी कट्टर  सनातन पन्थी उच्च कुलीन ब्राम्हण थे और कार्यालय अधीक्षक तथा उसका अधिकारी दोनों ही कायस्थ थे । कानपुर कलक्ट्रेट में उन दिनों ब्राम्हण व कायस्थ दोनों जातियों में वर्चस्व की होड़ थी और एक दूसरे को तंग करने के लिये नए-नये कानूनी दांव -पेंच खेले जाते थे । सर्टिफिकेट के मामले को  हल होनें में लगभग सात -आठ माँह लगे ,क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों की कमाण्ड बदलकर भारतीयों के हाँथ में आ गयी थी और वायु सेना के दफ्तर से न जाने कितनें विभागों को लिखे जानें के बाद जीजा जी की सर्विस का रिकार्ड मिल पाया । इसे ईश्वर कृपा ही मानी जानी चाहिये कि उनका रिकार्ड मिल गया औए सनद की प्रामाणिकता मान ली गयी । इस घटना से कम  से कम  यह तो  सिद्ध होता है कि भारत छोड़ते -छोड़ते भी अंग्रेजों नें अपने फ़ौजी ढाँचे को पूरी मुस्तैदी के साथ भारतीयों को सौपा था । (क्रमश :)

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