Tuesday, 17 January 2017

सांध्य -बेला

सांध्य -बेला 

एक वर्ष चल गया किसी का दुःख न बाँटा । 
दीप्ति काल टल गया व्याप्त नीरव सन्नाटा ॥ 
एक कदम उठ गया मौत की मंजिल पानें । 
एक लहर उठ चली काल की प्यास बुझानें ॥ 
एक पृष्ठ बह गया प्रलय की जलधारा में ।
 एक गीत घिर गया गद्य की घनकार में ॥ 
त्याग पुष्प झड़ गया शेष ममता का काँटा । 
एक वर्ष चल गया किसी का दुःख न बांटा ॥ 
जीवन सरिता नित प्रति बहती ही रहती है । 
स्वत्व -समर्पण की गाथा कहती  रहती है ॥ 
पर आकंठ समर्पण -सुरसरि वही नहाते । 
आत्माहुति दे जीवन न्योछावर कर जाते ॥ 
भास्कर का क्या अर्थ न यदि घन दुःख- तम छांटा । 
एक वर्ष चल गया किसी का दुःख न बाँटा ॥ 
ज़रा -मरण का चक्र सनातन ही चलता है । 
प्राण -दीप पर सदा मृत्यु -मुख में पलता है ॥ 
कुछ पैरों में थिरकन लाओ ,अधरों पर मुस्कानें । 
कुछ आँखों से आँसू तोड़ो स्वर में भर दो गानें ॥ 
युग वरेण्य नर -पुंगव जिसनें जन मन अन्तर पाटा ।
 एक वर्ष चल गया किसी का दुःख न बाँटा ॥ 
प्रति पल -प्रति क्षण बाहु युग्म में भर -भर तमस हटाओ । 
मृत्युंजय बन हँसों मृत्यु पर जीवन सुरभि लुटाओ ॥ 
हर प्रभात होली बन जाये हर सन्ध्या दीवाली ।
 हर धमनी में मुखर हो उठे स्वस्थ रक्त की लाली ॥ 
सोंधी महक लिये  माटी की फैले बेल विराटा । 
एक वर्ष चल गया किसी का दुःख न बाँटा ॥ 
दीप्ति काल टल गया व्याप्त नीरव सन्नाटा । ।

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