Sunday, 15 January 2017

अनुभूति -सहभागिता

कैसा आश्चर्य है?
कल तक दुर्लभ्य गौरीशंकर चोटी पर
पदाघात करने की मेरी अभिलाषा का
प्रेरक भाव ,मात्र तुम्हारी दिल -पोशी थी
और आज चाह कर भी............
बिल्कुल ईमानदारी से कहता हूँ -
मनः शक्ति स्फुरित करनें की कामना
तुम तक जा
पीछे सर पटक लौट आती है ।
तो क्या मेरा चाहना असम्पूर्ण है
या कि तुम काल के उस क्षण को
पीछे छोड़ आयी हो
जब तुम मेरे लिये -पुरुष मात्र के लिये
उत्प्रेरक ऊर्जा का अक्षय दिखने वाला
संचित भण्डार थीं ।
आज तुम प्रेरणा नहीं केवल सहगामिनी हो
पर तुम्हें नास्टेलजिया से झटक कर
हटाने का मेरा दुः साहस
शायद खतरनाक है
इसलिये तुम्हें हक़ है कि तुम सत्य
को झुठला कर विगत में जिओ
और मैं ..............
मैं सत्य को वाणी देकर अपनी अनुभूति
का सहभागी खोजूँगा ।
 

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