Sunday, 15 January 2017

सरीसृप जीवन

सरीसृप जीवन 

जिन्दगी 
जन्म मृत्यु खूँटों पर लटकी हुयी डोरी है 
आशा है पिपाशा है 
अर्थहीन भाषा है 
तार -तार हो रही सड़ी हुयी बोरी है 
तार जो कटकर स्वतन्त्र है 
मुक्त लहराने को 
किन्तु जो 
अपनी निरन्तरता में विवश है 
जाल बन जाने को । 
सांस का नियमित ,क्रम वद्ध व्यापार 
निद्रा है 
शीत में भू -गर्भित सरीसृप जीवन ..........
इसीलिये दीर्घ सांस 
आगत विगत से अनासक्त ,काल -बिन्दु 
स्फुरित द्योतित क्षण 
जीवन की साध है 
कवि का आराध्य है ।

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