सरीसृप जीवन
जिन्दगी
जन्म मृत्यु खूँटों पर लटकी हुयी डोरी है
आशा है पिपाशा है
अर्थहीन भाषा है
तार -तार हो रही सड़ी हुयी बोरी है
तार जो कटकर स्वतन्त्र है
मुक्त लहराने को
किन्तु जो
अपनी निरन्तरता में विवश है
जाल बन जाने को ।
सांस का नियमित ,क्रम वद्ध व्यापार
निद्रा है
शीत में भू -गर्भित सरीसृप जीवन ..........
इसीलिये दीर्घ सांस
आगत विगत से अनासक्त ,काल -बिन्दु
स्फुरित द्योतित क्षण
जीवन की साध है
कवि का आराध्य है ।
जिन्दगी
जन्म मृत्यु खूँटों पर लटकी हुयी डोरी है
आशा है पिपाशा है
अर्थहीन भाषा है
तार -तार हो रही सड़ी हुयी बोरी है
तार जो कटकर स्वतन्त्र है
मुक्त लहराने को
किन्तु जो
अपनी निरन्तरता में विवश है
जाल बन जाने को ।
सांस का नियमित ,क्रम वद्ध व्यापार
निद्रा है
शीत में भू -गर्भित सरीसृप जीवन ..........
इसीलिये दीर्घ सांस
आगत विगत से अनासक्त ,काल -बिन्दु
स्फुरित द्योतित क्षण
जीवन की साध है
कवि का आराध्य है ।
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