करो या मरो
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हाँ तुम्हें मुझ पर हंसने का पूरा हक़ है
चाहो तो मुझसे घृणा कर सकते हो
या ...... या मुझ पर तरस खा सकते हो
मैनें तुम्हें बुद्ध ,ईसा और गान्धी के
आदर्शों पर चलने को कहा
मैनें तुम्हें सत्य ,त्याग और ईमानदारी के पाठ पढ़ाये
मैनें तुम्हें छल ,छद्म और हेरा फेरी से
दूर रहनें का आदेश दिया
और तुमनें मेरे उपदेशों को सुना
उन पर चले और आज तुम युवक हो
निर्भीक ,ईमानदार ,कर्तव्यनिष्ठ ।
पर तुम भूखे हो ,बेकार हो और
अपनें चारो ओर सीखे हुये आदर्शों की
लाशें देख रहे हो
हर मोड़ पर ईसा शूली पर टंगा है ,हर
गली में गान्धी को गोली मारी जा रही है
तुम तिलमिला रहे हो मेरी ओर
प्रश्न सूचक द्रष्टि से देख रहे हो...............
तुम्हारी योग्यता सिफारिश के आगे बेकार है
तुम्हारा सद्चरित्र ही तुम्हारा दुर्गुण बन गया है
तुम्हारी ईमानदारी ही तुम्हारे मार्ग का रोड़ा है ..............
हे भगवान् मैं तुम्हारी प्रश्न सूचक
द्रष्टि का क्या उत्तर दूं ..............?
क्या फिर वही आदर्श दोहराऊँ -जिनकी
लाश पर मैं स्वयं खड़ा हूँ ..............
नहीं मैं तुम्हारी निष्क्रिय बलि नहीं लूँगा
तुम स्वतन्त्र हो मुझपर हंसने के लिये
मुझसे घृणा करनें के लिये
पर यदि तुम्हारे यौवन में चुनौती स्वीकार
करने की शक्ति हो तो इतना करो
जो सत्ता अनाचार और अतिचार
को पाल रही है उसे एक हथौड़े का प्रहार तो दो -
कर्म की तरी पर डूबो या तरो
करो या मरो ।
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हाँ तुम्हें मुझ पर हंसने का पूरा हक़ है
चाहो तो मुझसे घृणा कर सकते हो
या ...... या मुझ पर तरस खा सकते हो
मैनें तुम्हें बुद्ध ,ईसा और गान्धी के
आदर्शों पर चलने को कहा
मैनें तुम्हें सत्य ,त्याग और ईमानदारी के पाठ पढ़ाये
मैनें तुम्हें छल ,छद्म और हेरा फेरी से
दूर रहनें का आदेश दिया
और तुमनें मेरे उपदेशों को सुना
उन पर चले और आज तुम युवक हो
निर्भीक ,ईमानदार ,कर्तव्यनिष्ठ ।
पर तुम भूखे हो ,बेकार हो और
अपनें चारो ओर सीखे हुये आदर्शों की
लाशें देख रहे हो
हर मोड़ पर ईसा शूली पर टंगा है ,हर
गली में गान्धी को गोली मारी जा रही है
तुम तिलमिला रहे हो मेरी ओर
प्रश्न सूचक द्रष्टि से देख रहे हो...............
तुम्हारी योग्यता सिफारिश के आगे बेकार है
तुम्हारा सद्चरित्र ही तुम्हारा दुर्गुण बन गया है
तुम्हारी ईमानदारी ही तुम्हारे मार्ग का रोड़ा है ..............
हे भगवान् मैं तुम्हारी प्रश्न सूचक
द्रष्टि का क्या उत्तर दूं ..............?
क्या फिर वही आदर्श दोहराऊँ -जिनकी
लाश पर मैं स्वयं खड़ा हूँ ..............
नहीं मैं तुम्हारी निष्क्रिय बलि नहीं लूँगा
तुम स्वतन्त्र हो मुझपर हंसने के लिये
मुझसे घृणा करनें के लिये
पर यदि तुम्हारे यौवन में चुनौती स्वीकार
करने की शक्ति हो तो इतना करो
जो सत्ता अनाचार और अतिचार
को पाल रही है उसे एक हथौड़े का प्रहार तो दो -
कर्म की तरी पर डूबो या तरो
करो या मरो ।
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