सपनें अब टूट गये
देह आसक्ति के बन्धन
हो ढीले ,सब छूट गये
प्राण -शहनाई की गूँज
अभी बाकी है
इतनी ही पूँजी
मेरे कवि के लिये काफी है ।
पर -जन्य पंखों पर उड़ता हूँ
वृन्त -हीन पत्तों सा
वायु के झकोरों पर
फिरता हूँ ,तिरता हूँ
काव्य की तरंग ही मेरेलिये साकी है
चुके गये कवि को
बस इतना ही काफी है । ।
ढल गयी सुहानी रात
मन्द हुये गगन दीप
है कहाँ स्वाती बूँद
रिक्त पडी सृजन-सीप
रात्रि की दोपहरी
जन्माष्टमी है आज
धन्य हुई देवकी
जसुदा को मिला राज
योगेश्वर जन्में हैं
मेरे लिये सबसे मधुर
रसिकेश्वर की झाँकीं है
बीत गये कवि को बस इतना ही काफी है ॥
देह आसक्ति के बन्धन
हो ढीले ,सब छूट गये
प्राण -शहनाई की गूँज
अभी बाकी है
इतनी ही पूँजी
मेरे कवि के लिये काफी है ।
पर -जन्य पंखों पर उड़ता हूँ
वृन्त -हीन पत्तों सा
वायु के झकोरों पर
फिरता हूँ ,तिरता हूँ
काव्य की तरंग ही मेरेलिये साकी है
चुके गये कवि को
बस इतना ही काफी है । ।
ढल गयी सुहानी रात
मन्द हुये गगन दीप
है कहाँ स्वाती बूँद
रिक्त पडी सृजन-सीप
रात्रि की दोपहरी
जन्माष्टमी है आज
धन्य हुई देवकी
जसुदा को मिला राज
योगेश्वर जन्में हैं
मेरे लिये सबसे मधुर
रसिकेश्वर की झाँकीं है
बीत गये कवि को बस इतना ही काफी है ॥
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