......................... पर हम बात कर रहे थे प्रकृति में पायी जाने वाली अपार विभिन्नता की और मानव जाति में पाने वाली क्षमताओं की अपार विभिन्नता के विकासवादी यह मानकर चलते थे कि करोड़ों वर्षों में भूगोल ,जलवायु ,भोजन सामग्री ,प्रकृति आपदाओं की निरन्तरता जैसे भूचाल ,उल्कापात ,उपलवृष्टि और अतिवृष्टि आदि तथा चेतन प्राणियों के भीतर निहित संहारक वृत्ति ने विविधता की अपार श्रखलायें खड़ी कर दीं । चूंकि करोड़ों वर्षों का यह काल मानव बुद्धि की पकड़ में नहीं आ सकता । इसलिये वह इन विभिन्नताओं को दैव से जोड़कर किसी आकाशीय सत्ता की कल्पना करने लगा । अब नव विकासवादी पुरानी विकास वादी धारणा को एक और नया आयाम दे रहे हैं । म्यूटेशन ( Mutation) और नैनो Transference की नयी धारणायें पुराने विकास वादी सिद्धान्त के साथ जोड़ी जानें लगी हैं । अब तो वस्तु स्थिति यह है कि प्रत्येक वर्ष प्रकृति की जैविक प्रणाली अपने नये -नये रहस्य खोलकर एक लुभावने समाधान का छलावा देती रहती है । चेतन की उत्पत्ति करोड़ों वर्ष पहले सम्भवतः वायरस जैसे अत्यन्त सूक्ष्म लुंज -पुंज एकल कोशीय जलीय संचरण के रूप में हुयी । उन करोड़ों वर्षों का जैविक इतिहास अत्यन्त रोचक और कहीं -कहीं प्रभावशाली ढंग से जीव शास्त्र में महान शोधकों द्वारा प्रस्तुत किया गया है पर उसमें इतने जोड़ -तोड़ ,अटकलें अनुमान और मनचली उड़ानें हैं कि कहीं -कहीं पर बुद्धि वर्णित सिद्धान्तों को चुनौती देने लगती है । हाँ जब डाइनासोर अपना दैत्याकार आकार लेकर धरती की छाती को रौंद रहे थे उस समय मैमल यानि स्तन पायी जीव अपने छोटे आकार को लेकर भयभीत इधर -उधर छिपकर अपनी जीवन रक्षा कर रहा था । लाखों वर्ष पहले विकास सम्बन्धी खोजों को पढ़ -पढ़ कर गहरे रोमांचक और विस्मृत कर देने वाले मायावी जाल से हमारी चेतना आक्रान्त हो जाती है पर लाखों वर्ष पहले के प्राणियों के अवशेष या पत्थर की चट्टानों में पायी गयी उनकी आकृतियां कुछ ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं कि हमें यह माननें का मन हो आता है कि शायद मनुष्य का विकास अपने से निम्नतर प्राणियों से हुआ हो । वन मानुष मानुषों में कैसे बदले और वनमानुषों को कौन सी प्रजाति कैसे कब और कहाँ हमारे आदि पुरुखों के रूप में विकसित हुयी इस सबका भी नृतत्वशास्त्रियों ने बहुत तर्कपूर्ण और रोचक अध्ययन प्रस्तुत किया है । Fossils अस्थि अवशेषों ,आदिम प्रस्तरीय अवजारों और रेवापडियों की भिन्न -भिन्न आकृतियों ने कुछ ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत कर दिये हैं जिन्हें नकारना मुश्किल होता है । मानव विकास की यह कहानी इतनी लम्बी है और इतने अनुमानित कारणों से संचालित है कि उसके लिये इस लेख में अधिक स्पष्टीकरण करना असम्भव सा लगता है आइये कुछ मनोरंजक विवरणों पर निगाह डालकर इस लेख को समाप्त करें ।
Embryology ( गर्भाशय में मानव भ्रूण के विकास का अध्ययन ) के अधिकारी विश्लेषकों ने यह पाया है कि मानव भ्रूण मानव शिशु बनते -बनते अपने नौ महीनें के विकास काल में लगभग जीवन की उन सभी प्रारम्भिक अवस्थाओं से गुजरता है जिनमें से होकर जैविक विकास की धारा मनुष्य तक पहुँची है । एकल कोशीय श्रष्टि से बढ़कर जलचर ,थलचर ,उभयचर ,बनचर सभी जीव श्रेणियों से बढ़कर मानव शिशु जन्म के समय उस प्रारम्भिक अवस्था को प्राप्त करता है जो मानव के आदि पुरुषों की रही होगी । शिशु का चार पैरों पर चलना ,खड़ा होना ,गिरना इन सब में लाखों वर्ष पहले किये गये उन प्रयासों की झलक है जब बनमानुष द्विपदीय होकर आगे के दो पैरों को स्वतन्त्र रूप से चलने के अतिरिक्त अन्य कामों में इस्तेमाल करने लगा होगा । (क्रमशः )
Embryology ( गर्भाशय में मानव भ्रूण के विकास का अध्ययन ) के अधिकारी विश्लेषकों ने यह पाया है कि मानव भ्रूण मानव शिशु बनते -बनते अपने नौ महीनें के विकास काल में लगभग जीवन की उन सभी प्रारम्भिक अवस्थाओं से गुजरता है जिनमें से होकर जैविक विकास की धारा मनुष्य तक पहुँची है । एकल कोशीय श्रष्टि से बढ़कर जलचर ,थलचर ,उभयचर ,बनचर सभी जीव श्रेणियों से बढ़कर मानव शिशु जन्म के समय उस प्रारम्भिक अवस्था को प्राप्त करता है जो मानव के आदि पुरुषों की रही होगी । शिशु का चार पैरों पर चलना ,खड़ा होना ,गिरना इन सब में लाखों वर्ष पहले किये गये उन प्रयासों की झलक है जब बनमानुष द्विपदीय होकर आगे के दो पैरों को स्वतन्त्र रूप से चलने के अतिरिक्त अन्य कामों में इस्तेमाल करने लगा होगा । (क्रमशः )
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