Friday, 13 May 2016

कुछ इधर की ,कुछ उधर की

                                                कुछ इधर की ,कुछ उधर की
                       
                           सिलीकॉन वैली (अमरीका ) के तकनीशियनों के एक सम्मेलन को  सम्बोधित करते हुये सँयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति बैरक ओबामा ने कहा कि मानव जाति का भविष्य आपके हाथ में है ।   विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका इस बात को जानता है कि तकनीकी क्रान्ति के बिना निरन्तर बढ़ती मानव प्रजाति अपने आधुनिक जीवन शैली के प्रति मानव को सुनिश्चित नहीं कर पायेगी । ऊर्जा की खपत इतने भयावह रूप से बढ़ती जा रही है कि उसकी पूर्ति धरती पर उपलब्ध खनिज साधनों ,जल श्रोतों ,आदि से असम्भव दीख पड़ती है । साथ ही साथ ऊर्जा की आधुनिक उपज ,विनिर्माण और वितरण प्रणाली प्रदूषण की उस चेतावनी को साकार करती दिखायी पड़ती है जिसमें कहा गया है कि मानव प्रजाति इस शताब्दी के अन्त तक     युद्ध से नहीं वरन अपनी जीवन शैली के कारण विनिष्ट होने की  कगार पर है । आधुनिक भारत तकनीशियनों की फ़ौज खड़ी कर रहा है उनमें से अधिकाँश कचरा मात्र हैं पर कुछ प्रतिशत वैज्ञानिक प्रतिभा के धनी है और तकनीकी नयी दिशायें तलाश रहे हैं । इस समय हमारे सामने दो मार्ग हैं । एक मार्ग जो चिर -परिचित है वह है पश्चिमी सभ्यता के विकास का मार्ग । विकास का यही क्रम चीन में राज़्य सत्ता पर काबिज साम्यवादी पार्टी के द्वारा स्वीकार किया गया है । वहाँ डेमोक्रेसी नहीं है पर विकास की मंजिलें वही है जो पश्चिमी दुनिया ने अपनी प्रगति यात्रा में निर्धारित की हैं । एक दूसरा मार्ग जो अभी तक शंकाओं से घिरा हुआ है वह है भारत की चरंजीवी सांस्कृतिक परम्परा को साथ लेकर नयी तकनीक के साथ जोड़ना  और ऊर्जा के प्राकृतिक साधनों का प्रकृति को विनम्र प्रणाम करते हुये उचित दोहन करना । ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की समस्या अपने भयानक जबड़े खोलकर प्रदूषित वायु और संक्रमित भोजन के द्वारा मानव जाति  को निगलने को खड़ी है । ऐसे में ऊर्जा के अक्षय श्रोत हमें तलाशने होंगें । जीवन का सारा खेल ऋतु रथ पर सवार सूर्य देव की कृपा पर निर्भर है । हमें अपनी आधुनिक जीवन शैली के लिये भी उन्हीं की शरण जाना पडेगा । पवन देव कभी अपने कल्याणकारी और कभी अपने रूद्र रूप में भारत की सांस्कृतिक जीवन शैली से अभिन्न रूप से जुड़े रहे हैं । हमें पवन और पवन पुत्रों से अपने गहरे सम्बन्धों के बल पर ऊर्जा प्राप्त करनी होगी । लद्दाख ,नेपाल के पूर्वोत्तर राज्यों केरला ,पश्चिमी घाट और विन्ध्य की पहाड़ियों में कुछ ऐसे प्राकृतिक वनस्पति जगत के अजूबे हैं जिनका रसीकरण ,परि मारर्जन और परिशोधन हमें ऊर्जा के क्षेत्रों की तरफ नये रास्तों को खोल सकता है । विशाल हिन्द महासागर और उसके साथ जुड़े अन्य अक्षय जल श्रोतों की तरंगें साधना पूर्वक नियन्त्रित करके ऊर्जा की नयी राहें सम्भावित कर सकती है । यूरोनियम टू हमारी धरती पर विशिष्टतः भारत में विपुल मात्रा में नहीं है  पर हमारे देश में थोरियम का चमत्कृत कर देने वाला भण्डार है । भारत के तकनीशियनों को अणु ऊर्जा की एक ऐसी शान्तिमयी विकास प्रणाली विकसित करनी है जो रेडियो धर्मिता से मुक्त होकर सहज रूप से हर ग्राम और ग्रामांचल में पहुंचाई जा सके अब इस सबके लिये हमें शिक्षा के नये प्रतिमानों की तलाश करनी होगी । कला ,विज्ञान ,वाणिज्य विभागों को बिल्कुल अलग -थलग रखकर हम शिक्षा के समग्र रूप को अंग -भंग कर रहे हैं । हमारा इतिहास और हमारी संस्कृति इस प्रकार की शिक्षा में बाधा न बनकर एक शक्तिशाली उत्तेजक का काम कर सकती है । आधुनिक शिक्षा विशेषकर तकनीकी क्षेत्र में तकनीक का ज्ञान तो देती है पर सांस्कृतिक रूप से वह अधिकाँश तकनीकी विद्यार्थियों को अपंग बना देती है । अभी एलोपैथिक में एम ० डी ० करने वाले एक विद्यार्थी ने अपने संस्था के निदेशक के साथ जो एक मुस्लिम हैं, अजमेर शरीफ में जाकर एक चादर चढ़ाई । उनकी क्या मन्नत थी मैं नहीं जानता पर  वे जब वहाँ से कुछ  पाया हुआ मिष्ठान लेकर मुझसे मिलने आये तो मैनें उनसे पूछा कि अजमेर शरीफ का भारत की किस महान शक्शियत और दार्शनिक विचारधारा से सम्बन्ध है तो उन्होंने कहा कि वे यह सब नहीं जानते हैं । उन्हें तो यह मालूम है कि उनके निदेशक ने उनसे मन्नत पूरी करने के लिये चादर चढाने की बात की और उन्होंने उनके आदेश का पालन किया । मैं यह सब लिखकर केवल यह बताना चाहता हूँ कि एक डाक्टर यह सब करके यह नहीं जानता कि अजमेर शरीफ ,या वाराणसी या चित्रकूट ,या रामेश्वरम का भारत की सांस्कृतिक परम्परा में क्या स्थान है और क्यों उसे यह स्थान मिला है । तो मैं उस डाक्टर या इन्जीनियर की उसकी सारी कुशलता के बावजूद आदर्श शिक्षा से वंचित रहने का ही दोषी पाऊंगा ।
शायद दोष उसका नहीं है वरन हमारी शिक्षा प्रणाली का है । कहा जा रहा है कि वर्तमान शिक्षा मन्त्री जी इस दिशा में विशेषज्ञों की राय लेकर कुछ ठोस कदम उठा रही हैं । एकाध वर्ष और इन्तजार करती हुयी इस दिशा में कोई विवेचना की जा सकती है ।काफी जोर शोर से यह प्रचारित हो रहा है की शीघ्र ही भारत वर्ष में सौ के आस -पास स्मार्ट सिटी विकसित किये जायेंगें । वाराणसी से सांसद बनने वाले प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी को जापान के क्योटो शहर जैसा बना देने का संकल्प ठाने हैं । मैं न तो जापान गया हूँ और न चीन ,क्योटो ,शंघाई या बीजिंग की सुन्दरता और बनावट का मुझे कोई प्रत्यक्ष अनुभव नहीं है । मैं योरोप और अमरीका भी नहें गया हूँ और इसलिये लन्दन ,न्यूयॉर्क ,शिकागो या वाशिंगटन की चमत्कृत कर देने वाली निर्माण शैली ,साज -सज्जा और सुविधा संसाधनों का मुझे प्रत्यक्ष अनुभव नहीं है पर मैं समझता हूँ कि भारत के लगभग 98 -99 प्रतिशत नर -नारी मेरी ही तरह से इन महानगरों की परी कहानियों से प्रत्यक्ष रूप से परिचित नहीं होंगें । पर चूंकि मैंने मुम्बई ,दिल्ली, कलकत्ता मद्रास और हैदराबाद को देख रखा है इसलिये मैं जानता हूँ कि इन सभी महानगरों की एक काली छाया भी है जो नरक का आभाष कराती है । कुछ भाग ऐश्वर्य के उजाले में चमक रहे हैं तो काफी कुछ भाग जीवन की दुखदायी यन्त्रणाओं से बिंधे पड़े हैं । अब जो सौ स्मार्ट शहर विकसित होने जा रहे हैं उन्हें किस मॉडल पर विकसित किया जायेगा यह मैं नहीं जानता पर मैं इतना जानता हूँ जो कुछ मैंने पढ़ा है उसमें सिन्ध नदी घाटी सभ्यता या सरस्वती नदी घाटी सभ्यता में भी मकानों के अन्दर अच्छे स्नानागार थे और बाहर पानी निकासी का बिना किसी त्रुटि के सर्वोत्तम प्रबन्ध था । हमें भूलना नहीं चाहिये कि भारत की आजादी हर वर्ष करोड़ों का नया आंकड़ा अपने में जोड़ लेती है और जो भी स्मार्ट सिटी विकसित किये जायँ उसमें कम से कम दो पीढ़ी आगे तक की विकास व्यवस्था समायोजित करनी पड़ेगी । कई बार मुझे लगता है कि कहीं मेरा चिन्तन प्रतिगामी तो नहीं हो रहा है क्योंकि मेरी मान्यता है कि यदि 10 गाँव के कलस्टर को एक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जाय तो कहीं अधिक सुचारु ,स्वास्थ्य वर्धक ,और सुविधा सम्पन्न योजना चरितार्थ की जा सकती है ।   भारत के कुछ छोटे शहरों में भी मेरा जाना हुआ है । एक मित्र की पुत्री के विवाह बेला में रायबरेली जाना हुआ तो मैनें पाया कि वहाँ घूमने लायक कोई पार्क ही नहीं है सुनने में आया कोई इन्दिरा उद्यान है और वह भी उपेक्षित पड़ा है । इस शहर के हर मोहल्ले में पार्क हैं पर उनकी बंजर नंगी जमीन में कूड़े -करकट के ढेर लगे हैं और टूटी -फूटी बदसूरत चहर दीवारी मन में घ्रणा का भाव जगा देती है । इन्टरनेट के आविष्कार ने विश्व की राजनैतिक, भूगौलिक ,नैतिक और धार्मिक सभी मान्यताओं में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया है । शहरी घरों में शायद ही कोई ऐसा परिवार हो जो मोबाइल  स्मार्ट फोन न रख रहा हो । सोशल मीडिया के न जाने कितने साधन शिक्षित -अशिक्षित सभी नागरिकों के लिये मुहैय्या हैं और जहाँ नहीं हैं वहाँ मुहैय्या कराये जायेंगें । कहा यह जा रहा है कि भारत का हर घर ,पंचायत या सामूहिक मन्त्रणा गृह इन्टरनेट से जोड़ दिया जायेगा वैसे भी सोशल मीडिया के कितने ही माध्यम विश्वव्यापी सम्पर्क का  सहज ,सुलभ मार्ग खोल चुके हैं । फेसबुक ,ट्वीटर यू ट्यूब ,स्टागाम आदि -आदि नयी पीढ़ी के लिये नशा बनकर मानसिक तनाव पैदा कर रहे हैं । हमें देखना होगा कि जो नयी योजनायें फलीभूत होती हैं और जो नयी बस्तियां संगठित होकर उजालेपन की ओर बढ़ती हैं उन्हें इन संसाधनों द्वारा और अधिक उजला ही बनाया जाय । इनका दुर्पयोग या कुत्सित ,अश्लील प्रसारण और नग्न देहावलोकन कहीं अन्तरात्मा में कैन्सर बनकर सम्पूर्ण विनाश की ओर न पहुँचा दे । माइथालाजी और इतिहास ने तथा  उत्खनन और पुरातत्व ने न जाने कितने खण्डहरों और विनिष्ट सभ्यताओं को अतीत के अँधेरों से खोज निकाला । न जाने कितने शक्तिशाली त्रिलोक विजयी मुण्ड विहीन धड़ रेत  की शुस्मिता में दबे पाये गये हैं । विकास का पश्चिमी मॉडल 'माटी " की तराजू पर सर्वथा खरा नहीं उतरता उसकी कंचन चमक में कई जगह खोट के टाँके लगे हैं । समय आ गया है जब भारत सधे कदमो से उस नये मार्ग की तलाश करे और उस दिशा में संचरण का प्रयास करे जो उसे विश्व के सर्वोत्क्रष्ट सांस्कृतिक पायदान पर  पहुँचाने में समर्थ हो । बीता हुआ कल हमारा था । हमारा वर्तमान फिसलन भरा रहा है । पर आने वाला कल शायद फिर से हमारा हो सके इसी दिशा में हमें अपने सामूहिक प्रयासों को गतिशील करना होगा । जय शंकर प्रसाद के शब्दों में -
"अमर्त्य आर्य पुत्र हो
बढे चलो ,बढे चलो ।"

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