......................... इधर काफी समय से यह माँग की जा रही है कि पार्लियामेन्ट के भीतर एमपीज के आचरण को लोकपाल बिल की निगरानी में लाया जाना चाहिये पर अब तक के क़ानून के मुताबिक़ संसद में संसद सदस्यों का किया गया सारा आचरण क़ानून की सीमा से बाहर रखा गया है । अब यदि आप स्वयं नियन्त्रण नहीं रखते तो सारे देश में टी ० वी ० में देखा गया आपका व्यवहार और सुनी गयी आपकी भाषा आक्रोश तो पैदा ही करेगी । संविधान के प्रति वफादारी की कसम खा लेना ही काफी नहीं है । मानव के उच्च्तम नैतिक मापदण्डों पर खड़े होने पर ही आप भारत के सामान्य जनता के सम्मान के अधिकारी बन सकते हैं । मुझे आश्चर्य है कि आज देश के हर शिक्षित तरुण और तरुणी में यह भावना ,धारणा द्रढ़ होती जा रही है कि इस शासन व्यवस्था में कोई भी काम बिना रिश्वत ,सिफारिश या हेराफेरी के हो ही नहीं सकता बिना आधार के कोई भी सामाजिक सत्य बड़े पैमाने पर सामाजिक स्वीकृति नहीं पाता । शिक्षित तरुण पीढ़ी की इन धारणाओं के पीछे सत्य तो अवश्य ही है पर वह सत्य आंशिक है या सम्पूर्ण इस पर विचार करना होगा । यदि हम योग्य नहीं हैं और हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमतायें हमें Space Travel के लिये योग्य नहीं बनातीं तो हम अन्तरिक्ष उड़नयान में बैठने का स्वप्न न पालें तो अच्छा ही है । बहुत सी सामान्य कहावतें हमें भ्रमित कर देती हैं । हर व्यक्ति बराबर है ,द्रढ़ निश्चय से हर व्यक्ति जो चाहे कर सकता है । यह सभी सामान्य वाक्य हैं । सुनने में अच्छे लगते हैं । पर सच्चायी के धरातल पर हममें से अधिकाँश एवरेस्ट की चोटी पर नहीं चढ़ सकते । हाँ हर कोई टॉपर नहीं हो सकता .हर कोई गोल्ड मैडलिस्ट नहीं हो सकता , हर कोई तान सेन नहीं बन सकता ,हर कोई गगन नारंग नहीं बन सकता ,हर कोई ध्यान चन्द्र नहीं बन सकता और हर कोई सचिन तेन्दुलकर भी नहीं बन सकता । दिलीप कुमार और मधुबाला बनने के लिये भी कुछ विशेष प्रकार की क्षमताओं की आवश्यकता होती है । यह ठीक है कि स्वतन्त्र देश में हर व्यक्ति को इज्जत से जीवन जीने की मूलभूत सुविधायें उपलब्ध होनी चाहिये । एक वेलफेयर स्टेट में इसीलिये समाज के सबसे दुर्बल वर्ग को राज्य की और से कुछ सहायता राशियाँ दी जाने की कानूनी योजनाएँ बंनती हैं ताकि वे भी एक सामान्य जीवन जी सकें । इंग्लैण्ड में तो कुछ ऐसे भारतवासी पहुँच गए हैं और वहाँ के नागरिक बन गये हैं जो निठल्ले बैठे रहने में ही सुख मानते हैं । एक Welfare State होने के नाते बेकारी के रजिस्टर में उनका नाम दर्ज होने के कारण इंग्लैण्ड की सरकार उन्हें इतनी सरकारी सहायता राशि देती रहती है कि वह इन्ही डोल्स के बल पर सुविधा भरी जिन्दगी जीते रहते हैं । जहाँ तक संभ्भव हो हमें राज्य की डोल्स पर निर्भर रहने की बात नहीं सोचनी चाहिये । जो इस धरती पर जन्म लेकर और स्वस्थ्य होकर भी अपनी तरुणायी में अपने प्रयत्न और व्यक्तित्व से समाज में कोई मर्यादित स्थान नहीं बना सकता वह सच्चे अर्थों में भारतीय नहीं है । कर्म का कौशल ही तो योग है । निर्माण का हर सकारात्मक कदम राष्ट्र की अस्मिता की वृद्धि करता है । कनफटा साधू बनकर भीख माँगना साधू होने के गौरव को घटाता ही है । इसी प्रकार दैनीय होकर राज्य से भीख माँगना भी भारतीयता के गौरव में श्री वृद्धि नहीं करती । Welfare State की योजनायें तो चलती ही रहेंगीं पर क्या हम ऐसे नहीं बन सकते कि कुछ और दूसरे हमसे सहारा लेने की सोचें बजाय इसके कि हम पराश्रयी हो जाँय ।
No comments:
Post a Comment