Thursday, 7 April 2016

                              ........................ औरंगजेब के कट्टर इस्लामी जनून के कारण हिन्दुस्तान के इस्लाम से इतर अन्य दार्शनिक विचारधाराओं के अनुयायी दूसरी या तीसरी श्रेणी के नागरिक बन गये हैं । जजिया कर तो उनपर लगा ही है साथ ही ऊँचे पदों पर भी उनकी नियुक्ति रुक गयी है । औरंगजेब कट्टर मुल्लाओं की चपेट में है । शरियत की गलत -शलत व्याख्या की जा रही है । सर क़त्ल किये जा रहे हैं । मन्दिर गिराये जा रहे हैं । गुरु तेगबहादुर के दोनों पुत्रों को दीवार में जीवित चुनवा दिया गया । उन्होंने सर दिया पर सार न दिया ।ऐसे में माँ भवानी के पुजारी समर्थ राम दास से शक्ति प्राप्त करने वाला प्रेरणा पुरुष शिवा जी राजे महाराष्ट्र में स्वतन्त्रता का बिगुल बजा देते हैं । महाराज जै सिंह द्वारा आदर पूर्ण बराबरी के व्यवहार की आशा पर शिवाजी उनके साथ दिल्ली आये थे पर औरंगजेब के दरबार में उन्हें पाँच हजारी पंक्ति में खड़ा कर उनका घोर अपमान किया गया ।
           कवि भूषण ने लिखा है -
          
" सबन के आगे ठाढ़े रहिबे के जोग ,
  ताहि खड़ो कियो जाय प्यादन के नियरे ।"
                        शिवाजी ने भरे दरबार में ही निडर होकर अपना विरोध और क्रोध प्रकट किया । उन्हें महाराज जै सिंह के कहने पर महाराज जै सिंह के महल में ही कैद कर दिया गया । शिवाजी राजे  प्रकार मिठाई के लम्बे -चौड़े झाले में छिपकर नजर कैदी से मुक्त हो गये इसका विस्तृत विवरण "माटी "के पाठकों ने इतिहास के पन्नों में पढ़ा ही होगा । हिन्दू जाति के इस सिरमौर वीर का सँरक्षण पूरी सतर्कता के साथ हिन्दू संस्कृति के चिन्तक ,विचारक और संरक्षक करते रहे । एक लम्बे अर्से के बाद एक छद्म वेश में शिवाजी राजे माँ जीजाबाई के सामने उपस्थित होकर कोई भिक्षा पाने की प्रार्थना करने लगे । उनका वेष परिवर्तन इतनी कुशलता से हुआ था कि स्वयं उनकी माँ ही उन्हें प्रथम दृष्टि में पहचान नहीं पायी । अपनी लम्बी गुप्त यात्रा के दौरान शिवाजी ने भारत की लक्ष -लक्ष जनता के ह्रदय के भावों को पूरी तरह समझ लिया था । वे आश्वस्त थे कि औरंगजेब की कट्टर इस्लामी नीति के खिलाफ उन्हें न केवल हिन्दुओं का व्यापक समर्थन मिलेगा बल्कि सहिष्णु मुसलमान भाई भी उनका पूरा साथ देंगें । हिन्दुस्तान में जन्में ,पले पुसे और अकबरी परम्परा के मुस्लिम वर्ग सहकारिता और सहअस्तित्व को कैसे नकार सकते हैं । शिवाजी राजे का जय रथ माँ जीजाबाई का आशीर्वाद लेकर और समर्थ राम दास से शक्ति पाकर विजय यात्रा पर निकल पड़ा । मुग़ल साम्राज्य की सारी फ़ौज उन्हें पस्त करने में लगा दी गयी स्वयं शाहंशाह औरगजेब वर्षों दक्षिण में टिके रहे ताकि शिवाजी को पकड़ कर कैद कर लिया जाय या मार दिया जाय पर भारत का भविष्य अभी एक नयी गुलामी आने की प्रतीक्षा कर रहा था । शिवाजी द्वारा स्वतन्त्र स्थापित राज्य औरंगजेब के लिये न मिटनें वाला सरदर्द बन गया । काशी में शिवाजी को क्षत्रियत्व  प्रदान कर उन्हें चक्रवर्ती सम्राट के रूप में विभूषित किया गया । वे आज तक छत्रपति  शिवाजी महाराज के नाम से जाने जाते हैं । शिवा राजे तो उनके प्रारम्भिक विजय काल का सम्बोधन था । महाकवि भूषण को पहली बार दक्षिणावर्त की धरती पर पहली बार एक ऐसा जननायक देखने को मिला जिसमें श्री राम की वीरता और श्री कृष्ण की उदारता दोनों आदर्श रूप से समन्वित हुयी थी । इतिहास का सत्य तो इतिहासकार जानें पर जनश्रुतियाँ तो यह कहती हैं कि शिवाजी ने एक के बाद एक बावन विजयें हासिल कीं । "माटी " कोई इतिहास की पत्रिका नहीं है , इतिहास का  धूमिल आधार पाकर शब्द शिल्पियों की कल्पनायें और अधिक रंग -बिरंगी दिखायी पड़ने लगती हैं । " माटी " नहीं जानती कि वे बावन किले कौन -कौन से थे ?पर कुछ प्रसिद्ध विजयों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं जैसे सिंहगढ़  की विजय या पुरन्दर की विजय आदि आदि । कहते है महाकवि भूषण ने इन्हीं बावन विजयों के आधार पर शिवा बावनी लिखी जिसका एक एक सवैया छन्द हिन्दी भाषा का सबसे चमकदार नगीना है ।
(क्रमशः )





         

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