Monday, 4 April 2016

                                 .......................... पर उसे सत्ता के प्रतीततात्मक रूप में चित्रित किया गया था । ज्यों ज्यों राज्य का विस्तार और समृद्धता बढ़ती गयी त्यों त्यों राजभवन का विशालीकरण और सौन्दर्यीकरण भी बढ़ता गया । अब विस्तार करने के लिये आस पास कोई अवरोध नहीं होना चाहिये । इस राजा के महल के आगे काफी बड़ा मैदान था पर महल के अग्रभाग को अपनी सीधाई में आगे बढ़ाने में एक बुढ़िया की झोपड़ी आड़े आती थी । झोपड़ी का कुछ हिस्सा सीधाई को टेढ़ा कर रहा था । महल के प्रधान वास्तुकार ने राजा के वजीर को बुलाकर अपनी समस्या उसके आगे रखी । वजीर ने तुरन्त इसका समाधान खोज निकाला उसने उसी समय झोपड़ी की  बुढ़िया को अपने सामने पेश होने के लिये मुसाहिबों द्वारा बुलावा भिजवा दिया । बुढ़िया सामने आयी । वजीर के आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी वजीर बोला ,"बूढ़ी माँ आप अपने राजा को कितना प्यार करती हैं उसके परिवार के लिये अब महल को और बड़ा किया जायेगा । महल की सीधाई में आगे बढ़ने पर तुम्हारी झोपड़ी रुकावट डालती है हम तुम्हें दूसरी जगह इससे अच्छा रहने का स्थान बनवा देंगें । तुम यह झोपड़ी महल के विस्तार के लिये छोड़ दो ।"बुढ़िया ने हाथ जोड़कर कहा ," हुजूर मेरे नाती, पोते ,बाल -बच्चे ,सभी दक्षिण की ओर चले गये हैं सुनती हूँ वहाँ मजदूरों के लिये बहुत काम है । अब मैं यहाँ अकेली रहती हूँ ,मौत के दरवाजे पर आ खड़ी हुयी हूँ । अब मुझे कितने दिन और जीना है मेरे सारे बुजुर्ग ,सास- ससुर इसी झोपड़ी में रहकर मरे हैं। मैं  भी इसी में मरकर  यह दुनिया छोड़ना चाहती हूँ । आप मुझसे झोपड़ी छोड़ने पर मजबूर मत  करें । वजीर असमंजस में पड़  गया । न्याय प्रिय राजा का न्याय प्रिय वजीर । चाहता तो उसी समय झोपड़ी नष्ट करवा देता । पर नहीं उसने सोचा राजा से बातचीत कर ली जाय । महाराजा न्याय सेन उस समय अपनी बड़ी रानी के निवास में थे पर उनके  सबसे बड़े वजीर को सन्देश भेजकर रनिवास में भी आवश्यकता पड़ने पर बुला लिया जाता था । वजीर के अनुरोध पर राजा ने उसे रनिवास में बुलाया । वजीर ने प्रधान वास्तुकार द्वारा रखी हुयी समस्या महाराज के सामने पेश की । सुनकर महाराज ने महारानी की और देखा और पूछा कि उनकी राय में क्या होना चाहिये । महारानी बोली ," जब हम उसे एक बहुत अच्छी रहने की जगह दूसरी जगह देने को तैयार हैं तब उस बुढ़िया को क्या हक़ है कि वह हमारे महल की सुन्दरता को खराब करने पर अड़ जाय । महाराज आप वजीरेआला को बोलिये कि वे उसके रहने का बढ़िया  इन्तजाम दूसरी जगह करवा दें । और झोपड़ी को तोड़कर महल की सीधाई को बरकरार रखा जाय ।" महाराज के मन को यह फैसला नहीं भाया पर उन्होंने महारानी की बात को तुरन्त न काटने का फैसला लिया । उन्होनें हुक्म दिया कि बूढ़ी माँ को मेरे सामने पेश किया जाय और यदि वह बुढ़ापे के कारण आने में असमर्थ हो तो उसको बताया जाय कि महाराज स्वयं चलकर उससे मिलने आ रहे हैं । वजीर बहुत समझदार था उसने एक रथ सजाया और रथ के साथ बुढ़िया की  झोपड़ी के द्वार पर जा पहुँचा बोला महाराज ने आपको मिलने के लिये बुलाया है । रथ भेजा है ताकि बुढ़ापे में चलने में आपको तकलीफ न हो । बुढ़िया संकोच के मारे  मर गयी पर क्या करती रथ पर बैठकर महाराज के सामने आना ही पड़ा । उसको अपने सामने आता देखकर महाराज  अपने आसान से उठकर खड़े हो गये बोले ," माँ सुना  है हमारा वजीर  तुम्हें कुछ तकलीफ दे रहा है । अपने प्रति दिखाये  गये इस आदर भाव से बुढ़िया की सोच बदल गयी उसने कहा महाराज मैं अपनी झोपड़ी हटानें को तैयार हूँ । आप जैसा चाहें अपने महल को बनवा लें । महारानी और वजीर प्रसन्न हो गये पर महाराज ने जो कहा उसमें छिपा आदर्श हर पीढ़ी के लिये प्रेरणा श्रोत  बना रहेगा । उन्होंने कहा ," बूढ़ी माँ ,यह महल आपकी झोपड़ी को तनिक भी हानि पहुचाये टेढायी में ही बनाया जायेगा । आप उसी झोपड़ी में रहेंगीं । और आपका वैसा ही सम्मान किया जायेगा जैसा राजमाताओं का होता है । बूढ़ी माँ मेरा प्रणाम स्वीकार करें । बुढ़िया की आँखों में आँसू भर आये, ऐसा महाराज पाकर कौन देश धन्य नहीं हो उठेगा ?यह तो रही एक कथा की बात, अभी कुछ समय पहले न्याय का एक फैसला मेरे सुनने में आया था जिसने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया था ।
(क्रमशः )

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