सिंहासन बत्तीसी की मनोरंजक न्याय कथाएँ सम्भवतः इतिहास के ठोस प्रमाणों पर सही साबित न हो सकेंगीं । पर उत्तर भारतीयों के मन में यह बात गहरायी से बैठी हुयी है कि राजा विक्रमादित्य का न्याय सर्वथा निष्पक्ष था और उसमें न कोई लगाव था न पूर्वाग्रह न दुराग्रह । न्याय की तराजू के दोनों पलड़े किंचित मात्र झुकाव के बिना समानान्तर खड़े रहते थे । हाँ उस काल के प्रचलित विधि विधानों का दायरा ही निर्णय को एक अन्तिम रूप दे पाता था । यूनानी जन कथाओं में भी न्याय की देवी की आँखों में पट्टी बंधी दिखायी जाती है । । हाँ न्याय की देवी है या न्याय का देवता है । इस विषय में यूनानी इतिहास के विद्वानों में तर्क -वितर्क होते अवश्य देखा गया है । पट्टी बांधने की कल्पना शायद इसलिये की गयी है ताकि न्याय करते समय दोनों पक्षों में से किसी पर निगाह न पड़े । क्या पता किसी पक्ष में कोई परिचय का सूत्र हो जिसके कारण निणय क्षमता प्रभावित हो जाय ? भारतीय विश्वास में तो मृत्यु का देवता ही न्याय का अधिष्ठाता है ऐसा इसलिये है कि हजारों वर्षों तक चलने वाली जन्मकरण की प्रक्रिया में मृत्यु के बाद ही सारे कर्मो पर विचार कर यह फैसला किया जाता है कि जीव को आगे किस योनि में जन्म लेना है या कितने दिन तक स्वर्ग या नरक भोगना है आदि आदि । यमराज ही इन सब दशाओं के लिये एक निर्णायक फैसला ले सकते हैं क्योंकि उन्हीं के पास चित्रगुप्त और उसके अनेकानेक सहकर्मियों द्वारा संचित रिकार्ड उपलब्ध रहता है । चलो यह तो हुयी जन साधारण में प्रचलित पौराणिक विश्वासों की बातें , ऐतिहासिक काल में भी न केवल भारत के प्राचीन इतिहास में बल्कि मुग़ल शासन के काल में भी न्याय प्रियता की आदर्श कथायें सुनने को मिलती हैं । कई इतिहासकारों ने इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया है कि मुगल शहंशाहों के महलों में एक घंटा बंधा रहता था जिसकी बाहर पडी जंजीर को पहरेदार की अनुमति से न्याय की गुहार करने वाला कोई भी साधारण से साधारण नागरिक खींच सकता था । घण्टे की आवाज सुनते ही शासन का न्याय चक्र अपनी पूरी तेजी के साथ चल निकलता था और गुहार करने वाले को न्याय मिल जाता था । सिखों के महाराजा रणजीत सिंह की न्याय कहानियाँ तो पंजाब के घर -घर में सुनी जा सकती हैं । अंग्रेजों के राज्यकाल में भी पराजित जनता के मन में यह विश्वास बैठा दिया गया था कि गोरा जज कभी गलत फैसला नहीं देता और यदि कोई गल्ती हुयी है तो वह नीचे के हिन्दुस्तानी मुसाहिबों के कारण हुयी है । बहुत वर्ष पहले चौथी -पांचवीं की हिन्दी किताब में किसी न्याय प्रिय राजा की एक कथा छपी थी । राजा शायद कोई ऐतिहासिक आधार नहीं रखता था ।
(क्रमशः )
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