.......................और दर्शन करने को उनके आश्रम में आये थे । राजा जनक ने उम्र में अपने से छोटे होते हुये भी परशुधर को ब्राम्हण ऋषि के नाते प्रणाम किया । यों वे स्वयं विदेह थे और अपने दार्शनिक ज्ञान के लिये सारे आर्यावर्त में ख्याति प्राप्त कर चुके थे । मिथिलेश भगवान शिव के पूजक थे । परशुधर का भब्य शरीर और उनकी बलशाली काया देखकर राजा को विश्वास हो गया कि निश्चय ही वे एक दैवी पुरुष हैं । परशुधर ने उन्हें बताया कि वे पिता के आश्रम में कुछ समय के लिये जाना चाहेंगें क्योकि उनके सुनने में आया है कि कुछ अनाचारी अनार्य राजाओं ने आश्रम में बहकर आने वाली स्वच्छ सरिताओं की जलधारा को रोक लिया है । मिथिलेश ने कहा कि वे अपने आशीर्वाद का कोई चिन्ह अपने प्रतीक के रूप में उनके राजमहल में छोड़ दें । मिथिलेश को ऐसा लगा कि परशुधर के माध्यम से स्वयं त्रिशूल धारी उनसे वार्तालाप कर रहे हैं । परशुधर ने कहा कि उनके पास और कुछ तो नहीं है हाँ इस मन्दिर में रखा हुआ शिव धनुष यदि वे चाहें तो उनके महल में सुरक्षा के लिये रखा जा सकता है । राजा ने इस बात पर अपना हर्ष व्यक्त किया । उनके साथ आये बीसों सेवक उस धनुष को उठाने लगे पर धनुष था कि टस से मस नहीं हुआ । परशुधर हँसे बोले अपने सेवकों को हटा दीजिये मैं स्वयं ही इस धनुष को आपके राजमहल में पहुँचा देता हूँ । सम्राट ने कहा कि थोड़ी दूर पर रथ खड़ा है पर परशुधर ने पैरों पर चलने का ही आग्रह किया और धनुष लेकर चल पड़े । राज और उनके सभी सेवक सैनिक उनके पीछे पैदल ही चल पड़े । पर परशुधर की गति प्रवल वायु की भाँति अत्यन्त तेज थी और जब विदेह और उनके सैनिक बहुत देर बाद महल के प्रेक्षागृह में पहुँचे तो उन्होंने पाया कि महारानी सुनैना परशुधर को भोजन करा रहीं हैं । और सेविकायें उन पर पँखा झल रही हैं । प्रसाद पाकर महाराजा और महारानी को आशीर्वाद देते हुये परशुधर उठे और बोले विदेह राज आप स्वयं महाज्ञानी हैं । यह धनुष भगवान शिव का प्रतीक है । इसे किसी सामान्य पुरुष से दूषित मत करवाना । मैं पिता के आश्रम से लौटकर जब मगध आऊँगा तब फिर इस धनुष की पूजा अर्चना करुँगा ।
अभी परशुधर विदेह राज के महल से बाहर निकल ही रहे थे कि थके मादे दो वनवासी बदहवास से आकर उनके चरणों में गिर पड़े बोले हे शिवा अवतार हम कई दिनों की संकट भरी यात्रा के बाद आप तक पहुँच पाये हैं । आपके पिता पूज्य महर्षि जमदग्नि ने आपको याद किया है । आपकी माता देवी रेणुका का पास के ही अनार्य राजा ने अपमान करने का दुस्साहस किया है । भगवान, क्षमा करें हम पूरी बात न बता पायेंगें । आश्रम में पहुँच कर आप सब बात जान जायेंगें ।
विद्द्युति गति के साथ फर्सा उठाकर परशुधर चल पड़े । हवाओं के बवण्डर ,धूल के बबूले उठने लगे । रास्ते के पेंड- पौधे काँप -काँप कर हिल गये ,सिंहों के जोड़े सहमकर अपनी मांदों में सिमट गये , पेंड़ की ऊंची डालियों पर चीं चीं करते बन्दर बोली बोलना भूल गये , एक गम्भीर गगन की छाती चीर देने वाला स्वर गूँजा माँ रेणुका का अपमान ,माँ धरित्री का अपमान ? धरती पर से अनाचारी शासकों का समूल विनाश न कर दिया तो मैं परशुधर नहीं । आज 21 वर्ष का होकर यह शपथ लेता हूँ कि 21 बार धरती पर से अनाचारियों को समूल उखाड़ दूँगा और जीती गयी धरती तपस्यारत त्यागी ऋषियों की देख - रेख में छोड़ दूँगा । पेड़ों से ,वृक्षों से ,गगन से ,वायु के झोकों से स्वर गूँजा विजयी हो परशुधर नया इतिहास लिखा जाने का युग प्रारम्भ हो गया है ।
(सर्वथा कल्पना पर आधारित )
पुराणों ,शास्त्रों और महाकथाओं के विशारद कल्पना अतिरंजता के लिये लेखक को क्षमा करें ।
अभी परशुधर विदेह राज के महल से बाहर निकल ही रहे थे कि थके मादे दो वनवासी बदहवास से आकर उनके चरणों में गिर पड़े बोले हे शिवा अवतार हम कई दिनों की संकट भरी यात्रा के बाद आप तक पहुँच पाये हैं । आपके पिता पूज्य महर्षि जमदग्नि ने आपको याद किया है । आपकी माता देवी रेणुका का पास के ही अनार्य राजा ने अपमान करने का दुस्साहस किया है । भगवान, क्षमा करें हम पूरी बात न बता पायेंगें । आश्रम में पहुँच कर आप सब बात जान जायेंगें ।
विद्द्युति गति के साथ फर्सा उठाकर परशुधर चल पड़े । हवाओं के बवण्डर ,धूल के बबूले उठने लगे । रास्ते के पेंड- पौधे काँप -काँप कर हिल गये ,सिंहों के जोड़े सहमकर अपनी मांदों में सिमट गये , पेंड़ की ऊंची डालियों पर चीं चीं करते बन्दर बोली बोलना भूल गये , एक गम्भीर गगन की छाती चीर देने वाला स्वर गूँजा माँ रेणुका का अपमान ,माँ धरित्री का अपमान ? धरती पर से अनाचारी शासकों का समूल विनाश न कर दिया तो मैं परशुधर नहीं । आज 21 वर्ष का होकर यह शपथ लेता हूँ कि 21 बार धरती पर से अनाचारियों को समूल उखाड़ दूँगा और जीती गयी धरती तपस्यारत त्यागी ऋषियों की देख - रेख में छोड़ दूँगा । पेड़ों से ,वृक्षों से ,गगन से ,वायु के झोकों से स्वर गूँजा विजयी हो परशुधर नया इतिहास लिखा जाने का युग प्रारम्भ हो गया है ।
(सर्वथा कल्पना पर आधारित )
पुराणों ,शास्त्रों और महाकथाओं के विशारद कल्पना अतिरंजता के लिये लेखक को क्षमा करें ।
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