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गौतमी :-वत्स विन्ध्य के पार का इतिहास तुम्हारी गौरव गाथा युगों -युगों तक दोहराता रहेगा । मैं चाहती हूँ कि ब्राम्हण धर्म में स्वीकृत देवताओं की पूजा हर जगह प्रारम्भ करवा जाय । इन्द्र ,वासुदेव ,सूर्य ,चन्द्र ,विष्णु ,कृष्ण ,गणेश ,पशुपति या शिव इन सभी की पूजा करने की जनता को स्वतन्त्रता दी जाय । बिना बाध्यता के जो जिस देवता को चाहे उसकी पूजा करे ।
शातकर्णि :-माता श्री बौद्ध भिक्षुओं के सम्बन्ध में आपका क्या आदेश है ?
गौतमी :-भगवान बुद्ध तो भारतीय आस्तिक धर्मिता को और अधिक सम्पुष्ट कर गये हैं । वे तो हमारे दशावतारों में हैं । बौद्ध भिक्षुओं का पूरा सम्मान होना चाहिये । बोधि वृक्ष ,धर्मचक्र तथा भगवान बुद्ध की मूर्तियों की पूजा भी प्रारम्भ की जाय । स्तूप बनवाये जाँय और गुफाओं का निर्माण किया जाय । सच्चा ब्राम्हण धर्म आत्म शान्ति के लिये हर पूजा पद्धति को स्वीकार करता है । वह सच्चे अर्थों में धर्म निरपेक्ष है । ऊँचाई की ओर ले जाने वाला चिन्तन का हर मार्ग राज्य में संवर्धन पायेगा । पर राज्य का प्रशासन पूजा पद्धति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा ।
शातकर्णि :-धन्य हो माता श्री !शातकर्णि अपने को गौतमी पुत्र शातकर्णि कहने में महान गर्व का अनुभव करता है । अच्छा माता श्री अब सम्पूर्ण गुजरात ,आन्ध्र और औरंगाबाद को महान साम्राज्य में मिला लेने के बाद अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन आपकी आज्ञा से किया जायेगा । (नीचे से सैनिकों की ऊंची आवाज में गौतमी पुत्र शातकर्णि की जय गूँज ।)
पटाक्षेप :
एक वर्ष के अन्तराल के बाद माता श्री गौतमी के नवनिर्मित भवन के सामने विशाल प्रस्तर में कुछ अश्वों के रूकनें की खुरभुर । एक विशालकाय योद्धा विद्दुति गति से अश्व से कूंदकर शेीघ्रता से सीढ़ियां चढ़ माता श्री के कक्ष के समक्ष पहुँच जाता है । गौतमी की सेवा में रत सुरेखा उसे देखने आती है । योद्धा नमस्कार कर माता श्री से मिलने की इच्छा व्यक्त करता है । कहता है कि वह सातवाहन सेना का सेनापति है । उसका नाम व्याघ्रनख है। अश्व मेघ पराक्रमी महाराजाधिराज गौतमी पुत्र शातकर्णि ने उसे माता श्री के पास एक सन्देशा देने के लिये भेजा है । वे कुछ दिन पाटन में रूककर व्यवस्था करने के बाद माता श्री के चरणों में प्रणाम करने के लिये उपस्थित होंगें । व्याघ्र नख कक्ष में बुला लिया जाता है । दण्डवत प्रणाम करता है । माँ उसे आशीर्वाद देती है । उसका विशालकाय शरीर ,रोबीला चेहरा और विनत तथा शालीन व्यवहार माता श्री को प्रभावित करता है ।
गौतमी :-व्याघ्र नख उठो !बताओ कैसे आना हुआ ?तुम्हारे महाराज किस व्यवस्था में लग गये । तुम्हारी वीरता के विषय में बहुत कुछ सुनने को मिला है । शातकर्णि की महान विजयों का बहुत सारा श्रेय तुम्हीं को जाता है ।
व्याघ्र नख :-माता श्री !देवराज इन्द्र से भी अधिक पराक्रमी आपके पुत्र राजाधिराज शातकर्णि के सामने मेरी वीरता सूर्य के सामने दीपक की भाँति है । विजयों का सारा गौरव महाराज के शौर्य और नेतृत्व को जाता है । मेरे जीवन का सबसे बड़ा गर्व उनका अनुचर बन कर उनकी आज्ञां का पालन करना है । मुझसे और भी न जाने कितने वीर योद्धा सातवाहन सेना में हैं । यह तो महाराज की कृपा हैं कि उन्होंने महासेनानी का पद प्रदान किया ।
गौतमी :-व्याघ्र नख तुम निश्चय ही सातवाहन साम्राज्य के अमूल्य रत्न हो । बोलो कौन सा सन्देशा लाये हो ?
व्याघ्र नख :-महाराज ने सूचना भेजी है कि सभी विदेशी छत्रप बन्धन में ले लिये गये हैं । गुजरात ,सौराष्ट्र ,मालवा ,बरार उत्तरी कोंकण ,तथा पूना एवं नासिक के आस -पास के सभी प्रदेश सातवाहन गौरव की ध्वजा के नीचे आ चुके हैं । अश्व मेघ की आयोजना हो गयी है । माता श्री यदि आज्ञां दें तो मैं महाराज द्वारा इंगित मधुर सम्बन्धों का एक प्रस्ताव आपके सामने रखूँ ।
गौतमी :-व्याघ्र नख क्या कोई गुप्त सन्देशा है ?क्या मेरा शातकर्णि किसी सुयोग्य सहचरी की तलाश में सफल हो गया । शीघ्र बोलो व्याघ्र नख उत्सुकता मुझे उत्तेजित कर रही है ।
व्याघ्र नख :-ऐसी ही बात है माता श्री । महाकालेश्वर मन्दिर के अधिष्ठाता और पीठाधिपति आचार्य वशिष्ठ की पुत्री वशिष्ठि उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने में सफलता पायी है । ऐसे नर रत्न के लिये दक्षिणावर्त की कौन सी तरुण सुन्दरी अपने प्राण निछावर न कर देगी । महाराज ने स्वयं आपके सामने निवेदन करने से पहले मेरे द्वारा यह सन्देशा आपका मन जानने के लिये भिजवाया है । आपकी इच्छा अनिच्छा पर ही महाराज का निर्णय आधारित होगा । माता श्री आपनें शायद सूना भी है कि आचार्य वशिष्ठ की पुत्री सौराष्ट्र की न केवल सबसे सुन्दर तरुणी है वरन एक विदुषी ,वीरांगना भी है । हस्ति संचालन और धनुष कौशल में बड़े -बड़े योद्धा भी उसका सामना नहीं कर सकते । यदि आप आज्ञां दें तो आचार्य वशिष्ठ अपनी पुत्री वशिष्ठि के साथ आपके चरणों की धूलि लेने आ जॉय । महाराज इस भेंट के बाद ही आपके पास आने का साहस जुटा पायेंगें ।
(गौतमी का मुख हार्दिक सुख की अनुभूति से प्रफुल्लित हो उठता है । अपने विगत यौवन में भी उसकी भब्य छवि और आकृति किसी को भी स्तम्भित कर सकती है । )
गौतमी :-अच्छा तो शाती, महाराज ने महारानी की तलाश कर ली , माँ के आगे कहने का साहस नहीं होता । तेरे को दूत बना कर भेजा है । अरे व्याघ्र नख कहना अपने महाराज से मैं कितने दिनों से इस बात की प्रतीक्षा कर रही थी कि धरती के कौन सी नारी मेरे पुत्र की सहभागिनी बनने के योग्य होगी । व्याघ्र नख तू नहीं जानता कि हर माँ अपने पुत्र को अपने से अधिक योग्य तरुणी के हाँथों में सौंपने के लिये सदैव प्रस्तुत रहती है ।
( कक्ष के पीछे के छोटे से सुरक्षित विश्राम स्थल में सेविका सुरेखा बैठी हुयी है । प्रतीक्षा में है कि शायद माता श्री को उसकी कोई आवश्यकता पड़ जाय । गौतमी पीछे मुँह कर सुरेखा को अपने पास आने को कहती है । )
सुरेखा :-क्या आज्ञा हैं माता श्री ?
गौतमी :-सुरेखा ,पुत्री आज मेरे जीवन का सबसे हर्ष भरा दिन है । आज मैं निश्चिन्त हो गयी हूँ कि मेरा शातकर्णि अब बड़ा हो गया है । गौतमी के अतिरिक्त भी संसार में और कोई नारी है जो संसार में उसे सँभाल कर रख सकेगी । हे प्रभु! मेरी यह प्रार्थना निरर्थक न जाय कि सात वाहन वंश का गौरव शातकर्णि की वंश बेल उससे भी अधिक गौरववान सिद्ध हो सके । अरे सुरेखा देखना कक्ष के दाहिनी दीवार के कलात्मक आले में हाथी दाँत की एक पिटारी रखी है उसे निकाल कर मेरे पास ला ।
(सुरेखा हाथी दाँत की बनी एक अत्यन्त सुन्दर पिटारी माता श्री गौतमी के समक्ष ला कर रख देती है । पिटारी को खोल कर गौतमी कुछ क्षण उनमें रखी वस्तुओं को देखती है । फिर रेशम की एक छोटी सी थैली निकाल लेती है साथ ही सिंहल द्वीपीय मोतियों की एक अत्यन्त सुन्दर माला । आँखों में खुशी के आँसू आ जाते हैं । सुरेखा मूक आश्चर्य का भाव लिये खड़ी है । व्याघ्र नख माता श्री के शब्द सुनने की प्रतीक्षा कर रहा है । )
गौतमी :-व्याघ्र नख ,तुम महाराजा धिराज के महान सेनापति हो । मुझे लग रहा है अब सातवाहन वंश का गौरव सुरक्षित रहेगा । विगत रात्रि को स्वप्न में शातकर्णि के पिता मेरे दिवंगत स्वामी श्री मेरे पास आये थे । कहते थे गौतमी तूने अपना कर्तब्य पूरा कर दिया अब सातवाहन वंश का गौरव कई पीढ़ियों तक अक्षुण रहेगा । जिस सिन्दूर से मैनें तेरे केश राशि में सुहाग माँग भरी थी और जो मोतियों की माला मैनें तुझे पहनायी थी ,शातकर्णि को भिजवा देना । तेरी होने वाली बहू के पास हमारे कुल की यह विरासत सुरिक्षत रहेगी । दिवगत स्वामी और भी न जाने क्या क्या कहते गये पर जाते -जाते अन्त में उन्होंने जो कहा उसकी याद अभी तक मेरे मस्तिष्क में ताजी है। उन्होंने कहा कि तेरा गौतमी पुत्र शातकर्णि तो दक्षिणावर्त में सच्चे ब्राम्हण धर्म का प्रणेता तो माना ही जायेगा पर उसका पुत्र वशिष्ठि पुत्र श्री पुलमावी और पौत्र यज्ञ श्री शातकर्णि से भी अधिक गौरव के अधिकारी होंगें । अन्त में उन्होंने कहा धरती पर अपना कर्तब्य पूरा कर चुकी है गौतमी । अब क्या मुझे अकेला ही आकाश गंगाओं में भटकने देगी । मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ गौतमी ।
(क्रमशः )
गौतमी :-वत्स विन्ध्य के पार का इतिहास तुम्हारी गौरव गाथा युगों -युगों तक दोहराता रहेगा । मैं चाहती हूँ कि ब्राम्हण धर्म में स्वीकृत देवताओं की पूजा हर जगह प्रारम्भ करवा जाय । इन्द्र ,वासुदेव ,सूर्य ,चन्द्र ,विष्णु ,कृष्ण ,गणेश ,पशुपति या शिव इन सभी की पूजा करने की जनता को स्वतन्त्रता दी जाय । बिना बाध्यता के जो जिस देवता को चाहे उसकी पूजा करे ।
शातकर्णि :-माता श्री बौद्ध भिक्षुओं के सम्बन्ध में आपका क्या आदेश है ?
गौतमी :-भगवान बुद्ध तो भारतीय आस्तिक धर्मिता को और अधिक सम्पुष्ट कर गये हैं । वे तो हमारे दशावतारों में हैं । बौद्ध भिक्षुओं का पूरा सम्मान होना चाहिये । बोधि वृक्ष ,धर्मचक्र तथा भगवान बुद्ध की मूर्तियों की पूजा भी प्रारम्भ की जाय । स्तूप बनवाये जाँय और गुफाओं का निर्माण किया जाय । सच्चा ब्राम्हण धर्म आत्म शान्ति के लिये हर पूजा पद्धति को स्वीकार करता है । वह सच्चे अर्थों में धर्म निरपेक्ष है । ऊँचाई की ओर ले जाने वाला चिन्तन का हर मार्ग राज्य में संवर्धन पायेगा । पर राज्य का प्रशासन पूजा पद्धति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा ।
शातकर्णि :-धन्य हो माता श्री !शातकर्णि अपने को गौतमी पुत्र शातकर्णि कहने में महान गर्व का अनुभव करता है । अच्छा माता श्री अब सम्पूर्ण गुजरात ,आन्ध्र और औरंगाबाद को महान साम्राज्य में मिला लेने के बाद अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन आपकी आज्ञा से किया जायेगा । (नीचे से सैनिकों की ऊंची आवाज में गौतमी पुत्र शातकर्णि की जय गूँज ।)
पटाक्षेप :
एक वर्ष के अन्तराल के बाद माता श्री गौतमी के नवनिर्मित भवन के सामने विशाल प्रस्तर में कुछ अश्वों के रूकनें की खुरभुर । एक विशालकाय योद्धा विद्दुति गति से अश्व से कूंदकर शेीघ्रता से सीढ़ियां चढ़ माता श्री के कक्ष के समक्ष पहुँच जाता है । गौतमी की सेवा में रत सुरेखा उसे देखने आती है । योद्धा नमस्कार कर माता श्री से मिलने की इच्छा व्यक्त करता है । कहता है कि वह सातवाहन सेना का सेनापति है । उसका नाम व्याघ्रनख है। अश्व मेघ पराक्रमी महाराजाधिराज गौतमी पुत्र शातकर्णि ने उसे माता श्री के पास एक सन्देशा देने के लिये भेजा है । वे कुछ दिन पाटन में रूककर व्यवस्था करने के बाद माता श्री के चरणों में प्रणाम करने के लिये उपस्थित होंगें । व्याघ्र नख कक्ष में बुला लिया जाता है । दण्डवत प्रणाम करता है । माँ उसे आशीर्वाद देती है । उसका विशालकाय शरीर ,रोबीला चेहरा और विनत तथा शालीन व्यवहार माता श्री को प्रभावित करता है ।
गौतमी :-व्याघ्र नख उठो !बताओ कैसे आना हुआ ?तुम्हारे महाराज किस व्यवस्था में लग गये । तुम्हारी वीरता के विषय में बहुत कुछ सुनने को मिला है । शातकर्णि की महान विजयों का बहुत सारा श्रेय तुम्हीं को जाता है ।
व्याघ्र नख :-माता श्री !देवराज इन्द्र से भी अधिक पराक्रमी आपके पुत्र राजाधिराज शातकर्णि के सामने मेरी वीरता सूर्य के सामने दीपक की भाँति है । विजयों का सारा गौरव महाराज के शौर्य और नेतृत्व को जाता है । मेरे जीवन का सबसे बड़ा गर्व उनका अनुचर बन कर उनकी आज्ञां का पालन करना है । मुझसे और भी न जाने कितने वीर योद्धा सातवाहन सेना में हैं । यह तो महाराज की कृपा हैं कि उन्होंने महासेनानी का पद प्रदान किया ।
गौतमी :-व्याघ्र नख तुम निश्चय ही सातवाहन साम्राज्य के अमूल्य रत्न हो । बोलो कौन सा सन्देशा लाये हो ?
व्याघ्र नख :-महाराज ने सूचना भेजी है कि सभी विदेशी छत्रप बन्धन में ले लिये गये हैं । गुजरात ,सौराष्ट्र ,मालवा ,बरार उत्तरी कोंकण ,तथा पूना एवं नासिक के आस -पास के सभी प्रदेश सातवाहन गौरव की ध्वजा के नीचे आ चुके हैं । अश्व मेघ की आयोजना हो गयी है । माता श्री यदि आज्ञां दें तो मैं महाराज द्वारा इंगित मधुर सम्बन्धों का एक प्रस्ताव आपके सामने रखूँ ।
गौतमी :-व्याघ्र नख क्या कोई गुप्त सन्देशा है ?क्या मेरा शातकर्णि किसी सुयोग्य सहचरी की तलाश में सफल हो गया । शीघ्र बोलो व्याघ्र नख उत्सुकता मुझे उत्तेजित कर रही है ।
व्याघ्र नख :-ऐसी ही बात है माता श्री । महाकालेश्वर मन्दिर के अधिष्ठाता और पीठाधिपति आचार्य वशिष्ठ की पुत्री वशिष्ठि उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने में सफलता पायी है । ऐसे नर रत्न के लिये दक्षिणावर्त की कौन सी तरुण सुन्दरी अपने प्राण निछावर न कर देगी । महाराज ने स्वयं आपके सामने निवेदन करने से पहले मेरे द्वारा यह सन्देशा आपका मन जानने के लिये भिजवाया है । आपकी इच्छा अनिच्छा पर ही महाराज का निर्णय आधारित होगा । माता श्री आपनें शायद सूना भी है कि आचार्य वशिष्ठ की पुत्री सौराष्ट्र की न केवल सबसे सुन्दर तरुणी है वरन एक विदुषी ,वीरांगना भी है । हस्ति संचालन और धनुष कौशल में बड़े -बड़े योद्धा भी उसका सामना नहीं कर सकते । यदि आप आज्ञां दें तो आचार्य वशिष्ठ अपनी पुत्री वशिष्ठि के साथ आपके चरणों की धूलि लेने आ जॉय । महाराज इस भेंट के बाद ही आपके पास आने का साहस जुटा पायेंगें ।
(गौतमी का मुख हार्दिक सुख की अनुभूति से प्रफुल्लित हो उठता है । अपने विगत यौवन में भी उसकी भब्य छवि और आकृति किसी को भी स्तम्भित कर सकती है । )
गौतमी :-अच्छा तो शाती, महाराज ने महारानी की तलाश कर ली , माँ के आगे कहने का साहस नहीं होता । तेरे को दूत बना कर भेजा है । अरे व्याघ्र नख कहना अपने महाराज से मैं कितने दिनों से इस बात की प्रतीक्षा कर रही थी कि धरती के कौन सी नारी मेरे पुत्र की सहभागिनी बनने के योग्य होगी । व्याघ्र नख तू नहीं जानता कि हर माँ अपने पुत्र को अपने से अधिक योग्य तरुणी के हाँथों में सौंपने के लिये सदैव प्रस्तुत रहती है ।
( कक्ष के पीछे के छोटे से सुरक्षित विश्राम स्थल में सेविका सुरेखा बैठी हुयी है । प्रतीक्षा में है कि शायद माता श्री को उसकी कोई आवश्यकता पड़ जाय । गौतमी पीछे मुँह कर सुरेखा को अपने पास आने को कहती है । )
सुरेखा :-क्या आज्ञा हैं माता श्री ?
गौतमी :-सुरेखा ,पुत्री आज मेरे जीवन का सबसे हर्ष भरा दिन है । आज मैं निश्चिन्त हो गयी हूँ कि मेरा शातकर्णि अब बड़ा हो गया है । गौतमी के अतिरिक्त भी संसार में और कोई नारी है जो संसार में उसे सँभाल कर रख सकेगी । हे प्रभु! मेरी यह प्रार्थना निरर्थक न जाय कि सात वाहन वंश का गौरव शातकर्णि की वंश बेल उससे भी अधिक गौरववान सिद्ध हो सके । अरे सुरेखा देखना कक्ष के दाहिनी दीवार के कलात्मक आले में हाथी दाँत की एक पिटारी रखी है उसे निकाल कर मेरे पास ला ।
(सुरेखा हाथी दाँत की बनी एक अत्यन्त सुन्दर पिटारी माता श्री गौतमी के समक्ष ला कर रख देती है । पिटारी को खोल कर गौतमी कुछ क्षण उनमें रखी वस्तुओं को देखती है । फिर रेशम की एक छोटी सी थैली निकाल लेती है साथ ही सिंहल द्वीपीय मोतियों की एक अत्यन्त सुन्दर माला । आँखों में खुशी के आँसू आ जाते हैं । सुरेखा मूक आश्चर्य का भाव लिये खड़ी है । व्याघ्र नख माता श्री के शब्द सुनने की प्रतीक्षा कर रहा है । )
गौतमी :-व्याघ्र नख ,तुम महाराजा धिराज के महान सेनापति हो । मुझे लग रहा है अब सातवाहन वंश का गौरव सुरक्षित रहेगा । विगत रात्रि को स्वप्न में शातकर्णि के पिता मेरे दिवंगत स्वामी श्री मेरे पास आये थे । कहते थे गौतमी तूने अपना कर्तब्य पूरा कर दिया अब सातवाहन वंश का गौरव कई पीढ़ियों तक अक्षुण रहेगा । जिस सिन्दूर से मैनें तेरे केश राशि में सुहाग माँग भरी थी और जो मोतियों की माला मैनें तुझे पहनायी थी ,शातकर्णि को भिजवा देना । तेरी होने वाली बहू के पास हमारे कुल की यह विरासत सुरिक्षत रहेगी । दिवगत स्वामी और भी न जाने क्या क्या कहते गये पर जाते -जाते अन्त में उन्होंने जो कहा उसकी याद अभी तक मेरे मस्तिष्क में ताजी है। उन्होंने कहा कि तेरा गौतमी पुत्र शातकर्णि तो दक्षिणावर्त में सच्चे ब्राम्हण धर्म का प्रणेता तो माना ही जायेगा पर उसका पुत्र वशिष्ठि पुत्र श्री पुलमावी और पौत्र यज्ञ श्री शातकर्णि से भी अधिक गौरव के अधिकारी होंगें । अन्त में उन्होंने कहा धरती पर अपना कर्तब्य पूरा कर चुकी है गौतमी । अब क्या मुझे अकेला ही आकाश गंगाओं में भटकने देगी । मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ गौतमी ।
(क्रमशः )
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