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( यह सब कहते कहते गौतमी भावुक हो उठती है । सुरेखा रेशम की एक बड़ी थैली लाकर देती है । गौतमी सिन्दूर की थैली और मोतियों की माला उसमें डालकर व्याघ्र नख की ओर बढ़ाती है ।)
गौतमी :-व्याघ्र नख महासेनापति अपने महाराज को मेरी ओर से यह उपहार देना और जो मैं कह रही हूँ वही शब्द उनके आगे दोहरा देना । कहना माता श्री ने कहा है ,"वत्स शातकर्णि तुम चाहो तो अपने पिता के नाम के साथ अपने नाम को जोड़ लो मेरी यही इच्छा है । पर मैं तुम्हें बाध्य नहीं करती यदि तुम चाहो तो तुम्हारी वंश परम्परा में माता का नाम पहले लगाकर नामकरण की पद्धति भी विद्वत ब्राम्हण समाज को स्वीकार करनी होगी । तुमसा पुत्र पाकर गौतमी धन्य हुयी । अच्छा व्याघ्र नख अब मुझे विश्राम करने दे ।
(व्याघ्र नख की आँखों में आँसू आ जाते है । दण्डवत लेटकर माता श्री के चरणों में प्रणाम करता है । सुरेखा की आँखों से आंसुओं की झड़ लगी है । दूर से शातकर्णि सातवाहन की विशाल सेना अश्वों ,हाथियों और धनुर्धरियों के व्यवस्थित गुल्मों में अभियान करती हुयी दिखायी पड़ती है । वातावरण में जयनाद के स्वर गूँज रहे हैं । )
( 106 ईसवी से लेकर 195 ईसवी तक विन्ध्य पर्वत के पार सातवाहन वंश का यशस्वी इतिहास नये -नये कीर्तिमान स्थापित करता रहा । । गौतमी पुत्र शातकर्णि ब्राम्हणों का समर्थक था और उसके मन में राम ,अर्जुन और केशव की तरह महान बनने की इच्छा थी । पश्चिमी भारत में बसे विदेशी शक ,यवन और पहलव इस काल में भारतीय वर्ण व्यवस्था स्वीकार कर क्षत्रिय वरण में शामिल कर लिये गये । )
( आर्यावर्त के इतिहास से तो "माटी " के पाठक परिचित ही हैं । दक्षिणावर्त के महान इतिहास की कुछ झाँकियाँ भी हम प्रस्तुत करते चलेंगे । इस प्रस्तुतीकरण में कल्पना और इतिहास दोनों के कलात्मक संयोजन का प्रयास किया गया है । )
( यह सब कहते कहते गौतमी भावुक हो उठती है । सुरेखा रेशम की एक बड़ी थैली लाकर देती है । गौतमी सिन्दूर की थैली और मोतियों की माला उसमें डालकर व्याघ्र नख की ओर बढ़ाती है ।)
गौतमी :-व्याघ्र नख महासेनापति अपने महाराज को मेरी ओर से यह उपहार देना और जो मैं कह रही हूँ वही शब्द उनके आगे दोहरा देना । कहना माता श्री ने कहा है ,"वत्स शातकर्णि तुम चाहो तो अपने पिता के नाम के साथ अपने नाम को जोड़ लो मेरी यही इच्छा है । पर मैं तुम्हें बाध्य नहीं करती यदि तुम चाहो तो तुम्हारी वंश परम्परा में माता का नाम पहले लगाकर नामकरण की पद्धति भी विद्वत ब्राम्हण समाज को स्वीकार करनी होगी । तुमसा पुत्र पाकर गौतमी धन्य हुयी । अच्छा व्याघ्र नख अब मुझे विश्राम करने दे ।
(व्याघ्र नख की आँखों में आँसू आ जाते है । दण्डवत लेटकर माता श्री के चरणों में प्रणाम करता है । सुरेखा की आँखों से आंसुओं की झड़ लगी है । दूर से शातकर्णि सातवाहन की विशाल सेना अश्वों ,हाथियों और धनुर्धरियों के व्यवस्थित गुल्मों में अभियान करती हुयी दिखायी पड़ती है । वातावरण में जयनाद के स्वर गूँज रहे हैं । )
( 106 ईसवी से लेकर 195 ईसवी तक विन्ध्य पर्वत के पार सातवाहन वंश का यशस्वी इतिहास नये -नये कीर्तिमान स्थापित करता रहा । । गौतमी पुत्र शातकर्णि ब्राम्हणों का समर्थक था और उसके मन में राम ,अर्जुन और केशव की तरह महान बनने की इच्छा थी । पश्चिमी भारत में बसे विदेशी शक ,यवन और पहलव इस काल में भारतीय वर्ण व्यवस्था स्वीकार कर क्षत्रिय वरण में शामिल कर लिये गये । )
( आर्यावर्त के इतिहास से तो "माटी " के पाठक परिचित ही हैं । दक्षिणावर्त के महान इतिहास की कुछ झाँकियाँ भी हम प्रस्तुत करते चलेंगे । इस प्रस्तुतीकरण में कल्पना और इतिहास दोनों के कलात्मक संयोजन का प्रयास किया गया है । )
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