आज से लगभग उन्नीस शताब्दी पहले सन 106 के आस -पास दक्षिणी महाराष्ट्र के एक छोटे से नगर में एक टूटी -फूटी अट्टालिका का ऊपरी कक्ष । अठ्ठारह -उन्नीस वर्षीय गेहुंए वर्ण का एक तरुण जिसके मुख पर गौरव भरी दीप्ति है अधेड़ वय की स्वरूपवान नारी के समक्ष हाथ जोड़े खड़ा है । नवयुवक का विशाल वक्ष , उसकी पुष्ट भुजायें , उसका लम्बा ऊँचा कद और उसका दीप्त भाल उसके महापराक्रमी होने की सूचना दे रहा है । साड़ी से आवेष्ठित उसकी स्वरूपा माँ उसे सामने रखी काष्ठ पट्टिका पर बैठने को कहती है । वह स्वयं भी एक ऊँची काष्ठ पट्टिका पर बैठी है । पास में दो -तीन खाली काष्ठ पट्टिकायें भी रखी हुयी हैं । नवयुवक बैठ जाता है । उसे शात कर्णि के नाम से जाना जाता है । वार्तालाप प्रारम्भ होता है ।
शातकर्णि :-माता श्री आज्ञा दें । बीस सैनिक जुटा लिये गये हैं । मैनें स्वयं उनका चयन किया है । उनमें शारीरिक पुष्टता और वीरता का प्रशंसनीय संयोग उपस्थित है । इतने ही छिप्रगति अश्वों की व्यवस्था भी हो गयी है । आज रात्रि को ही मुझे अभियान करना है । पग धूलि लेने आया हूँ ।
माता श्री :-वत्स सातवाहन, वंश को तुमसे बहुत बड़ी आशायें हैं । तुम्हारे प्रथम पूर्वज सिमुक श्री महान योद्धा थे । एक विशाल भू भाग उनके अधिकार में था । बाद के उत्तराधिकारी दुर्बल साबित हुये । तुम्हारे दिवंगत पिता श्री से बहुत बड़ी आशायें थीं । इस छोटे से नगर के आस -पास का भूभाग उन्होंने ही शक छत्रप को पराजित कर जीता था पर सातवाहन वंश का दुर्भाग्य ही था जो उन्हें तुम्हारे जन्म के बाद हमसे खींचकर भगवान की गोद में ले गया । वत्स बहुत यत्न से पाल पोस कर मैनें उनकी धरोहर को बड़ा किया है । तुम बिल्कुल उन्हीं की प्रतिकृति हो । मेरे दुर्भाग्य तुमनें उन्हें छीनकर मुझे अनाथ कर दिया । ( आँखों में आँसू आ जाते हैं ,जिन्हें वह आँचल से पोछने लगती है )
शातकर्णि :-दुःखी न हो माता श्री । मैं दिवंगत पिता की स्मृति में श्रद्धा से विनत होकर सिर झुकाता हूँ । मैनें उन्हें नहीं देखा है पर आप मेरे लिये सबसे बड़ा जीवन सम्बल हैं । अभियान की आज्ञा दें माता श्री और यह भी स्वीकार करें कि आज से मैं अकेले शातकर्णि नहीं बल्कि गौतमी पुत्र शातकर्णि के नाम से जाना जाऊँ । मालवा की और मालवा विजय का मेरा अभियान कब तक चलेगा कह नहीं सकता । पर आपका आशीर्वाद निष्फल नहीं होगा । मालवा विजय कर आपके चरणों में फिर प्रणाम करूँगा और तब काठियावाढ़ का अभियान प्रारम्भ करूँगा । आज्ञा दें माता श्री ।
गौतमी :-( खड़े होकर पुत्र के सिर पर जिसे वह अधिक लम्बाई के कारण झुका लेता है हाथ रखती है । जाओ वत्स, तुम्हारे दिग्विजय की कहानियाँ युगों -युगों तक सुनायी जायेंगी । )
गौतमी पुत्र शातकर्णि का कक्ष से वहिर्गमन । सीढ़ियों से उतरते पद चापों की आवाज , अश्वों की पीठों पर सैनिकों के बैठने की हलचल और फिर जय शातकर्णि का ऊँचा गूँजता स्वर ।
(शीतकाल की समाप्तिऔर बसन्त का आगमन ,मालवा विजय की सूचना गौतमी तक आ गयी है । गौतमी शातकर्णि की प्रतीक्षा कर रही है । नीचे घोडों के रूकनें की खलबल । घोड़े से कूंदकर द्रुतिगति से सीढ़ियां चढ़कर शातकर्णि का माता श्री के कक्ष में प्रवेश । भूमि पर लोटकर चरणों में प्रणाम । आँसूं भरी आँखों से पुत्र को देखती है फिर उठाकर गले लगा लेती है । वत्स ! तुम सातवाहन वंश के गर्व हो , ब्राम्हण धर्म का पुनुरुत्थान करो ,विदेशी शासकों, यवनों तथा पहलवों को पराजित कर उन्हें भारतीय जीवन शैली अपनाने को प्रेरित करो ।
शातकर्णि :-माँ कल प्रभात से पहले ही काठियावाड़ का अभियान प्रारम्भ होगा । शकों के शासक नहपान को भारत की वीरता से परिचित कराना है ।
गौतमी :-वत्स ! एक दो दिन तो विश्राम कर लेते । सैनिक भी थक गये होंगें ।
शातकर्णि :-माता श्री मालवा विजय के बाद अपनी सेना में लगभग 200 अश्वारोही ,पचास हस्ति योद्धा ,और दो सहस्त्र पदाति सैनिक आ गये हैं । काठियावाढ अभियान कुछ ही दिन में सम्पन्न हो जायेगा । माता श्री गौतमी पुत्र शातकर्णि विदेशी शासकों के मस्तक को भारत माँ के चरण रज लगाने के लिये बाध्य कर देगा ।
गौतमी :-जाओ वत्स मैं तुम्हे राष्ट्र को समर्पित करती हूँ । त्रिदेव तुम्हारी रक्षा करेंगें ।
वसन्त ऋतु की समाप्ति होने वाली है । शातकर्णि उस टूटी -फूटी अट्टालिका के ऊपरी कक्ष में फिर से प्रवेश करता है । उसके आने की पूर्व सूचना गौतमी को नहीं मिल पायी है । शातकर्णि माँ के चरणों में लेटकर प्रणाम करता है ।
गौतमी :-वत्स बिना पूर्व सूचना के सहसा कैसे आ गये ?सब कुशल तो है ।
शातकर्णि :-माता श्री आपका आशीर्वाद कभी निष्फल होता है ? काठियावाढ ध्वस्त हो चुका है । अपना एक प्रतिनिधि शासक के रूप में वहाँ बिठा आया हूँ । सेना पीछे आ रही है । मैं तीब्रगति से आकर मातृ श्री को सूचना देने आ पहुंचा हूँ पर सूचना के साथ आशीर्वाद मांगने भी आया हूँ क्योंकि अब बरार ,कोंकण पूना ,नासिक के विजय अभियान प्रारम्भ करने है । सम्पूर्ण गुजरात सातवाहनों की प्रतीक्षा कर रहा है । आप के लिये एक नये भवन निर्माण की नींव रखवा दी गयी है । राजधानी का चयन पूरे आन्ध्रप्रदेश के विजय के बाद किया जायेगा ।
क्रमशः )
शातकर्णि :-माता श्री आज्ञा दें । बीस सैनिक जुटा लिये गये हैं । मैनें स्वयं उनका चयन किया है । उनमें शारीरिक पुष्टता और वीरता का प्रशंसनीय संयोग उपस्थित है । इतने ही छिप्रगति अश्वों की व्यवस्था भी हो गयी है । आज रात्रि को ही मुझे अभियान करना है । पग धूलि लेने आया हूँ ।
माता श्री :-वत्स सातवाहन, वंश को तुमसे बहुत बड़ी आशायें हैं । तुम्हारे प्रथम पूर्वज सिमुक श्री महान योद्धा थे । एक विशाल भू भाग उनके अधिकार में था । बाद के उत्तराधिकारी दुर्बल साबित हुये । तुम्हारे दिवंगत पिता श्री से बहुत बड़ी आशायें थीं । इस छोटे से नगर के आस -पास का भूभाग उन्होंने ही शक छत्रप को पराजित कर जीता था पर सातवाहन वंश का दुर्भाग्य ही था जो उन्हें तुम्हारे जन्म के बाद हमसे खींचकर भगवान की गोद में ले गया । वत्स बहुत यत्न से पाल पोस कर मैनें उनकी धरोहर को बड़ा किया है । तुम बिल्कुल उन्हीं की प्रतिकृति हो । मेरे दुर्भाग्य तुमनें उन्हें छीनकर मुझे अनाथ कर दिया । ( आँखों में आँसू आ जाते हैं ,जिन्हें वह आँचल से पोछने लगती है )
शातकर्णि :-दुःखी न हो माता श्री । मैं दिवंगत पिता की स्मृति में श्रद्धा से विनत होकर सिर झुकाता हूँ । मैनें उन्हें नहीं देखा है पर आप मेरे लिये सबसे बड़ा जीवन सम्बल हैं । अभियान की आज्ञा दें माता श्री और यह भी स्वीकार करें कि आज से मैं अकेले शातकर्णि नहीं बल्कि गौतमी पुत्र शातकर्णि के नाम से जाना जाऊँ । मालवा की और मालवा विजय का मेरा अभियान कब तक चलेगा कह नहीं सकता । पर आपका आशीर्वाद निष्फल नहीं होगा । मालवा विजय कर आपके चरणों में फिर प्रणाम करूँगा और तब काठियावाढ़ का अभियान प्रारम्भ करूँगा । आज्ञा दें माता श्री ।
गौतमी :-( खड़े होकर पुत्र के सिर पर जिसे वह अधिक लम्बाई के कारण झुका लेता है हाथ रखती है । जाओ वत्स, तुम्हारे दिग्विजय की कहानियाँ युगों -युगों तक सुनायी जायेंगी । )
गौतमी पुत्र शातकर्णि का कक्ष से वहिर्गमन । सीढ़ियों से उतरते पद चापों की आवाज , अश्वों की पीठों पर सैनिकों के बैठने की हलचल और फिर जय शातकर्णि का ऊँचा गूँजता स्वर ।
(शीतकाल की समाप्तिऔर बसन्त का आगमन ,मालवा विजय की सूचना गौतमी तक आ गयी है । गौतमी शातकर्णि की प्रतीक्षा कर रही है । नीचे घोडों के रूकनें की खलबल । घोड़े से कूंदकर द्रुतिगति से सीढ़ियां चढ़कर शातकर्णि का माता श्री के कक्ष में प्रवेश । भूमि पर लोटकर चरणों में प्रणाम । आँसूं भरी आँखों से पुत्र को देखती है फिर उठाकर गले लगा लेती है । वत्स ! तुम सातवाहन वंश के गर्व हो , ब्राम्हण धर्म का पुनुरुत्थान करो ,विदेशी शासकों, यवनों तथा पहलवों को पराजित कर उन्हें भारतीय जीवन शैली अपनाने को प्रेरित करो ।
शातकर्णि :-माँ कल प्रभात से पहले ही काठियावाड़ का अभियान प्रारम्भ होगा । शकों के शासक नहपान को भारत की वीरता से परिचित कराना है ।
गौतमी :-वत्स ! एक दो दिन तो विश्राम कर लेते । सैनिक भी थक गये होंगें ।
शातकर्णि :-माता श्री मालवा विजय के बाद अपनी सेना में लगभग 200 अश्वारोही ,पचास हस्ति योद्धा ,और दो सहस्त्र पदाति सैनिक आ गये हैं । काठियावाढ अभियान कुछ ही दिन में सम्पन्न हो जायेगा । माता श्री गौतमी पुत्र शातकर्णि विदेशी शासकों के मस्तक को भारत माँ के चरण रज लगाने के लिये बाध्य कर देगा ।
गौतमी :-जाओ वत्स मैं तुम्हे राष्ट्र को समर्पित करती हूँ । त्रिदेव तुम्हारी रक्षा करेंगें ।
वसन्त ऋतु की समाप्ति होने वाली है । शातकर्णि उस टूटी -फूटी अट्टालिका के ऊपरी कक्ष में फिर से प्रवेश करता है । उसके आने की पूर्व सूचना गौतमी को नहीं मिल पायी है । शातकर्णि माँ के चरणों में लेटकर प्रणाम करता है ।
गौतमी :-वत्स बिना पूर्व सूचना के सहसा कैसे आ गये ?सब कुशल तो है ।
शातकर्णि :-माता श्री आपका आशीर्वाद कभी निष्फल होता है ? काठियावाढ ध्वस्त हो चुका है । अपना एक प्रतिनिधि शासक के रूप में वहाँ बिठा आया हूँ । सेना पीछे आ रही है । मैं तीब्रगति से आकर मातृ श्री को सूचना देने आ पहुंचा हूँ पर सूचना के साथ आशीर्वाद मांगने भी आया हूँ क्योंकि अब बरार ,कोंकण पूना ,नासिक के विजय अभियान प्रारम्भ करने है । सम्पूर्ण गुजरात सातवाहनों की प्रतीक्षा कर रहा है । आप के लिये एक नये भवन निर्माण की नींव रखवा दी गयी है । राजधानी का चयन पूरे आन्ध्रप्रदेश के विजय के बाद किया जायेगा ।
क्रमशः )
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