Monday, 7 March 2016

Mohak Makadjaal..............


                                                      मोहक मकड़जाल

                             सुखपुरा ग्राम में जाने के लिये हम घर से निकल पड़े । सुनने में आया था कि वहां गहरा सुख और गहरी शान्ति है । सुखपुरा में रहने वाला कोई स्थायी निवासी तो मुझे नहीं मिला था पर बहुत से राहगीर सुखपुरा हो आने के सम्बन्ध में झूठे -सच्चे दावे किया करते थे । उन्होंने बताया था कि वहां पहुँचनें का रास्ता कठिन साधना की माँग करता है । मिर्च ,मिठाई ,तेल छोड़ना पड़ेगा , सूखी रोटी और बिना मसाले की उबली सब्जी लेकर भूख को शान्त तो कर लिया जाय पर उसी स्तर  तक जहाँ और कुछ खानें की इच्छा बनी रहे। आचरण में झूठ से परहेज और सच से प्यार करना होगा । व्यवहार में शत्रु से भी मित्रता करनीं होगी । वाणी में सरलता और मिठास का समावेश करना होगा। मन के घोड़े की लगाम कसनी होगी । अगर इतना कर पाओ तो सुखपुरा की राह तुम्हारे लिए स्वयं ही खुल जायेगी ।

                              उपरोक्त सभी बातों का ज्ञान मुझे मेरी किशोरावस्था के आस -पास ही होने लगा था। अपने आस -पास के वयोवृद्ध नर -नारियों को मैं सत्संग में आते -और जाते देखा करता था। कइयों के गले में मालायें पडी थीं । कइयों के हाथ में सुमरिनी थी । सभी कोई न कोई हरि वाक्य मुँह से उच्चारित किया करते थे। राम -राम ,हरिओम , राधा -कृष्ण , सीता -राम , राधे -राधे  और जै शिव शंकर जैसे पवित्र और दिब्य प्रभु नामों की निरन्तर बहनें वाली शब्द धाराओं से मैं भी पूरा परिचित हो चुका था । इतना सब जानकार भी मैं एक लम्बे समय तक सुखपुरा पहुँचनें के मार्ग को क्यों नहीं खोज सका यह मेरे लिए आश्चर्य का विषय है । कई बार जब चिन्तन की गहराइयों में डूबनें लगता हूँ तो मानसिक व्याख्या में कुछ स्पष्ट बिन्दु बिखरते दिखायी पड़ते हैं । सबसे पहला स्पष्ट बिन्दु जो मेरे समझ के दायरे में आता है वह है सुखपुरा की भौगोलिक स्थिति के बारे में । भारत के अनेक राज्यों में सुखपुरी ,सुखपुरा ,सुख धाम ,सुख नगरी जैसे अनेक ग्राम ,कस्बे और नगर पाये जा सकते हैं। यह दूसरी बात है कि इनमें सुख पानें वालों की संख्या नगण्य हो और शान्ति तो शायद किसी के आस -पास भी न फटकती हो । मुझे लगा कि शायद सुखपुरा की कोई भौगोलिक स्थिति है ही नहीं अब यदि भौगोलिक स्थिति है ही नहीं तो वहाँ पहुँचनें का कोई भू मार्ग तो होना ही चाहिये। मुझे आश्चर्य हुआ कि काफी कुछ लोग सुखपुरा हो आनें का दावा कैसे करते हैं । बचकानी किस्से -कहानियों में  न जाने क्यों मैं गहरे अर्थ खोजनें में लग जाता हूँ । सत्संग में होने वाले प्रवचन मुझे भीतर से कुरेदते हैं और मैं उनमें दिये गये वजनदार सुझावों की जमीनी हकीकत तलाश करनें लगता हूँ। माया -मोह से मुक्त रहनें का चमकदार सन्देश तो भारत के साधारण से साधारण पण्डित या धर्मोपदेशक का सबसे सबल मनोवैज्ञानिक अस्त्र है । गायत्री परिवार की एक पत्रिका में कुछ दिन पहले एक प्रभावी कहानी छपी थी। कोई उपदेशक बड़ी मुश्किल से अपनें परिवार का खर्च चला रहे थे किशोर बच्चे के लिये सरकारी स्कूल से घर आने के बाद कुछ बकरियाँ खरीद दी थीं। उन बकरियों को चराकर १२ -१३ वर्ष का वह किशोर घर के लिए कुछ दूध पा लेता था और कुछ दूध बेचकर और खर्चे का जुगाड़ करता था। पण्डित जी दान -दक्षिणा से जो मिल जाता उसे परिवार संचालन में लगाकर अपनी जिम्मदारी का निर्वाहन करते थे पर इतनें पर भी अभाव की विभीषका उस परिवार को निरन्तर घेरे रहती थी । आजादी के बाद भारत के केन्द्रीय सरकार में कई अत्यन्त समर्थ प्रधानमन्त्री गद्दी पर बैठे हैं पर सुरसा का सा मुंह फैलाने वाली मँहगाई निरन्तर विस्तार पाती जा रही है । अब इस भयानक मँहगाई में थोड़ी -बहुत दान -दक्षिणा और थोड़ा बहुत बकरी के दूध से पाँच प्राणियों का परिवार कैसे चलता । किशोर की एक छोटी बहन और छोटा भाई दूध -भात की माँग करते थे और फिर आज -कल के बच्चों के फैशनेबुल कपडे पण्डित जी कहाँ से जुटाते । संस्कृत का प्रारम्भिक ज्ञान किसी नौकरी के दरवाजे तो खोलता नहीं और आज -कल चढ़ावा उन्हीं  मन्दिरों ,मठाधीशों महन्तों और योगा गुरुओं के पास पहुँच पाता है जो अपनें रहन -सहन में राजसी ठाठ को महत्त्व देते हों । पण्डित जी उस दिन एक मजदूर के घर बुलाये गए थे । मजदूर के लड़के के मुण्डन पर कुछ आयोजन हुआ था । मजदूर पण्डितजी का पड़ोसी था और कई बार अपनी दिहाड़ी को अपनें दो बच्चों के फैशन के कपडे लानें में खर्च कर देता था । पण्डित जी उसे सदा बताते रहते थे कि अधिक मोह करना ठीक नहीं है ।यह संसार नश्वर है । कल का कोई भरोसा नहीं । कुछ महीनों के बाद मजदूर की पत्नी तीसरी बार गर्भवती हुयी।  पहले वह भी पति के साथ जाकर कुछ कमा लाती थी । अब कमायी कम और खर्च ज्यादा । मजदूर का तीसरा बच्चा जो अभी तीन साल से कम  था दूध के अभाव में कमजोर होने लगा । गर्मी आयी ,सप्लाई के पानी के लिये मार -काट होनें लगी । नजदीक के एक  हैण्ड पम्प का पानी ही इस्तेमाल होने लगा । छोटे बच्चे को डायरिया हो गया । झाड़ -फूक करवायी ,फिर प्राइमरी हेल्थ सेन्टर ले गया पर देर हो चुकी थी । बच्चे का समय आ गया था या भारतीय समाज के निम्नतम वर्ग के एक मजदूर का दुर्भाग्य था कि बच्चा सँसार छोड़ कर चला गया । घर में कोहराम मच गया । गर्भवती माँ रोते -रोते बेहाल हो गयी । उसके प्राणों पर बन आयी । आखिर पण्डित जी को सान्त्वना देने के लिये बुलाया गया । पण्डितजी नें धैर्यपूर्वक दुःख सहन करनें की बात कही ,बताया कि आँसू बहाना निरर्थक है । आत्मा का आगमन और पुनरागमन हुआ करता है। किसी आत्मा को इस घर के माध्यम से इस धरती पर आना था । अब वह आत्मा इस शरीर से मुक्त होकर किसी योनि में देह धारण करेगी । अमर आत्मा के लिये रोना नासमझी के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । बेचारी माँ नें पण्डितजी की बात को गुरुवाक्य लेकर अपनें को शान्त कर लिया । जीवन फिर पुरानें ढर्रे पर चलनें लगा। कुछ दिन बाद जब मजदूर काम से लौटा तो उसनें देखा कि पण्डितजी बाहर बरामदे में बैठे हुये रो रहे हैं और उनका ११ -१२ वर्ष का किशोर लड़का भी दुःख भरा मुँह लेकर उनके पास बैठा है । मजदूर नें पास पहुँच कर प्रणाम किया और पूंछा कि पण्डित जी रो क्यों रहे हैं । पण्डितजी नें कहा अरे लुकई मेरी सबसे अच्छी बकरी मर गयी है । उसी के दूध से खर्च चलता था । अब गृहस्थी कैसे चलेगी । लुकई नें पण्डितजी से जवाब में कोई धर्मोपदेश की बात नहीं की केवल इतना पूँछा कि वह क्या मदद कर सकता है ? ( क्रमश :)

                                

No comments:

Post a Comment