.................................... इस सामान्य बच्चों की कहानी को कुछ विवरण के साथ लिखे जाने का केवल यह उद्देश्य है कि दूसरे के जीवन के धरातल पर हम सब ज्ञान पीठिका पर खड़े रहते हैं । पर अपनें जीवन के धरातल पर हम सहज मानवीय जीवन जीने पर विवश हो जाते हैं । अगर आप दुखी हैं तो दुःख को प्रकट करना ज्ञान शून्य होना नहीं है । दुःख को छिपाकर ज्ञानी होने का भ्रम पालना अहँकार की श्रष्टि करता है हाँ इतना अवश्य है कि दुःख की अभिव्यक्ति संयत होनी चाहिये और दुःख का आघात हमें अपनें सांसारिक कर्तब्य से विरत करनें में नाकाम रहना चाहिये । कविवर रहीम नें जब यह दोहा लिखा होगा तब शायद लाक्षणिक व्यंजना के द्वारा यही कहना चाह रहे होंगे कि जीवन की सहज क्रियायें अस्वीकार योग्य नहेीं हैं और उन्हें भी सन्तुलित मानव जीवन में एक आदरपूर्ण स्थान मिलना चाहिये । दोहे पर एक अन्तर्भेदी नजर डालिये । छिल -छिल कर छाले फोड़े
मल -मल कर मृदुल चरण से
गल -गल हिम ढल जाते
आंसू करुणा के कण से
अरे तो सुखपुरा पहुँचनें से पहले ही संवेदना के मार्ग से गुजरना पड़ा बात चल रही थी कुछ स्पष्ट बिन्दुओं की जो उभर कर सुखपुरा पहुँचनें के रास्ते में मेरे दृष्टि क्षेत्र में आ जाते हैं । पहले बिन्दु के स्पष्टीकरण में मैंने कहा है कि सुखपुरा की कोई भौगोलिक स्थिति नहीं है हाँ उसकी मानसिक स्थिति के विषय में अवश्य कुछ प्रमाण एकत्रित किये जा सकते हैं । यूनान में दार्शनिकों का एक बड़ा प्रभावशाली संघ था जो अपने को Stoic के नाम से पहचान बनाता था । यह दार्शनिक मानव काया को निरन्तर तपाने की बात करते थे और विश्वाश करते थे कि शरीर के तपने से अन्दर की ऊर्जा और अधिक प्रांजल हो उठती है । संयम का यह मार्ग कुछ अंशों में ठीक माना जा सकता है पर शरीर में सर्वथा मुक्त किसी आन्तरिक ऊर्जा की कल्पना तर्क की कसौटी पर सिरे नहीं चलती । भारत में भी हठ योगियों का एक बड़ा प्रभावशाली संघ कभी काँटों पर लेटकर ,कभी एक टाँग पर खड़ा होकर ,कभी शीतकाल में नग्न बदन रह कर ,शरीर पर आत्मा की विजय घोषणा करवानें में लगा रहता है । इस प्रकार की अत्यन्त कठिन समझी जाने वाली शारीरिक यन्त्रणाएं वाहवाही भले ही लूट लें पर उनसे व्यक्ति या समाज का किसी ठोस उपलब्धि पर पहुँचना बुद्धि की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है । भ्रामक क्रियाओ को चमत्कारिक क्रियाओं का नाम देकर अल्प बुद्धि नर -नारियों को प्रभावित भले ही कर लिया जाय और इससे कुछ आर्थिक प्राप्ति भले ही कर ली जाय पर समाज के सामूहिक कल्याण के लिए इन मार्गो की उपेक्षा ही करनी होगी । मानसिक धरातल पर सुखपुरा की तलाश करनें के लिये पहले शराब ,गाँजा ,अफीम ,चरस ,आदि नशीले साधनों का सहारा लिया जाता था और अब तो कैप्सूल ,इंजेक्शन ,Ecstsy ,और Tablets सम्पन्न वर्ग के जीवन का एक दैनिक हिस्सा बन गयी है । स्पष्ट है कि सुखपुरा की मानसिक स्थिति स्वाभाविक नहीं है Induced है । यह एक मिथक है ,भ्रमजाल है ,कल्पना लोक है ,जीवन संघर्ष को भुलाने का निरर्थक प्रयास है । (क्रमशः )
मल -मल कर मृदुल चरण से
गल -गल हिम ढल जाते
आंसू करुणा के कण से
अरे तो सुखपुरा पहुँचनें से पहले ही संवेदना के मार्ग से गुजरना पड़ा बात चल रही थी कुछ स्पष्ट बिन्दुओं की जो उभर कर सुखपुरा पहुँचनें के रास्ते में मेरे दृष्टि क्षेत्र में आ जाते हैं । पहले बिन्दु के स्पष्टीकरण में मैंने कहा है कि सुखपुरा की कोई भौगोलिक स्थिति नहीं है हाँ उसकी मानसिक स्थिति के विषय में अवश्य कुछ प्रमाण एकत्रित किये जा सकते हैं । यूनान में दार्शनिकों का एक बड़ा प्रभावशाली संघ था जो अपने को Stoic के नाम से पहचान बनाता था । यह दार्शनिक मानव काया को निरन्तर तपाने की बात करते थे और विश्वाश करते थे कि शरीर के तपने से अन्दर की ऊर्जा और अधिक प्रांजल हो उठती है । संयम का यह मार्ग कुछ अंशों में ठीक माना जा सकता है पर शरीर में सर्वथा मुक्त किसी आन्तरिक ऊर्जा की कल्पना तर्क की कसौटी पर सिरे नहीं चलती । भारत में भी हठ योगियों का एक बड़ा प्रभावशाली संघ कभी काँटों पर लेटकर ,कभी एक टाँग पर खड़ा होकर ,कभी शीतकाल में नग्न बदन रह कर ,शरीर पर आत्मा की विजय घोषणा करवानें में लगा रहता है । इस प्रकार की अत्यन्त कठिन समझी जाने वाली शारीरिक यन्त्रणाएं वाहवाही भले ही लूट लें पर उनसे व्यक्ति या समाज का किसी ठोस उपलब्धि पर पहुँचना बुद्धि की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है । भ्रामक क्रियाओ को चमत्कारिक क्रियाओं का नाम देकर अल्प बुद्धि नर -नारियों को प्रभावित भले ही कर लिया जाय और इससे कुछ आर्थिक प्राप्ति भले ही कर ली जाय पर समाज के सामूहिक कल्याण के लिए इन मार्गो की उपेक्षा ही करनी होगी । मानसिक धरातल पर सुखपुरा की तलाश करनें के लिये पहले शराब ,गाँजा ,अफीम ,चरस ,आदि नशीले साधनों का सहारा लिया जाता था और अब तो कैप्सूल ,इंजेक्शन ,Ecstsy ,और Tablets सम्पन्न वर्ग के जीवन का एक दैनिक हिस्सा बन गयी है । स्पष्ट है कि सुखपुरा की मानसिक स्थिति स्वाभाविक नहीं है Induced है । यह एक मिथक है ,भ्रमजाल है ,कल्पना लोक है ,जीवन संघर्ष को भुलाने का निरर्थक प्रयास है । (क्रमशः )
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