Wednesday, 9 March 2016

.......... अब प्रश्न उठता है कि सुखपुरा कैसे पहुंचा जाय । राजनीति में C.P.M. कुछ ऐसा ही दावा लेकर आया था कि वह बंगाल के प्रत्येक ग्राम ,कस्बे व नगर को सुखपुर ,सुखपुरा या सुखनगर में बदल देगा । लगभग 40 वर्ष तक बंगाल की जनता नें इस प्रयोग की सार्थकता का धैर्य से इन्तजार किया । समय की मार नें झूठ की सुनहली  चादर मैली कर दी और जो थोड़ा बहुत सुखपुरा अंश पश्चिम बंगाल में था वह बदलकर दुःख भरे विशाल क्षेत्रीय भूखण्डों में बिखर गया। कहते हैं अब नए सिरे से सुखपुरा की तलाश होगी प्रभु करें यह तलाश हमें अपनें गन्तब्य तक पहुँचा दे । बड़े -बड़े विद्वान बड़ी -बड़ी बातें करते हैं । बड़े -बड़े योजनाकार बड़ी -बड़ी योजनाएं बनाते हैं । कुदरत अपनें खेल खेलती रहती है । उपल वृष्टि ,तूफ़ान ,भूचाल महामारी और युद्ध नरसंहार यह सब चलता ही रहता है और यह सभी कुछ चलते रहनें के बावजूद हम सब सुखपुरा पहुँचना चाहते हैं । इस सम्बन्ध में मुझे विवेकानन्द जी की कही हुयी एक बात बहुत प्रिय लगती है उन्होंने अमरीका के अपनें भाषण में कहा था कि जैसे कि जैसे कोई नदी सीधी चलती है ,कोई उल्टी होकर फिर सीधी होती है ,कोई सीधी टेढ़ी होती है ,कोई बिल्कुल टेढ़ी होती है पर सब नदियाँ अन्ततः समुद्र में ही जाकर मिलती हैं ठीक इसी प्रकार भिन्न -भिन्न राष्ट्रों से मनुष्य जहाँ पहुँचना चाहता है वहीं है ब्रह्म्स्थल ,वहीं है परमतत्व का निवास ,वही है सहज जीवन जीकर ईश्वरोपलब्धि । भारत हजारों वर्ष पहले इस तत्व को  जान सका था उसनें गृहस्थ जीवन के सुख को कभी नहीं नकारा हाँ सहज जीवन जीने की दार्शनिक शब्दावली समाज को दी और फिर जब आयु विशेष के कारण सहज जीवन जीने की क्षमता न रहे तो विश्व मानव समाज के प्रति अपनें को सम्पूर्ण भाव समर्पित करने की राह दिखायी । इसीलिये गृहस्थ सन्यासी ही सुखपुरा की राह पर चल सकते हैं । विदेह ही शीरध्वज बनकर मिथिला पर शासन करते हैं । खड़ाऊँ सिंहांसन पर रखकर भरत राज्य चलाते हैं और कुटिया में शयन कर कौटिल्य आर्यावर्त को सँसार का समृद्धतम राष्ट्र बना देते हैं । हर भारतीय को आन्तरिक समृद्धि के लिये सन्तुलित भौतिक समृद्धि का मार्ग भी खोजना होगा यह संसार उतना ही सच है जितना जीवन समाप्ति के बाद मिलनें वाला और कोई काल्पनिक सँसार । जो सँसार आज हमारे पास है उसमें ही हर व्यक्ति और परिवार सुखपुरा की श्रष्टि करें । हम इण्डियन हैं ,हम हिन्दुस्तानी हैं ,हम हिन्दी पर शायद हम भारतीय नहीं हैं पर जो सच्चा भारतीय है उसे सुखपुरा की तलाश में न तो अमरीका जाना है और न कनाडा । आस्ट्रेलिया और योरोप भी उसके गन्तब्य नहीं हैं । अपनें इसी विशाल और महान देश में उसे बाह्य और आंतरिक विकास के अनगिनत अवसर उपलब्ध हैं ।आइये हम सहज रहकर एक मेहनती और ईमानदार जीवन जीकर अपनी उपार्जित कमाई से कुछ अंश समाज सेवा के लिये अर्पित करें । यदि हममें से कई सदाशयी कर्मठ जन इस दिशा में आगे बढ़ें तो हमारे अड़ोस -पड़ोस में कितने ही सुखपुरा  जायेंगे ।' माटी ' परिवार इसी दिशा  कार्यरत हैं । 

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