............................ मेवाड़ राज्य की जनता मुगल सेना की घेराबन्दी के बावजूद भी महाराणा पर अपने प्राण न्योछावर कर सकती है पर आतँक और असहायता उन्हें चुप किये हुये है । कुछ वनवासी स्त्रियां डालियों में कन्दमूल फल इकठ्ठा कर महाराणा के परिवार के लिये ले आती हैं । लम्बी गुफा के अन्तिम छोर पर एक लम्बी प्रस्तर पट्टी डालकर महाराणा प्रताप लेटे हुये हैं । उनका लम्बा फलदार चमचमाता भाला पास ही गुफा के पत्थरों का सहारा लेकर खड़ा है । म्यान में बंद लम्बीं तलवार पास ही रखी हुयी है । महारानी रूपलेखा कुछ फल बेटी के आगे रख देती हैं फिर उन वनवासी औरतों की ओर देखती हैं । उन्हें लगता है कि उन औरतों में एक ऐसी अधेड़ साथिन है जो पहले कभी नहीं आयी । वे वनवासी टोली की सबसे समझदार अर्धवयस्का निरंजनी से जानना चाहती हैं कि टोली में और किसको ले लिया गया है । महारानी रूपलेखा को भी प्रत्येक क्षण सावधान रहने की आवश्यकता है । वे जानती हैं कि मुग़ल सेना के अधिकारी जासूसी के लिये काईयाँ चाले चल रहे हैं । निरंजनी इशारे से बताती है कि नयी अर्धवयस्का वनवासिन से कोई ख़तरा नहीं है और वह महारानी से इशारे से प्रार्थना करती है कि इस नयी अर्धवयस्का वनवासिन को गुफा के अन्तिम छोर पर विश्राम कर रहे महाराणा से मिलवा दे । महारानी रूपलेखा करतल और उँगलियों के इशारे से पूछती हैं कि मुलाक़ात की आवश्यकता कैसे आ पडी है । निरंजना गुफा की छत के ऊपर हाँथ जोड़कर छत के ऊपर फ़ैली नीली छतरी के मालिक महांठाकुर प्रभु को प्रणाम करती है । रूप लेखा समझ जाती है कि शायद आराध्य देव उनके कुल देवता प्रसन्न हुये है और कोई जरूरी सन्देश महाराणा तक भेजा गया है । पहली ही निगाह में उन्होंने समझ लिया था कि नयी अर्धवयस्का वनवासिन के ऊपरी वस्त्र जल्दी में जुटाये गये हैं । चौड़ा लहंगां ,कमर पर छोटा पड़ रहा था और ओढ़नी भी भिल्ल स्त्रियों की भाँति वक्ष पर नहीं डाली गयी थी । कहीं ऐसा तो नहीं कि वनवासी नारी के छद्म वेष में कोई मुग़ल भेदिया हो ? महारानी रूपलेखा ने फिर एक बार प्रश्न भरी निगाहों से निरंजनी की और देखा, निरंजनी नें पहले सिर झुकाकर उनके चरणों को प्रणाम किया । फिर अपने गले पर उंगली फेरी । महारानी रूपलेखा समझ गयी कि यदि धोखा हो तो उसका गला काट दिया जाय । जंगल की यह नारियाँ न केवल बहादुर थीं बल्कि महाराणा प्रताप के लिये अपना सर्वस्व निछावर कर सकती थीं । उनकी बोटी -बोटी भी कट जाय पर उनके मुँह से भेद का एक भी शब्द नहीं निकल सकता था । इन्हीं के सहारे और इन्हीं की एकत्रित खाद्द्य सामग्री से महाराणा प्रताप और उनका छोटा सा दाल इन गुफाओं में काफी अर्से तक सुरक्षित रह सका था । पुरुष भील और गौंड वनवासी शहद इकठ्ठा करते , छोटे मोठे वनप्राणियों का शिकार करते ,लम्बें पेड़ों और बांस के झुरमुटों से लाठियां बनाते , खटोले बनाते , हिंडोले बनाते और उन्हें बाजार में बेच आते । वनवासियों की कारीगरी किसी स्कूल में नहीं सिखायी जाती उसे वे स्वयं अपने वन्य परिवेश में सीख लेते हैं इन वन वासियों पर मुग़ल सैनिक और मुग़ल अधिकारी कभी भी शक नहीं कर सकते थे ।
वनवासी नारी टोली को वहीं खड़ी रहने का इशारा कर महारानी गुफा की अन्तिम छोर की ओर चल पड़ीं जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि इस गुफा की चौड़ाई तो 10 -12 फुट ही रही होगी पर इसकी गहरायी लगभग 70 -75 फ़ीट थी । गुफा के बीच में पत्थरों की एक कृत्रिम दीवार खड़ी थी । भीलों ने दीवार को इस तरीके से रचा था कि ऊपर का एक पत्थर हटाते ही नीचे के और पत्थर भीतर की ओर सरक जाते थे और भीतर की ओर जाने का एक सकरा कृत्रिम रास्ता बन जाता था । महाराणा प्रताप , इसी दीवार के पीछे गुफा के अन्तिम छोर पर कभी बैठते ,कभी विश्राम करते ,कभी अपने अत्यन्त विश्वस्त्र सैनिक सरदारों से महारानी द्वारा सन्देश भिजवाकर परामर्श द्वारा आगे की रणनीति तय करते । अब उनकी सबसे बड़ी समस्या सेना और शस्त्र जुटाने के लिये धन की व्यवस्था करना था । विशाल मुग़ल सेना की घेराबन्दी उन्हें बाहर कहीं नहीं जाने दे सकती थी और उन तक पहुंचना भी असम्भव सा लगता था। ऐसा लग रहा था कि उन गुफाओं में ही महाराणा प्रताप ,उनके परिवार और उनके विश्वस्त्र सभासदों का एक एक करके समय आ जायेगा । महारानी रूपलेखा निरन्तर ठाकुर भगवान का स्मरण करती थी । न जाने क्यों उनके भीतर से बार बार यह आवाज आती थी शीघ्र ही कोई मार्ग खुलने वाला है । वे हल्के क़दमों से चलकर महाराणा के पास आकर खडी हो गयीं । उन्होंने महाराणा को प्रणाम किया , लेटे हुये महाराणा उठ कर बैठ गये । लम्बी शिला पट्टिका पर अपने पास हाथ थपथपाकर महारानी को बैठ जाने को इंगित किया । सलज्ज महारानी सुलेखा कुछ दूर उनके चरणों के पास बैठ गयीं । निराशा के उस गहन अन्धकार में भी उन दोनों के बीच जो बात चीत हुयी उसमें उनके अपार आत्मिक प्यार की स्पष्ट झलक मिलती है ।
महारानी सुलेखा का स्वागत है । मेवाड़ के पराजित महाराणा के पास अब और देने को क्या है ? प्राण ही तो हैं ,और हमारे प्राण तो सदैव आपके बन्दी ही रहे हैं ।
हे क्षत्रिय श्रेष्ठ, आप राजपूत कुल के गौरव है । आप भारत माता के माथे पर लगने वाले पवित्र तिलक की भाँति हैं । आप ने मुझे क्या नहीं दिया । संसार की और कौन सी नारी है जिसे ऐसा सौभाग्य मिला हो । ह्रदयेश्वर एक अधेड़ वयस्का वनवासिन आप से मिलना चाहती है । मुझे शक है कि कहीं वह वनवासी नारी भेष में पुरुष न हो । उसे वनवासी नारियों के वस्त्र पहनने का सलूक नहीं आता पर निरजना कहती है कि उसके पास आपके लिये कोई विशेष सन्देश है और यदि इसमें तनिक भी भूल हो तो उसका और उसकी साथिनों का गला काट दिया जाय । प्राणनाथ आप तो जानते ही हैं कि निरंजना हमारा कितना बड़ा सहारा है ।
( क्रमशः )
वनवासी नारी टोली को वहीं खड़ी रहने का इशारा कर महारानी गुफा की अन्तिम छोर की ओर चल पड़ीं जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि इस गुफा की चौड़ाई तो 10 -12 फुट ही रही होगी पर इसकी गहरायी लगभग 70 -75 फ़ीट थी । गुफा के बीच में पत्थरों की एक कृत्रिम दीवार खड़ी थी । भीलों ने दीवार को इस तरीके से रचा था कि ऊपर का एक पत्थर हटाते ही नीचे के और पत्थर भीतर की ओर सरक जाते थे और भीतर की ओर जाने का एक सकरा कृत्रिम रास्ता बन जाता था । महाराणा प्रताप , इसी दीवार के पीछे गुफा के अन्तिम छोर पर कभी बैठते ,कभी विश्राम करते ,कभी अपने अत्यन्त विश्वस्त्र सैनिक सरदारों से महारानी द्वारा सन्देश भिजवाकर परामर्श द्वारा आगे की रणनीति तय करते । अब उनकी सबसे बड़ी समस्या सेना और शस्त्र जुटाने के लिये धन की व्यवस्था करना था । विशाल मुग़ल सेना की घेराबन्दी उन्हें बाहर कहीं नहीं जाने दे सकती थी और उन तक पहुंचना भी असम्भव सा लगता था। ऐसा लग रहा था कि उन गुफाओं में ही महाराणा प्रताप ,उनके परिवार और उनके विश्वस्त्र सभासदों का एक एक करके समय आ जायेगा । महारानी रूपलेखा निरन्तर ठाकुर भगवान का स्मरण करती थी । न जाने क्यों उनके भीतर से बार बार यह आवाज आती थी शीघ्र ही कोई मार्ग खुलने वाला है । वे हल्के क़दमों से चलकर महाराणा के पास आकर खडी हो गयीं । उन्होंने महाराणा को प्रणाम किया , लेटे हुये महाराणा उठ कर बैठ गये । लम्बी शिला पट्टिका पर अपने पास हाथ थपथपाकर महारानी को बैठ जाने को इंगित किया । सलज्ज महारानी सुलेखा कुछ दूर उनके चरणों के पास बैठ गयीं । निराशा के उस गहन अन्धकार में भी उन दोनों के बीच जो बात चीत हुयी उसमें उनके अपार आत्मिक प्यार की स्पष्ट झलक मिलती है ।
महारानी सुलेखा का स्वागत है । मेवाड़ के पराजित महाराणा के पास अब और देने को क्या है ? प्राण ही तो हैं ,और हमारे प्राण तो सदैव आपके बन्दी ही रहे हैं ।
हे क्षत्रिय श्रेष्ठ, आप राजपूत कुल के गौरव है । आप भारत माता के माथे पर लगने वाले पवित्र तिलक की भाँति हैं । आप ने मुझे क्या नहीं दिया । संसार की और कौन सी नारी है जिसे ऐसा सौभाग्य मिला हो । ह्रदयेश्वर एक अधेड़ वयस्का वनवासिन आप से मिलना चाहती है । मुझे शक है कि कहीं वह वनवासी नारी भेष में पुरुष न हो । उसे वनवासी नारियों के वस्त्र पहनने का सलूक नहीं आता पर निरजना कहती है कि उसके पास आपके लिये कोई विशेष सन्देश है और यदि इसमें तनिक भी भूल हो तो उसका और उसकी साथिनों का गला काट दिया जाय । प्राणनाथ आप तो जानते ही हैं कि निरंजना हमारा कितना बड़ा सहारा है ।
( क्रमशः )
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