जय मेवाड़ जय महाराणा प्रताप
उदयपुर की पहाड़ियों की लम्बी और दुरूह श्रृंखला ,दो पहाड़ियों का समानान्तर प्रस्तार के बीच एक उपत्यका , दोनों किनारों पर पहाड़ी में कुछ नैसर्गिक और कुछ काट कर बनायी गयी मानव निर्मित गुफाएँ । बीच की एक अपेक्षाकृत बड़ी गुफा में हल्दी घाटी के अविस्मरणीय युद्ध में सुरक्षित निकल आये मेवाड़ के महाराणा प्रताप और उनके परिवार का निवास , साथ लगी और सामने की कुछ गुफाओं में महाराजा के अत्यन्त विश्वस्त राजपूत सेना के बचे हुये दस -बारह सेना अधिकारी , पौष्टिक आहार के अभाव में क्षीण शरीर , पर मुँह पर आत्मबल की दमक भरी चमक । पास के पहाड़ी जंगलों से कुछ बनवासी पेड़ की पतली टहनियों से बनी डालियों में जंगली कन्द मूल फल लेकर उतरते दिखायी पड़ते हैं । महाराणा प्रताप की बेटी से जब जंगली बिलाव उसकी रोटी छीन ले गया था उसके कुछ दिन बाद का आशा -निराशा भरा माहौल । अकबर के दरबार के राजदूत सामन्त द्वारा लिखी गयी प्रेरक पंक्तियों को पढ़कर महाराणा प्रताप का अपराजित आत्म विश्वास पुनः लौट आया है पर सेना जुटाने के संसाधन कहीं से जुटाये नहीं जा सकते । मुग़ल सेना और मुग़ल साम्राज्य के बल पर सेनापति मानसिंह चारो ओर घेराबन्दी बनाये बैठे हैं । मेवाड़ साम्राज्य के अधिकाँश धनिक लुट चुके हैं पर दो एक जाने -माने धन श्रेष्ठी किन्ही गुप्त स्थानों में छिपे हुये हैं । न तो महाराणा को उनका पता है और न उनको महाराणा का । कुछ वनवासी भिल्ल ,गोंड आदि पर्वतीय वनवासी बाहरी संसार से सम्पर्क के साधन हैं । उन्ही वनवासी परिवारों की नारियाँ महाराणा के परिवार के लिये भोजन सामग्री जुटाती हैं और सेवारत रहती हैं । यह वनवासी भिल्ल ,गोंड भी इतनी सावधानी से अपना काम करते हैं कि उसकी भनक तक मुग़ल सेना अधिकारियों के पास नहीं पहुँच पाती । राणा के साथ रह रहे 10 -12 शूरवीर राजपूत सेनापति कभी -कभी वनवासियों की मदद से अपना वेष बदलकर पहाड़ियों की श्रृंखला में स्वभाविक रूप से पायी जाने वाली अन्य गुफाओं की तलाश करते हैं । उन्हें विशवास है कि संपन्नतम श्रेष्ठियों के कुछ परिवार महाराणा के वफादार हैं । और यदि वे मिल जाय तो युद्ध के लिये सेना और रण सामग्री फिर से जुटायी जा सकती है ।
( क्रमशः )
उदयपुर की पहाड़ियों की लम्बी और दुरूह श्रृंखला ,दो पहाड़ियों का समानान्तर प्रस्तार के बीच एक उपत्यका , दोनों किनारों पर पहाड़ी में कुछ नैसर्गिक और कुछ काट कर बनायी गयी मानव निर्मित गुफाएँ । बीच की एक अपेक्षाकृत बड़ी गुफा में हल्दी घाटी के अविस्मरणीय युद्ध में सुरक्षित निकल आये मेवाड़ के महाराणा प्रताप और उनके परिवार का निवास , साथ लगी और सामने की कुछ गुफाओं में महाराजा के अत्यन्त विश्वस्त राजपूत सेना के बचे हुये दस -बारह सेना अधिकारी , पौष्टिक आहार के अभाव में क्षीण शरीर , पर मुँह पर आत्मबल की दमक भरी चमक । पास के पहाड़ी जंगलों से कुछ बनवासी पेड़ की पतली टहनियों से बनी डालियों में जंगली कन्द मूल फल लेकर उतरते दिखायी पड़ते हैं । महाराणा प्रताप की बेटी से जब जंगली बिलाव उसकी रोटी छीन ले गया था उसके कुछ दिन बाद का आशा -निराशा भरा माहौल । अकबर के दरबार के राजदूत सामन्त द्वारा लिखी गयी प्रेरक पंक्तियों को पढ़कर महाराणा प्रताप का अपराजित आत्म विश्वास पुनः लौट आया है पर सेना जुटाने के संसाधन कहीं से जुटाये नहीं जा सकते । मुग़ल सेना और मुग़ल साम्राज्य के बल पर सेनापति मानसिंह चारो ओर घेराबन्दी बनाये बैठे हैं । मेवाड़ साम्राज्य के अधिकाँश धनिक लुट चुके हैं पर दो एक जाने -माने धन श्रेष्ठी किन्ही गुप्त स्थानों में छिपे हुये हैं । न तो महाराणा को उनका पता है और न उनको महाराणा का । कुछ वनवासी भिल्ल ,गोंड आदि पर्वतीय वनवासी बाहरी संसार से सम्पर्क के साधन हैं । उन्ही वनवासी परिवारों की नारियाँ महाराणा के परिवार के लिये भोजन सामग्री जुटाती हैं और सेवारत रहती हैं । यह वनवासी भिल्ल ,गोंड भी इतनी सावधानी से अपना काम करते हैं कि उसकी भनक तक मुग़ल सेना अधिकारियों के पास नहीं पहुँच पाती । राणा के साथ रह रहे 10 -12 शूरवीर राजपूत सेनापति कभी -कभी वनवासियों की मदद से अपना वेष बदलकर पहाड़ियों की श्रृंखला में स्वभाविक रूप से पायी जाने वाली अन्य गुफाओं की तलाश करते हैं । उन्हें विशवास है कि संपन्नतम श्रेष्ठियों के कुछ परिवार महाराणा के वफादार हैं । और यदि वे मिल जाय तो युद्ध के लिये सेना और रण सामग्री फिर से जुटायी जा सकती है ।
( क्रमशः )
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