Thursday, 24 March 2016

नचिकेता धर्मराज की ड्योढ़ी पर

                                                  नचिकेता धर्मराज की ड्योढ़ी पर

पृष्ठभूमि :-लक्ष मुखी यज्ञ पूर्णाहुति के पश्चात भूमण्डलेश्वर वज्रश्ववा अपना सर्वस्व दान करने में लगे हैं । कंचन ,रजत ,आभूषण ,वस्त्र,दुधारू तथा स्वस्थ्य पशु दान में दिये जा चुके हैं । विप्रो की एक  कतार अभी भी कुछ पाने को उत्सुक है । अब क्या दिया जाय ? बूढ़े निर्बल पशु, बाँझ गायें और मृत्तिका पात्र के अतिरिक्त शेष  है ?
नचिकेता कथन :-अपने पिता भूमण्डलेश्वर वज्रश्ववा को नचिकेता का प्रणाम स्वीकृत हो  महाराज ,इन निरीह मरणोन्मुख पशुओं के दान से क्या लाभ ?बाँझ धेनुयें तो पाने वालों के लिये बोझा बन जायेंगीं । मृत्तिका पात्र तो ले जानें ही टूट -फूट जायेंगें  । आप तो अद्वितीय दानी है । दान का महत्त्व तो अपनी सबसे प्यारी वस्तु को दान करने में होता है । यदि वस्तुयें न रहें तो अपने प्रियजनों का दान भी दिया जा सकता है ।
बज्रश्ववा  :-नचिकेता तुमनें अभी -अभी कैशोर्य छोड़ा है । तुम अभी दान की गहरी बातों को नहीं समझ पाये हो जो कुछ भी अपना है जिस किसी भी चीज में लगाव है उसका सहज भाव से दान करना और उसके वियोग में बिना तरंगायित हुये स्थिर रहना ही दानी की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है ।
नचिकेता :-महाराज मैं आपका पुत्र हूँ और आप सदैव कहा करते हैं कि आप मुझे संसार की सभी वस्तुओं और प्राणियों से अधिक प्यार करते हैं फिर आप मुझे दान में क्यों नहीं देते ?बोलिये मुझे किसे दान में देंगें अकड़ू स्वामी को या उकड़ू स्वामी को ?
वज्रश्ववा :-नचिकेता तुमने अभी मौन का महत्त्व नहीं जाना है । देखता नहीं लेने वालों की पंक्ति में छपडक जी और फनफड जी दोनों ही  खड़े हैं । तेरी बड़बड़ के कारण वे कहीं तुझे ही न माँग लें ।
नचिकेता :-जन्मदाता आप मुझे किसी योग्य पात्र को दीजिये । देना तो पडेगा ही । मेरे दान के बिना आप का यज्ञ सम्पूर्ण ही नहीं होगा बोलिये मुझे किसको देते हैं । चुप क्यों हैं -बोलिये न मोह आपको शोभा नहीं देता ।
वज्रश्ववा :-(उत्तेजित स्वर में ) अच्छा !तू जिद्द पर अड़ा है । जा मैं तुझे यमराज को दान में देता हूँ ।
नचिकेता :-आप धन्य है पिताजी । आपनें मेरे लिये सर्वथा मोह का त्याग कर दिया ।आह ! यमलोक के प्रस्थान के लिये कितनी बड़ी आत्मिक शक्ति आपनें मुझे प्रदान कर दी है । अब किसमें शक्ति है जो मुझे जानें से वहाँ रोक ले । ( और आकाशगामी नचिकेता का शून्य धावन ,बिजली की कौंध ,क्षणिक अन्धकार )
नचिकेता :-(स्वगत ) आज तीन दिन बीत गये पर अभी तक धर्म अधिष्ठाता के दरबार से दर्शन का बुलावा नहीं आया लगता है महिष पर आरूढ़ होकर मृत्यु देवता 14 लोकों के भ्रमण पर हैं । ( नेपथ्य में कुछ आवाजें आती हैं ) चित्रगुप्त धर्मराज से कहते हैं कि एक युवा ब्राम्हण मेरे बिना बुलाये ही यमलोक की ड्योढ़ी पर आपके दर्शन को खड़ा है । तीन दिन हो गये हैं । कहता है उसके पिता ने उसे यमदेव को दान में दे दिया है । अब उसके पास और कहीं जाने का विकल्प ही नहीं है ।
यमराज :-ठीक है मैं भ्रमण पर था पर मुझे यदि बीच में सूचना मिल जाती तो मैं अपने महिष को और द्रुतिगामी बनाकर पहले आ सकता था । चित्रगुप्त इन तत्व खोजी ब्राम्हणों का अपमान उचित नहीं होता । लोग बुलाने पर भी मेरे पास आने से कतराते हैं । क्या नाम बताया इसका ,चित्रगुप्त ? नचिकेता , आह ! बड़ा भब्य नाम है । इस नाम का यही  अर्थ है न , वो ब्राम्हण जो कभी याचना नहीं करता तभी तो उसे नचिकेता नाम दिया गया है । वह मुझसे मिलने की याचना कर रहा है । साधु ,साधु । उसे  आदर से बुलाकर मेरे पास लाओ । दो यमदूतों के साथ नचिकेता सर्पाकार आबनूसी सिँहासन पर बैठे हुये यमराज को प्रणाम करते हैं । नचिकेता का तरुण  सुन्दर शरीर और उसका दीप्त भाल यमराज को प्रभावित करता है ।
यमराज :-तुम्ही हो नचिकेता ? वत्स तुम तो अत्यन्त तेजस्वी लगते हो । इतनी कम उम्र में इतना अधिक साहस, तीन दिन तक मेरी प्रतीक्षा में ड्योढी पर बैठे रहे । मैं अत्य्न्त  प्रसन्न हुआ । हाँ एक दिन की प्रतीक्षा के लिये मैं तुम्हें एक एक वर देता हूँ । तुम कोई तीन वर मुझसे माँग लो ।
नचिकेता :-हे धर्म के अधिष्ठाता !मैं आपकी प्रसन्नता पा  सका इससे अधिक मुझे क्या चाहिये । जब मैनें आपकी ड्योढ़ी में माथा टिका दिया तो मुझे सांसारिक वरों की आवश्यकता ही नहीं रही । पर मैं आपसे तीन वरों के बदले में सिर्फ एक भिक्षा माँगता हूँ । आप मुझे मृत्यु का रहस्य बता दीजिये । मरण और अमरण ,मृत्य और अमरत्व इनके बीच क्या अन्तर है और मृत्यु के अमिट विधान को नकार सक्ने का क्या कोई उपाय है ?
 यमराज :-वत्स तुम अभी बहुत छोटे हो । इन प्रश्नों का उत्तर पूँछने के लिये तो तीन लोकों में भ्रमण करने वाले नारदजी भी मुझे मिले थे । कहते थे
क्षीर सागर से शेष शायी लक्ष्मीपति ने उन्हें इन जिज्ञासाओं के समाधान के लिये मेरे पास भेजा  है । पर मैनें यह कहकर टाल दिया कि इन प्रश्नों के उत्तर के लिये मुझे कई विभागों से सूचनाएँ और सुझाव इकठ्ठे करने होंगें । नारद जी कह गये हैं कि वे मार्कण्डेय और अमरत्व प्राप्त शुकदेव तीनों मेरे पास मिलकर आयेंगें तब तक हम अपने सारे विभागों से राय मशविरा कर लूँ । वत्स तुम्हारी कच्ची उम्र तुम्हे यह ज्ञान पाने का अधिकार नहीं देती । हाँ तुम चाहो तो तुम्हें कंचन के ढेर ,हस्ति झुण्डों का अधिकार या अश्व समूहों का निर्देशन सौंप सकता हूँ ।
नचिकेता :-देव ,मरण आपकी मुठ्ठी मे है । और अमरत्व पाने की कुन्जी आप के द्वारा प्रदान की जाने वाली दार्शनिक दृष्टि में है । पिताजी के द्वारा मैं आपको दे दिया गया हूँ । मृत्यु के देवता यदि आप मुझे मृत्यु के बन्धन से मुक्त करते हैं तो हमें अमरत्व की कुन्जी दीजिये ।
यमराज :-अरे नचिकेता तू अभी युवा है ,शक्तिशाली है । संसार के सुख भोगनेकी  पूरी क्षमतायें तेरे शरीर में क्रियाशील हैं । देख ऊपर नभ विहार की ओर देख , आकाश गँगा के बीच प्रकाश के झूलों पर झूलती अपार रूप की धनीं अप्सरायें तुझे बुला रही हैं देख उनमें से कुछ बीणा के सुरों पर और कुछ कुंभ्भ हस्त चालन द्वारा तुझे अपने पास बुला रही हैं । बोल नचिकेता जायेगा, मैं तुझे उनके बीच  भेज देता हूँ ।
नचिकेता :-हे कर्मफलों के निर्णायक, मेरे हठ को क्षमा करना मुझे तो आत्मा और अमरत्व का ज्ञान ही चाहिये । देह का कोई भी सुख मुझे अपनी ओर नहीं खींचता । मैं तो मन के प्रबल वेग को भी आत्म सयंम के द्वारा बांधने के पक्ष में हूँ ।
यमराज :-अच्छा नचिकेता, मैं तुझे तेरे पिता के पास वापस भेज देता हूँ । राज्य कर । धर्म का आचरण कर । सत्य का आचरण कर । संसार बसा । फिर जब मृत्यु को प्राप्त होगे तब यमलोक में आना । उस समय तुम्हें आत्म ज्ञान पाने का अधिकार होगा ।
नचिकेता :-भगवान ,अब तो मैं आपके पास आ ही गया हूँ । आपके पास आकर वापस जाना और फिर आपके पास आना तो एक उल्टी -सीधी प्रक्रिया है । आपके चरणों के पास बैठकर ही आपके आप बिना कहे ही मुझे सब कुछ समझ में आ जायेगा । भूमि पथों या तारा पथों पर  जहां भेी जायेंगें मैं आपके पीछे -पीछे चलता रहूगाँ । (इतना कहकर नचिकेता यमराज के सिँहासन के पास स्थिर चित्त होकर बैठ जाता है ।  )
यमराज :-आँखे खोलो नचिकेता ,तुम्हें अब नये जीवन का प्रकाश मिल जायेगा । तुम अमरत्व की कुँजी पा सकोगे । मैं तुम्हें आत्मा की रहस्यमय शक्तियों के बारे में बताता हूँ । तुम सचमुच ही देह के बन्धन से मुक्त दिब्य चेतना से सम्पन्न एक सच्चे जिज्ञासु हो ,तुम आत्मज्ञान के अधिकारी हो वत्स । ध्यान से सुनना ।
( यमराज उवाच ) ( कठोपनिषद का सार )
देखो नचिकेता ज्ञानी जन ............
क्रमशः 



                             

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