Saturday, 5 April 2014

shabdon ke ........

                                    शब्दों के महारथी अलग अलग खेमों में जा खड़े हुये हैं । सभी के रथों पर " सत्य मेव जयते " की पताका फहरा रही है । किस रथ की पताका अभीष्ट ऊँचाई तक पहुँच सकेगी इसका निर्णय भारतीय जनमानस के विवेक पर निर्भर होगा। कल का सत्य भी कुछ समय के बाद   इतिहास के पन्नों में सिमिट कर रह जायेगा । जो सत्य अप्रतिहत रूप से निरन्तर गतिमान है उससे हम  सब भलीभाँति परिचित हैं । वह सत्य है परिवर्तन की निरन्तरता और हर पुरातन को नये अंग वस्त्रों से आच्छादित करना अभी कल की ही तो बात है जनरल मुशर्र्फ पाकिस्तान के भाग्य विधाता थे और आज वे देशद्रोही हैं। महान अर्थशास्त्री व्यवहारिक धरातल पर तिरस्कार का पात्र बनते जा रहे हैं । और विश्व की अर्थव्यवस्था न जाने कितने कुण्डली कृत विषमताओं में घिरती -फँसती जा रही है । दशकों तक कैप्टालिजम का नारा बुलन्द होता रहा और  अब उसका एक   परिवर्तित रूप क्रोनी कैप्टालिजम के नाम से सम्बोधित किया जा रहा है । मार्क्सवाद की नयी व्याखायें हो रही हैं और गरीबी उन्मूलन की ममतामयी योजनायें बनायी जा रही हैं । परिवर्तन के इस चक्र का निर्लिप्त दर्शक इस सदी के  उथल -पुथल में भी आनन्द के हिलोरे ले सकता है । शीत की ठिठुरन के बाद ऋतुराज के समीरण की सिहरन पुलक भर देती है । पर बसन्त को भी दुकूल में बाँध कर जीवन परिधान का अनन्य भाग नहीं बनाया जा सकता ।   ग्रीष्म की  उष्मा तो आनी ही है और फिर बौछारों की तरलता ।युवा  मन आदर्श प्रेमी होता है और अपने लक्षित आदर्श के लिये जीवन की कुर्वानी देने के लिये संकल्पित होता रहता है पर यौवन का आवेग भी समय के प्रहार से बिखर कर मन्थर पड़  जाता है और   तब पहले के आदर्श सम्पूर्ण नहीं दिखायी पड़ते स्वप्नों का संसार राजनीति की पैगों पर अपनी झिलमिल झाँकियाँ दिखाता रहता है यह तात्कालिक सत्य ही राजनीति का आधार है। इसलिये कोई भी ऐसा दावा जो मानव की आंकाक्षाओं को सम्पूर्णत : समेट  ले एक आधारहीन मिथक के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता इसलिये हम  यह मान कर चलते हैं कि जीवन का सत्य और राजनीति का सत्य अभिन्न रूप से एक नहीं है।  मानव जीवन का सत्य सार्वकालिक और कालजयी सामाजिक निर्मितियों पर आधारित है पर राजनीति का सत्य तात्कालिक और आकस्मिक घटनाओं और परिणितियों से संचालित होता है। हम जीवन संग्राम के उन अजेय सिपाहियों के गायक हैं जो मानवता की श्रेष्ठंतम मान्यताओं के लिए निरन्तर शोली की नोक पर लटक जाने के लिए प्रस्तुत रहते हैं। राजनीति के योद्धा हमारे लिये प्रेरणा पुरुष नहीं हैं हाँ सामाजिक और तात्कालिक परिस्थितियों में उन्हें आदर का एक विशिष्ट स्थान दिया जा सकता है। राज्य व्यवस्था के लिये आपका प्रतिनिधि कैसा हो यह आपकी अपनी सूझ -बूझ ,विवेक और विवेचना पर निर्भर करता है । सच पूछो तो यह आपका  सम्पूर्णत : व्यक्तिवादी निर्णय है और इस निर्णय में समाज के पारम्परिक घटक जैसे जाति या धर्म , पन्थ या पूजा पद्धति बेमानी होंने चाहिये। आने वाले कल को कौन जानता है पर भारत की आस्तिक आर्ष परम्परा इस विश्वाश को कभी भी क्षीण नहीं होने देती कि भारत का भविष्य निश्चय ही अनेकानेक स्वर्ण विहानों को जन्म देगा । दिल्ली नें न जाने कितने उतार -चढ़ाव देखे हैं कोई नया परिवर्तन उसे चमत्कृत कर देगा ऐसा मानना उचित नहीं होगा। " माटी " हर परिवर्तन का स्वागत करने को प्रस्तुत है ।

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