ताजा जन गणना के आँकड़ें चिल्ला -चिल्ला कर बता रहे हैं कि हिंदुस्तान नौजवानों का देश है । नवजवानों की संख्या अपनी विपुलता में भारत के लिये शक्ति का अक्षय स्रोत बन सकती है पर क्या ऐसा हो रहा है ?आपको कैसा लगता है यह मैं नहीं कह सकता पर मुझे तो ऐसा लगने लगा है कि बहुसंख्यक नवजवानों का चिन्तन आमोद प्रियता और विलासिता के असहनीय बोझ से असमय में ही पंगु हो चुका है। मुझे नहीं दिखायी पड़ता कि हमारी पीढ़ी गान्धी ,सुभाष, विवेकानन्द, रामानुजन,सी. वी.रमन या अब्दुल कलाम को अपने आदर्श के रूप में लेकर जी रही है । मैं तो तरुणों को सिनेमा के हीरो , हीरोइनों को अपना आदर्श मानने की बातें सुनता रहता हूँ । अधिक से अधिक क्रिकेट के खिलाड़ी या एकाध ग्लैमर गर्ल्स उनके लिये मॉडल के रूप में स्थापित होते दिखलायी पड़ते हैं । ऐसा शायद इसलिये है कि चुनाव की जाति ,धर्म और क्षेत्र पर आधारित गतिविधियों नें पिछले दो -तीन दशकों से कोई सच्चा जन नेता उभार कर हमारे सामनें नहीं दिया । अब यदि भारत के अखबार और -जाने माने समाजसेवी रोज यह चिल्ला -चिल्ला कर कह रहे हैं कि भारत की संसद में लगभग १६२ सदस्य अपराधिक पृष्ठ भूमि के हैं । इतना ही नहीं उच्चतम न्यायालय द्वारा अपराधिक पृष्ठ भूमि वाले व्यक्तियों को निर्वाचन के लिए अयोग्य ठहराने के फैसले को भी भारत की दोनों बड़ी पार्टियां निरस्त करने पर लगीं हैं । यह निरस्तीकरण संविधान में संशोधन करके होगा या उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार की याचिका भेज कर । इसका फैसला अभी थोड़े ही समय में देखने को मिलेगा । ऐसी हालत में हिंदुस्तान का नवजवान अपनी शक्ति को हल्के -फुल्के मनोरंजन में नष्ट करने में लगा है और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों द्वारा छोड़े गए छोटे -मोटे आन्दोलन मनोरंजन की ही कुत्सित और विकृत रूप हैं । एकाध कांसे और चांदी का पदक विदेशी संस्थाओं द्वारा ,एकाध पुरुष्कार या राजनीतिक आकाओं द्वारा संचालित भाषा और कला संस्थानों से एकाध पुरुष्कार पा लेना ही अब जीवन की उपलब्धि मानी जा रही है । राजनीति का सेवा स्नात उज्वल रूप सत्ता के गंदले कीचड में सन कर घिनौना हो चुका है । जब देश की तरुणायी के आगे जीवन का कोई महान लक्ष्य ही न हो तो उसका भटक जाना स्वाभाविक ही है। बालों की काट -छांट , जींस की डिज़ाइन , वोटेक्स के इंजेक्शन और प्लास्टिक सर्जरी इन सबके सहारे झूठी -सच्ची जवानी को कायम रखना ही तरुणों का लक्ष्य बनता जा रहा है । जोड़ -तोड़ ,दंद -फंद , हेरा -फेरी , मिथ्या और भ्रम जाल इन सबके सहारे वंगला का सुन्दर जीवन साथी , मदिरा ,मांस , रति और व्यभिचार की अधिकता ही अब सफलता का परियाय बन गयी है । मध्यम वर्ग के वह नवयुवक जो अभी पूरी तरह नहीं फिसले हैं उनका एक मात्र लक्ष्य है सुरक्षित सरकारी नौकरी पाकर भ्रष्टाचार का अभिन्न अंग बन जाना । उच्चतम स्तर पर हम शान्ति की वार्ता सुनते -सुनते अपने सीमान्त इलाकों का काफी क़ुछ हिस्सा शत्रुओं की निगरानी में दे चुके हैं। हमारे नवजवान मरते रहते हैं और उनकी मृत्यु क्षेत्र के मुताबिक़ पाँच , दस, पन्द्रह ,बीस या पच्चीस लाख रूपये में बिक कर मरे हुए इतिहास का हिस्सा बन जाती है। अब प्रश्न उठता है कि क्या किया जाय ? लचर होकर , हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने से तो मर जाना कहीं बेहतर होता है। मृत्यु तो जब आयेगी आयेगी ही पर जब तक जीवन है तब तक राष्ट्र का और राष्ट्र के भविष्य का डरावना चित्र कैसे सुनहरा बन सके इस पर सोच विचार तो करना ही होगा ।
क्या भारत का जन तन्त्र यहाँ की विकृत सामाजिक परिस्थितियों के कारण असफल साबित हो रहा है ? क्या यहाँ अमरीका की राष्ट्रपति प्रणाली अधिक सफल हो सकेगी ? अभी हाल के एक सर्वेक्षण में लगभग 60 प्रतिशत नवयुवकों नें जिसमें नवयुवतियाँभी शामिल हैं यह राय दी है कि भारत में तानाशाही अधिक सफल होगी । तो क्या यहाँ पकिस्तान की तरह सिविल प्रशासन पर सेना का वर्चस्व कायम किया जाय या फिर इस्लामी साम्राज्यवाद या हिन्दू पद पादशाही की नयी नींव रखी जाय । आज की अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में ऐसा तो दिख नहीं रहा है कि कोई विदेशी शक्ति भारत को अपने अधीन कर अपने लिए मुसीबत खड़ा करना चाहेगी। अमरीका अपने डालर के बल पर हिदुस्तान पर हुकूमत तो कर ही रहा है । अब उसे साम्राज्यवादी तकनीक को अपनाने की जरूरत ही नहीं है। समस्या हिंदुस्तान की है और हम हिन्दुस्तानियों को ही इसका हल खोजना होगा । आइये इस समस्या पर शांतिपूर्ण मन से गम्भीर विचार विवेचन करें। " माटी " एक त्रिसूत्रीय फार्मूला सजस्ट कर रही है। आप लोग इस सुझाव के औचित्य को अपने विवेक के तराजू पर तौलें। और हमें अपनी प्रतिक्रया से अवगत करावें । भारतीय जनता पार्टी नें कभी चाल , चरित्र और चेहरे का नारा दिया था ।
" माटी " प्रेम , प्रयास और परिवर्तन का नारा देना चाहती है। कबीर के इस दोहे में कितना बड़ा सत्य छिपा है। सुख दीन्हे सुख होत है , दुःख दीन्हे दुःख होत । ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पण्डित होय ॥ प्रेम ,प्रयास और प्रकृति परिवर्तन के त्रिसूत्रीय फार्मूले को अब हम विस्तृत विवेचन के अनुवीक्षण यन्त्र के नीचे से निकालेंगे ।
क्या भारत का जन तन्त्र यहाँ की विकृत सामाजिक परिस्थितियों के कारण असफल साबित हो रहा है ? क्या यहाँ अमरीका की राष्ट्रपति प्रणाली अधिक सफल हो सकेगी ? अभी हाल के एक सर्वेक्षण में लगभग 60 प्रतिशत नवयुवकों नें जिसमें नवयुवतियाँभी शामिल हैं यह राय दी है कि भारत में तानाशाही अधिक सफल होगी । तो क्या यहाँ पकिस्तान की तरह सिविल प्रशासन पर सेना का वर्चस्व कायम किया जाय या फिर इस्लामी साम्राज्यवाद या हिन्दू पद पादशाही की नयी नींव रखी जाय । आज की अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में ऐसा तो दिख नहीं रहा है कि कोई विदेशी शक्ति भारत को अपने अधीन कर अपने लिए मुसीबत खड़ा करना चाहेगी। अमरीका अपने डालर के बल पर हिदुस्तान पर हुकूमत तो कर ही रहा है । अब उसे साम्राज्यवादी तकनीक को अपनाने की जरूरत ही नहीं है। समस्या हिंदुस्तान की है और हम हिन्दुस्तानियों को ही इसका हल खोजना होगा । आइये इस समस्या पर शांतिपूर्ण मन से गम्भीर विचार विवेचन करें। " माटी " एक त्रिसूत्रीय फार्मूला सजस्ट कर रही है। आप लोग इस सुझाव के औचित्य को अपने विवेक के तराजू पर तौलें। और हमें अपनी प्रतिक्रया से अवगत करावें । भारतीय जनता पार्टी नें कभी चाल , चरित्र और चेहरे का नारा दिया था ।
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