Wednesday, 8 May 2013

खाण्डव वन का दहन हुआ। नागराज कष्कोटक निष्काषित हुये। इन्द्रप्रस्थ का चमत्कारिक नगर चारो ओर फ़ैली हरीतमा के मध्य में गर्व से सिर  उठाकर खड़ा हो गया। राज महल की समाप्ति के अन्तिम क्षणों में विश्वकर्मा नें धर्म राज से कुछ कहना चाहा। महाराज युधिष्ठिर नें सम्मान के साथ श्रष्टि के महानतम वास्तुकार विश्वकर्मा की विदायी के समय कही हई बात को सुना । शुभ्र शिलाओं को जीवन रस से स्पन्दित करने वाले विश्वकर्मा जी बोले -महाराज मैंने मुख्य प्रवेश द्वार के दाँयें पार्श्व में स्फटिक शिलाओं में तरंगो का श्रजन किया है। वे जल की लहरों का भ्रम पैदा करती हैं। मुख्य द्वार के बाम पार्श्व में मैंने जल के आयताकार प्रस्तार में स्थिरता  का पुट दिया है। वहाँ जल के स्थान पर थल का भ्रम पैदा हो जाता है। हे धर्मराज,आप नारी मनोविज्ञान के महा पण्डित हैं। बाम पार्श्व के ऊपरी तल पर महारानी द्रोपदी का विश्राम कक्ष है। उनके द्वार के मध्य में नील मणि से बनी एक पारदर्शी चक्षु है। जब कभी उनका मन हो तो स्थिर जल में नक्षत्रों भरे शारदीय आकाश का प्रतिबिम्ब कृत्रिम चक्षु से देख लें। पर महाराज नील मणि के उस चक्षु पर एक अभिशाप भी लदा है। वह चक्षु सराहना के लिये है ,निन्दा के लिये नहीं। महारानी को सावधान कर लेना।
                  सारी सावधानी के बावजूद विश्वकर्मा की चमत्कारिक कला नें जिस युगान्तकारी संघर्ष को गति दी उससे हम आप सब परिचित हैं। इतिहास से हमें जो सबक मिलते हैं उन्हें भुलाने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। नरसिंहा राव के प्रधान मंत्रित्वकाल में डा .मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की जिस चमत्कारिक अर्थ व्यवस्था को गति प्रदान की उसने सारे संसार का ध्यान अपनी और खींचा। अपने प्रथम प्रधान मंत्रित्वकाल में उनकी उदारीकरण की चमत्कारिक व्यवस्था सबको चमत्कृत करती रही। सारे देश में भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी और ऐसा लगने लगा कि अब थल और जल में या खड़े होने या फिसलने में किसी भूल चूक की गुंजाईश नहीं है। नील मणि के चक्षु से भ्रमित लोगों का देखना बंद हो गया। अब क्या था चारो ओर मलीनता के बदबूदार जल में न जाने कितने सत्ता के राहगीर फिसल गये। इन्द्रप्रस्थ का राजमहल तो स्वच्छ और शीतल जल से अभिसिंचित था। पर संसद भवन की सीमायें दिल्ली के अपावन पाप प्रभावों में सदाबोर रहती हैं । भ्रम की स्थिति भारत के हर घुटाले में स्पष्ट नजर आती है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय राजसत्ता को सच बताने के लिये ललकारता है पर गूँगे -बहरे मन्त्रालयों को वह गुहार सुनायी ही नहीं पड़ती। आश्चर्य तो यह है कि अब तू तू -मैं मैं की लड़ाई में यह सभी स्वीकार करने लगे हैं कि हम सब काले हैं पर अब बहस इस बात की है कि अधिक काला कौन है। और जो अधिक काले हैं वह घुटाले पर घुटाला करते जा रहें हैं।  और किसी फिल्म की यह लाइन बार -बार दोहराते जाते हैं ,"हम काले हैं तो क्या हुआ ,दिल वाले हैं ।"पांच मई को कर्नाटक का चुनाव संपन्न हो गया था और आज उसका परिणाम भी घोषित हो गया है। भारतीय जनता पार्टी का यह गर्व कि  उसकी छवि भ्रष्टाचार मुक्त पार्टी की है टूट गया है। चुनाव के परिणाम आप सबके सामने हैं अब भारत की जनता २०१४ के केन्द्रीय चुनाव में  अपनी राजनीतिक सूझ -बूझ का परिचय देगी। 'माटी 'का सम्पादक भविष्य वक्ता नहीं है पर उसे लगता है कि उभरते हुये राजनीतिक परिद्रश्य में बिना भविष्य वक्ता हुये भी यह कहा जा सकता है कि अधिकाँश राजनीतिक चुनावी उम्मेदवार सदाचार की कसौटी पर खरे नहीं उतारते हैं। राजनीतिक दलों का संघटन और भारत की सामाजिक विभाजन की परिपाटियाँ कई बार भ्रष्ट लोगों को भी विजय पट पर खड़ा कर देती हैं। पर ऐसा लगता है कि भारत का मध्य वर्ग काफी कुछ मात्रा में चुनाव में चरित्र की गरिमा को महत्त्व देगा । हम लोग जो साठोत्तरीय जीवन जी रहें हैं और जिन्होंने भारत की आजादी की प्रारम्भिक पवित्रता के दिन  देखे हैं उन्हें आज के राजनीतिक वातावरण में साँस लेना दूभर लग रहा है। पर क्या किया जाय ,असंतोष में ही विप्लव के बीज छिपे होते हैं। आज का विप्लव तीर -तलवार और आतंकी बमों से संभ्भव नही है , अब हर परिवर्तन मत गड़ना के पेटियों से गुजर कर आता है। मैं चाहूँगा कि हम सब और विशेष कर तरुण वर्ग सम्पूर्ण भारत की और भारत के महापुरुषों की गौरव गाथा से अपनी चेतना को संशोधित करें। और मतदान में अपने नीर -क्षीर विवेक का निर्भीक प्रयोग करें। यदि उत्थान का क्रम सदा नहीं चलता तो पतन भी एक सीमा के बाद बर्दाश्त के बाहर हो जाता है। न तो मानव का भविष्य और न तो राष्ट्र का भविष्य गणित की तराजू में तौला जा सकता है। पर इस बात को सारा संसार मानता है कि जिस देश में चरित्रवान पुरुष और नारियों की आबादी, बेईमन पुरुष और नारियों की आबादी से अधिक होती है वह देश सदैव उन्नति की ओर बढ़ता रहता है। आप क्या हैं ?यह आप जानें पर हम जो हैं वह हम जानते हैं। एक संकल्पित व्यक्ति एक समूह की प्रेरणा बन सकता है। यदि आप में साहस हो तो भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिये अपने को संकल्पित करें  और इस मुहिम के लिये, हर जोखिम झेलने के लिये तैय्यार रहें। सभी शहीदों की कीर्ति गाथायें नहीं बनतीं पर बिना कीर्ति गाथा के भी भारत के अनेक तरुण शहीद हो चुके हैं। क्या आप भी किसी ऐसे बलिदानी संघर्ष के लिये अन्तर प्रेरणा से परिचारित हो रहें  हैं?यदि हाँ तो  'माटी 'का सम्पादक आपका नमन करता है। 

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