Wednesday 28 November 2012

।माटी के किशोर और तरुण पाठकों को इस दिशा में ही सोचकर आगे बढ़ना है ।क्या पता उनकी साधना और उनका चिन्तन उन्हें कल के स्वर्णिम प्रभात का अग्रदूत बना दे

भारत की शासन व्यवस्था अब अपने संचालन के लिये रूपजीवा नारियों और छवि मस्त सिनेकारों का आश्रय खोजने लगी है ।मैंने कहीं पढ़ा था कि फिल्म मुगले आजम के रिलीज होनें के बाद अभनेता दिलीप कुमार हिन्दी ,उर्दू भाषी क्षेत्रों में सबसे चहेते कलाकार बन गये थे । एक बार संयोग वश उन्हें उसी हवाई जहाज से यात्रा करनी पड़ी जिसमें प्रथम पंक्ति में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल जी यात्रा कर रहे थे ।विमान के कर्मचारियों की उदारता और अपनी प्रसिद्ध का लाभ उठाते हुये उन्होंने पंडित जी से बात करने का सुअवसर पा लिया । अपने को Introduce करते हुये उन्होंने जवाहर लाल जी से कहा कि वे फिल्म मुगले आजम के नायक दिलीप कुमार हैं ।पंडित जी  नें उन्हे बताया कि वे उनसे परचित नहीं हैं ।क्योंकि उनकी फिल्मों में अभिरुचि नहीं हैं ।दिलीप कुमार का दैत्याकार गर्व सिकुड़कर बौना हो गया ।उन्हें लगा कि भारत का शीर्षस्थ नेता माटी से जुड़कर कोटि -कोटि जनमानस में आदर का स्थान पा चुका है ।और उसे चित्रपट के सितारों की पहचान की कोई आवश्यकता नहीं है ।अपने युग का कौन फ़िल्मी सितारा होगा जो गान्धी के चरणों की धूल पर निछावर न हो जाता होगा ।आज परिस्थितियां बिल्कुल उलट गयीं हैं।अब सिनें नायकों के सहारे ही राजनीत की नाव जनता के आक्रोश के भंवर में फंस जाने पर नाटकीयता के साथ निकाली जाती है ।अब जयाप्रदा और हेमा मालिनी ,गोविन्दा और धर्मेन्द्र जनता के प्रतिनिधि बनकर उभर आये हैं ।प्रयास चल रहे हैं कि सभी जाने -माने सितारे और तारिकायें इस या उस राजनीतिक पार्टी से जुड़ जाय और भारत राजनीति सिनेमायी ड्रामा बनकर हल्के -फुल्के मनोरंजन का माध्यम बन जाय ।एक युग था जब सिनेमा के कलाकार जन कल्याणकारी राजनीति के समर्थ संचालक के रूप में सामाजिक स्वीकृति नहीं पाते थे ।वे अधिकतर अस्वस्थ और कभी कभी स्वस्थ मनोरंजन के अधकारी बनकर थोड़ी बहुत प्रशंसा के पात्र हो सकते थे ।ऐसा इसलिये है कि सिनेमायी आर्ट बहुरूपियापन का एक नया अन्दाज है और उसमें गहराई से घुसा हुआ कोई भी व्यक्ति त्याग और बलिदान की सुद्रढ़ नींव पर खड़ा नहीं होता पर अब जब राजनीति काअर्थ ही है हेय हथकंडों से सत्ता प्राप्ति और छलना के माध्यम से सत्ता का दुरुपयोग तब निश्चय ही सिनेमाई कलाकार ही हमारे कल के नायक होंगें।भारत वर्ष में कोई ओबामा उभर कर आगे आ पायेगा ऐसा दिखाई नहीं पड़ता ।अब तो रूपजीवा माडल और बाजारीकृत मुकुटधारी सुन्दरियां राजनीतिक सत्ता के गलियारों में केन्द्रीय स्थानों की अधिकारी बनती जा रही हैं ।कुछ लोग हैं जो इसे एक स्वास्थ्य और तप :पूत परम्परा के रूप में नहीं ले रहें हैं पर उन्हें यह कहकर नकारा जा रहा है कि देश की दो तिहांई संख्या तरुण है इसलिये ग्लैमर के बिना राजनैतिक नेत्रत्व उभर कर आ ही नहीं सकता ।यह बात दूसरी है कि दिल्ली राज्य के विधान सभा चुनाव में शीला दीक्षित की बिना रँगे बालों वाली छवि दिल्ली की जनता को भा गयी +यह एक शुभ लक्षण है कि राजधानी का बहुसंख्यक समाज दादी -नानी की छवि को अभी भी गले से लगाने   को तत्पर   है ।हमारे बहुत से राजनीतिक नेता चिर -युवा बने रहना चाहते हैं ।
         
                                                     ऐसा शायद इसलिये भी है कि उन्हें डर  रहता है कि यदि वे युवा दिखाई नहीं पड़ेंगे तो सच्ची जवानी उन्हें कुर्सी से ढकेल कर नीचे फेंक देगी ।जो भी हो इतना तो मानना ही पड़ेगा कि यौवन का मायाजाल राजनीति को पूरी तरह अपनी चंगुल में ले चुका है ।शायद इसीलिये न जाने कितने मिनिस्टर ,विधायक और उच्च पदाधिकारी बलात्कार और यौन उत्पीड़न की कानूनी पगडंडियों में भटक रहे हैं ।माटी शक्ति और यौवन को राष्ट्र की सेवा में समर्पित करने के लिए कटिबद्ध है ।हम नहीं चाहते कि शक्ति और यौवन इन्द्रिय विलास और निजी तथा पारिवारिक स्वार्थों के दायरे में फंसकर कलंक की वस्तु बन जाय ।जवानी वह है जो राष्ट्र उत्थान के लिये समर्पित हो ।सत्ता का उपयोग भारत के हर गाँव की गली -गली में यौवन का आधारभूत सुविधाओं को पहुचाने में चरितार्थ होना चाहिये ।साफ़ सुथरा रहना अपने में सभ्य होने का एक शुभ लक्षण है पर उससे भी अधिक शुभ लक्षण है अन्तर की सादगी और सफाई ।साफ़ -सुथरे रहने का मतलब रँगे सियार की ढोंगबाजी नहीं होनी चाहिये ।आत्म बल से संपन्न व्यक्ति इस बात की परवाह नहीं करता कि उसका चेहरा  Photogenic है या नहीं ।उसे इस बात की भी चिन्ता नहीं होती कि हर Appearanceपर उसे एक नया सूट पहनना है उसे तो बस एक ही रामधुन लगी रहती है भारत की माटी और अधिक उर्वर कैसे हो ।गली -गलियारे और अधिक जगमग कैसे हों ।ग्राम पथ राजपथ कैसे बने और चिंता मुक्त सुखद परिवाहन व्यवस्था कैसे स्थापित की जाय ।माटी के किशोर और तरुण पाठकों को इस दिशा में ही सोचकर आगे बढ़ना है ।क्या पता उनकी साधना और उनका चिन्तन उन्हें कल के स्वर्णिम प्रभात का अग्रदूत बना दे ।

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