Tuesday, 26 November 2019

                                                                               शात कर्णी

                     आज से लगभग १९ शताब्दी पहले सन १०६  के आस पास दक्षिणी महाराष्ट्र के एक छोटे से नगर में एक टूटी -फूटी अट्टालिका का ऊपरी कक्ष। अठारह -उन्नीस वर्षीय गेहुएं वर्ण का एक तरुण जिसके मुख पर गौरव भरी दीप्ति है अधेड़ वय की स्वरूपवान नारी के समक्ष हाथ जोड़े खड़ा है। नवयुवक का विशाल वक्ष ,उसकी पुष्ट भुजायें ,उसका लम्बा ऊंचा कद और उसका दीप्ति भाल उसके महापराक्रमी होने की सूचना दे रहा है। साड़ी से आवेष्ठित उसकी स्वरूपा माँ उसे सामने रखी काष्ठ पट्टिका पर बैठने को कहती है। वह स्वयं भी एक ऊँची काष्ठ पट्टिका पर बैठी है। पास में दो तीन खाली काष्ठ पट्टिकायें भी रखी हुयीं हैं। नवयुवक बैठ जाता है। उसे शातिकणि  के नाम से जाना जाता है। वार्तालाप प्रारम्भ होता है ।
शातकर्णी :- माता श्री आज्ञा दें। बीस सैनिक जुटा लिए गयें हैं। मैंने स्वयं उनका चयन किया है। उनमे शारीरिक पुष्टता और वीरता का प्रशंसनीय संयोग उपस्थित है। इतने ही छिप्र गति अश्व्वों के व्यवस्था भी हो गयी है। आज रात्रि को ही मुझे अभियान करना है। पग धूलि लेने आया हूँ।
माता श्री :- वत्स सातवाहन वंश को तुमसे बहुत बड़ी आशायें हैं। तुम्हारे प्रथम पूर्वज सिमुक श्री महान योद्धा थे। एक विशाल भू भाग उनके अधिकार में था। बाद के उत्तराधिकारी दुर्बल साबित हुये। तुम्हारे दिवंगत  पिता श्री से बहुत बड़ी आशायें  थीं। इस छोटे से नगर के आस पास का भू भाग उन्होंने ही शक छत्रप को पराजित कर जीता था पर सात वाहन वंश का दुर्भाग्य ही थी जो उन्हें तुम्हारे जन्म के बाद हमसे खींचकर भगवान की गोद में ले गया। वत्स बहुत यत्न से पाल पोस कर मैंने उनकी धरोहर को बड़ा किया है। तुम बिल्कुल उन्हीं की प्रतिकृति हो। हे मेरे दुर्भाग्य तुमने उन्हें छीन कर मुझे अनाथ कर दिया। (आँखों में आंसू आ जाते हैं जिन्हें वह आँचल से पोछने लगती है )
शातकर्णी :- दुखी न हो माता श्री। मैं दिवंगत पिता श्री की स्मृति में श्रद्धा से विनत होकर सिर झुकाता हूँ। मैनें उन्हें नहीं देखा है पर आप मेरे लिये सबसे बड़ा जीवन सिम्बल हैं। अभियान की आज्ञां दें माता श्री और यह भी स्वीकार करें कि आज से मैं अकेले शातकर्णी नहीं बल्कि गौतमी पुत्र शातिकर्ण के नाम से जाना जाऊं। मालवा की ओर मालवा विजय का  मेरा अभियान कब तक चलेगा कह नहीं सकता। पर आपका आशीर्वाद निष्फल नहीं होगा। मालवा विजय कर आपके चरणों में फिर प्रणाम करूँगा और तब काठियावाढ़ का अभियान प्रारम्भ करूँगा। आज्ञां दें माता श्री।
गौतमी :- (खड़े होकर पुत्र के सिर पर जिसे वह अधिक लम्बाई   के कारण झुका लेता है हाथ रखती है। जाओ वत्स तुम्हारे दिग्विजय की कहानियां युगों -युगों तक सुनायी जायेगी। )
                             गौतमी पुत्र शातिकर्ण का कक्ष से वाहिर्गमन। सीढयों से उतरते पद चापों की आवाज अश्वों की पीठों पर सैनिकों के बैठने की हलचल और फिर जय शातिकर्ण का ऊँचा गूँजता स्वर।
                              (शीतकाल की समाप्ति और बसन्त का आगमन मालवा विजय की सूचना गौतमी तक आ गयी है। गौतमी शातिकर्ण की प्रतीक्षा कर रही है। नीचे घोड़ों के रुकने की खलबल  । घोड़े से कूंदकर द्रुतिगति से सीढयाँ चढ़ कर शातिकर्ण का माता श्री के कक्ष में प्रवेश। भूमि पर लोटकर चरणों में प्रणाम। आँसू भरी आँखों से पुत्र को देखती है फिर उठाकर गले लगा लेती है। वत्स तुम सातवाहन वंश के गर्व हो। ब्राम्हण धर्म का पुनुरुत्थान करो ,विदेशी शासकों ,यवनों तथा पहलवों को पराजित कर उन्हें भारतीय जीवन शैली अपनाने को प्रेरित करो । )
शातिकर्ण :- माँ कल प्रभात से पहले ही काठियावाढ़ का अभियान प्रारम्भ होगा। शकों के शाशक नह्पान को भारत की वीरता से परिचित कराना है।
गौतमी :- वत्स एक दो दिन तो विश्राम कर लेते। सैनिक भी थक गये होंगे।
शातिकर्ण :- माता श्री मालवा विजय के बाद अपनी सेना में लगभग २०० अश्वारोही ,पचास हस्ति योद्धा और दो सहस्त्र पदाति सैनिक आ गये हैं। काठियावाढ़ अभियान कुछ ही दिन में संपन्न हो जायेगा। माता श्री गौतमी पुत्र शातिकर्ण विदेशी शासकों के मस्तक को भारत माँ की चरण रज लगाने के लिये बाध्य कर देगा।
गौतमी :- जाओ वत्स मैं तुम्हे राष्ट्र को समर्पित करती हूँ। त्रिदेव तुम्हारी रक्षा करेंगे ।
               बसन्त ऋतु की समाप्ति होने वाली है। शातकर्णी उस टूटी -फूटी अट्टालिका के ऊपरी कक्ष में फिर से प्रवेश करता है। उसके आने के पूर्व सूचना गौतमी को नहीं मिल पायी है। शातिकर्ण माँ के चरणों में लेटकर प्रणाम करता है।
गौतमी :- वत्स बिना पूर्व सूचना के सहसा कैसे आ गये ? सब कुशल तो है।
शातिकर्ण :- माता श्री आपका आशीर्वाद कभी निष्फल होता है । काठियावाढ़ ध्वस्त हो चुका है। अपना एक प्रतिनिधि शासक के रूप में वहाँ बिठा आया हूँ। सेना पीछे आ रही है। मैं तीब्र गति से आकर मात श्री को सूचना देने आ पहुँचा हूँ पर सूचना के साथ आशीर्वाद मांगने भी आया हूँ क्योंकि अब बरार , कोंकण ,पूना ,नासिक के विजय अभियान प्रारम्भ करने हैं। सम्पूर्ण गुजरात सातवाहनों की प्रतीक्षा कर रहा है। आपके लिये एक नाये भावन के निर्माण की नींव रख दी गयी है। राजधानी का चयन पूरे आन्ध्रप्रदेश प्रदेश के विजय के बाद किया जायेगा।
गौतमी :- वत्स विन्ध्य  के पार का इतिहास तुम्हारी गौरव गाथा युगों -युगों तक दोहराता रहेगा। मैं चाहती हूँ कि ब्राम्हण धर्म में स्वीकृत देवताओं की पूजा हर जगह प्रारम्भ करवा दी जाय। इन्द्र ,वासुदेव ,सूर्य ,चन्द्र ,विष्णु ,कृष्ण ,गणेश ,और पशुपति या शिव इन सभी की पूजा करने की जनता को स्वतन्त्रता दी जाय। बिना बाध्यता  से  जो जिस देवता को चाहे उसकी पूजा करे।
शातिकर्ण :- माता श्री बौद्ध भिक्षुओं के सम्बन्ध में आपका क्या आदेश है ?
गौतमी :- भगवान बुद्ध तो भारतीय आस्तिक धर्मिता को और अधिक सम्पुष्ट कर गयें हैं। वे तो हमारे दशावतारों में हैं। बौद्ध भिक्षओं का पूरा सम्मान होना चाहिये। बोधि वृक्ष ,धर्मचक्र तथा भगवान बुद्ध की  मूर्तियों की  पूजा भी प्रारम्भ की जाय। स्तूप बनवाये जाँय और गुफाओं का निर्माण किया जाय। सच्चा ब्राम्हण धर्म आत्मशान्ति के लिये हर पूजा पद्धति को स्वीकार करता है। वह सच्चे अर्थों में धर्म निरपेक्ष है। ऊँचाई की ओर ले जाने वाला यह चिन्तन का हर मार्ग राज्य से संवर्धन पायेगा। पर राज्य का प्रशासन पूजा पद्धति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
शातिकर्ण :- धन्य हो माता श्री। शातिकर्ण अपने को गौतमी पुत्र शातिकर्ण कहने में महान गर्व का अनुभव करता है। अच्छा माता श्री अब सम्पूर्ण गुजरात ,आन्ध्र और औरंगाबाद को महान साम्राज्य में मिला लेने के बाद अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन आपकी आज्ञा से किया जायेगा। ( नीचे से सैनिकों की ऊँची आवाज में गौतमी पुत्र शातिकर्ण की जय गूँज)
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