Tuesday, 26 November 2019

                                                                       बजरंगबली की कृपा

                                    १९९५ की  बात है अगस्त का आख़िरी पखवारा रहा होगा प्रोफ़ेसर सुनील मित्तल जुलाई में सेवा निवृत्त होकर चण्डीगढ़ से रोहतक अपने घर में आ गये थे। चंडीगढ़ शहर की सुनुयोजित योजना और साफ सुथरी छवि उनके मन पर छायी थी और रोहतक उन्हें कूड़े कचरे का शहर लगता था। पुराने शहर की तंग गलियाँ एक हल्की बरसात पड़ते ही फिसलन से भर जाती थी। सम्पन्न व्यापारी वर्ग मुहल्ले में बहुतायत से था और उनके दुपहिया और चौपहिया वाहनों से सड़के खचाखच भरी रहती थीं। बरसात में तो पैदल निकलना भी मुश्किल था। वर्ड्स वर्थ ,थोरो और इमर्सन के साहित्य का आस्वादन करने वाले प्रोफ़ेसर सुनील मित्तल मुख्य शहर से  बाहर  खुले में एक खाली मकान किराये में लेकर रहने लगे। वे महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के आस पास जमीन खरीद कर कोठी बनवाने की बात सोच रहे थे। राजस्थान में तो बरसात बहुत कम होती है। हरियाणा में भी नब्बे के बाद बरसात की झड़ियां लगना बंद हो गयीं हैं। छोटे मोटे बादल आये छुटपुट बरस गये और निकल गये। बरसात में कई दिनों तक घिरी रहने वाली मेघ मालायें और उनके ऊपर लहराते सफ़ेद बगुले तो अब दिखायी भी नहीं पड़ते हैं। १९६५ में भी बरसात की ऐसी ही हालत थी पर प्रकृति का मूड  कभी कोई जान पाया है। बरसात की एक शाम जब लोग निश्चिन्त सोने का इन्तजाम कर रहे थे अचानक काले हाथियों सी सूंड उठाये बादलों की कतारों पर कतारें दिखाई पड़ने लगीं। रात १२ बजे वर्षा की शुरुआत हुई और लगभग २ घन्टे बाद बिजली की तड़प के साथ एक भयानक शब्द हुआ। बाद में बताया गया था कि बादज फट गये थे और मूसलाधार पानी कई घण्टों तक गिरता रहा। शहर के ऊपरी ऊँचे हिस्सों को छोड़कर बाकी चारो ओर बाहरी क्षेत्र में पानी ही पानी। हिसार रोड पर  बने रेलवे ओवर ब्रिज के पास लम्बे चौड़े और बीस फुट गहरे तालाब में लबालब पानी भरा था। तालाब के उतरी किनारे पर पक्की ईटों की एक पक्की दीवार तालाब के पानी को प्रोफ़ेसर मित्तल की कालोनी में जाने से रोक रही थी। कालोनी की सड़कों पर पहले से ही चार पांच फीट पानी था। शहर के अधिकाँश भागो में बाढ़ का पानी घुस चुका था। बाढ़ग्रस्त नीची बाहरी कालोनियों से भग भग कर लोग शहर के ऊँचे टीलों पर बसे मुहल्लों पर जा बसे थे। प्रोफ़ेसर मित्तल का मकान दो मंजिला होंने  के कारण वे अपनी पत्नी और एम .ए . की छात्रा अपनी बेटी के साथ ऊपर के तल  पर रह रहे थे। नीचे के तल  में तीन चार फीट पानी था। सड़कों पर दूध और सब्जी की किश्तीनुमा ठेलियां चलने लगी थीं। और ऊपर छत  से रस्सी में बाँध कर टोकरी लटका दी जाती थी जिससे दूध और सब्जी ऊपर खींच कर आ जाती थी। पीने का पानी भी बोतलों में बिक रहा था। केन्द्र सरकार की ओर से भी हवाई जहाज़ों से खाने के पैकेट छतों पर डाले  जा रहे थे।
                                     प्रोफ़ेसर मित्तल की कालोनी में यह आतंक फैला था कि अगर तालाब के उत्तर वाली दीवाल टूट गयी तो क्या होगा। कालोनी को १२से १५ फीट पानी में डूब जाने का खतरा था।  पशु मरने लगे थे और उनकी तैरती हुई लाशें सड़क के पानी में उतराती दिखलाई पड़ती थीं। कालोनी के बन्दर कहीं भग गये थे। यहाँ मैं यह बता दूं कि रोहतक में अधिकाँश कालोनियों में बन्दरों के झुण्ड छतों पर घूमा करते हैं। एक मझोला बन्दर झुण्ड से कटकर अकेला पड़  गया था और वह अक्सर प्रोफ़ेसर मित्तल के दुमंजिले पर बने कमरे की छत पर  बैठा रहता था। दो दिन तक तो दीवाल पानी की टक्कर सहती रही पर तीसरी शाम उसमें दरारें पड़ गयीं और उसका एक हिस्सा धडाम से पानी में ढह पडा\ अब क्या था पानी का लाठियों ऊँचा प्रवाह कालोनी को डुबा देने के लिये चल पडा। रात भर लोग छतों पर बैठे जागते रहे और हहर -छहर भरा पानी के दायें बायें और वर्तुल चक्र को देखते रहे। पानी के भारी प्रवाह नें जमीन की सुराखों और छेदों में छिपे न जाने कितने कीड़े और मकौड़े रेंग रेंग कर दीवालों और छतों पर चपटने लगे\ अगले दिन सुबह प्रोफ़ेसर मित्तल की बेटी शुभा ने सबसे पहले उठ कर देखा कि पाने की लहरें दुमंजिले कमरे को छूने लगी हैं। वह लपक कर जीने से कमरे की छत की ओर चढ़ने लगी ताकि वहाँ से पूरा द्रश्य साफ़ साफ़ दिखाई दे। छत पर पहुचते ही वह चीखने लगी क्योकि एक विषैला साँप फन  उठाये उसकी ओर दौड़ा, प्रोफ़ेसर मित्तल और उसकी पत्नी  दौड़ कर सीढ़ियों से छत की ओर चढ़ने लगे पर इतना समय कहाँ था। विषैले साँप ने फन उठाकर शुभा के पैर पर दान्त गड़ाने की चेष्टा की मित्तल दम्पति ने डर के मारे आँख बंद कर पवन सुत बजरंगबली सेअपने एक मात्र बच्ची के प्राणों की भीख माँगी। एकदम एक आश्चर्य हुआ न जाने किस शून्य से उछल कर उस अकेले मझोले बन्दर ने विषैले साँप के उठे फन  को अपनी मुठ्ठी में दबोच लिया। वह छत की ऊँची उठी मेंढ़ पर बैठ गया और फन को मेंढ़ की नंगी ईंटों पर रगड़ने लगा रह रह कर वह उसे अपने कान के पास ले जाकर यह सुनने की कोशिश करता कि सांप में सांस की कोई हलचल है या नहीं। दो मिनट बाद उसने विषैले सांप के निर्जीव शरीर को बाहर पानी में फेंक दिया। भय से पीली पड़ गयी शुभा के जान में जान आयी। मित्तल दम्पत्ति  नें जय बजरंगबली कहकर रामदूत के प्रति अपना आभार प्रकट किया\ प्रोफ़ेसर मित्तल के सहयोगी और सहकर्मी सभी शिक्षक बन्धु इस घटना को एक सँयोग मात्र मानते हैं पर मित्तल दम्पत्ति इसे बजरंगबली की कृपा मन कर चल रहें हैं। दोनों ही विचारधारायें महत्वपूर्ण ,वैचारिक आधार शिलाओं पर खडी हैं। हम स्वयं कोई निश्चय नहीं कर पा रहें हैं। प्रबुध्द पाठकों से तर्क संगत प्रतिक्रियायें आमंत्रित की  जाती हैं जिन्हें माटी में प्रकाशित किया जायेगा।
                      

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