Friday 29 November 2019

        अबूझा समाधान

पपीता लेकर संकट मोचन मन्दिर के पास वाली गली से घर की ओर वापस आ रहा था | मन्दिर के पास मझोले कद के एक मजदूर से लगने वाले नवयुवक ने मास्टर जी कहकर नमस्ते किया | मैं ठीक से नहीं जानता कि कुछ लोग मेरे नाम के साथ मास्टर जी क्यों जोड़ देते हैं | शायद इसलिये हो कि सुबह शाम घूमने जाते समय मेरे हाँथ में लकड़ी की एक छोटी सी रूल होती है | और रूल का सम्बन्ध अधिकतर मास्टरों के साथ ही जोड़ा जाता है | जो भी हो , मुझे यह सम्बोधन अच्छा भी लगता है क्योंकि लड़कपन में अंग्रेजी में पढ़ा हुआ यह कथन  "Jack of all ,master of non,"मुझे मास्टर कह देने के बाद मेरे ऊपर लागू नहीं किया जा सकता और फिर आज की बेकारी के जमानें में भला मास्टर होना भी क्या कोई छोटी बात है |
                              तो मैनें नमस्ते के बदले नमस्ते बेटे कहकर राह पर अपने कदम बढ़ाये पर उसने मुझे सुनाते हुए कहा , " मास्टर जी , अब मर जानें का जी चाहता है | मेरे मन की पहली प्रतिक्रिया यह थी कि मैं उसकी बात पर गौर किये बिना अपनी राह चला जाऊँ | आखिर क्या जरूरत पडी है मुझे किसी को समझाने की कि जब तक मौत स्वयं न आवे उसे बुलाना नहीं चाहिये | पर उसके मुंख  पर कुछ ऐसा दयनीय भाव था कि मुझे लगा कि वह अपनी व्यथा कथा मुझे सुनाना चाहता है | साहित्य का अध्यापक होने के नाते मैनें किसी क्लास को रूसी लेखक चेखव की एक कहानी पढ़ाई थी | इस कहानी में एक दुःखी इक्केवाला ठंड के मौसम में जब हिमपात हो रहा है अपनी दुःख भरी कहानी अपने घोड़े को सुनाता है | घोड़ा सहानुभूति पूर्वक गर्दन हिलाकर उसे सांत्वना देता है | आखिर दुनिया में जब सारे मानव आत्मकेन्द्रित हो गये हैं तो कहीं न कहीं तो सहानुभूति खोजनी ही पड़ेगी | चलते हुये अपने साथ कदम मिलाते उस नवयुवक से मैनें पूछा , बेटे क्यों मरना चाहते हो ?
                     उसने उत्तर दिया कि वह अपनी पत्नी को लेने उसके मायके गया था | पत्नी के पास उसकी एक दो वर्ष की बच्ची भी है | वह अपनी बच्ची को बहुत चाहता है पर पत्नी ने उसके साथ आने से इन्कार कर दिया और उसके साले ने उसे बेइज्जत कर घर से चले जानें को कहा | मैनें पूछा कि पत्नी को अपने मायके गये हुये कितने दिन हुये | उसने बताया कि लगभग दो महीने पहले उसका बाप आकर उसे लिवा गया था | बाप ने बेरी के एक  बहुत बड़े बाग़ का ठेका ले रखा है और उसकी पत्नी  भाई के साथ उस बाग़ की देख -रेख कर रही है | बाप कहता है कि अब वह ,उसे हमारे साथ नहीं भेजेगा | " क्यों , तुम्हारे साथ भेजने में उसे क्या ऐतराज है |  " वह कहता है तू निठल्ला है | पहले ही मेरी लड़की काफी कमजोर हो चुकी है | अब मैं उसे यहीं रखूंगा |"
                           " तुम क्या काम करते हो ?"
                            " मैं बिजली का काम जानता हूँ |"
" अच्छा इलेक्ट्रीशियन "किसी टेक्निकल इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा किया है |"नहीं बजली की दुकानों पर काम सीखा है | किस बिजली की दुकान पर बैठते हो ?फिलहाल बंसल इलेक्ट्रिकल्स एण्ड इलेक्ट्रॉनिक्स के यहां बैठता हूँ | इसके पहले तनेजा के यहां बैठता था | क्या महीनें की तनख्वाह बंधी हुयी है ?  " नहीं काम आने पर कुछ हिस्सा दिया जाता है |"
 "रोज की औसत आमदनी कितनी हो जाती है ?"
" किसी दिन दो सौ ,किसी दिन सौ , ढाई तीन हजार महीनें पड़ जाता है |"
किसी किसी महीनें ज्यादा आमदनी भी हो जाती है | " घर का मकान है ?"
" है तो पर बाप ने घर से निकाल दिया था |"किराये पर कमरा लेकर रह रहा हूँ | सात सौ रुपये बिजली का खर्चा मिलाकर देना पड़ता है |"
" तो इतने में तो तुम्हारा काम चल जाना चाहिये ,बच्ची तो अभी छोटी ही है |"मेरा बड़ा भाई राशन के दफ्तर में बाबू है | मेरी भाभी बड़े ठाठ बाट से रहती है | मेरा बाप भी उसका साथ देता है | मेरी औरत कहती है कि मुझे भी उसी तरीके से रख | उसकी जेठानी उसकी हंसी उड़ाती है | कहती है ठीक कमा , अच्छे घर में रख ,तभी मैं तेरे साथ रहूंगी | अब मास्टर जी बताओ मैं क्या करूँ ? दो महीने  से अपने हांथों से कभी रोटी सुबह ठोंक ली कभी शाम को | दुकान पर जाकर काम करने का मन भी नहीं होता | किसी किसी दिन चाय के पैसे भी जेब में नहीं होते | जब वह मेरे साथ रहती थी तो मैं उसके और बच्ची के लिये कमाता था | अब मैं अकेले जी कर क्या करूँ ? मैनें उससे यह बात कही तो उसने कहा , ' जा मरना है तो मर जा पिता जी तो कहते हैं कि वे  मेरे लिये दूसरा ठीक घर देख लेंगें |"मैं सुनकर सोचने में लग गया कि क्या मैं इस समस्या का कोई समाधान निकाल सकने में समर्थ हो पाऊंगा | मेरे अभिजात्य संस्कार मुझे यह स्वीकार ही नहीं करने देते थे कि कोई नारी अपने युवा पति को छोड़कर अन्य घर में जाने की सोचती हो और उसके पिता और भाई उसे ऐसा करने के लिये प्रेरित कर रहे हों पर जमीनी सच्चायी मेरे मस्तिष्क  को झकझोर कर समाधान मांग रही थी |
             मैंने उससे कहा ," अरे भाई तू बिजली की कोई दुकान क्यों नहीं खोल लेता ? उसने कहा दुकान के लिये लाखों की पगड़ी देनी होती है , फिर सामान , फिर हर महीनें का किराया , पैसा कहाँ है ?
                      मैनें कहा सरकार की तमाम स्कीमें हैं , बैंक से कर्ज ले लो | उसने कहा मास्टरजी आप किस दुनिया में रहते हैं मुझ जैसे को कोई बैंक लोन देगा ?मुझे तो ढकेल कर बाहर निकलवा दिया जायेगा | म्युनिसपिल काउन्सलर से बात करो , वह कर्ज दिला देगा |
                    " लेखी राम से , कमीना ,गुण्डा , कहता था बैंक में साथ चलने के लिये एक हजार रुपये ले कर आ | पड़ोस के हर घर की गरीब औरत उसके लुच्चेपन से डरती है | अब मेरे सोचने का रास्ता फिर बन्द हो गया | और क्या किया जा सकता है ,व्यक्तिगत रूप से मैं सौ पचास रुपये की मदत तो कर सकता हूँ और फिर क्या पता कि ये मिस्त्री भरोसे मन्द इन्सान है भी या नहीं | बचकर निकल आने का मैनें मार्ग तलाशा और कहा, बेटे एक बार  फिर तू  उसके मायके जा कहना मैं अपनी बेटी को ले जाऊँगा तू चले या न चले | मैनें सोचा कि उसके पिता या भाई शायद बेटी के प्रति उसके प्यार से प्रभावित हो जायें और उसकी पत्नी का मन पिघल जाये | मैनें यह कहकर कि फिर कभी मिलेंगें तब बात करेंगें उसे सड़क मोड़ पर छोड़ दिया और घर चला आया |
                       लगभग पन्द्रह दिन बाद की बात है उस दिन मैं खोखरा कोट की ओर घूमने के लिये निकल गया | कहते हैं खोखरा कोट कभी राजा हरिश्चन्द्र का किला था जिनके बेटे रोहताश्व के नाम पर ही रोहतक का नामकरण हुआ है | शताब्दियों से यह कोट खण्डहर के रूप में पड़ा है | और अब इसकी ऊबड़ -खाबड़ ऊँचाइयों पर समाज के नीचे तबके के लोगों ने जिनमें हिन्दू ,मुसलमान दोनों शामिल है अपने अपने घर खड़े कर लिये हैं | ये सारे कब्जे अनाधिकृत हैं | पर भला हो जनतन्त्र का एक न एक दिन इनका नियमतीकरण हो जायेगा | खोखरा कोट पर एक छोटी -मोटी मस्जिद भी बन गयी है और बाबा बालकनाथ का दो ढाई कमरे का एक नाथ सम्प्रदायी डेरा | यहां बाबा बालकनाथ अपनी धुनी जमाये रहते हैं और कई बार निम्न श्रेणियों की औरतों से घिरे देखे जा सकते हैं | कोट के बीच से सांसद फण्ड की मदद से एक उल्टी -सीधी सड़क बना दी गयी है जो चमरिया गांव को रोहतक से जोड़ती है | घूमने के दौरान मैं कई बार मुख्य सड़कों से हटकर एकान्त मार्गों पर ही निकल जाता हूँ | बाबा बालकनाथ आश्रम के नीचे सड़क पर वह नौजवान  मिस्त्री मुझे मिला | शायद उसने ऊपर से मुझे आते हुये देखा हो और साठ ,सत्तर सीढ़ियां उतरकर मुझसे मिलने सड़क पर चला आया था | बरगद ,पीपल कीकरों ,नीमों और पाकरों से घिरा वह डेरा अँधेरे में अवश्य ही डर की अनुभूति देता होगा | मिस्त्री ने कहा , " मास्टर जी सब कुछ ठीक हो गया |"मैनें कहा , " चलो अच्छा हुआ |"बिटिया को ले आये | उसने कहा अब मैं यहीं बाबा बालकनाथ के डेरे में रहता हूँ बाबा की धुनी की भष्म लेकर मैं उसके पास गया था | बाबा ने कहा था कि धुनी की भस्म देकर उससे बोलना कि मैं उसको चेली बनाता हूँ | मैं मछन्दर नाथ का पुजारी हूँ | डेरे में आकर रहेगी तो सोने से लाद दूंगा | मैनें ऐसा ही किया और जय हो बाबा बालक नाथ की अब  वह यहीं डेरे पर रह रही है और बाबा जी की तन मन से सेवा कर रही है | मैनें कहा मिस्त्री जी क्या तुम बाबा बालकनाथ को पहले से ही जानते थे | उसने कहा हाँ , शादी के बाद जब पिताजी ने घर से निकाला तो वह एक हप्ते डेरे में ही रही थी  | मैं तो भोपाल बिजली का काम करने चला गया था |
                                           मैं उसको मुबारकबाद देता हुआ आगे निकल गया | मन में सोचा तुरन्त व्याह कर लायी हुयी औरत को एक सप्ताह तक अकेले डेरे में छोडनें की अपार श्रद्धा जिस सेवक में है उसका उद्धार तो होना ही है | जिस समस्या का समाधान न तो सरकार कर पाती है और न समाज की टूटती पारिवारिक व्यवस्था उसका समाधान धूनी धारी बाबाओं के हाँथ में है | मेरा तार्किक मन मुझ पर हँसता है पर मेरे अन्तर की अन्ध श्रद्धा हमें अपनी हंसी रोकने पर विवश करती है |

No comments:

Post a Comment