Friday 29 November 2019

                 नारी समानता

                   दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में हाड़ कंपानी वाली सर्दी पड़ रही थी | उस वर्ष सर्दी कुछ ज्यादा ही थी फिर दार्जलिंग तो सर्दी की कठोरता के लिये सारे बंगाल में पर्यायवाची बन गया है | मेरे साथ के लड़के बगल के दो कमरे लेकर अभी तक सोये पड़े थे | हम तीन फ्रोफेसर जो उनके साथ नियन्त्रण के लिये भेजे गये थे एक छोटे कमरे में अलग सोने की व्यवस्था कर पाये थे | उस दिन 10 -11 बजे के बाद दार्जलिंग से काठमाण्डू जानें की योजना थी | 15 के 15 सैलानी छात्र डबल रजाइयों में दुबके पड़े हुए थे | हम लोग दो -दो कोट पहनें थे फिर भी सर्दी हड्डी पसली कंपा रही थी | दरअसल हम लोग पंजाब से चलकर दिल्ली होते हुए कलकत्ता फिर दार्जलिंग और फिर काठमाण्डू के टूर पर थे | हम तीनों ने यह प्रोग्राम बनाया था कि हम तड़के पांच साढ़े पांच बजे उठकर पहाड़ों की 10 मिनट की चढ़ाई के बाद Rising Point पर पहुँच जायेंगें और वहां से उदय होते हुये भाष्कर से स्वर्णमयी बन जानें वाली कंचन जंगा की चोटी पर हजारों फ़ीट नीचे हरी -भरी वादियों का झिलमिलाता नजारा देख लेंगें | दार्जलिंग के Rising Point पर देश -विदेश के हजारों सैलानी उगते हुये सूरज का नजारा देखने आते हैं | सैलानियों में अधिकतर विदेशी जोड़े होते हैं | जिस होटल में हम ठहरे थे वहां से तकरीबन 10 मिनट की चढ़ायी के बाद Rising Point समतल प्लेटो था जब हम कपड़े पहनकर तैयार हुये और बाहर निकले तो देखा कि ताजी बर्फ चारो ओर फ़ैली हुयी थी | सुबह का यह स्नोफाल रास्तो को फिसलन से भर रहा था | पहाड़ की सकरी पगडण्डी से 10 मिनट की चढ़ाई के बाद Rising Point पर पहुँचना था |
                                     रात की सर्दी को न झेल पाने के कारण प्रोफ़ेसर आत्म चन्द्र गौड़ को उल्टियां आने लगीं ,मैनें उनसे कहा कि वे आराम कर लें ताकि 11 बजे तक ठीक हो जायें और काठमाण्डू का प्रोग्राम बिना रुकावट के पूरा हो सके | प्रोफ़ेसर ओम प्रकाश गुप्ता मेरे साथ चले ,पगडण्डी ताजी बर्फ की फिसलन से खतरनाक हो रही थी | गुप्ताजी दो मिनट बाद ही पेट में गहरा दर्द महसूस करने लगे और बोले कि वे  वापस होटल जायेंगें और आराम करेंगें | मैनें सोचा कि मैं भी वापस चला जाऊं पर फिर मन में आया कि क्या पता जीवन में दोबारा दार्जलिंग आने का सुअवसर न मिले इसलिये चढ़ाई प्वाइंट पर पहुंचा जाये | हिम्मत करके जिस होटल में मैं ठहरा था उसके आस -पास और भी बहुत से होटल थे | और भी पगडण्डियाँ रही होंगीं ऐसा मैं इसलिये लिख रहा हूँ कि जब मैं राइजिंग प्वाइंट पर पहुंचा तो वहां काफी विदेशी सैलानी पहुँच चुके थे | पूरब की ओर लालिमा फूट रही थी और एक अद्भभुत नजारा हमारी आँखों के सामने खुल रहा था | कंचन जंगा की हिम  श्वेत चोटी सोने का ताज पहनने लगी थी | आस -पास की निचली तुषार धवल चोटियां भी चांदी की कौंध फेंक रही थीं | नीचे घाटी की हरीतिमा में पुखराजी फाग खेला जा रहा था | प्रकृति के इस अदभुत द्रश्य को हम विस्मय विमूढ़ होकर देखते रहे | विदेशी जोड़े कई बार एक दूसरे का आलिंगन कर भाववेश में चुम्बन कर लेते थे | कहते हैं राइजिंग प्वाइंट से देखा गया उगते सूर्य से कंचन जंगा की चोटी का स्वर्णिम परिधान प्रकृति का एक बहुत बड़ा अजूबा है | और जिसनें इस द्रश्य को नहीं देखा वह जीवन में एक बहुत बड़े सौभाग्य से वंचित हो जाता है | भगवान भाष्कर से कुछ ऊपर चढ़ते ही मैं उतरने के लिये प्रस्तुत हुआ ताकि अपने साथियों के स्वास्थ्य की जानकारी लूँ ,विद्यार्थियों का हालचाल लूँ और काठमाण्डू को जानें की तैय्यारी करूँ | मुड़ा ही था कि एक रूसी युवती जो अकेले ही थी मुझसे पूछा कि क्या मैं अंग्रेजी जानता हूँ ?मैनें बताया कि मैं अंग्रेजी लिख बोल लेता हूँ | तो वह बोली कि वह माइकल का इन्तजार कर रही है पर माइकल अभी तक नहीं आया शायद वह पमेला के साथ कहीं और चला गया है और वह मेरे पीछे -पीछे पगडण्डी पर नीचे उतरने लगी कुछ देर बाद जब मैं होटल के पास आ गया | तो मैनें उससे पूछा कि वह कहाँ जायेगी तो उसने बताया कि पास ही उसने एक कमरा बुक कराया है ,माइकल और पमेला का कमरा उसके  बगल में है ,वे दोनों अमरीका से हैं | वह अकेली ही हिन्दुस्तान का भ्रमण करने आयी है | वह एक आर्कीटेक्ट है और अभी हाल ही में एक निर्माण कम्पनी में काम पर लग गयी है | इस रूसी कम्पनी ने उसे एक महीने तक छुट्टी देकर हिन्दुस्तान देख आने की इजाजत दे दी है | मैनें कहा ठीक है अब मैं अपने कमरे में जाऊंगा ,हम लोगों को काठमाण्डू जाना है तो उसने कहा  कि वह भी काठमाण्डू जायेगी ,शायद माइकल और पमेला चले गये हों तो वह हमारे साथ चलने को ज्यादा अच्छा समझेगी | भारतीय युवक जो अपनी संस्कृति में रचे -बसे होते हैं किसी विदेशी युवती के ऐसे खुले व्यवहार से चिन्तित हो उठते हैं | मैं भी चिन्तित हो उठा सोचा एक मुसीबत गले पड़ गयी बोला मेरे साथ विद्यार्थियों का एक दल है ,सभी पुरुष हैं आप का मेरे साथ चलना ठीक नहीं रहेगा | वह बोली मेरा नाम नताशा है ,आप लोग पढ़े -लिखे होकर भी नर और नारी के बीच में साफ़ -सुथरी दोस्ती की बात क्यों नहीं सोच सकते ?फिर उसने विदायी के लिये हाँथ मिलाने को हाथ आगे बढ़ाया | मैनें दोनों हाँथ जोड़कर नमस्ते की और होटल के दरवाजे की ओर मुड़ पड़ा | दार्जलिंग से काठमाण्डू जाकर तीसरे दिन दोपहर के समय में  एक कपड़े की दुकान पर अपने एक मित्र जो नेपाल में व्यापारी हो गया था से मिलने पहुंचा | यह कपड़े की दुकान उसी मित्र की थी | जब मैं अन्दर गया  तो मैनें देखा कि माइकल ,पमेला और नताशा अन्दर स्थानीय डिजाइन वाले कुछ कपडे देख रहे थे | मुझे देखते ही नताशा ने हाँथ बढ़ाया ,मैनें हाँथ जोड़कर नमस्ते की | नताशा ने कहा ," He is mikal,She is pamela".यह दोनों दोस्त हैं और मैं भी कुछ दिनों के लिये इनकी दोस्त बन गयी हूँ | पर यह लोग कल काठमाण्डू से दिल्ली जा रहे हैं | मुझे दो दिन और ठहरना है | आप लोग कब वापस जायेंगें ,क्या मैं आप के साथ दिल्ली चल सकती हूँ | मैनें हाँ न कुछ नहीं की सिर्फ अपने होटल का कमरा नम्बर बताया और कहा कि वहां हमारे दो मित्र प्रोफ़ेसर हैं और साथ के कमरे में हमारे विद्यार्थी छात्र हैं | आप वहां थोड़ी देर बाद पहुँच जाइयेगा ,सबकी जो मिली -जुली राय होगी उससे आप को सूचित कर दिया जायेगा वैसे मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि आप हमारे से अलग अपना प्रोग्राम बनावें क्योंकि हम भारतीय लोग किसी अन्जानी विदेशी युवती को अपने साथ लेने में संकोच करते हैं ,हमारे समाज में नारी माँ ,बहन। पत्नी और अन्य अनेक नजदीकी सम्बन्धों से जानी जाती है | मित्रता का पश्चिमी भाव अभी हमारे समाज में नहीं आ पाया है | नताशा मुस्करायी शायद वह कुछ बहस करना चाहती हो पर माइकल और पमेला को देखकर उसने इतना कहा कि वह  भी विद्यार्थी रही है अभी पिछले साल तक और वह हमारे विद्यार्थियों से मिलने आयेगी |
                                                होटल पहुंचकर मैनें अपने प्रोफ़ेसर साथियों और छात्रों को पूरी बात बतायी ,तीसरे पहर नताशा आ गयी | हरियाणा के छात्र टूटी -फूटी अंग्रेजी बोल लेते हैं | नताशा की अंग्रेजी भी बहुत अच्छी नहीं थी | अपनी बातों से उसने छात्रों का मन जीत लिया | हम तीन प्रोफेसरों में दो को छात्रों ने अपने साथ मिला लिया ,मैं अकेला पड़ गया क्योंकि मैं सीनियर मोस्ट था इसलिये अन्तिम निर्णय मुझे ही लेना था ,दो मिनट सोचकर मैंने कहा बेटी नताशा हम तुम्हारे खुलेपन की निश्च्छल बातचीत से काफी प्रभावित हैं हमें लगता है कि रूस में सच्चे अर्थों में नारी समानता का भाव समाज में स्वीकार हो गया है पर बेटी मैं नहीं चाहूँगा कि तुम मेरे साथ चलने का प्रोग्राम बनाओ | मैं तुम्हें अपने कालेज का एड्रेस दे देता हूँ रूस पहुंचकर कभी कुछ जानना पूछना चाहो तो लिख भेजना | छात्रों का दल मेरा विरोधी हो गया बोला सर हर्ज क्या है हम लोग बस और गाड़ी से बिहार क्रास करते हुये दिल्ली के लिये चलेंगें | अच्छी कम्पनी हो जायेगी | रूस की कुछ बातें जान लेंगें | और नताशा हमारे देश की बातों से कुछ और अधिक परिचित हो जायेगी | एक विद्यार्थी जिसके कई चाचा -,चाचियां अमरीका में थे और वो स्वयं अमरीका जाने के लिये वीजा बनवाने के लिये लगा था मुझसे एक चुभती हुयी बात कह डाली | सर आपका ज्ञान कितना भी विशाल हो पर आपकी सोच सामन्ती है | आप कहीं भी सच्चे अर्थों में नारी को पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं दे पायेंगें | हमारी संस्कृति की यही तो विडम्बना है कि हम बाहर भीतर के कई लबादे ओढ़े हुये हैं | उस प्रखर विद्यार्थी की बातों ने मुझे भीतर से घायल कर नर -नारी सम्बन्धों पर गहरायी से सोचने के लिये बाध्य किया | आज जीवन का एक बहुत लम्बा रास्ता तय करने के बाद मुझे लगता है कि मैं कुछ बदल गया हूँ | वैश्विक चिन्तना ने मुझे संस्कृति की क्षेत्रीय सीमाओं से थोड़ा -बहुत मुक्त कर दिया है | पर उस समय मैंने अपनी सीनियारिटी का लाभ उठाते हुये नताशा को विद्यार्थियों का मित्र बनने से इन्कार कर दिया | आखिरकार हारकर छात्र मुझसे बोले सर हम सब साथ -साथ एक फोटो खिंचवा लें इसमें तो आपको कोई ऐतराज नहीं है ,मैनें उस फोटो में खड़े होने की अनिच्छा जाहिर की पर आखिर बहुमत के साथ मुझे हाँ में हाँ मिलानी ही पड़ी | नताशा के साथ खिंचा हुआ वह फोटो अब तक मेरे एल्बम में लगा है कुछ वर्षों बाद नताशा ने  पत्र भेजकर मुझे सूचित किया था कि वह रूस के एक केन्द्रीय विद्यालय में आर्किटेक्चर की प्रोफ़ेसर लग गयी है और हिन्दुस्तान के एक मित्र नारायण राव के साथ अपनी गृहस्थी बसा ली है | उसने मेरा आशीर्वाद माँगा था | एक युग बीत गया है अब मैं नहीं जानता नताशा कहाँ है पर उस एक युवती के सहज व्यवहार ने मुझमें एक गहरा उदारवादी परिवर्तन ला दिया है |

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