हँसी -हाँसी
वृन्दावन के उस रासधारी बाग़ में हमनें उस नवयुवक साधु को एकटक एक वृक्ष की डाल की ओर ताकते देखा | वह टकटकी लगाकर न जानें क्या देख देख कर मन्द मन्द मुस्करा रहा था | हमें तो वहां झुकी ,सीधी डालों के अतिरिक्त और कुछ दिखायी ही नहीं पड़ता था | जिज्ञासा वश हम घुमन्तुओं की टोली में से पण्डित पलागी राम उस उस साधु के पास गये और उसे नमस्कार किया | किसी अन्य के होने का आभाष पाकर उसकी टकटकी टूटी और उसने जय वंशीधर कहकर पण्डित पलागी राम को नमस्कार का उत्तर दिया ," साधु महराज टकटकी लगाकर क्या देख रहे थे ? "
" अहा ! कैसा सुन्दर द्रश्य था ?"
हमें भी तो कुछ बताओ ?
आप सब संसारी मनुष्य ठहरे | मैं जो बताऊँगा उसे झूठ न मान लें |
नहीं नहीं साधु महराज आपनें जो कुछ देखा है वह सच ही होगा | महात्मा जी आपका शुभ नाम क्या है ? " मुझे राधादास कहकर बुलाते हैं | "
" आप इतने ध्यान से क्या देख रहे रहे थे ? मुझे तो कुछ भी दिखायी नहीं पड़ता | " अरे भाई मैं राधा कन्हाई की जोड़ी को देख रहा था | क्या दोनों दिव्य विभूतिया उपस्थित थीं | हाँ मजे की बात यह है कि मैं राधा कन्हाई के बीच होनें वाली सारी बातचीत सुन रहा था |"
कन्हाई ने कहा ," राधिके आओ पेंड़ की डाल पर झूल लें | उन्होंने न जानें कौन सी कला दिखायी और लम्बे होते चले गये | फिर उन्होंने हाँथ ऊँचा कर एक काफी ऊँची डाल को झुकाकर नीचा कर दिया | स्वयं डाल को पकड़े रहे और फिर राधा जी से भी उसी डाल को अपने हांथों से पकड़ लेने को कहा | राधा जी ने सोचा कि शायद श्याम कन्हैया उनके साथ ही झूलेंगें इसलिये उन्होंने मजबूती से डाल पकड़ ली पर कन्हैया तो कन्हैया ,वे हैं वांके खिलवैय्या | उन्होंने हँस कर डाल को एक झटके के साथ छोड़ दिया | डाल 10 -12 फ़ीट ऊपर चली गयी और राधा जी अपना स्वर्ण खचित घाघरा और नक्काशीदार रेशमी चोली पहनें लटकी रहीं | डाल छोड़ दें तो नीचे 10 -12 फ़ीट की गहराई पर गिरें और लटकी रहें तो कब तक लटकी रहें | नटखट कन्हाई नीचे खड़े अपने कमर में बंधी बाँसुरी कभी बजाते , कभी राधा की ओर देखकर मुस्कराते ,और कभी अपने कमल नयन मटकाते | मैं यह सब देख ही रहा था कि आपनें आकर टोक दिया और पल मात्र में ही राधा और कन्हाई दोनों जानें कहाँ विलीन हो गये | आह ! अब ऐसा अदभुत स्वर्गीय द्रश्य कब देखने को मिलेगा |
पण्डित पलागी राम को आगे कुछ बोलते न बना उन्हें खेद हुआ कि उनके सम्बोधन ने एक तरुण साधु की जीवित समाधि में खलल डाल दी और वह साधु भी तो राधादास कहकर अपने को राधा जी के परम भक्तों में शामिल करवा रहा है | कुछ देर बाद पण्डित पलागी राम बोले , " भूल हो गयी राधादास जी , अच्छा अब हम चलेंगें आप फिर से उस युगल जोड़ी का स्मरण करिये शायद दर्शन हो जाँय | "राधादास जी ने कहा ," अब ऐसा सौभाग्य कहाँ आयेगा ,अब तो पेट की ज्वाला खाये जा रही है | "
पण्डित पलागी राम पेट की ज्वाला से भलीभांति परिचित थे कई बार होंडा- होड़ी में 100 लड्डू खा जाना उनके लिये मामूली बात थी | उन्होंने कहा राधादास जी मेरा नाम पण्डित पलागी राम है और मैं पेट की ज्वाला से भलीभाँति परिचित हूँ | पर कहते हैं जब राधाकृष्ण के दर्शन हो जाते हैं तो पेट की ज्वाला भक्त को नहीं जलाती | उसके हृदय में भक्ति का दीप निरन्तर जलता रहता है और पेट की ज्वाला उस दीप के आगे मन्द पड़ जाती है | अब राधा दास को इस बात का जवाब देने के लिये बड़ी खींचतान करनी पडी फिर भी उन्होंने एक माकूल उत्तर दिया ,बोले , " पलागी राम जी पेट की ज्वाला ही धीरे धीरे ऊपर चढ़कर हृदय तक पहुँचती है और वहां पर लपट से बदलकर लौ बन जाती है और जब काफी लम्बे समय तक लपट से लौ बनने का काम चलता रहता है तो वह लौ राधाकृष्ण में लग जाती है | अब राधाकृष्ण के दर्शन हो जानें के कारण ही आप से परिचय का मौक़ा मिला है और पेट की ज्वाला की लौ में परिवर्तित करने का काम भी आप के द्वारा ही होना है | "
पण्डित पलागी राम भक्ति की लम्बी चौड़ी बातें करने में सिद्धहस्त थे पर जीवन भर उनका यह सिद्धान्त रहा था कि चमड़ी चली जाय पर दमड़ी न जाय | वे हमारी टोली में इसलिये शामिल हो गए थे कि हम बैंक के कर्मचारी खानें पीने के शौकीन थे पर भक्ति की बातों से अधिक परिचित नहीं थे | पलागीराम जी इस कमी की पूर्ति कर रहे थे और खानें पीने में हमारे पक्के लीडर बन गये थे | टोली से अलग होकर वे युवा राधादास से उसकी टकटकी का रहस्य जानने गये थे पर अब रहस्य जानने की कीमत चुकाने के लिये उन्हें फिर से टोली में आने के अलावा और कोई चारा ही क्या था | पण्डित पलागीराम के साथ एक युवा साधु को अपने बीच आता देखकर सलगू चपरासी जो हमारे साथ आया था शंकालु हो उठा | दरअसल बात यह थी कि पण्डित पलागीराम खानें पीने का काफी बचा सामान अपनी पूरी मात्रा में सलगू के पास नहीं पहुंचने देते थे | सलगू ने सोचा कि यह पण्डित एक और नयी बला लेकर आ गया | खुद सेर खाता है तो यह जवान छोकरा सवा सेर खा जायेगा | मेरे पल्ले क्या पडेगा ?प्रसाद के दो इलायची दानें | उनमें क्या होता है ? कौन सी तरकीब भिड़ायी जाय ?
सलगू राम भी बाल्मीकियों की रत्नाकर खाप का मुखिया था | तन्त्र -मन्त्र के न जानें कितने तिकड़म उन्हें आते थे | उसने महाभारत के कई किस्से कहानी इतने ध्यान से सुन रखे थे कि उन्हें वह लब्ज व लब्ज अपनी जुबान से दोहरा देता था | पाण्डव पत्नी द्रोपदी के अक्षय पात्र में लगे एक दो बचे खुचे अन्न के दानों को खाकर किस प्रकार भगवान् श्री कृष्ण ने दुर्वासा ऋषि के हजारों शिष्यों का पेट फुला दिया था | इस कहानी को वह बार बार सुनाता रहता था अक्षय पात्र तो जब अभी तक किसी को मिला ही नहीं तो उसको कैसे मिलता पर इस घटना की नाटकीयता ने इसे पलागी राम को सबक सिखाने के लिये प्रेरणा का काम किया |
पलागीराम जी ने टोली में आते ही कहा ," स्वामी राधादास को पेट की ज्वाला सता रही है | राधादास जी ने राधा कन्हाई के साक्षात दर्शन किये हैं और इन्हें पेट भर भोजन कराने का पुण्य राधा कन्हाई की कृपा से सारी टोली को मिलेगा | गौतम नरूला बोला , " बोलिये राधा दास जी ,पूड़ी सब्जी खायेंगें या दही लड्डू ? राधादास जी ने मन ही मन पूड़ी सब्जी और दही लड्डू के स्वाद का रस लेना शुरू किया | लड्डुओं का मीठापन सब्जी के चिरचिरे स्वाद पर भारी पड़ा और राधादास जी ने दही लड्डू खानें की इच्छा जाहिर की | पण्डित पलागीराम का चेहरा खिल उठा | वे भीतर ही भीतर चिन्तित थे कि कहीं ऐसा न हो कि भूख का मारा राधादास पूड़ी सब्जी की हाँ कर बैठे | पण्डित पलागीराम गणेश जी के भक्त थे और गणेश जी को लड्डुओं का भोग ही चढ़ता है |
सलगू मन हे मन जल भुन उठा सोचा इस ढोंगी साधु और पाखण्डी पण्डित को ऐसा पाठ न पढ़ाया जो जिन्दगी भर याद रहे तो मैं बाल्मीकी ओझा नहीं |
गौतम नरूला ने सलगू से जानना चाहा कि किस हलवाई के यहां अच्छे लड्डू और शुद्ध दही मिल पाता है | सलगू को एक मौक़ा हाँथ आ गया उसने हलवाई ढेलाराम के नाम की सिफारिश कर दी | ढेलाराम की दुकान पर उसका चचेरा भाई गंगू गब्बर कढ़ाई माँजने का काम करता था | उसने मेरे से आज्ञां मानकर ढेलाराम की दुकान पर जानें की बात कही जो वहां से लगभग डेढ़ फर्लांग दूर थी | उसका कहना था कि वह पहले जाकर खबर दे दे ताकि हम सब जब वहां पहुंचें तो हर चीज ताजा तैय्यार मिले | सलगू ने ढेलाराम की दुकान में जाकर गंगू गब्बर से क्या कहा सुना उसको उन दोनों के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता हाँ दोनों की बात में एक शब्द बार बार निकल कर आता था 'पीक' या 'पोंक '| अब सलगू खानी तम्बाकू का शौक़ीन था और गंगू गब्बर भी चुटकी भर पत्ती ओठ के नीचे दबाकर एक निराली ताकत पा जाता था | तम्बाकू खाकर पीक छोड़ना तो सभी देखते जानते हैं पर पीक के साथ कई बार 'पोंक 'शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा था | इस रहस्य के लिये मिठाई बनाने और दही जमानें वाले उस्तादों से सीख लेनी होगी | लगभग 40 मिनट बाद घूमते घामतें तीर्थ प्रेमी सैलानियों की यह टोली ढेलाराम की दुकान पर आ पहुँचीं | पानी से ठण्डी की हुयी जमीन पर लाल कैनवस चढ़ी हुयी कुर्सियां करीने से लगी थीं सामने टीन से मढ़ी हुयी कई लम्बी मेजें पडी थीं दुकान पर कई थालों में लड्डू लगे थे और मिट्टी के बनें पक्के दही जामों में मलाईदार दही दिखायी पड़ रहा था | नरूला बैंक की नौकरी में रहकर भी और लाखों के नोट गिनकर भी दोहरा तम्बाकू की लत से बच गया था | सलगू ने थाल के एक कोनें से कुछ लड्डू पहले ही तम्बाकू डाले उबले पानी को छानकर बनवाये थे | उसने उनमें से एक लड्डू उठाकर नरूला को दिया ,बोला गौतम जी आप में कोई व्यसन नहीं है पहला प्रसाद आप लीजिये | नरूला ने लड्डू हाँथ में लेकर एक टुकड़ा मुंह में डाला | जीभ पर स्वाद उतर आया | कितना मुलायम मीठा और मजेदार है | दो तीन टुकड़ों में लड्डू समाप्त हो गया पर भोजन नली से नीचे उतरने के पहले ही नरूला को हिचकी आयी और फिर उसका सिर चक्कर खानें लगा | नरुला बोला भाई जी कुछ गड़बड़ है | मेरा सिर चकरा रहा है | सलगू बोला अरे ज्यादा भूख में ऐसा ही होता है | देखिये इस दूसरे थाल से मैं आपको लड्डू देता हूँ यह अभी अभी बनें हैं बिल्कुल ताजे हैं | दूसरे थाल से भी एक कोनें के पांच लड्डू ताम्बूल रस से सिंचित थे | नरूला ने ज्यों ही दूसरा लड्डू मुंह से होते हुये पेट तक पहुंचाया त्यों ही उसे चक्कर आ गया | वह टीन मढ़ी मेज पर सिर रखकर घुमरी चढ़ जानें की बात करने लगा | सलगू बोला पण्डित राम जी मेरा ख्याल है किसी जिन्न का साया इन लड्डुओं पर पड़ गया है | अभी आप कोई लड्डू न खायें मैं झाड़ -फूंक कर कुछ इन्तजाम करता हूँ | साले इस जिन्न को कैद कर तहखानें में न डाल दिया तो मेरा नाम सलगू रत्नाकर नहीं | उसने गंगू गब्बर की ओर इशारा किया जो डमरूनुमा एक ढोलकिया लेकर और एक चाकू लेकर तथा एक लोटे में पानी लेकर पास में आकर बैठ गया | चाकू से जमीन में लकीरें खींचकर सलगू कुछ अंट शंट बकता रहा जो कुछ उसने बका उसमें बहुत कुछ अस्पष्ट पर दो एक शब्द साफ़ समझ में आते थे | कभी गोगा पीर ,कभी मछेन्दर नाथ ,कभी गोरखनाथ और अभी काला जिन्न ,गंगू खजड़ी बजा रहा था और रह रह कर गब्बर पानी की छींटें नरूला के मुँह पर मारता जाता था | लगभग 15 मिनट के बाद नरूला के चक्कर कम होने शुरू हुये और फिर और कुछ मन्त्र सुनने के बाद उसे लगा कि वह नार्मल हो गया है | अब क्या था सलगू की छाती फूल गयी उसके मन्त्रों ने और उसकी तान्त्रिक रेखाओं ने नरूला पर कब्जा किये जिन्न को भाग जानें पर विवश कर दिया था | अब सलगू तेजी से उठा उसने दो तीन उल्टी सीधी छलांगें लगायीं | मुँह से चिल्लाया जै भैरों ,जय काली ,कालिन्दी वाली , जय मछेन्द्र ,जय बजरंग बली ,और फिर पटक कर धरती पर एक लात मारी और फिर लात के नीचे की मिट्टी अपनी मुट्ठी में उठाकर कस कर बन्द कर ली बोला साला भागा जा रहा था जिन्न के बच्चे अब मुट्ठी से निकलकर कहाँ जायेगा | ढेलाराम हलवाई यह सब देखकर किसी दैवी आपदा के भय से शंकित हो गया | सलगू ने दूकान के पीछे जाकर हाँथ की मिट्टी हवा में छोड़ दी बोला , " जा साले फिर कभी इस दुकान की तरफ मुँह मत करना | अबकी बार आया तो सलगू कभी तुझे तहखानें के बाहर नहीं छोड़ेगा |" ढेलाराम ने आदर भाव से सलगू की ओर देखा और कहा कि यार सलगू तू तो बहुत बड़ा छुपा रुस्तम है | सलगू ने कहा ," ढेलाराम जी इन लड्डुओं पर जिन्न की छाया पड़ गयी है | रात भर इन्हें ढक कर रखना | सबेरे यह खानें के योग्य हो जांयेंगे ,मैं कल सबेरे आपके पास आ जाऊंगा, फिर उसने पण्डित पलागी राम की ओर देख कर कहा कि यदि आप लोग बहुत भूखे हैं तो आगे की दुकान में सब्जी रोटी का इन्तजाम किया जा सकता है | राधादास ने कहा सलगू जी आपनें जिन्न को किस तन्त्र के बल पर मुट्ठी में बन्द कर लिया था ? सलगू बोला राधादास जी आपनें किस तन्त्र के बल पर स्वर्ण खचित लहँगा पहनें और नक्काशी कढ़ी रेशमी चोली पहनें राधा जी को पेंड़ की डाल पर झूलते देख लिया था | पण्डित पलागीराम बोले कुछ बात समझ में नहीं आयी लड्डू के थालों पर जिन्न की छाया कैसे पड गयी ? सलगू ने कहा कि इसका रहस्य तो गँगू गब्बर जानता है | गँगू गब्बर ने चूना लगाकर हंथेली पर अँगूठे से तम्बाकू मली फिर अँगूठा उठाकर हथेली से पहली हथेली पर फ़ट्ट फ़ट्ट की फिर तैय्यार तम्बाकू को सबकी ओर बढ़ाते हुये कहा थोड़ी थोड़ी होंठों के बीच दबा लीजिये | जब पीक आये तब थूक देना | मिर्जापुरी तम्बाकू है | माँ विन्ध्यवासिनी की शक्ति इसमें छिपी है | जिन्न तो क्या जिन्न का बाप भी इन लड्डुओं पर छाँह नहीं डाल सकता यह कहकर उसने दुकान के दाहिनें कोनें पर एक पीक निकाली फिर बायें कोनें पर फिर उसने थाल के बीच से ढेर सारे लड्डू एक तश्तरी में भरकर सलगू को दिये और कहा कि वह इन्हें खाकर पण्डित पलागी राम को दिखाये | सलगू एक के बाद एक आधी थाल चट कर गया | खाता रहा फिर हँस हँस कर सामनें देखता और कहता दूर खड़ा है साला वो दुकान के पीछे कितना काला और लम्बा है हिम्मत हो तो आजा | दोनों थाल तुम्हारे सामने साफ़ कर दूंगा | मैं राधादास या पलागीराम नहीं हूँ | मैं भूतनाथ और भैरव नाथ का चेला मछेन्द्री सलगू हूँ | लगभग दोनों थालों से दो तिहाई लड्डू खाकर सलगू को लगा कि उसका पेट फ़ूलनें लगा है | | उसे दुर्वासा ऋषि के शिष्यों की कहानी याद आ गयी उसने मेरी ओर देखकर प्रणाम किया और कहा समदर्शी जी कल टाइम पर नहीं आ पाऊंगा ,दो घण्टे की छुट्टी मंजूर कर दीजियेगा |
करता क्या न करता आखिर पण्डित पलागीराम और राधादास को सब्जी रोटी से ही सन्तोष करना पड़ा | ठीक भी तो है पण्डित और साधुओं को लड्डुओं के लालच से दूर रहकर साफ़ सुथरी सब्जी और रोटी खाकर ही जीनें की आदत डालनी चाहिये | आइये इस कहानी के अन्त में गणेश बन्दना कर लें " जय गणेश जय गणेश ,जय गणेश देवा | लड्डुअन के भोग लगे सन्त करें सेवा |"
वृन्दावन के उस रासधारी बाग़ में हमनें उस नवयुवक साधु को एकटक एक वृक्ष की डाल की ओर ताकते देखा | वह टकटकी लगाकर न जानें क्या देख देख कर मन्द मन्द मुस्करा रहा था | हमें तो वहां झुकी ,सीधी डालों के अतिरिक्त और कुछ दिखायी ही नहीं पड़ता था | जिज्ञासा वश हम घुमन्तुओं की टोली में से पण्डित पलागी राम उस उस साधु के पास गये और उसे नमस्कार किया | किसी अन्य के होने का आभाष पाकर उसकी टकटकी टूटी और उसने जय वंशीधर कहकर पण्डित पलागी राम को नमस्कार का उत्तर दिया ," साधु महराज टकटकी लगाकर क्या देख रहे थे ? "
" अहा ! कैसा सुन्दर द्रश्य था ?"
हमें भी तो कुछ बताओ ?
आप सब संसारी मनुष्य ठहरे | मैं जो बताऊँगा उसे झूठ न मान लें |
नहीं नहीं साधु महराज आपनें जो कुछ देखा है वह सच ही होगा | महात्मा जी आपका शुभ नाम क्या है ? " मुझे राधादास कहकर बुलाते हैं | "
" आप इतने ध्यान से क्या देख रहे रहे थे ? मुझे तो कुछ भी दिखायी नहीं पड़ता | " अरे भाई मैं राधा कन्हाई की जोड़ी को देख रहा था | क्या दोनों दिव्य विभूतिया उपस्थित थीं | हाँ मजे की बात यह है कि मैं राधा कन्हाई के बीच होनें वाली सारी बातचीत सुन रहा था |"
कन्हाई ने कहा ," राधिके आओ पेंड़ की डाल पर झूल लें | उन्होंने न जानें कौन सी कला दिखायी और लम्बे होते चले गये | फिर उन्होंने हाँथ ऊँचा कर एक काफी ऊँची डाल को झुकाकर नीचा कर दिया | स्वयं डाल को पकड़े रहे और फिर राधा जी से भी उसी डाल को अपने हांथों से पकड़ लेने को कहा | राधा जी ने सोचा कि शायद श्याम कन्हैया उनके साथ ही झूलेंगें इसलिये उन्होंने मजबूती से डाल पकड़ ली पर कन्हैया तो कन्हैया ,वे हैं वांके खिलवैय्या | उन्होंने हँस कर डाल को एक झटके के साथ छोड़ दिया | डाल 10 -12 फ़ीट ऊपर चली गयी और राधा जी अपना स्वर्ण खचित घाघरा और नक्काशीदार रेशमी चोली पहनें लटकी रहीं | डाल छोड़ दें तो नीचे 10 -12 फ़ीट की गहराई पर गिरें और लटकी रहें तो कब तक लटकी रहें | नटखट कन्हाई नीचे खड़े अपने कमर में बंधी बाँसुरी कभी बजाते , कभी राधा की ओर देखकर मुस्कराते ,और कभी अपने कमल नयन मटकाते | मैं यह सब देख ही रहा था कि आपनें आकर टोक दिया और पल मात्र में ही राधा और कन्हाई दोनों जानें कहाँ विलीन हो गये | आह ! अब ऐसा अदभुत स्वर्गीय द्रश्य कब देखने को मिलेगा |
पण्डित पलागी राम को आगे कुछ बोलते न बना उन्हें खेद हुआ कि उनके सम्बोधन ने एक तरुण साधु की जीवित समाधि में खलल डाल दी और वह साधु भी तो राधादास कहकर अपने को राधा जी के परम भक्तों में शामिल करवा रहा है | कुछ देर बाद पण्डित पलागी राम बोले , " भूल हो गयी राधादास जी , अच्छा अब हम चलेंगें आप फिर से उस युगल जोड़ी का स्मरण करिये शायद दर्शन हो जाँय | "राधादास जी ने कहा ," अब ऐसा सौभाग्य कहाँ आयेगा ,अब तो पेट की ज्वाला खाये जा रही है | "
पण्डित पलागी राम पेट की ज्वाला से भलीभांति परिचित थे कई बार होंडा- होड़ी में 100 लड्डू खा जाना उनके लिये मामूली बात थी | उन्होंने कहा राधादास जी मेरा नाम पण्डित पलागी राम है और मैं पेट की ज्वाला से भलीभाँति परिचित हूँ | पर कहते हैं जब राधाकृष्ण के दर्शन हो जाते हैं तो पेट की ज्वाला भक्त को नहीं जलाती | उसके हृदय में भक्ति का दीप निरन्तर जलता रहता है और पेट की ज्वाला उस दीप के आगे मन्द पड़ जाती है | अब राधा दास को इस बात का जवाब देने के लिये बड़ी खींचतान करनी पडी फिर भी उन्होंने एक माकूल उत्तर दिया ,बोले , " पलागी राम जी पेट की ज्वाला ही धीरे धीरे ऊपर चढ़कर हृदय तक पहुँचती है और वहां पर लपट से बदलकर लौ बन जाती है और जब काफी लम्बे समय तक लपट से लौ बनने का काम चलता रहता है तो वह लौ राधाकृष्ण में लग जाती है | अब राधाकृष्ण के दर्शन हो जानें के कारण ही आप से परिचय का मौक़ा मिला है और पेट की ज्वाला की लौ में परिवर्तित करने का काम भी आप के द्वारा ही होना है | "
पण्डित पलागी राम भक्ति की लम्बी चौड़ी बातें करने में सिद्धहस्त थे पर जीवन भर उनका यह सिद्धान्त रहा था कि चमड़ी चली जाय पर दमड़ी न जाय | वे हमारी टोली में इसलिये शामिल हो गए थे कि हम बैंक के कर्मचारी खानें पीने के शौकीन थे पर भक्ति की बातों से अधिक परिचित नहीं थे | पलागीराम जी इस कमी की पूर्ति कर रहे थे और खानें पीने में हमारे पक्के लीडर बन गये थे | टोली से अलग होकर वे युवा राधादास से उसकी टकटकी का रहस्य जानने गये थे पर अब रहस्य जानने की कीमत चुकाने के लिये उन्हें फिर से टोली में आने के अलावा और कोई चारा ही क्या था | पण्डित पलागीराम के साथ एक युवा साधु को अपने बीच आता देखकर सलगू चपरासी जो हमारे साथ आया था शंकालु हो उठा | दरअसल बात यह थी कि पण्डित पलागीराम खानें पीने का काफी बचा सामान अपनी पूरी मात्रा में सलगू के पास नहीं पहुंचने देते थे | सलगू ने सोचा कि यह पण्डित एक और नयी बला लेकर आ गया | खुद सेर खाता है तो यह जवान छोकरा सवा सेर खा जायेगा | मेरे पल्ले क्या पडेगा ?प्रसाद के दो इलायची दानें | उनमें क्या होता है ? कौन सी तरकीब भिड़ायी जाय ?
सलगू राम भी बाल्मीकियों की रत्नाकर खाप का मुखिया था | तन्त्र -मन्त्र के न जानें कितने तिकड़म उन्हें आते थे | उसने महाभारत के कई किस्से कहानी इतने ध्यान से सुन रखे थे कि उन्हें वह लब्ज व लब्ज अपनी जुबान से दोहरा देता था | पाण्डव पत्नी द्रोपदी के अक्षय पात्र में लगे एक दो बचे खुचे अन्न के दानों को खाकर किस प्रकार भगवान् श्री कृष्ण ने दुर्वासा ऋषि के हजारों शिष्यों का पेट फुला दिया था | इस कहानी को वह बार बार सुनाता रहता था अक्षय पात्र तो जब अभी तक किसी को मिला ही नहीं तो उसको कैसे मिलता पर इस घटना की नाटकीयता ने इसे पलागी राम को सबक सिखाने के लिये प्रेरणा का काम किया |
पलागीराम जी ने टोली में आते ही कहा ," स्वामी राधादास को पेट की ज्वाला सता रही है | राधादास जी ने राधा कन्हाई के साक्षात दर्शन किये हैं और इन्हें पेट भर भोजन कराने का पुण्य राधा कन्हाई की कृपा से सारी टोली को मिलेगा | गौतम नरूला बोला , " बोलिये राधा दास जी ,पूड़ी सब्जी खायेंगें या दही लड्डू ? राधादास जी ने मन ही मन पूड़ी सब्जी और दही लड्डू के स्वाद का रस लेना शुरू किया | लड्डुओं का मीठापन सब्जी के चिरचिरे स्वाद पर भारी पड़ा और राधादास जी ने दही लड्डू खानें की इच्छा जाहिर की | पण्डित पलागीराम का चेहरा खिल उठा | वे भीतर ही भीतर चिन्तित थे कि कहीं ऐसा न हो कि भूख का मारा राधादास पूड़ी सब्जी की हाँ कर बैठे | पण्डित पलागीराम गणेश जी के भक्त थे और गणेश जी को लड्डुओं का भोग ही चढ़ता है |
सलगू मन हे मन जल भुन उठा सोचा इस ढोंगी साधु और पाखण्डी पण्डित को ऐसा पाठ न पढ़ाया जो जिन्दगी भर याद रहे तो मैं बाल्मीकी ओझा नहीं |
गौतम नरूला ने सलगू से जानना चाहा कि किस हलवाई के यहां अच्छे लड्डू और शुद्ध दही मिल पाता है | सलगू को एक मौक़ा हाँथ आ गया उसने हलवाई ढेलाराम के नाम की सिफारिश कर दी | ढेलाराम की दुकान पर उसका चचेरा भाई गंगू गब्बर कढ़ाई माँजने का काम करता था | उसने मेरे से आज्ञां मानकर ढेलाराम की दुकान पर जानें की बात कही जो वहां से लगभग डेढ़ फर्लांग दूर थी | उसका कहना था कि वह पहले जाकर खबर दे दे ताकि हम सब जब वहां पहुंचें तो हर चीज ताजा तैय्यार मिले | सलगू ने ढेलाराम की दुकान में जाकर गंगू गब्बर से क्या कहा सुना उसको उन दोनों के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता हाँ दोनों की बात में एक शब्द बार बार निकल कर आता था 'पीक' या 'पोंक '| अब सलगू खानी तम्बाकू का शौक़ीन था और गंगू गब्बर भी चुटकी भर पत्ती ओठ के नीचे दबाकर एक निराली ताकत पा जाता था | तम्बाकू खाकर पीक छोड़ना तो सभी देखते जानते हैं पर पीक के साथ कई बार 'पोंक 'शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा था | इस रहस्य के लिये मिठाई बनाने और दही जमानें वाले उस्तादों से सीख लेनी होगी | लगभग 40 मिनट बाद घूमते घामतें तीर्थ प्रेमी सैलानियों की यह टोली ढेलाराम की दुकान पर आ पहुँचीं | पानी से ठण्डी की हुयी जमीन पर लाल कैनवस चढ़ी हुयी कुर्सियां करीने से लगी थीं सामने टीन से मढ़ी हुयी कई लम्बी मेजें पडी थीं दुकान पर कई थालों में लड्डू लगे थे और मिट्टी के बनें पक्के दही जामों में मलाईदार दही दिखायी पड़ रहा था | नरूला बैंक की नौकरी में रहकर भी और लाखों के नोट गिनकर भी दोहरा तम्बाकू की लत से बच गया था | सलगू ने थाल के एक कोनें से कुछ लड्डू पहले ही तम्बाकू डाले उबले पानी को छानकर बनवाये थे | उसने उनमें से एक लड्डू उठाकर नरूला को दिया ,बोला गौतम जी आप में कोई व्यसन नहीं है पहला प्रसाद आप लीजिये | नरूला ने लड्डू हाँथ में लेकर एक टुकड़ा मुंह में डाला | जीभ पर स्वाद उतर आया | कितना मुलायम मीठा और मजेदार है | दो तीन टुकड़ों में लड्डू समाप्त हो गया पर भोजन नली से नीचे उतरने के पहले ही नरूला को हिचकी आयी और फिर उसका सिर चक्कर खानें लगा | नरुला बोला भाई जी कुछ गड़बड़ है | मेरा सिर चकरा रहा है | सलगू बोला अरे ज्यादा भूख में ऐसा ही होता है | देखिये इस दूसरे थाल से मैं आपको लड्डू देता हूँ यह अभी अभी बनें हैं बिल्कुल ताजे हैं | दूसरे थाल से भी एक कोनें के पांच लड्डू ताम्बूल रस से सिंचित थे | नरूला ने ज्यों ही दूसरा लड्डू मुंह से होते हुये पेट तक पहुंचाया त्यों ही उसे चक्कर आ गया | वह टीन मढ़ी मेज पर सिर रखकर घुमरी चढ़ जानें की बात करने लगा | सलगू बोला पण्डित राम जी मेरा ख्याल है किसी जिन्न का साया इन लड्डुओं पर पड़ गया है | अभी आप कोई लड्डू न खायें मैं झाड़ -फूंक कर कुछ इन्तजाम करता हूँ | साले इस जिन्न को कैद कर तहखानें में न डाल दिया तो मेरा नाम सलगू रत्नाकर नहीं | उसने गंगू गब्बर की ओर इशारा किया जो डमरूनुमा एक ढोलकिया लेकर और एक चाकू लेकर तथा एक लोटे में पानी लेकर पास में आकर बैठ गया | चाकू से जमीन में लकीरें खींचकर सलगू कुछ अंट शंट बकता रहा जो कुछ उसने बका उसमें बहुत कुछ अस्पष्ट पर दो एक शब्द साफ़ समझ में आते थे | कभी गोगा पीर ,कभी मछेन्दर नाथ ,कभी गोरखनाथ और अभी काला जिन्न ,गंगू खजड़ी बजा रहा था और रह रह कर गब्बर पानी की छींटें नरूला के मुँह पर मारता जाता था | लगभग 15 मिनट के बाद नरूला के चक्कर कम होने शुरू हुये और फिर और कुछ मन्त्र सुनने के बाद उसे लगा कि वह नार्मल हो गया है | अब क्या था सलगू की छाती फूल गयी उसके मन्त्रों ने और उसकी तान्त्रिक रेखाओं ने नरूला पर कब्जा किये जिन्न को भाग जानें पर विवश कर दिया था | अब सलगू तेजी से उठा उसने दो तीन उल्टी सीधी छलांगें लगायीं | मुँह से चिल्लाया जै भैरों ,जय काली ,कालिन्दी वाली , जय मछेन्द्र ,जय बजरंग बली ,और फिर पटक कर धरती पर एक लात मारी और फिर लात के नीचे की मिट्टी अपनी मुट्ठी में उठाकर कस कर बन्द कर ली बोला साला भागा जा रहा था जिन्न के बच्चे अब मुट्ठी से निकलकर कहाँ जायेगा | ढेलाराम हलवाई यह सब देखकर किसी दैवी आपदा के भय से शंकित हो गया | सलगू ने दूकान के पीछे जाकर हाँथ की मिट्टी हवा में छोड़ दी बोला , " जा साले फिर कभी इस दुकान की तरफ मुँह मत करना | अबकी बार आया तो सलगू कभी तुझे तहखानें के बाहर नहीं छोड़ेगा |" ढेलाराम ने आदर भाव से सलगू की ओर देखा और कहा कि यार सलगू तू तो बहुत बड़ा छुपा रुस्तम है | सलगू ने कहा ," ढेलाराम जी इन लड्डुओं पर जिन्न की छाया पड़ गयी है | रात भर इन्हें ढक कर रखना | सबेरे यह खानें के योग्य हो जांयेंगे ,मैं कल सबेरे आपके पास आ जाऊंगा, फिर उसने पण्डित पलागी राम की ओर देख कर कहा कि यदि आप लोग बहुत भूखे हैं तो आगे की दुकान में सब्जी रोटी का इन्तजाम किया जा सकता है | राधादास ने कहा सलगू जी आपनें जिन्न को किस तन्त्र के बल पर मुट्ठी में बन्द कर लिया था ? सलगू बोला राधादास जी आपनें किस तन्त्र के बल पर स्वर्ण खचित लहँगा पहनें और नक्काशी कढ़ी रेशमी चोली पहनें राधा जी को पेंड़ की डाल पर झूलते देख लिया था | पण्डित पलागीराम बोले कुछ बात समझ में नहीं आयी लड्डू के थालों पर जिन्न की छाया कैसे पड गयी ? सलगू ने कहा कि इसका रहस्य तो गँगू गब्बर जानता है | गँगू गब्बर ने चूना लगाकर हंथेली पर अँगूठे से तम्बाकू मली फिर अँगूठा उठाकर हथेली से पहली हथेली पर फ़ट्ट फ़ट्ट की फिर तैय्यार तम्बाकू को सबकी ओर बढ़ाते हुये कहा थोड़ी थोड़ी होंठों के बीच दबा लीजिये | जब पीक आये तब थूक देना | मिर्जापुरी तम्बाकू है | माँ विन्ध्यवासिनी की शक्ति इसमें छिपी है | जिन्न तो क्या जिन्न का बाप भी इन लड्डुओं पर छाँह नहीं डाल सकता यह कहकर उसने दुकान के दाहिनें कोनें पर एक पीक निकाली फिर बायें कोनें पर फिर उसने थाल के बीच से ढेर सारे लड्डू एक तश्तरी में भरकर सलगू को दिये और कहा कि वह इन्हें खाकर पण्डित पलागी राम को दिखाये | सलगू एक के बाद एक आधी थाल चट कर गया | खाता रहा फिर हँस हँस कर सामनें देखता और कहता दूर खड़ा है साला वो दुकान के पीछे कितना काला और लम्बा है हिम्मत हो तो आजा | दोनों थाल तुम्हारे सामने साफ़ कर दूंगा | मैं राधादास या पलागीराम नहीं हूँ | मैं भूतनाथ और भैरव नाथ का चेला मछेन्द्री सलगू हूँ | लगभग दोनों थालों से दो तिहाई लड्डू खाकर सलगू को लगा कि उसका पेट फ़ूलनें लगा है | | उसे दुर्वासा ऋषि के शिष्यों की कहानी याद आ गयी उसने मेरी ओर देखकर प्रणाम किया और कहा समदर्शी जी कल टाइम पर नहीं आ पाऊंगा ,दो घण्टे की छुट्टी मंजूर कर दीजियेगा |
करता क्या न करता आखिर पण्डित पलागीराम और राधादास को सब्जी रोटी से ही सन्तोष करना पड़ा | ठीक भी तो है पण्डित और साधुओं को लड्डुओं के लालच से दूर रहकर साफ़ सुथरी सब्जी और रोटी खाकर ही जीनें की आदत डालनी चाहिये | आइये इस कहानी के अन्त में गणेश बन्दना कर लें " जय गणेश जय गणेश ,जय गणेश देवा | लड्डुअन के भोग लगे सन्त करें सेवा |"
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