गतांक से आगे -
मतगणना समाप्ति की ओर बढ़ रही थी | दयानन्द हरनन्द से 25 वोटों से आगे चल रहा था | अभी एक क्लास बी. काम. थर्ड इयर की वोट गणना बाकी थी | इस क्लास में करीब 75 छात्र थे जिसमें लगभग 70 नें अपनें मत का प्रयोग किया था | सचिव पद का उम्मीदवार मनोज कुच्छल इसी क्लास में था और दूसरा उम्मीदवार बिन्नू जैन भी इसी क्लास में था | रोहतक में अधिकाँश जैन अग्रवाल समाज से ही संम्बन्ध रखते हैं | वे अपनें सरनेम में जैन भले ही लगाते हों पर मुख्यतः वे अपनी पहचान गोत्र के आधार पर ही कायम करते हैं | कालेज के वार्षिकोत्सवों में दिये गये मंचीय अभिभाषणों से मैं अग्रवालों के इतिहास से मैं काफी कुछ परिचित हो गया था | वैसे मैनें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की सभी साहित्यिक रचनाओं का एक संकलन भी देखा था जिसमें अग्रवालों पर काफी कुछ चर्चा की गयी थी | कालेज में आनें से पहले मैं सोचता था कि शायद अग्रवालों का संम्बन्ध कहीं आगरा से जुड़ता हो पर बाद में कालेज में आकर मुझे अग्रोहा में प्राचीन स्थान के उत्खनन द्वारा कुछ ऐसी प्रामाणिक सामग्री प्राप्त हुयी जिससे वहां किसी महाभारत कालीन राजा अग्रसेन के राज्य संचालन की पुष्टि होती है | वार्षिकोत्सव पर श्रोताओं की अगली पंक्ति में बैठकर मैनें कई बार यह बात सुनी थी कि महाभारत की युद्ध समाप्ति के बाद महाराज परीक्षित तत्पश्चात जनमेजय के काल में कुछ क्षेत्रीय गोत्रों नें युद्ध की अनिवार्यता न होनें से शान्ति , सदभावना और वाणिज्य विस्तार में अपनें को लगा दिया | इन्हीं क्षेत्रीय श्रेष्ठों में महाराजा अग्रसेन नें हरियाणा राज्य के हिसार जिले में अगरोहा को केन्द्र बनाकर आस -पास के क्षेत्र में अपनें राज्य का विस्तार किया | उन्होंने खेती , वाणिज्य और उद्योगों को बढ़ावा दिया , उनके राज्य में अभाव और गरीबी का लेशमात्र भी नहीं था | सभी संम्पन्न और सुरुचिपूर्ण नागरिक थे | जो कोई भी उनके राज्य में आकर बसता उसे वहां का हर नागरिक एक रुपया और एक ईंट दान या भेंट में देता इस प्रकार आगन्तुक का घर भी बनता था और व्यापार भी चल निकलता था | शताब्दियों तक अगरोहा राज्य संम्पन्नता के शिखर पर बना रहा | यहीं से चलकर कुछ संम्पन्न वणिक बड़े -बड़े सार्थवाह लेकर मध्य और पूर्व भारत की और बढ़े उन्होनें आगरा होते हुये वाराणसी तक अपना व्यापार फैलाया | अग्रवाल लोग आज भी उ. भारत के सबसे समर्थतम लोगों में हैं | महाराजा अग्रसेन के अठ्ठारह या साढ़े अठ्ठारह पुत्र ,पौत्र या राज्याधिकारी थे | हो सकता है अठ्ठारह के आस पास की यह संख्या उन ग्रामों की संख्या हो जो उनके शासन क्षेत्र में आते थे | कालान्तर में अग्रवालों के यह 18 या साढ़े अठ्ठारह गोत्र हो गये यहां सारे गोत्रों के नाम लिखना अनावश्यक कलेवर को विस्तार देना है पर कुछ प्रमुख गोत्रों जैसे गर्ग , बन्सल , गोयल , कॅन्सल , तायल ,मंगल , कुच्छल आदि से हममें से अधिकाँश परिचित ही हैं | इन्हीं अठ्ठारह गोत्रों में से कुछ नें अहिंसा को सर्वोपरि मान कर जैन मत को स्वीकार कर लिया और अपनेँ नाम के आगे जैन लिखनें लग गये पर मूलतः वे हैं अग्रवाल बन्धु ही और उनके नाते रिश्ते अग्रवालों में ही होते हैं | हाँ कभी -कभी जैनी बड़ा या विषणीं इस पर बहस -बहसा अवश्य चलता रहता है | बी. काम. फाइनल में लगभग 30 -35 छात्र अपनें नाम के आगे जैन लगाते थे | स्वाभाविक था कि उनके वोट जैन प्रत्याशी सचिव के पक्ष में जाय | बाकी वोटों में कुछ शायद 5 या 10 छात्र ग्राम्य क्षेत्रों से आये थे वे दयानन्द या हरनन्द के कहनें के अनुसार मताधिकार का प्रयोग कर सकते थे बाकी बचे अग्रवाल छात्रों को हवा का रुख किधर मोड़ेगा यह भी सुनिश्चित ढंग से नहीं कहा जा सकता | तो अभी 70 वोटों की गिनती बाकी और 25 की बढ़त जाहिर था तूफ़ान के आसार स्पष्ट दिखलायी पड़ने लगे थे |
हुआ वही जिसकी मुझे आशंका थी | इस बढ़ती उमर में पढ़ी लिखी बहुत सी बातें दिमाग से उतरनें लगी हैं | बड़े -बड़े लेखकों ,विचारकों के नामों की लंम्बी सूचियां अब दिमाग के पुरानें कम्प्यूटर नें डिलीट करना शुरू कर दिया है | याद नहीं आता किसी विचारक ने कहा है कि यदि एक प्रतिशत भी आशंका किसी सुनिश्चित व्यवस्था में बाकी रहे तो वह आशंका ही अन्त में एक असलियत बनती है |ऐसा ही हुआ 70 में 21 वोट दयानन्द के पक्ष में पड़े और 49 वोट हरनन्द के पक्ष में | अन्तिम गणना में हरनन्द दयानन्द से तीन वोटों से जीतता दिखायी पड़ा | मैनें पुलिस इन्स्पेक्टर राम दित्ता और सब इन्स्पेक्टर करतार सिंह को केन्द्रीय कक्ष में बुलवा लिया गणना इतनी गोपनीयता के साथ हुयी थी कि जो छात्र प्रतिनिधि गणना में उपस्थित थे उन्हें बाहर निकलनें की इजाजत नहीं मिली थी | इसलिये असलियत क्या है इसका ठीक पता महाविद्यालय के लान में एकत्रित छात्रों की भीड़ को नहीं था | दयानन्द और हरिनन्द को भी अन्दर बुला लिया गया | हुआ यों कि उप प्रधान सचिव और महासचिव के बीच हार जीत का फैसला 100 से भी अधिक वोटों के अन्तर से हो रहा था | इसलिये उनके परिणामों के विषय में चिन्ता की कोई बात न थी | दुबारा किसी भी काउन्टिंग में हारनें वाला हारता और जीतनें वाला जीतता पर दयानन्द और हरिनन्द का मुकाबला इतना रोमान्चक था कि उसके लिये दुबारा काउन्टिंग होना अनिवार्य बन गया था | साथ ही इनवैलिड वोटों पर दुबारा सतर्क निगाह डालनें की आवश्यकता थी | मैनें दयानन्द और हरनन्द से कहा कि पहली काउन्टिंग छात्र प्रतिनिधियों की उपस्थित में एक मत से कर ली गयी है पर क्या आप दोनों दुबारा काउन्टिंग के लिये आग्रहशील हैं | दयानन्द ने कहा कि वह इनवैलिड वोट देखना चाहता है | हरनन्द नें कहा कि उसके साथी छात्र प्रतिनिधि काउन्टिंग के समय इन वोटों को देखकर अपनी सहमति दे चुके हैं अब दुबारा देखनें की क्या जरूरत है | दयानन्द नें कहा कि यह मेरा हक़ है और वह तनकर खड़ा हो गया | छै फिट पांच इंच का गबरू जवान | मैनें इन्स्पेक्टर राम दित्ता से कहा कि मैं प्रिन्सिपल के कमरे में जाकर उनसे कुछ बात करना चाहता हूँ | तब तक यह उनकी जिम्मेवारी है कि किसी को भी यहां से बाहर न होनें दें | मेरे कुछ प्रोफ़ेसर साथी भी गणना कक्ष में बैठे ही थे | बजाज साहब के पास आकर मैनें उनसे कहा कि पुनर्गणना में कोई न कोई झगड़ा खड़ा ही हो जायेगा | मैनें उनसे अनुरोध किया कि वे संस्था के प्रधान बालू राम एडवोकेट को फोन करें ,बाबू बालू राम का बेटा अभी कुछ दिन पहले हाईकोर्ट का जज मनोनीत हुआ था | मैनें कहा कि वे बालू राम से कहें कि स्वयं सिटी मजिस्ट्रेट या उनका कोई प्रतिनिधि तहसीलदार कालेज में आ जाय तो उसके सामनें दुबारा काउन्टिंग करवा दी जायेगी | एक सरकारी आला अफसर की मौजूदगी में की जानें वाली पुनर मतगणना पूरी तरह विश्वसनीय हो जायेगी | तब उस मानना ही होगा | ऐसा न करने पर छात्र के दोनों गुटों के बीच खून -खराबा हो सकता है |
सौभाग्यवश बाबू बालू राम घर पर ही थे | पास ही उनकी कोठी थी | अपनी गाड़ी में ड्राइवर को साथ लेकर वह शीघ्र ही कालेज आ गये | अब तक शहर में अफवाहें फैलनें लगी थीं कहा जा रहा था कि दयानन्द को जानबूझ कर हराया गया है | क्योंकि प्रबन्धकारिणीं के प्रधान नें हरनन्द का पक्ष लेकर एक प्रोफ़ेसर का दबाव डालकर तीन -चार लड़कों को मतदान नहीं करनें दिया आदि आदि | बाबू बालू राम नें स्थिति की गंम्भीरता को स्पष्ट शब्दों में डिप्टी कमिश्नर के सामनें रखा | चूंकि उनका बेटा अभी हाल ही में हाई कोर्ट जज मनोनीत हुआ था इसलिये उनकी बात का प्रभावी असर हुआ | वैसे भी वे एक अत्यन्त प्रतिष्ठित और ईमानदार अध्यक्ष थे | डिप्टी कमिश्नर साहब नें S.D.M. जयवीर आर्या को महाविद्यालय में तुरन्त पहुंचकर स्थिति को कन्ट्रोल करनें को कहा | लगभग 40 मिनट बाद दुबारा मतगणना प्रारंम्भ हुयी |
शाम आठ बजे के बाद अन्तिम परिणाम घोषित किये गये | मैं इसे प्रभु कृपा ही कहूंगा कि दयानन्द नें मेरे समझानें पर और यह कहनें पर कि उसनें जो लड़ाई लड़ी है वह एक शेर की लड़ाई है | अपनी हार स्वीकार कर ले पर जाते जाते वह बजाज साहब और अन्य कई प्राध्यापकों के सामनें यह कहकर बाहर निकला कि अब प्रिन्सिपल बन्सल साहब इस कालेज को चला नहीं पायेगें | उन्होंने अन्दरखानें हरनन्द की मदद की है | अच्छा होगा वे लंम्बी छुट्टी ले लें और मैं इस बीच फ़ाइनल पास कर और कहीं चला जाऊँगा | फिर उसनें मुझे नमस्कार कर कहा , " गुरु जी बदजवानी माफ़ करियेगा यदि प्रबन्धकारिणीं आप के हांथों में इस संस्था का भार सौंप दे तभी इस संस्था का कल्याण होगा नहीं तो शहरी और ग्रामीण परिवेश के बीच हर हप्ते ,पखवारे खून -खराबा होता रहेगा | दयानन्द की इन बातों नें मुझे संकोच में डाल दिया सबके सामनें मेरी तारीफ़ मुझे मेरी ही आँखों में मेरे को छोटा करनें लगी | छिः मैं क्या हूँ सतत परिवर्तित काल का एक खिलौना मात्र | एक अध्यापक को जो करना चाहिये उसके अतिरिक्त मैनें क्या किया | न्याय की देवी के आँखों पर पट्टी बंधी रहती है और उसके हाँथ में तराजू के दो पलड़ों का सन्तुलन होता है | कौन पलड़ा भारी है और कौन कम भारी है इससे उसे सदा अपरिचित रहना होता है | सच्चा अध्यापक भी तो निष्पच्छता का सर्वोत्तम मापदण्ड है | द्रोणाचार्य में यह निष्पच्छता नहीं थी नहीं तो शायद महाभारत न होता | परशुराम में यह निष्पच्छता नहीं थी नहीं तो महारथी कर्ण को शाप न मिलता हाँ शायद अरस्तू चाणक्य अपनें शिष्यों से भेदभाव न करते रहे हों | अदभुत व्यक्तित्व के धनी ही सिकन्दर और चन्द्रगुप्त बन सकते हैं | और युग- पुरुष गान्धी जी के विषय में क्या कहा जाय उन्होंने भारतीय राजनीति के कीचड़ में कितनें शुभ्र कमल पैदा कर दिये | अरे छोड़ो इन दार्शनिक बातों को अब मेरे मन में एक नयी चिन्ता व्याप्त कर गयी | कहीं ऐसा न हो कि बंसल साहब सचमुच लंम्बी छुट्टी पर चले जांय और बजाज साहब चार्ज लेनें से इन्कार कर दें | कालेज प्रशासनिक व्यवस्था ऐसी हालत में चरमरा उठेगी | हे भगवान् ! यह मैं क्या सोचनें लगा ? संसार में सभी कुछ तो अस्थिर है स्थिर सत्य , अकाट्य सत्य , शास्वत सत्य , अपराजित सत्य , सनातन सत्य , आदि और अन्त का सत्य तो केवल प्राणों का नक्षत्र गमन ही है | जब तक जीना है संघर्ष से मुक्ति कहाँ ? खुलनें दो जीवन नाटक का नया द्रश्य , कौनसी भूमिका मुझे निभानी पड़ती है | पुत्र और पुत्री तरुणायी की देहरी लांघ चुके हैं | उनके विषय में भी तो कुछ सोचना होगा | हठीले मन , अपनें करियर की मत सोच बच्चों के भविष्य से जीनें की सामग्री जुटा परिवार के लिये किया गया उत्कर्ष भी एक प्रकार की पूजा ही है | स्वयं का अहंकार विसर्जित होकर परिवार के माध्यम से सामूहिक समाज कल्याण के लिये प्रवृत्त होता है | न जानें क्यों मुझे लगता है कि मेरी मानसिक बनावट में कहीं कुछ ऐसे जीन्स हैं जो मुझे सीधी राह नहीं चलने देते | तो क्या मैं नियति के हाँथ का एक खिलौना मात्र हूँ ? चलो देखते हैं |
(क्रमशः )
मतगणना समाप्ति की ओर बढ़ रही थी | दयानन्द हरनन्द से 25 वोटों से आगे चल रहा था | अभी एक क्लास बी. काम. थर्ड इयर की वोट गणना बाकी थी | इस क्लास में करीब 75 छात्र थे जिसमें लगभग 70 नें अपनें मत का प्रयोग किया था | सचिव पद का उम्मीदवार मनोज कुच्छल इसी क्लास में था और दूसरा उम्मीदवार बिन्नू जैन भी इसी क्लास में था | रोहतक में अधिकाँश जैन अग्रवाल समाज से ही संम्बन्ध रखते हैं | वे अपनें सरनेम में जैन भले ही लगाते हों पर मुख्यतः वे अपनी पहचान गोत्र के आधार पर ही कायम करते हैं | कालेज के वार्षिकोत्सवों में दिये गये मंचीय अभिभाषणों से मैं अग्रवालों के इतिहास से मैं काफी कुछ परिचित हो गया था | वैसे मैनें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की सभी साहित्यिक रचनाओं का एक संकलन भी देखा था जिसमें अग्रवालों पर काफी कुछ चर्चा की गयी थी | कालेज में आनें से पहले मैं सोचता था कि शायद अग्रवालों का संम्बन्ध कहीं आगरा से जुड़ता हो पर बाद में कालेज में आकर मुझे अग्रोहा में प्राचीन स्थान के उत्खनन द्वारा कुछ ऐसी प्रामाणिक सामग्री प्राप्त हुयी जिससे वहां किसी महाभारत कालीन राजा अग्रसेन के राज्य संचालन की पुष्टि होती है | वार्षिकोत्सव पर श्रोताओं की अगली पंक्ति में बैठकर मैनें कई बार यह बात सुनी थी कि महाभारत की युद्ध समाप्ति के बाद महाराज परीक्षित तत्पश्चात जनमेजय के काल में कुछ क्षेत्रीय गोत्रों नें युद्ध की अनिवार्यता न होनें से शान्ति , सदभावना और वाणिज्य विस्तार में अपनें को लगा दिया | इन्हीं क्षेत्रीय श्रेष्ठों में महाराजा अग्रसेन नें हरियाणा राज्य के हिसार जिले में अगरोहा को केन्द्र बनाकर आस -पास के क्षेत्र में अपनें राज्य का विस्तार किया | उन्होंने खेती , वाणिज्य और उद्योगों को बढ़ावा दिया , उनके राज्य में अभाव और गरीबी का लेशमात्र भी नहीं था | सभी संम्पन्न और सुरुचिपूर्ण नागरिक थे | जो कोई भी उनके राज्य में आकर बसता उसे वहां का हर नागरिक एक रुपया और एक ईंट दान या भेंट में देता इस प्रकार आगन्तुक का घर भी बनता था और व्यापार भी चल निकलता था | शताब्दियों तक अगरोहा राज्य संम्पन्नता के शिखर पर बना रहा | यहीं से चलकर कुछ संम्पन्न वणिक बड़े -बड़े सार्थवाह लेकर मध्य और पूर्व भारत की और बढ़े उन्होनें आगरा होते हुये वाराणसी तक अपना व्यापार फैलाया | अग्रवाल लोग आज भी उ. भारत के सबसे समर्थतम लोगों में हैं | महाराजा अग्रसेन के अठ्ठारह या साढ़े अठ्ठारह पुत्र ,पौत्र या राज्याधिकारी थे | हो सकता है अठ्ठारह के आस पास की यह संख्या उन ग्रामों की संख्या हो जो उनके शासन क्षेत्र में आते थे | कालान्तर में अग्रवालों के यह 18 या साढ़े अठ्ठारह गोत्र हो गये यहां सारे गोत्रों के नाम लिखना अनावश्यक कलेवर को विस्तार देना है पर कुछ प्रमुख गोत्रों जैसे गर्ग , बन्सल , गोयल , कॅन्सल , तायल ,मंगल , कुच्छल आदि से हममें से अधिकाँश परिचित ही हैं | इन्हीं अठ्ठारह गोत्रों में से कुछ नें अहिंसा को सर्वोपरि मान कर जैन मत को स्वीकार कर लिया और अपनेँ नाम के आगे जैन लिखनें लग गये पर मूलतः वे हैं अग्रवाल बन्धु ही और उनके नाते रिश्ते अग्रवालों में ही होते हैं | हाँ कभी -कभी जैनी बड़ा या विषणीं इस पर बहस -बहसा अवश्य चलता रहता है | बी. काम. फाइनल में लगभग 30 -35 छात्र अपनें नाम के आगे जैन लगाते थे | स्वाभाविक था कि उनके वोट जैन प्रत्याशी सचिव के पक्ष में जाय | बाकी वोटों में कुछ शायद 5 या 10 छात्र ग्राम्य क्षेत्रों से आये थे वे दयानन्द या हरनन्द के कहनें के अनुसार मताधिकार का प्रयोग कर सकते थे बाकी बचे अग्रवाल छात्रों को हवा का रुख किधर मोड़ेगा यह भी सुनिश्चित ढंग से नहीं कहा जा सकता | तो अभी 70 वोटों की गिनती बाकी और 25 की बढ़त जाहिर था तूफ़ान के आसार स्पष्ट दिखलायी पड़ने लगे थे |
हुआ वही जिसकी मुझे आशंका थी | इस बढ़ती उमर में पढ़ी लिखी बहुत सी बातें दिमाग से उतरनें लगी हैं | बड़े -बड़े लेखकों ,विचारकों के नामों की लंम्बी सूचियां अब दिमाग के पुरानें कम्प्यूटर नें डिलीट करना शुरू कर दिया है | याद नहीं आता किसी विचारक ने कहा है कि यदि एक प्रतिशत भी आशंका किसी सुनिश्चित व्यवस्था में बाकी रहे तो वह आशंका ही अन्त में एक असलियत बनती है |ऐसा ही हुआ 70 में 21 वोट दयानन्द के पक्ष में पड़े और 49 वोट हरनन्द के पक्ष में | अन्तिम गणना में हरनन्द दयानन्द से तीन वोटों से जीतता दिखायी पड़ा | मैनें पुलिस इन्स्पेक्टर राम दित्ता और सब इन्स्पेक्टर करतार सिंह को केन्द्रीय कक्ष में बुलवा लिया गणना इतनी गोपनीयता के साथ हुयी थी कि जो छात्र प्रतिनिधि गणना में उपस्थित थे उन्हें बाहर निकलनें की इजाजत नहीं मिली थी | इसलिये असलियत क्या है इसका ठीक पता महाविद्यालय के लान में एकत्रित छात्रों की भीड़ को नहीं था | दयानन्द और हरिनन्द को भी अन्दर बुला लिया गया | हुआ यों कि उप प्रधान सचिव और महासचिव के बीच हार जीत का फैसला 100 से भी अधिक वोटों के अन्तर से हो रहा था | इसलिये उनके परिणामों के विषय में चिन्ता की कोई बात न थी | दुबारा किसी भी काउन्टिंग में हारनें वाला हारता और जीतनें वाला जीतता पर दयानन्द और हरिनन्द का मुकाबला इतना रोमान्चक था कि उसके लिये दुबारा काउन्टिंग होना अनिवार्य बन गया था | साथ ही इनवैलिड वोटों पर दुबारा सतर्क निगाह डालनें की आवश्यकता थी | मैनें दयानन्द और हरनन्द से कहा कि पहली काउन्टिंग छात्र प्रतिनिधियों की उपस्थित में एक मत से कर ली गयी है पर क्या आप दोनों दुबारा काउन्टिंग के लिये आग्रहशील हैं | दयानन्द ने कहा कि वह इनवैलिड वोट देखना चाहता है | हरनन्द नें कहा कि उसके साथी छात्र प्रतिनिधि काउन्टिंग के समय इन वोटों को देखकर अपनी सहमति दे चुके हैं अब दुबारा देखनें की क्या जरूरत है | दयानन्द नें कहा कि यह मेरा हक़ है और वह तनकर खड़ा हो गया | छै फिट पांच इंच का गबरू जवान | मैनें इन्स्पेक्टर राम दित्ता से कहा कि मैं प्रिन्सिपल के कमरे में जाकर उनसे कुछ बात करना चाहता हूँ | तब तक यह उनकी जिम्मेवारी है कि किसी को भी यहां से बाहर न होनें दें | मेरे कुछ प्रोफ़ेसर साथी भी गणना कक्ष में बैठे ही थे | बजाज साहब के पास आकर मैनें उनसे कहा कि पुनर्गणना में कोई न कोई झगड़ा खड़ा ही हो जायेगा | मैनें उनसे अनुरोध किया कि वे संस्था के प्रधान बालू राम एडवोकेट को फोन करें ,बाबू बालू राम का बेटा अभी कुछ दिन पहले हाईकोर्ट का जज मनोनीत हुआ था | मैनें कहा कि वे बालू राम से कहें कि स्वयं सिटी मजिस्ट्रेट या उनका कोई प्रतिनिधि तहसीलदार कालेज में आ जाय तो उसके सामनें दुबारा काउन्टिंग करवा दी जायेगी | एक सरकारी आला अफसर की मौजूदगी में की जानें वाली पुनर मतगणना पूरी तरह विश्वसनीय हो जायेगी | तब उस मानना ही होगा | ऐसा न करने पर छात्र के दोनों गुटों के बीच खून -खराबा हो सकता है |
सौभाग्यवश बाबू बालू राम घर पर ही थे | पास ही उनकी कोठी थी | अपनी गाड़ी में ड्राइवर को साथ लेकर वह शीघ्र ही कालेज आ गये | अब तक शहर में अफवाहें फैलनें लगी थीं कहा जा रहा था कि दयानन्द को जानबूझ कर हराया गया है | क्योंकि प्रबन्धकारिणीं के प्रधान नें हरनन्द का पक्ष लेकर एक प्रोफ़ेसर का दबाव डालकर तीन -चार लड़कों को मतदान नहीं करनें दिया आदि आदि | बाबू बालू राम नें स्थिति की गंम्भीरता को स्पष्ट शब्दों में डिप्टी कमिश्नर के सामनें रखा | चूंकि उनका बेटा अभी हाल ही में हाई कोर्ट जज मनोनीत हुआ था इसलिये उनकी बात का प्रभावी असर हुआ | वैसे भी वे एक अत्यन्त प्रतिष्ठित और ईमानदार अध्यक्ष थे | डिप्टी कमिश्नर साहब नें S.D.M. जयवीर आर्या को महाविद्यालय में तुरन्त पहुंचकर स्थिति को कन्ट्रोल करनें को कहा | लगभग 40 मिनट बाद दुबारा मतगणना प्रारंम्भ हुयी |
शाम आठ बजे के बाद अन्तिम परिणाम घोषित किये गये | मैं इसे प्रभु कृपा ही कहूंगा कि दयानन्द नें मेरे समझानें पर और यह कहनें पर कि उसनें जो लड़ाई लड़ी है वह एक शेर की लड़ाई है | अपनी हार स्वीकार कर ले पर जाते जाते वह बजाज साहब और अन्य कई प्राध्यापकों के सामनें यह कहकर बाहर निकला कि अब प्रिन्सिपल बन्सल साहब इस कालेज को चला नहीं पायेगें | उन्होंने अन्दरखानें हरनन्द की मदद की है | अच्छा होगा वे लंम्बी छुट्टी ले लें और मैं इस बीच फ़ाइनल पास कर और कहीं चला जाऊँगा | फिर उसनें मुझे नमस्कार कर कहा , " गुरु जी बदजवानी माफ़ करियेगा यदि प्रबन्धकारिणीं आप के हांथों में इस संस्था का भार सौंप दे तभी इस संस्था का कल्याण होगा नहीं तो शहरी और ग्रामीण परिवेश के बीच हर हप्ते ,पखवारे खून -खराबा होता रहेगा | दयानन्द की इन बातों नें मुझे संकोच में डाल दिया सबके सामनें मेरी तारीफ़ मुझे मेरी ही आँखों में मेरे को छोटा करनें लगी | छिः मैं क्या हूँ सतत परिवर्तित काल का एक खिलौना मात्र | एक अध्यापक को जो करना चाहिये उसके अतिरिक्त मैनें क्या किया | न्याय की देवी के आँखों पर पट्टी बंधी रहती है और उसके हाँथ में तराजू के दो पलड़ों का सन्तुलन होता है | कौन पलड़ा भारी है और कौन कम भारी है इससे उसे सदा अपरिचित रहना होता है | सच्चा अध्यापक भी तो निष्पच्छता का सर्वोत्तम मापदण्ड है | द्रोणाचार्य में यह निष्पच्छता नहीं थी नहीं तो शायद महाभारत न होता | परशुराम में यह निष्पच्छता नहीं थी नहीं तो महारथी कर्ण को शाप न मिलता हाँ शायद अरस्तू चाणक्य अपनें शिष्यों से भेदभाव न करते रहे हों | अदभुत व्यक्तित्व के धनी ही सिकन्दर और चन्द्रगुप्त बन सकते हैं | और युग- पुरुष गान्धी जी के विषय में क्या कहा जाय उन्होंने भारतीय राजनीति के कीचड़ में कितनें शुभ्र कमल पैदा कर दिये | अरे छोड़ो इन दार्शनिक बातों को अब मेरे मन में एक नयी चिन्ता व्याप्त कर गयी | कहीं ऐसा न हो कि बंसल साहब सचमुच लंम्बी छुट्टी पर चले जांय और बजाज साहब चार्ज लेनें से इन्कार कर दें | कालेज प्रशासनिक व्यवस्था ऐसी हालत में चरमरा उठेगी | हे भगवान् ! यह मैं क्या सोचनें लगा ? संसार में सभी कुछ तो अस्थिर है स्थिर सत्य , अकाट्य सत्य , शास्वत सत्य , अपराजित सत्य , सनातन सत्य , आदि और अन्त का सत्य तो केवल प्राणों का नक्षत्र गमन ही है | जब तक जीना है संघर्ष से मुक्ति कहाँ ? खुलनें दो जीवन नाटक का नया द्रश्य , कौनसी भूमिका मुझे निभानी पड़ती है | पुत्र और पुत्री तरुणायी की देहरी लांघ चुके हैं | उनके विषय में भी तो कुछ सोचना होगा | हठीले मन , अपनें करियर की मत सोच बच्चों के भविष्य से जीनें की सामग्री जुटा परिवार के लिये किया गया उत्कर्ष भी एक प्रकार की पूजा ही है | स्वयं का अहंकार विसर्जित होकर परिवार के माध्यम से सामूहिक समाज कल्याण के लिये प्रवृत्त होता है | न जानें क्यों मुझे लगता है कि मेरी मानसिक बनावट में कहीं कुछ ऐसे जीन्स हैं जो मुझे सीधी राह नहीं चलने देते | तो क्या मैं नियति के हाँथ का एक खिलौना मात्र हूँ ? चलो देखते हैं |
(क्रमशः )
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