Thursday 12 July 2018

स्वेद जन्मा 

कर बोली देना बन्द अगति के व्यापारी
यह गीत बिकाऊ नहीं स्वेद का जाया है
 यह गीत समर्पित है खेतों खलिहानों को
यह गीत धान की पौद रोपने आया है
यह गीत गरम लोहे पर सरगम बन गिरता
यह गीत क्रान्ति -सिंहासन का द्रढ़ पाया है
यह गीत तुम्हारी माया का मुहताज नहीं
यह गीत श्रमिक के ओठों  पर लहरायेगा
यह गीत पहाड़ों की छाती को चीर फाड़
मरुथल में जल की प्रबल लहर  ले आयेगा
यह कौन्ध समेटे है प्रताप के भाले की
यह दस्तावेज न बिकनें वाली वाणीं का
है आगत की अँगड़ाई का यह सूर्य नाद
प्रज्वलित भाल यह रक्तिम क्रान्ति -भवानी का
यह गीत तुला पर तुलनें को बेताब नहीं
यह खनक न बननें आया  है मधुप्यालों की
इसमें झाँसी की आन ,ताँत्या का तेवर
हुँकार यहां  फाँसी पर झूले लालों की
यह गीत स्वर्ण की भष्म न खाकर पलता  है
यह गणिका का स्वर नहीं , काल की  छाया है
कर बोली देना बन्द -------------------------
तुमनें खरीद डाले हैं कितनें ही बजार
कितनें उस्तादों का कल  तुमनें मोल लिया
मदिरा की छीटें डाल स्वर्ण की झझरी से
कितनी कलियों का घूँघट तुमनें खोल लिया
कितनें वाणीं के पुत्र तिजोरी में धांधे
कितनी वीणां बिक गयीं खनक दूकानों  में
कितनें कत्थक कोठों में बँधकर सिसक रहे
चांदी के घुँघरू बाँध दिये हैं गानों में
तुमनें फसलों को पुखराजी रँग दे डाला
तुमनें ऊषा को स्वर्ण पिटारी पहनायी
रजनी को हीरक -हार भेंट दे आये तुम
कुदरत सब की सब सिमट तिजोरी में आयी
तुम समझ रहे सारी कुदरत बाजारू है
हर  स्वर महफ़िल में नापा तोला  जाता है
हर चन्द्र -बदन सोनें के घूँघट से ढकता
हर घूंघट मोती देकर खोला जाता है
हाड़ी रानी की भेंट मगर क्या भूल गये
जीजाबाई का धर्म कभी क्या जाना है
आजाद ,भगत,विस्मिल  को नारी ने जन्मा
लपटों से झुलसा पड़ा राजपूताना है
कुछ नर कुबेर का घेर तोड़ने आते हैं
यह गीत उन्हीं नर सिंहों की हम साया है
कर बोली देना बन्द ------------------------
यह गीत पुत्र बन वृद्धा के घर सोयेगा
यह गीत पिता बन कन्यादान करायेगा
यह गीत दिवाली को दुखिया का घर जगमग
करने को नभ से नखत -दीप ले आयेगा
इसका है मूल्य हँसी शिशु की भोली -भाली
इसका है मूल्य श्रमित शिक्षक का खिल जाना
यह बिना मूल्य ही द्वार दीन के जाता है
पर दुःख में इसका मूल्य व्यथा से हिल जाना
यह बिन पैसे का है गुलाम उन लालों का
जो लिये हंथेली पर सिर अपना घूम रहे
जिनको सुकराती रोग लग गया है अविकल
विष -कंठ बनें जो गरल सुधा पी झूम रहे
यह जलती जेठ -दुपहरी में तरु तल बैठे
चरवाहों के श्रम - थकित गात सहलायेगा
यह दही -विलोती जसुदा के होठों पर पल
हलधर के हल में नयी शक्ति भर लायेगा
चण्डी के मन में अमर प्यास की चाह जगा
यह 'छिओ  राम 'कह जग का कलुष मिटायेगा
रैदास भगत के चरण चूम  कर प्रात ,रात
यह बाल्मीक को पालागन कर आयेगा
इसको खरीद सकते हैं सर -फरोश फक्कड़
यह नयी सृष्टि के बीज सजाकर लाया है
कर बोली देना बन्द ----------------------------

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