कहाँ से लाऊँ ?
सब धर्म -कौम घुल मिल हों हिन्दुस्तानी
वह प्यार कहाँ से लाऊँ
हो जहां न पंडा -मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ
मेरी बाणीं का बल सीमित है साथी
प्रतिरोधों की दीवाल बहुत भारी है
दो चार बूँद मधु गिरनें से क्या होता
सारा समुद्र जब नफ़रत से खारी है
बँट गया देश छोटे छोटे टुकड़ों में
हर ओर फूट की बेल फैलती जाती
सिंचित हो हिंसा की छीटों से निशदिन
हर घर आँगन में और छैलती जाती
जो सुखा सके विष -बेल देश के घर घर से
वह क्षार कहाँ से लाऊँ
हो जहां न पंडा- मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ |
हर ओर अँगारे दहक़ रहे हैं लाल लाल
जल रही मनुजता की घर -घर में होली
है लाज बिक रही खुले आम चौराहों पर
लग रही सड़क पर माँ बहनों की बोली
भाई भाई को काट रहा पागलपन में
सीमा के अन्दर खड़ा शत्रु मुस्काता
मजहब के नारे लगा लगा जोरों से
अपनों से अपनों को ही है कटवाता
बह जाय देश का यह गलीज क्षणभर में
वह ज्वार कहाँ से लाऊँ ?
हो जहां न पंडा - मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ ?
इस धरती से पल रही सभी की काया
है इस धरती की हवा इसी का पानी
इस धरती की सीमायेँ छू अंगों से
खिल उठी धूप सी आशा भरी जवानी
इस धरती की ही गोद सभी हम खेले
इस धरती की ही गोद हमें है सोना
हर धर्म -कौम हर जाति -नस्ल है पीछे
पहले माटी में प्यार -बीज है बोना
माँ की गोदी के सभी फूल जिसमें गुम्फित
वह हार कहाँ से लाऊँ ?
हो जहां न पंडा -मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ ?
कह दो मजहब से अभी रुके कुछ देर और
पहले माता का प्यार चुकानें जाना है
कह दो मन्दिर से और संवर ले तनिक देर
सीमाओं से सन्देश अभी तो आना है
जिस मिट्टी पानी से है तेरी बनी देह
उस माटी को झुक कर बन्दे कर ले सलाम
है देश -प्रेम सारे धर्मों से बड़ा धर्म
माँ के चरणों में अर्पित कर अपने प्रणाम
हो रस्म -रूढ़ि से जो बिल्कुल आजाद
कहो अभिसार कहाँ से लाऊं !
हर धर्म -कौम घुलमिल हों हिन्दुस्तानी
रस -सार कहाँ से लाऊँ ?
वह प्यार कहाँ से लाऊँ
हो जहां न पंडा -मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ ?
सब धर्म -कौम घुल मिल हों हिन्दुस्तानी
वह प्यार कहाँ से लाऊँ
हो जहां न पंडा -मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ
मेरी बाणीं का बल सीमित है साथी
प्रतिरोधों की दीवाल बहुत भारी है
दो चार बूँद मधु गिरनें से क्या होता
सारा समुद्र जब नफ़रत से खारी है
बँट गया देश छोटे छोटे टुकड़ों में
हर ओर फूट की बेल फैलती जाती
सिंचित हो हिंसा की छीटों से निशदिन
हर घर आँगन में और छैलती जाती
जो सुखा सके विष -बेल देश के घर घर से
वह क्षार कहाँ से लाऊँ
हो जहां न पंडा- मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ |
हर ओर अँगारे दहक़ रहे हैं लाल लाल
जल रही मनुजता की घर -घर में होली
है लाज बिक रही खुले आम चौराहों पर
लग रही सड़क पर माँ बहनों की बोली
भाई भाई को काट रहा पागलपन में
सीमा के अन्दर खड़ा शत्रु मुस्काता
मजहब के नारे लगा लगा जोरों से
अपनों से अपनों को ही है कटवाता
बह जाय देश का यह गलीज क्षणभर में
वह ज्वार कहाँ से लाऊँ ?
हो जहां न पंडा - मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ ?
इस धरती से पल रही सभी की काया
है इस धरती की हवा इसी का पानी
इस धरती की सीमायेँ छू अंगों से
खिल उठी धूप सी आशा भरी जवानी
इस धरती की ही गोद सभी हम खेले
इस धरती की ही गोद हमें है सोना
हर धर्म -कौम हर जाति -नस्ल है पीछे
पहले माटी में प्यार -बीज है बोना
माँ की गोदी के सभी फूल जिसमें गुम्फित
वह हार कहाँ से लाऊँ ?
हो जहां न पंडा -मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ ?
कह दो मजहब से अभी रुके कुछ देर और
पहले माता का प्यार चुकानें जाना है
कह दो मन्दिर से और संवर ले तनिक देर
सीमाओं से सन्देश अभी तो आना है
जिस मिट्टी पानी से है तेरी बनी देह
उस माटी को झुक कर बन्दे कर ले सलाम
है देश -प्रेम सारे धर्मों से बड़ा धर्म
माँ के चरणों में अर्पित कर अपने प्रणाम
हो रस्म -रूढ़ि से जो बिल्कुल आजाद
कहो अभिसार कहाँ से लाऊं !
हर धर्म -कौम घुलमिल हों हिन्दुस्तानी
रस -सार कहाँ से लाऊँ ?
वह प्यार कहाँ से लाऊँ
हो जहां न पंडा -मुल्ला की नादानी
संसार कहाँ से लाऊँ ?
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