Wednesday 11 July 2018

वैश्या  युग -सभ्यता 

लो उठाता हाँथ हूँ मैं
आज देने को समर्थन पौद को
जो विप्लवी है
तुम चढ़ाओगें मुझे फाँसी
चढ़ा दो
तुम सुई की नोक से तन छेद मेरा
बर्फ - सिल्ली पर लिटाकर
नाजियों पर नाज कर लो
या अंधेरे भुँइघरे में
बंद कर दो मुझे मेरी चिन्तना को
राज कर लो , और कुछ दिन ,
फिर सुलगती पेट की यह आग
आँखों से झरेगी
वैश्या युग - सभ्यता तब
ताप से जलकर मरेगी |
मुँह न जनता को दिखा पाते
बिना बन्दूक का परकोट डाले
फिर बिकी बन्दूक भी
कल जान जायेगी असलियत
जब स्वयं औलाद उसकी
काम माँगेगी
न सारा राज्य केवल ग्राम माँगेगी
मगर
सड़ती व्यवस्था का दुयोधन
दर्प की ललकार देगा
शुचिका की नोक भर धरती न देकर
गोलियों का हार देगा
तब
बिकी बन्दूक की नलियाँ मुड़ेंगीं
रूप -जीवी सभ्यता की
लिजलिजी परतें उड़ेंगीं
मैं उसी दिन की प्रतीक्षा में
 अभी तक जी रहा हूँ | 

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